JDU ने कैसे गंवाया 'बड़े भाई' का दर्जा और चिराग ने कैसे दिखाया दम!

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सीट शेयरिंग फॉर्मूला के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार JDU अपनी सहयोगी BJP से ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही

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पीएम मोदी के साथ नीतीश कुमार, ललन सिंह और चिराग पासवान (फाइल फोटो)

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सीटें घोषित होते ही पूर्णिया के निर्दलीय सांसद और खुद को कांग्रेस का एसोसिएट मेंबर कहने वाले पप्पू यादव ने X पर लिखा, “संजय झा ने आज अपना मिशन पूरा कर लिया, नीतीश कुमार जी को CM की कुर्सी छोड़ने हेतु मजबूर करने का षडयंत्र पूरा.” 

जैसी कि बिहार में चर्चा है, उसी हवाले से पप्पू यादव का इशारा था कि नीतीश कुमार की गिरती सेहत और निष्क्रियता का फायदा उठाकर JDU के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने NDA की बैठक में JDU के हितों से समझौता कर लिया. इन नेताओं पर आरोप लगाया जाता है कि ये JDU में BJP के आदमी हैं.

पप्पू यादव ने यह पोस्ट भले ही एक विरोधी नेता होने की वजह से JDU कार्यकर्ताओं के मन में आशंका के बीज डालने के इरादे से की हो, मगर यह भी सच है कि 12 अक्टूबर को सीट शेयरिंग की घोषणा के बाद JDU के खेमे में थोड़ी उदासी तो है. हालांकि सीटों के बंटवारे में JDU और BJP दोनों को बराबर रखा गया है और दोनों को 101 और 101 सीटें दी गई हैं, मगर JDU के नेताओं और आम कार्यकर्ताओं के मन में यह खबर एक टीस की तरह आई कि JDU से गठबंधन में बड़े भाई का दर्जा छिन गया.

2005 से जबसे NDA बिहार में सत्ता में आई है, तब से एक भी चुनाव में ऐसा नहीं हुआ कि NDA में JDU रही हो और उसे BJP से अधिक सीटें न मिली हों. 2010 के विधानसभा चुनाव में तो JDU को 141 और BJP को 102 सीटें मिली थीं. 2020 में जब JDU कमजोर पड़ने लगी थी, तब भी पार्टी को 115 सीटें दी गई थीं, जबकि BJP को उससे 5 सीटें कम मिली थीं. इस बीच में कोई ऐसा विधानसभा चुनाव नहीं हुआ, जब BJP और JDU सीटों के बंटवारे के मामले में बराबर रहे.

इस बार भी JDU इस बात पर अड़ी थी कि वह एक सीट ही सही मगर BJP से आगे रहेगी और अपना बड़े भाई का दर्जा बचाकर रहेगी. मगर जब दोनों को बराबर सीटें मिलीं तो एक तरह से JDU ने मनोवैज्ञानिक बढ़त गंवा दी.

यह रिपोर्ट लिखे जाने से पहले हमने JDU के कई नेताओं के सामने यह सवाल रखा मगर कोई इस मसले पर टिप्पणी करने के लिए तैयार नहीं हुआ. उनके स्वर में उदासी थी और शायद उन्हें एहसास नहीं था कि ऐसा फैसला भी हो सकता है. उन्हें यह भी पता नहीं था कि इस फैसले को कैसे डिफेंड किया जाए.    

हालांकि इसकी शुरुआत 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त से हो गई थी. तब पहली बार सीटों के बंटवारे में BJP JDU के मुकाबले एक ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ा था. जबकि 2009 तक लोकसभा चुनाव में JDU और BJP के बीच दस सीटों का फासला होता था. JDU 25 और BJP 15 सीटों पर लड़ती थी. 2019 में दोनों बराबर हुई और 2024 में BJP आगे निकल गई.

