बिहार पेपर लीक मामला : जिन एसके सिंघल पर थी निष्पक्ष परीक्षा कराने की जिम्मेदारी, अब वही 'जांच के घेरे' में!

बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने 2023 सिपाही भर्ती परीक्षा में पेपर लीक के संबंध में पूर्व डीजीपी और सीएसबीसी के पूर्व अध्यक्ष एसके सिंघल (संजीव कुमार सिंघल) के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है

बिहार के डीजीपी एसके सिंघल की फाइल फोटो (फोटो: एएनआई)
बिहार के डीजीपी एसके सिंघल की फाइल फोटो (फोटो: एएनआई)

करीब 36 साल पहले, 1988 में जब पंजाब के जालंधर छावनी के रहने वाले सत्यप्रकाश सिंघल का बेटा आईपीएस अफसर बना, तो शिक्षक पिता को बड़ी खुशी हुई. बेटा एसके सिंघल (संजीव कुमार सिंघल) शुरू से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी मेधावी थे. जालंधर के डीएवी कॉलेज से मैथ्स ऑनर्स में स्नातक किया और गोल्ड मेडलिस्ट बने. यही नहीं, चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी से जब उन्होंने मैथ्स में ही पोस्ट ग्रेजुएशन किया, तो यहां भी गोल्ड मेडल पर निशाना साधने से नहीं चूके. इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक पंजाब में ही खालसा वीमेंस कॉलेज में अध्यापन का भी अनुभव हासिल किया.

1988 में आईपीएस बनने के बाद सिंघल बिहार कैडर के अधिकारी बने. इसी राज्य में सेवा देते हुए उन्होंने अपने पुलिस करियर के शीर्ष को भी छुआ, जब उन्हें 2020 में गुप्तेश्वर पांडेय के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की कमान सौंपी गई. सितंबर 2020 से दिसंबर 2022 तक सूबे के डीजीपी के रूप में सिंघल ने राज्य के पुलिस मुख्यालय सरदार पटेल भवन के करीब हर गलियारे में अपना प्रभाव जमाया. धाक ऐसी थी कि उनका हर एक शब्द राज्य भर के 80 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों के लिए कानून मुताबिक था. लेकिन अब समय का पहिया ऐसे घूमा है कि वे खुद ही कानून के चंगुल में आते दिख रहे हैं.

दरअसल, दिसंबर 2022 में जब एसके सिंघल राज्य के डीजीपी के पद से रिटायर हुए तो महज एक महीने के भीतर ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें एक बड़ा तोहफा दिया. जनवरी, 2023 में उन्हें सेंट्रल सिलेक्शन बोर्ड ऑफ कांस्टेबल (सीएसबीसी) का अध्यक्ष बना दिया गया. यह बिहार सरकार के गृह विभाग (आरक्षी शाखा) के तहत आने वाला एक चयन बोर्ड है, जो राज्य पुलिस में सिपाही की भर्ती के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है. पिछले साल इसने सिपाही की भर्ती के लिए 21 हजार से अधिक पदों के लिए विज्ञापन दिया था, जिसके लिए 1 अक्तूबर से शुरू होकर कई चरणों में परीक्षाएं होनी थीं.

लेकिन इससे पहले कि परीक्षा होती, उसी दिन सोशल मीडिया पर इसका पेपर लीक हो गया था. इस परीक्षा के लिए 37 लाख आवेदकों ने अप्लाई किया था, जिनमें से 18 लाख उम्मीदवार परीक्षा देने के योग्य पाए गए थे. लेकिन 1 अक्तूबर, 2023 को पहले चरण की परीक्षा से पहले ही पेपर लीक हो गया. बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने खुलासा किया था कि पेपर एग्जाम से चार दिन पहले ही लीक हो गया था. ईओयू की जांच में ये भी पता चला था कि जो प्रश्न पत्र मोतिहारी जाने वाले थे, वो गाड़ी पटना में लोड होकर छह घंटे खड़ी थी. और इसी दौरान अपराधियों ने पेपर लीक की घटना को अंजाम दिया.

