एक हत्या के बाद बारूद के ढेर में कैसे बदला मोकामा? इंडिया टुडे की ग्राउंड रिपोर्ट

आपराधिक पृष्ठभूमि के नेता अनंत सिंह की वजह से अक्सर चर्चा में आने वाले मोकामा में एक स्थानीय नेता दुलार चंद यादव की हत्या के बाद माहौल बेहद तनावपूर्ण दिख रहा है

अनंत सिंह पर लगे दुलारचंद की हत्या के आरोप
मोकामा से जदयू उम्मीदवार अनंत सिंह (दाएं) पर लग रहा है दुलार चंद यादव (बाएं) की हत्या का आरोप

मोकामा और बाढ़ के बीच का छोटा-सा गांव है लेमुआबाद. दोपहर पौने दो बजे के करीब इस गांव से होकर एक लंबा काफिला गुजर रहा है. दर्जनों कारों और एसयूवी गाड़ियों के इस काफिले के आगे-आगे एक ट्रैक्टर चल रहा है और ट्रेक्टर के आगे वाली हुड पर उस दुलार चंद यादव का पोता बैठा है. दुलार चंद की एक दिन पहले हत्या हुई है और ट्रैक्टर में उनका शव भी रखा है, जिसे पोस्टमॉर्टम के लिए बाढ़ के अनुमंडल अस्पताल ले जाया जा रहा है.

काफिले के आगे और साथ में गांव के कई किशोर और युवा चल रहे हैं और वे दुलार चंद यादव अमर रहे का नारा लगा रहे हैं. ये युवक काफी उत्तेजित नजर आते हैं, बीच-बीच में मोकामा से जदयू के प्रत्याशी अनंत कुमार सिंह को मां और बहन की गालियां देने लगते हैं. इस उग्र भीड़ को देखकर लगता है कि इस हत्या के बाद मोकामा बुरी तरह सुलग उठा है और किसी अनहोनी की आशंका भी बलवती हो उठती है.

दुलार चंद यादव के शव को ले जा रहा ट्रैक्टर और उसके आगे बैठा उनका पोता

यह काफिला नौ बजे के करीब दुलारचंद यादव के गांव तारातर से निकला है और वहां से बाढ़ कस्बा बमुश्किल 35 से 40 किमी होगा, मगर उसे वहां पहुंचने में काफी वक्त लग रहा है. लेमुआबाद गांव बाढ़ से दस किमी दूर है. इस काफिले को जानबूझकर धीमी गति से चलाया जा रहा है, क्योंकि इस पूरे रास्ते में जगह-जगह दुलार चंद यादव के समर्थक सड़क पर खड़े हैं, उनकी अंतिम झलक पाने के लिए. इनमें ज्यादातर दलित और पिछड़ी जाति के लोग हैं, उनकी यादव जाति के लोग पूरे रास्ते में सबसे अधिक उग्र नजर आ रहे हैं. इस तरह पोस्टमॉर्टम के लिए जा रहा दुलार चंद यादव का शव एक अंतिम विदाई यात्रा में बदल गया है. इस बीच खबर आती है कि पुलिस ने हत्या के दो आरोपियों को पकड़ लिया है. हालांकि इस पर वहां कोई खास चर्चा नहीं है.

चुनाव का वक्त है और राजनेता भावनाओं से भरे ऐसे माहौल के महत्व को समझते हैं, इसलिए राजद से मोकामा की प्रत्याशी वीणा देवी भी इस काफिले में शामिल होकर ट्रैक्टर पर चढ़ आई हैं. जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी लगातार ट्रैक्टर पर हैं और काफी गुस्से में नजर आते हैं.

इंडिया टुडे से बातचीत में पीयूष कहते हैं, "इस बार मोकामा से सामंती ताकतों का अंत होकर रहेगा, दुलार चाचा का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा." वे इस इलाके में 2022 से राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं. उन्होंने 2024 का लोकसभा चुनाव भी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी लड़ा था. इस बार वे राजद से टिकट के लिए प्रयासरत बताए जा रहे थे, कहा जाता है कि नब्बे के दशक से राजद के साथ जुड़े दुलार चंद यादव उनकी मदद कर रहे थे. मगर जब आखिरी वक्त में उनके बदले मोकामा के एक अन्य बाहुबली सूरजभान की पत्नी वीणा देवी को टिकट मिल गया तो जन सुराज के कुछ बड़े नेताओं ने रातोंरात उनकी मुलाकात प्रशांत किशोर से करवाई और उन्हें जन सुराज का टिकट मिल गया.

