राहुल-तेजस्वी के बीच बातचीत ठप! सीटों पर टकराव के बीच महागठबंधन अब कितना मजबूत?

बिहार में महागठबंधन की पार्टियां कुछ सीटों पर एक-दूसरे से खिलाफ ही उम्मीदवार उतार रही हैं तो वहीं हालात संभालने के लिए जरूरी संवाद ठप पड़ गया है

वोटर अधिकार यात्रा के दौरान महागठबंधन में दिखी एकता अब नदारद

दीवाली से एक दिन पहले 19 अक्टूबर को BJP के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पत्रकारों से बात कर रहे थे. पत्रकारों को खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार चुनाव के दौरान यात्राओं की जानकारी देने के लिए बुलाया गया था.

इसी दौरान जायसवाल ने विपक्षी महागठबंधन में चल रही खींचतान पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “NDA गठबंधन के पांचों दल पांडव के तरह एकजुट हैं, लेकिन महागठबंधन में कौरवों की तरह सिर-फुटौव्वल चल रहा है. RJD ने कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर दिया है और राजेश राम जी को लिखना पड़ रहा है कि दलितों का अपमान हम नहीं सहेंगे. जब सीट बंटवारे में इतना सिर फुटौव्वल हो सकता है, तो ये लोग सरकार क्या चलाएंगे …”

BJP की तरफ से आई यह टिप्पणी आधी तो सही ही है और इसलिए बहुत संगीन भी लेकिन यह रिपोर्ट लिखे जाने तक महागठंधन की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं आया. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद यह संवाददाता जब RJD दफ्तर पहुंचा तो वहां सन्नाटा पसरा था. पार्टी दफ्तर में सिर्फ एक प्रवक्ता मौजूद थे, उन्होंने इस पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया और कहा कि जब तक गठबंधन के मसले सुलझ नहीं जाते वे कुछ भी नहीं कह सकते.

महज कुछ हफ्ते पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे दिलीप जायसवाल की आक्रमकता और सबसे बड़े विपक्षी दल RJD की चुप्पी यह बताती है कि पिछले एक हफ्ते में बिहार की राजनीति में काफी कुछ बदल गया है. सर्वेक्षणों में कभी बराबर तो कभी आगे नजर आने वाला महागठबंधन इन दिनों आपसी संवादहीनता की वजह से कमजोर नजर आ रहा है. इसकी वजहें पिछले दो दिनों में घटी घटनाओं में देखी जा सकती है.

18 अक्टूबर की दोपहर 12 बजे कांग्रेस के कुछ असंतुष्ट नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम और विधायक दल के नेता शकील अहमद खान पर टिकटों के खरीद-बिक्री के गंभीर आरोप लगाए. जिस होटल में यह प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई उसी के कमरे में कांग्रेस के कुछ राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे, उन्होंने इन बागियों को न रोकने की कोशिश की, न मनाने की. इन नेताओं की अगुआई कर रहे कांग्रेस रिसर्च विंग के नेता आनंद माधव ने इंडिया टुडे को बताया कि उन्होंने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की घोषणा, शाम में ही कर दी थी. मगर इसे रोकने के लिए उनके पास पहला फोन तब आया जब वे कॉन्फ्रेंस करने बैठ चुके थे. 

इसके कुछ ही देर बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने एक मीडिया पोर्टल से बातचीत में जानकारी दी, “कुछ सीटों पर क्रॉस फाइटिंग के कारण गठबंधन का मामला उलझा हुआ है. इसका फैसला महागठबंधन के कोऑर्डिनेटिंग कमिटी के चेयरमैन तेजस्वी यादव को करना है. गेंद उनके पाले में है. हम उनका नेतृत्व मानते हैं और उनके फैसले को मानने के लिए तैयार हैं.” इससे पहले उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा था, “दलित दबेगा नहीं, झुकेगा नहीं, अब इंकलाब होगा.” जिसका जिक्र दिलीप जायसवाल अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर रहे थे.

दस से बारह सीटों पर आपने सामने होंगे गठबंधन के उम्मीदवार

दरअसल राजेश राम अपने क्षेत्र कुटुंबा से फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं और 20 अक्टूबर को वे नामांकन करने जा रहे हैं. इस बीच खबर है कि RJD ने वहां से सुरेश पासवान को लड़ाने का मन बनाया है, उन्होंने भी नामांकन की तैयार की है. इसी वजह से राजेश राम मुखर हैं. अंदरखाने की खबर है कि RJD ने कांग्रेस पर दबाव बनाया हुआ है कि वह वैशाली, लालगंज, वारसलीगंज और कहलगांव से अपने उम्मीदवार हटा ले, तभी RJD कुटुंबा से अपना उम्मीदवार हटाएगा. इन सभी सीटों पर कांग्रेस और RJD दोनों ने उम्मीदवार खड़े किए हैं.