अब ईओयू ने कहा है कि पेपर लीक के उस मामले में तत्कालीन सीएसबीसी के अध्यक्ष एसके सिंघल की भूमिका संदिग्ध पाई गई है. संस्था ने पेपर लीक की इस घटना के संबंध में सिंघल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश भी की है. हालांकि एजेंसी को सिंघल के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाने के लिए अभी पर्याप्ट सबूत जुटाने हैं, लेकिन उसकी जांच रिपोर्ट बताती है कि वे सीएसबीसी बोर्ड के प्रमुख के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में विफल रहे हैं.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया पर परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद 1 अक्टूबर, 2023 को भर्ती प्रक्रिया अचानक रोक दी गई, जिससे भर्ती प्रणाली की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे. दिसंबर 2023 में, जब खामियों के सबूत सामने आए तो सिंघल को पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. ईओयू की जांच में पाया गया कि सिंघल ने सिपाही भर्ती की परीक्षा के लिए पेपर की छपाई का ठेका जिस प्रिंटिंग प्रेस को सौंपा, वो भरोसे के काबिल नहीं थी.

ईओयू की अब तक की जांच के नतीजे में बिहार भर में 74 मामले दर्ज किए गए हैं और करीब 150 उम्मीदवारों की गिरफ्तारी हुई है. ईओयू की ओर से वर्तमान डीजीपी आलोक राज को लिखे गए पत्र में तत्कालीन सीएसबीसी चेयरमैन सिंघल की ओर से "लापरवाही" को उजागर किया गया है. 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के मौजूदा डीजीपी को लिखे पत्र में ईओयू ने लिखा, "जांच रिपोर्ट में तत्कालीन सीएसबीसी चेयरमैन संजीव कुमार सिंघल की ओर से लापरवाही का पता चलता है और यह भी पता चलता है कि मानक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया. हालांकि जांच रिपोर्ट (ईओयू डीआईजी द्वारा) सिंघल के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं दिखाती है, लेकिन वे चयन बोर्ड के प्रमुख के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में विफल रहे हैं."

9 सितंबर को लिखे गए इस पत्र में यह भी जिक्र है कि सिंघल "अपने कर्तव्यों को पूरा करने में लापरवाही बरत रहे थे और उन्होंने परीक्षा प्रक्रिया के हर चरण को फूलप्रूफ बनाने के लिए स्थापित मानकों का पालन नहीं किया." सिंघल के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करते हुए ईओयू ने कहा है कि "एक संगठित आपराधिक गिरोह द्वारा योजनाबद्ध तरीके से पेपर लीक करने के मामले में उनकी भूमिका संदिग्ध पाई गई है, और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए पर्याप्त सबूत उपलब्ध हैं."

ईओयू की यह सिफारिश सिंघल से उस मामले में चार दौर की पूछताछ के बाद आई है,  जिसमें कथित तौर पर बिना उसकी साख की पुष्टि किए एक प्रिंटिंग प्रेस को ठेका देने की बात कही गई थी. एजेंसी की जांच से पता चला है कि प्रश्नपत्र लीक मामले में शामिल गिरोह के सदस्यों ने प्रश्नपत्रों की छपाई प्रक्रिया से लेकर उनके परिवहन तक कस्टडी की शृंखला को तोड़ दिया था. 

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ संवाददाता अमिताभ श्रीवास्तव लिखते हैं, "जांच जारी रहने के बावजूद इस घोटाले ने बिहार में सरकारी भर्ती परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इससे निश्चित तौर पर सिंघल की विरासत पर भी दाग ​​लगा है. दुर्भाग्य से, पेपर लीक होना बिहार के लिए कोई नई बात नहीं है. राज्य में हाल के वर्षों में इसी तरह की गड़बड़ियों के कारण कई भर्ती परीक्षाएं रद्द की गई हैं. जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, सिंघल की एक समय की अजेय प्रतिष्ठा पर सवाल उठ रहे हैं."

बिहार में सरकारी भर्तियों में लिप्त भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हुए वे आगे लिखते हैं, "यह याद दिलाता है कि बिहार के सत्ता के गलियारों में कोई भी इंसान दोषमुक्त नहीं है. यह मामला राज्य में सरकारी भर्ती प्रणालियों के सामने आने वाली व्यापक चुनौतियों को भी बताता है, जहां पारदर्शिता और निष्पक्षता की लड़ाई एक सतत लड़ाई बनी हुई है."

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