मोकामा से जनसुराज के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी

अति पिछड़ा धानुक जाति के पीयूष शुरुआत से ही इस इलाके में अगड़ा-पिछड़ा की लड़ाई लड़ने का दावा करते नजर आते हैं. उनकी शब्दावली में बहुजन और वाम विचारों की छाप दिखती है. 30 अक्टूबर को जो घटना हुई उसके बारे में भी पीयूष यही कहते हैं कि हमला पहले उन पर ही कराया जा रहा था, दुलार गलती से इस हमले के शिकार हो गए. हालांकि कई लोग इस बात को गलत बताते हैं. हालंकि यह सभी लोग स्वीकार करते हैं कि पीयूष के चुनाव में खड़े होने से अनंत सिंह को नुकसान होना तय है. क्योंकि पीयूष जिस धानुक जाति को अपने पाले में करने में जुटे हैं वह एनडीए और जदयू का वोटर माना जाता है. इस इलाके में इस जाति की आबादी भी ठीक-ठाक है.

बहरहाल यह साफ दिखता है कि दुलार चंद यादव की हत्या के बाद पीयूष इस सेंटीमेंट को भुनाने में वीणा देवी से कहीं आगे निकल रहे हैं. दुलार का परिवार भी उनके साथ सहज है, वीणा देवी के साथ दुलार के परिवार का रिश्ता औपचारिक दिखता है.

इंडिया टुडे से बातचीत में पीयूष आगे कहते हैं, "मीडिया बहुत बाहुबली, बाहुबली दिखाता था न, यही होता है बाहुबली. प्रशासन का साथ इनको मिला हुआ है. अनंत सिंह के लोग तीन बार इस प्रोसेशन पर पत्थरबाजी करवा चुके हैं." इस बीच वीणा देवी की गाड़ी पर भी पथराव की सूचना आई है. ये तमाम संकेत बताते हैं कि मोकामा में बारूद सी बिखरी है और जो कभी-भी विस्फोटक हो सकती है.

दुलार चंद की हत्या के वक्त क्या-क्या हुआ

यह हत्या मोकामा के टाल इलाके में 30 अक्टूबर को हुई.  दुलारचंद यादव के पोते नीरज कहते हैं, "जिस रास्ते से दादाजी और हम लोग जा रहे थे, वह सिंगल सड़क है, सामने से अनंत सिंह का काफिला आ रहा था. हम लोगों को देखकर उन लोगों ने गाड़ी रोक दी. गाड़ी से अनंत सिंह के साथ रहने वाले धर्मवीर और कर्मवीर उतरे और उन्होंने दादा जी को पकड़ लिया. तभी अनंत सिंह बंदूक लेकर आए और उन्होंने दादाजी के पांव में गोली मार दी. इससे भी कुछ नहीं हुआ तो उन लोगों ने रॉड से हमला कर दिया और दादाजी को गिराकर उन पर गाड़ी चढ़ा दी."

जन सुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी भी इस घटना का आंखों देखा ब्यौरा पेश करते हैं. वे बताते हैं, "दुलारचंद यादव हमारे साथ ही थे. पिछली सीट पर बैठे थे. अनंत सिंह के लोगों ने हमारे काफिले पर हमला कर दिया और गाड़ियों में तोड़फोड़ करने लगे. दुलार चाचा जब उन लोगों को समझाने गए तो अनंत सिंह ने उनके पांव में गोली मार दी. वे लोग मेरी हत्या भी कराना चाहते थे, कह रहे थे पीयूषवा को मारो, दुलार का मूंछ उखाड़ दो."

हालांकि अनंत सिंह इन आरोपों से इनकार करते हैं. उनका कहना है, "हम लोग टाल में वोट मांगने गए थे. वहां से लौट रहे थे तो देखे बहुत गाड़ी खड़ी थी. वे लोग हमको देखकर मुर्दाबाद मुर्दाबाद करने लगे. हम आगे बढ़ गए, हमारा तीस गाड़ी आगे बढ़ गया, दस पीछे रह गया. उस दस गाड़ी को ऊ लोग चूड़ना (तोड़ना) शुरू कर दिया. रोड़ा रखा था, ऊ लोग फुल तैयारी से था. कैसे गड़बड़ हो जाए, ई सब सूरजभान का खेला है, वही सब करवाया है."

हालांकि इंडिया टुडे ने जब इस मुद्दे पर सूरजभान से टिप्पणी मांगी तो उन्होंने हाथ जोड़ दिए. कहा, "हम बहुत परेशान हैं, हमको अभी छोड़ दीजिए." हालांकि बाद में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, "यह बहुत दुखद घटना है. इससे बिहार ही नहीं पूरे देश की बदनामी हो रही है. और इस बदनामी की वजह चुनाव आयोग है. चुनाव आयोग को अपने तरीके में बदलाव लाना चाहिए और पक्ष और विपक्ष दोनों को इसके लिए दबाव बनाना चाहिए." अनंत सिंह के आरोप के जवाब में एक बार फिर उन्होंने मीडिया के आगे हाथ जोड़ लिए.

