बिहार: सामंती नहीं, समाजवादी बनिए; तेजस्वी ने यादवों को क्यों दी सुधरने की सलाह?

बिहार में 14 फीसदी की आबादी वाली यादव जाति राजद के वोटबैंक का आधार है. आखिर क्या वजह है कि तेजस्वी इसके बावजूद यादवों की आलोचना कर रहे हैं और उन्हें सामंती और हुड़दंगी बता रहे हैं

कर्पूरी ठाकर जयंती के मौके पर मधुबनी जिले के फुलपरास में लोगों को संबोधित करते तेजस्वी यादव

"हम यादव भाईयों से कहना चाहते हैं कि सभी लोगों को साथ लेकर चलिए. जोड़ने का काम कीजिए और सामंती मत बनिए, समाजवादी बनिए. कुछ लोग होते हैं हुड़दंगी, कोई तेजस्वी या लालू जी से नाराजगी नहीं है. लेकिन कुछ लोग होते हैं ऐसे, जो अपने बात से, व्यवहार से, काम से लोगों को नाराज करते हैं.

यादव समाज ने चौधरी चरण सिंहजी को भी अपना नेता माना, कर्पूरी ठाकुरजी को भी अपना नेता माना, लोहियाजी को भी नेता माना, जेपीजी को भी नेता माना. माना की नहीं माना? तो हम लोगों को अति पिछड़ा भाईयों को, दलितों और अल्पसंख्यक भाईयों को साथ लेकर के चलना होगा. अगर आप लोग चाहते हो कि सरकार बने.

लालूजी तो कहते हैं कि पिछड़ों का इंजन यादव है, और सब बोगी है. सबलोगों को साथ लेकर के चलना है इस सफर में. तभी हमलोग अपनी मंजिल पर पहुंचेंगे."

बिहार के नेता प्रतिपक्ष और हाल ही में राजद में राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बराबर कद पाने वाले RJD नेता तेजस्वी यादव ने मधुबनी जिले के फुलपरास में कर्पूरी ठाकुर जयंती के मौके पर यह बात कही. 

मगर उन्होंने ऐसा क्यों कहा, वह भी ऐन कर्पूरी ठाकुर की जयंती के मौके पर यह सवाल पिछले कुछ दिनों से बिहार के राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है. तेजस्वी खुद यादव जाति से आते हैं और ऐसा माना जाता है कि बिहार में 14 फीसदी की आबादी वाली यादव जाति राजद का आधार वोट है.

इसके बावजूद वे यादवों की आलोचना कर रहे हैं और उन्हें सामंती और हुड़दंगी बता रहे हैं, उन्हें अपना स्वभाव बदलने की सलाह दे रहे हैं. यह बात कई लोगों के गले नहीं उतर रही. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या सचमुच यादव जाति सामंती हो गई है, हुड़दंगी हो गई है? 

हालांकि पार्टी के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव इंडिया टुडे से बातचीत में इन बातों से इनकार करते हैं. ‘वे कहते हैं, उन्होंने ऐसा किसी जाति विशेष के बारे में नहीं कहा, उन्होंने सामंती प्रवृत्ति के बारे में कहा है. हर जाति में सामंती प्रवृत्ति के लोग होते हैं. इंजन वाली बात उन्होंने नेतृत्व के सिलसिले में कही है और हुड़दंगियों को तो तेजस्वी जी कभी बर्दास्त नहीं करते.’

कर्पूरी ठाकुर की तस्वीर को प्रणाम करते तेजस्वी यादव

हालांकि, उनके इनकार के बावजूद बात खत्म नहीं होती क्योंकि राजद और तेजस्वी की तरफ से ऐसी बातें पहली दफा नहीं कही गई है. मई, 2017 में राजगीर में आयोजित राजद के कार्यकर्ता सम्मेलन में भी यह मसला उठा था. तब मंच से कहा गया था कि हमें 1995 से पहले की पार्टी बनना है, जब यादव जाति अपने इलाके के अति पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को संरक्षण देती थी, उनके हक की लड़ाई लड़ती थी.

आज यादवों को इंजन बनने कहा जा रहा है, मगर तब उसे छतरी बनने की सलाह दी गई थी. ऐसी छतरी जिसके नीचे सभी दलित और पिछड़ी जातियां और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आसरा लें. भाव वही था. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि आखिर वह कौन सी बात है जो पिछले आठ वर्षों से राजद को परेशान कर रही है, जिसकी वजह से पार्टी की तरफ से बार-बार यादवों को समावेशी बनने की सलाह दी जा रही है.

इस मसले पर टिप्पणी करते हुए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, ‘तेजस्वी अब राजद के निर्विवाद नेता हैं. मगर उनके सामने अतीत से जुड़ी दो चुनौतियां हैं. पहली वंशवाद की तो दूसरी इनके माता-पिता के शासनकाल की छवि की, जिसे आम जनमानस में जंगलराज के रूप में बिठा दिया गया है. वे जानते हैं, उनके पिता की अपील यादवों में है और सोशल जस्टिस के प्रतीक पुरुष के रूप में भी है, इसका लाभ तो उन्हें चाहिए. मगर साथ ही उन्हें जंगलराज की छवि से मुक्ति भी चाहिए. इसी कोशिश में उन्होंने यह टिप्पणी की है.’