टिकट बंटवारे का विरोध करते कांग्रेस के नेता

कांग्रेस की यह उलझन सिर्फ RJD के साथ नहीं है, CPI के साथ भी उसका मामला उलझा हुआ है. दोनों दलों के बीच की अदावत की असली वजह बेगुसराय की बछवाड़ा सीट है. कांग्रेस यहां से अपने युवा नेता गरीब दास को लड़ाना चाहती थी और CPI के नेता अवधेश राय उस सीट को किसी सूरत में छोड़ना नहीं चाहते. जब कांग्रेस ने वहां टिकट दे दिया तो CPI ने राजापाकड़, रोसड़ा और बिहारशरीफ की सीट पर भी कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार दे दिया.

आने वाले दिनों में CPI करहगर से भी अपने उम्मीदवार को खड़ा करने की तैयारी में है, जहां से कांग्रेस के सिटिंग विधायक संतोष मिश्रा मैदान में हैं. हालांकि रोसड़ा सीट पर CPI के उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने के कारण वहां की दिक्कत सुलझ गई है. CPI झंझारपुर से भी उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है, जो सीट महागठबंधन में VIP को मिली हुई है.

इसके साथ ही तारापुर और गौड़ा बौराम सीट पर RJD और VIP आमने-सामने हैं. हालांकि RJD ने गौड़ा बौराम सीट के लिए चुनाव आयोग को लिखकर दे दिया है कि वहां उनका कोई प्रत्याशी नहीं है, अब तारापुर सीट पर VIP को फैसला लेना है.

मगर कम से कम दस सीटों पर कांग्रेस, RJD और CPI के बीच उलझे मामले ने महागठबंधन के भीतर की अदावत को उजागर कर दिया है. फिलहाल इस खींचतान पर इन सभी दलों के बीच संवादहीनता की स्थिति है और इसी वजह से यह मामला जल्द सुलझता नजर नहीं आ रहा.

कैसे बनी संवादहीनता की स्थिति?

बताया जा रहा है यह संवादहीनता की स्थिति 15 अक्टूबर से है, जब तेजस्वी यादव इन मसलों पर राहुल गांधी से बातचीत के लिए दिल्ली गए. मगर कांग्रेस नेता उनसे नहीं मिले और उन्हें कृष्णा अलावरू से मिलकर बातचीत करने कहा. कहा जा रहा है, तभी से RJD और कांग्रेस के बीच संवादहीनता की स्थिति है.

तेजस्वी जब दिल्ली में थे तो लालू प्रसाद यादव ने पार्टी का सिंबल बांटना शुरू कर दिया था, मगर तेजस्वी ने लौटकर पहले सभी से पार्टी सिंबल वापस लिया. इसके बाद पहली बार पार्टी के उम्मीदवारों की सूची 19 अक्टूबर को सार्वजनिक हुई. इस बीच पहले चरण के लिए सिंबल बंटे जरूर मगर कोई सूची सार्वजनिक नहीं हुई.

इसी बीच एक बार VIP पार्टी के रूठने की खबर आई. 17 अक्टूबर को दोपहर बारह बजे पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी के प्रेस कान्फ्रेंस बुलाई मगर पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी और दीपांकर भट्टाचार्य के दखल के बाद वे माने. दरअसल उन्हें 16 से 18 सीटों के बीच सीटें मिलने की बात कही जा रही थी, मगर उनकी सीटें तय नहीं की जा रही थीं. इसी बात से मुकेश सहनी नाराज थे. 17 की शाम उन्हें 15 सीटों की सूची सौंपी गई, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.

इसी तरह CPI (ML) को 20 सीटें ऑफर की गईं. पिछली बार पार्टी ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और वे 12 सीटें जीत गए थे. उनकी मांग इस बार अधिक सीटों की थी, मगर महागठबंधन के बीच जिस तरह संवादहीनता की स्थिति थी उसमें तनाव बढ़ाने के बजाय वे इस संख्या पर मान गए. CPI और CPM को क्रमशः छह और चार सीटें ऑफर की गई हैं. CPM तो चार सीटों से संतुष्ट है, मगर CPI नौ से दस सीटों पर लड़ने का मन बना चुकी है.