मोकामा में कैसे बिछी बाहुबलियों की बिसात?

इस बार मोकामा विधानसभा में दोनों गठबंधन ने ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया जिनकी बाहुबल यानी आपराधिक पृष्ठभूमि रही है. एक तरह जदयू ने अपने उस पुराने सहयोगी अनंत सिंह को चुनाव में उतारा, जिनकी पत्नी नीलम देवी पिछला चुनाव राजद के टिकट पर लड़कर जीत चुकी थीं. वहीं राजद ने अपना प्रत्याशी उन सूरजभान की पत्नी वीणा देवी को बनाया जो 2000 विधानसभा में अनंत के बड़े भाई दिलीप सिंह को हरा चुके थे. वे हाल हाल तक पशुपति पारस की लोक जनशक्ति पार्टी के बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाते थे, मगर जब पारस की पार्टी का समझौता महागठबंधन से नहीं हो सका तो वे रातोरात राजद में शामिल हो गए और हाल ही में मोकामा में 'अपराध के खिलाफ कलम' बांटने वाले तेजस्वी ने उनकी पत्नी को राजद का उम्मीदवार बना दिया.

मोकामा से राजद उम्मीदवार वीणा देवी के पति सूरजभान

कहा जाता है कि जब तेजस्वी मोकामा में कलम बांट रहे थे तो उनकी निगाह में प्रियदर्शी पीयूष ही राजद के प्रत्याशी थे, जिन्होंने 2023 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से सामाजिक कार्य में एमए किया है. वे धानुक जाति से हैं, जिसकी आबादी मोकामा में 85 हजार के करीब बताई जाती है. पिछले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़कर प्रियदर्शी ने मोकामा के इलाके से 11 हजार वोट हासिल किए थे. इसलिए उनका दावा मजबूत था. जब तेजस्वी मोकामा में कलम बांट रहे थे तो उनकी प्रियदर्शी के साथ तस्वीर भी सामने आई थी.

लेकिन जब जदयू ने मोकामा से अनंत सिंह को उतारा तो -  लोहा लोहे को काटता है- की तर्ज पर राजद ने सूरजभान का साथ स्वीकार लिया.

अनंत सिंह की जदयू से उम्मीदवारी की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं. पिछला चुनाव राजद से जीतने वाली नीलम देवी आखिरी दिनों में जदयू की तरफ आ गई थी, मगर कहा जाता है कि अब अनंत सिंह खुद चुनाव लड़ना चाहते थे. इस पक्ष में मुंगेर के जदयू सांसद ललन सिंह भी थे, क्योंकि मोकामा उनके क्षेत्र में आता है. चुनाव से कुछ दिन पहले अनंत सिंह जमानत पर रिहा हुए.

जदयू में एक दूसरे के विरोधी माने जाने वाले ललन सिंह और अशोक चौधरी ने उन्हें नीतीश कुमार से मिलवाया और उनका टिकट पक्का करवाया. एनडीए के एक कार्यकर्ता सम्मेलन में तो ललन सिंह ने अनंत सिंह को मोकामा का रक्षक तक बता दिया.

जहां तक दुलार चंद यादव का सवाल है, वे नब्बे के दशक से मोकामा के टाल इलाके में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं. उन्होंने 1995 में चुनाव भी लड़ा. वे लालू परिवार के भी करीबी रहे हैं. टाल के इलाके में रहने के कारण मोकामा के किसानों से इनकी अदावत होती रहती थी. मगर अपने क्षेत्र में अपनी जाति और अन्य पिछड़ों के बीच काफी लोकप्रिय रहे.

दुलार चंद के बारे में कहा जाता है कि उनकी एक आदत व्यक्तिगत टिप्पणी करने की भी थी. वे अक्सर अनंत सिंह के खिलाफ विवादित बयान दिया करते थे. बताया जाता है कि उन्होंने अनंत सिंह की पत्नी के खिलाफ भी अमर्यादित टिप्पणियां की थीं. हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में यादव ने उनकी मदद भी की. अभी हाल के दिनों में वे प्रियदर्शी पीयूष को लेकर काफी गंभीर थे. इस दौरान उन्होंने अनंत सिंह के खिलाफ कई बार व्यक्तिगत टिप्पणियां कीं. जब प्रियदर्शी को जन सुराज से टिकट मिला तो वे उनके साथ प्रचार अभियान चलाने लगे थे. ऐसा कहा जाता है कि पीयूष के जदयू समर्थक धानुक मतदाताओं में पैठ और दुलार की व्यक्तिगत टिप्पणियों की वजह से अनंत सिंह की इन दोनों से अदावत तो थी.