लोकसभा चुनावों में सीटों का बंटवारा

2004 :  JDU (24)     BJP (16)

2009 :  JDU (25)     BJP (15)

2014 :  दोनों अलग-अलग लड़े

2019 :  JDU (17)    BJP (17)

2024 : JDU (16)    BJP (17)      

 

हालांकि तब यह माना गया था कि भले ही लोकसभा में BJP बड़े भाई के रूप में नजर आये, विधानसभा में JDU का बड़े भाई का दर्जा बरकरार रहेगा.

इधर BJP की निगाह से देखें तो इस बंटवारे में कुछ गलत नहीं है. कहा जा रहा है कि सीटों की शेयरिंग लोकसभा के नतीजों के आधार पर हुई है. चूंकि 2024 लोकसभा में JDU और BJP की सीटें बराबर आई थीं, इसलिए दोनों को बराबर सीटें मिलीं. LJP ने पांच सीटें जीतें तो इस हिसाब से उसे 29 सीटें मिलीं और हम को एक सीट के बदले छह सीटें और उपेंद्र कुशवाहा को इस आधार पर छह सीटें दे दी गईं. कुशवाहा के मामले में यह दलील काम कर गई कि उनकी हार में कहीं न कहीं भितरघात हुआ था. यह भी कहा जा रहा है कि अगर 2020 विधानसभा के नतीजों के हिसाब से सीटें बंटती तो JDU को और कम सीटें मिलतीं.

यह भी कहा जा रहा है कि इन सब बातों की खबर नीतीश कुमार को है और सबकुछ उनकी मर्जी के मुताबिक हो रहा है.

इस बीच छोटे दलों सबसे ज्यादा खुश शायद LJP (रामविलास) के नेता चिराग पासवान होंगे. वे जितनी सीट चाहते थे, करीब-करीब उतनी ही उन्हें मिल गईं. हालांकि एक दिन पहले तक  यही कहा जा रहा था कि उन्हें 25-26 सीटें मिलने वाली हैं, मगर उन्हें 29 सीटें मिलीं तो हर कोई हैरत में था. यह भी कहा जा रहा है कि NDA के सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि पासवान वोटर अब चिराग के साथ मजबूती से खड़ा है और कुछ अन्य वर्गों का समर्थन भी उन्हें मिल रहा है, इसलिए उन्हें इतनी सीटें मिलीं. मगर इस प्रकरण से उनकी मोल-भाव की क्षमता भी जाहिर हुई है. कई दिनों की मशक्कत के बाद उन्हें मनाया जा सका है.

इस पूरे मसले पर टिप्पणी करते हुए टाटा सामाजिक संस्थान के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र कहते हैं, “सीटों के बंटवारे से जाहिर है कि 2020 में JDU के प्रदर्शन की वजह से उन्हें बराबरी पर लाया गया है, हालांकि अभी पार्टी के लिए उतनी शर्मिंदगी की बात नहीं है. जिस तरह वे 2020 में तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे, उनकी सीटें कम भी की जा सकती थीं.” 

चिराग को ज्यादा सीटें दिए जाने पर पुष्पेंद्र कहते हैं, “2020 में उन्होंने जो भूमिका निभाई थी (JDU को कमजोर करने की), BJP की तरफ से उन्हें उसका इनाम मिलना बाकी था जो इस बार दिया गया. अगर चिराग की पार्टी को वैसी ही सफलता मिली, जैसी 2024 में मिली थी तो BJP को गठबंधन के बीच बड़ी ताकत मिलेगी और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कहा भी जा सकता है.”

ऐसा है तो फिर JDU इस समझौते पर राजी क्यों हो गई?  पुष्पेंद्र दलील देते हैं कि JDU और नीतीश कुमार के सामने इसे ठुकराने का विकल्प अभी नहीं है, क्योंकि उन्हें पता है कि चुनाव में उन्हें BJP के वोटों की जरूरत होगी, इसलिए वे अभी इसका विरोध भी नहीं कर पा रहे.

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