कांग्रेस और RJD के बीच सीटों का मामला अभी भी फंसा हुआ है. बची 201 सीटें इन दोनों के बीच बंटनी है. JMM भी इस गठबंधन का हिस्सा बनने वाला था, मगर उससे बातचीत सफल नहीं हो पाई तो वह गठबंधन से बाहर हो गया है. अब तक कांग्रेस ने 54 और RJD ने 52 प्रत्याशियों की सूची जारी की है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस को 61 सीटों का ऑफर है. यानी शेष 140 सीटों पर RJD लड़ेगी. मगर इस बंटवारे की आधिकारिक घोषणा अब तक नहीं हुई है, यह गठबंधन के बीच गांठ का सबसे बड़ा उदाहरण साबित हो रहा है.

लीडरशिप गायब दिख रही है

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम के बयान से जाहिर है कि महागठबंधन की इस उलझन की सबसे बड़ी वजह लीडरशिप का अभाव है. राहुल गांधी जो वोटर अधिकार यात्रा के दौरान इस गठबंधन का चेहरा बनकर उभरे थे, वे बिहार की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से सक्रिय नहीं हैं. तेजस्वी महागठबंधन की कोऑर्डिनेटिंग कमिटी का चेयरमैन होने के बावजूद गठबंधन के मसले पर मौन हैं. कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अलावरू भी कुछ कह नहीं रहे. 

इस तनावपूर्ण स्थिति के बीच महागठबंधन की कोई बैठक नहीं हुई है. कांग्रेसियों को राहुल के सक्रिय होने का इंतजार है. तेजस्वी जो इस महागठबंधन के सबसे बड़े लीडर हैं, सबको साथ लेकर चलने में कामयाब होते नजर नहीं आ रहे.

RJD में भी विद्रोह

इस डेडलॉक की स्थिति में RJD में भी विद्रोह की स्थिति नजर आ रही है. RJD की महिला विंग की प्रमुख रितु जायसवाल ने 19 अक्टूबर को अपने क्षेत्र परिहार से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. पार्टी ने उन्हें परिहार के बदले बेलसंड की सीट ऑफर की थी. खबर यह भी है कि पार्टी की सबसे मजबूत महिला फेस होने के बावजूद उन्हें मनाया नहीं जा रहा है. बेलसंड से भी पार्टी ने नया उम्मीदवार फाइनल कर दिया है.

क्या चार्जशीट होने के कारण तेजस्वी दबाव में हैं?

बिहार के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी तेज है कि IRCTC घोटाले में चार्जशीटेड होने के बाद से ही तेजस्वी की सक्रियता कम हो गई है. वे न सिर्फ महागठबंधन को लेकर सुस्त हो गए हैं बल्कि अपनी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाते भी नजर नहीं आ रहे. जबकि पहले चरण की वोटिंग में बमुश्कित 16-17 दिन बचे हैं. हालांकि महागठबंधन से जुड़े कई बड़े नेता अनौपचारिक बातचीत में इस संभावना से इनकार करते हैं. मगर दबाव वाला नैरेटिव मीडिया के हलकों से आम जनता के बीच पसरता नजर आ रहा है.

क्या भारी पड़ेगी संवादहीनता और आपसी लड़ाई?

इस मसले पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष कहते हैं, “तमाम अवरोधों के बावजूद NDA बिहार के मतदाताओं के बीच एकता का संदेश देने में कामयाब रहा, मगर इस काम में महागठबंधन चूक गया और उसकी चूक सार्वजनिक है. अब जिस तरह पर्व-त्योहारों के बीच चुनाव में बहुत कम समय बचा है, महागठबंधन इस परसेप्शन को कैसे पलट पायेगा, यह देखने की बात होगी. वोटर अधिकार यात्रा के दौरान जिस तरह महागठबंधन ने अपने नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक के बीच एकता की छवियां बिहार को दिखाई थीं, वह अब ध्वस्त नजर आती हैं. सीट बंटवारे में अनियमितता की बात में भी तथ्य नजर आता है, इसलिए महागठबंधन के कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष गैरवाजिब नहीं है. जाहिर है, तेजस्वी के चार्जशीटेड होने का भी असर है. वे दबाव में होंगे. इस बात को लेकर अपने भाषणों में अमित शाह हमलावर भी नजर आ रहे हैं. इन सबका नकारात्मक असर तो पड़ना ही है.”

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