चार दशकों का आपराधिक इतिहास रहा मोकामा का

मोकामा में हुई यह चुनावी हिंसा नई नहीं है. इस विधानसभा क्षेत्र का चार दशकों का आपराधिक इतिहास रहा है. यहां से पहले कांग्रेस के श्याम सुंदर सिंह धीरज विधायक चुने जाते थे. वे बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उनके खिलाफ 1985 में पहली बार अनंत के बड़े भाई दिलीप सिंह निर्दलीय चुनाव में उतरे, वे जीत तो नहीं सके, मगर उन्होंने उन्हें कड़ी टक्कर दी.

1990 में दिलीप सिंह को जनता दल ने अपना उम्मीदवार बनाया. धीरज कहते हैं, "इसके पीछे कहीं न कहीं नीतीश कुमार की भूमिका थी, जो उस वक्त बाढ़ से सांसद थे. उन्होंने मुझसे कहा भी था कि मैंने आपके लिए एक आदमी चुन लिया है."

आपराधिक रिकॉर्ड वाले दिलीप सिंह का जब आतंक बढ़ने लगा तो उसकी काट के लिए मोकामा के लोगों ने 2000 में जेल में बंद सूरजभान को मैदान में उतारा, जो भारी मतों से जीत गए, मगर उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ गई तो वे मोकामा को छोड़कर लोकसभा चुनाव लड़ने बलिया चले गए. मगर दिलीप सिंह के राजनीति में आने के बाद से मोकामा में अपराध और गैंगवॉर चरम पर पहुंचने लगा.

2005 में जदयू ने दिलीप के छोटे भाई अनंत सिंह को उम्मीदवार बनाया, जिसे यहां छोटे सरकार कहा जाने लगा. तब से आज तक वे मोकामा की राजनीति की धुरी बने हुए हैं. वे अलग-अलग केसों में जेल जाते-आते रहे और, मगर इस बीच वे निर्दलीय चुनाव भी जीतते रहे. इन्हीं वजहों से मोकामा की सीट पर यह टैग लग गया है कि यहां से सिर्फ बाहुबली ही चुनाव जीत सकते हैं.

हालांकि 2020 में जदयू ने प्रयोग के तौर पर यहां से एक गैर आपराधिक छवि के उम्मीदवार राजीव लोचन को टिकट दिया, मगर वे हार गए. उनके साथ चुनावी अभियान चलाने वाले किसान नेता आनंद मुरारी कहते हैं, "राजीव के पिता वेंकटेश नारायण शर्मा अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी थी और उनके कहने पर वाजपेयी जी ने 1989 के चुनाव में बाढ़ लोकसभा सीट पर नीतीश की मदद की थी. नीतीश जी को उनका अहसान उतारना था. हालांकि उस वक्त राजीव लोचन को हराने के लिए मोकामा के सभी बाहुबली एक हो गए, यहां के बुद्धिजीवियों ने भी उनका साथ नहीं दिया, इस तरह यह प्रयोग असफल हो गया."

मुरारी के मुताबिक, "मोकामा को अपराध और अपराधियों से बचाना है तो दोनों गंठबंधनों को एक साथ यह तय करना होगा कि वे किसी अपराधी को टिकट नहीं देंगे. मगर ऐसा होता कहां है?"

बहस से गायब हैं जमीनी मुद्दे

मोकामा जो कभी बिहार का एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र था, जहां बाटा, मैकडॉवेल, भारत वैगन और सूत फैक्ट्री जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियां थीं. इस क्षेत्र में बढ़ते अपराधों के साथ एक-एक कर सारी कंपनियों ने अपना कारोबार समेट लिया. यहां के किसानों की संपन्नता की वजह टाल (एक भौगोलिक क्षेत्र) की खेती हुआ करती थी, मगर पिछले कुछ वर्षों से यहां से पानी निकलने में देरी हुआ करती है, इस वजह से दलहन की फसल में किसानों को नुकसान होता है. अभी भी कहीं-कहीं टाल में पानी अटका है, जिस वजह से तीस फीसदी से अधिक फसल के प्रभावित होने का अनुमान है. मगर ये दोनों मसले चुनावी बहस से गायब हैं.

इस वक्त मोकामा में हर जगह अनंत सिंह, सूरजभान, दुलारचंद और प्रियदर्शी की चर्चा है, उनके बखान हैं, मगर कोई बंद पड़ी फैक्ट्रियों और टाल में अटके पानी की बात नहीं कर रहा.

आनंद मुरारी कहते हैं, "मोकामा को इस हाल में लाने में यहां के बुद्धिजीवियों की भी कम भूमिका नहीं है. पूरे साल यहां के विकास की बात करने वाले पढ़े लिखे लोग चुनाव के वक्त अपने-अपने बाहुबलियों का पाला पकड़ लेते हैं. ऐसे में बदलाव कैसे हो? "
 

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