इस बात को और विस्तार देते हुए पुष्पेंद्र कहते हैं, ‘तेजस्वी को इस बात का भी अहसास है कि उनकी पार्टी में कई ऐसे नेता हैं, जो दबंग और आपराधिक छवि के हैं, जिनके कारण पार्टी की बदनामी होती है. पार्टी का पारंपरिक नेतृत्व यादवों का है और यादवों की छवि उच्च्श्रृंखलों वाली है. दादागिरी करने वालों की छवि है. यह छवि आम तौर पर अति पिछड़ों, पसमांदा मुस्लिमों और खास कर औरतों को बिदका देती है. यह राजद की बड़ी कमजोरी है. अति पिछड़ा, दलित और महिलाएं पार्टी के साथ नहीं है.’

पुष्पेंद्र की बातों की छाप तेजस्वी यादव की हाल की गतिविधियों में भी नजर आती है. वे पिछले कुछ दिनों से लगातार बिहार की यात्रा कर रहे हैं और कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं. इन यात्राओं के दौरान वे खास तौर पर महिलाओं के साथ अलग से संवाद करते हैं. उन्होंने माई-बहिन मान योजना को भी अपना चुनावी वादा बनाया है, इसके तहत वे सरकार बनने पर हर महिला के खाते में प्रति माह 2500 रुपये देने की बात कहते हैं.

हाल ही में राजद ने बिहार के बड़े अति पिछड़ा नेता मंगनीलाल मंडल को पार्टी में शामिल कराया और चर्चा है कि जल्द उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. इतना ही नहीं पार्टी की तरफ से हाल ही में यह घोषणा भी की गई है कि किसी आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को इस विधानसभा में टिकट नहीं मिलेगा. 

महिलाओं को जोड़ने की कोशिश, दरभंगा के महिला संवाद में तेजस्वी यादव

तेजस्वी ने साफ तौर पर कहा है कि वे ठोक-बजाकर और जनता के बीच रहने वाले व्यक्ति को ही टिकट देंगे. किसी नेता के कहने पर किसी को टिकट नहीं मिलेगा. इन तमाम कदमों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि वे अब पार्टी की पुरानी और खासकर अपने पिता के दौर की छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. इस कोशिश में वे जंगलराज की छवि से तो बाहर निकालना चाह ही रहे. साथ ही अतिपिछड़ों और महिलाओं को अपने साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए उन्होंने यह टिप्पणी खास तौर पर कर्पूरी जयंती समारोह के मौके पर की. 

पिछले साल भारत रत्न पाने वाले कर्पूरी ठाकुर की एक पहचान बिहार में अति पिछड़ों के नेता के रूप में भी रही है. यह वही अति पिछड़ा समाज है, बिहार की जाति आधारित गणना में जिसकी आबादी 36 फीसदी मानी गई है और यह समाज पहले लालू यादव की चुनावी राजनीति का जिन्न माना जाता है, आजकल माना जाता है कि इस समुदाय का बड़ा हिस्सा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल युनाइटेड के पक्ष में मजबूती से खड़ा है.

राजद और तेजस्वी यादव द्वारा फुलपरास में कर्पूरी ठाकुर की जयंती का समारोह मनाने के पीछे इसी अति पिछड़ा समाज को अपने पक्ष में करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में तेजस्वी ने उस मौके पर यादव समाज के बारे में जो कहा, माना जा रहा है कि वह अपनी यादव जाति को कम, अति पिछड़ा समाज को अधिक संबोधित कर रहे थे. जो पिछले दो-तीन दशकों में राजद से दूर चली गई है.

पुष्पेंद्र यह भी मानते हैं कि जंगलराज की छवि की बुनियाद में यादवों का उच्चश्रृंखल व्यवहार है, इसी वजह से अति पिछड़ों, पसमांदा मुसलमानों, दलितों और महिलाओं की दूरी राजद से बढ़ी है और उऩका वोट प्रतिशत 35 फीसदी के पास जाकर ठिठक जाता है.

ऐसा माना जाता है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में भी राजद इसी वजह से बहुमत के करीब जाते-जाते ठिठक गई. कहा जाता है कि उस चुनाव में जब यादव जाति के लोगों को लगा कि वे पहले और दूसरे चरण में बढ़त ले रहे हैं तो उन्होंने हुड़दंग शुरू कर दिया. जिससे अति पिछड़ा और महिला वोटर सचेत हो गये. जंगलराज की आहट देखकर उन्होंने राजद के खिलाफ वोटिंग शुरू कर दी. ऐसे में राजद अब यह मानकर चल रहा है कि अगर उसे अपना आधार वोट बढ़ाना है तो ऐसी चीजों को नियंत्रण में रखना होगा. 

इस मसले पर टिप्पणी करते हुए राजनीतिक विश्लेषक अरुण अशेष कहते हैं, ‘राजद की इन कोशिशों में हमें यह भी देखना होगा कि हाल के वर्षों में पार्टी ने कार्यकर्ताओं के हरा गमछा ओढ़ने पर रोक लगा दी है और उन्हें हरी टोपी पहनने के लिए कहा है.’ 

वे कहते हैं, ‘एक समय में यादवों की छवि न्यायप्रिय जाति के रूप में रही है. मगर हाल की अवधारणा यह है कि उनकी छवि खराब हो गई है, इसका अति पिछड़ी जातियों में डर बना रहता है. कहीं भी बिहार में कोई यादव बदमाशी करता है तो कहा जाता है कि लालू यादव ने इनका मन बढ़ा दिया है. ऐसे में उस यादव के अपराध का फल राजद को भुगतना पड़ता है, वोटर पार्टी के खिलाफ हो जाता है. ऐसे में तेजस्वी की बात यादव मान लेते हैं तो इसका सभी को लाभ होगा. खास कर राष्ट्रीय जनता दल को.’

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