अयोध्या का दीपोत्सव फिर बनाएगा नया रिकार्ड, लेकिन कैसे हो रहीं इतने बड़े आयोजन की तैयारियां?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 19 अक्टूबर को दीप प्रज्ज्वलन कर अयोध्या के दीपोत्सव की शुरुआत करेंगे

Preparations for Deepotsav in Ayodhya are in full swing (Photo- ITG)
अयोध्या में दीपोत्सव की तैयारियां जोरों पर (Photo- ITG)

उत्तर प्रदेश में यह सिलसिला पिछले 8 साल से चल रहा है. दीपावली के दिन नजदीक आने के साथ पूरी सरकार और जनता का ध्यान अयोध्या की तरफ खिंचने लगता है, क्योंकि बीते सालों में यहां का दीपोत्सव लगातार भव्य होता गया है.

योगी आदित्यनाथ सरकार के नेतृत्व इस बार अयोध्या में नौवां दीपोत्सव होने जा रहा है और इसे अब तक का सबसे भव्य और ऐतिहासिक आयोजन बताया जा रहा है. सरयू नदी के किनारे 56 घाटों पर इस बार 28 लाख दीपों का प्रकाश फैलाया जाएगा. 

पहले यह संख्या 26 लाख तय की गई थी, लेकिन सरकार ने इसे बढ़ाकर एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने का लक्ष्य रखा है. गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में पहले से दर्ज अयोध्या का नाम एक बार फिर इतिहास रचने की तैयारी में है. पहली बार लक्ष्मण किला घाट को भी इस आयोजन में शामिल किया गया है, जहां सवा चार लाख दीप प्रज्वलित होंगे. 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 19 अक्टूबर को खुद दीप प्रज्ज्वलन कर दीपोत्सव की शुरुआत करेंगे. “जय श्रीराम” के उद्घोष से पूरा सरयू तट गूंजेगा, और लाखों श्रद्धालु उस क्षण के साक्षी बनेंगे जब अयोध्या एक बार फिर अपने गौरवशाली अतीत और भव्य वर्तमान को एक साथ जिएगी. 

अयोध्या अब केवल धार्मिक स्थल नहीं रही. यह धार्मिक, पर्यटन और व्यापार का त्रिकोण बनकर भी उभरी हैं जिसके सामाजिक और पर्यावरणीय पहलू भी हैं. बीते आठ वर्षों में योगी सरकार ने दीपोत्सव को न सिर्फ धार्मिक आयोजन के दायरे से बाहर निकाला, बल्कि इसे “सांस्कृतिक कूटनीति” का माध्यम बना दिया. अयोध्या में दीपोत्सव के साथ-साथ शहर का सौंदर्यीकरण और बुनियादी ढांचा विकास अभूतपूर्व स्तर पर चल रहा है. 

राम की पैड़ी अब पूरी तरह विश्वस्तरीय रूप में नजर आती है. 2324.55 लाख रुपये की लागत से बनी नई दर्शक दीर्घा में एक साथ 18 से 20 हजार लोग बैठ सकते हैं. यहां स्थापित भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की विशाल पाषाण प्रतिमाएं सेल्फी पॉइंट के रूप में श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही हैं. 

वित्त वर्ष 2024-25 में स्वीकृत 2367.61 लाख रुपये की नई परियोजना के तहत राम की पैड़ी और भी भव्य स्वरूप में दिखाई देने वाली है. यहां आठ छोटे एम्फीथिएटर, छह पत्थर की छतरियां, सात मीटर ऊंचे दीप स्तंभ और आकर्षक प्रकाश व्यवस्था बनाई जा रही है. सरयू तट के लगभग 2.5 किलोमीटर लंबे क्षेत्र में घाटों का जीर्णोद्धार चल रहा है, जिस पर 2346.11 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं. पत्थर की छतरियां, पूजा स्थल, इंटरप्रिटेशन वॉल और वीआईपी पवेलियन इस क्षेत्र को नया स्वरूप दे रहे हैं. यूपीपीसीएल के परियोजना प्रबंधक मनोज शर्मा कहते हैं, “अयोध्या में जो काम हो रहे हैं, वे सिर्फ निर्माण नहीं बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण हैं. राम की पैड़ी और सरयू घाटों के सौंदर्यीकरण से अयोध्या की आत्मा को आधुनिकता के साथ जोड़ा गया है.” 

इस साल दीपोत्सव में 75,000 लीटर तेल और 55 लाख रुई की बत्तियों की जरूरत होगी. डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या दीपोत्सव का नोडल संस्थान है. विश्वविद्यालय ने प्रो. संत शरण मिश्र के निर्देशन में 22 समितियां बनाई गई हैं. इनमें दीप गणना, सुरक्षा, यातायात, स्वच्छता, मीडिया, रंगोली और अनुशासन समितियां शामिल हैं. 

करीब 30 हजार स्वयंसेवक दीये जलाने से लेकर घाटों की सजावट तक के काम में जुटे हैं. प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में दीयों को एक साथ प्रज्ज्वलित करना किसी युद्ध जैसी तैयारी मांगता है. इस बार अयोध्या में दीपोत्सव की तैयारियों में ही 100 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं. 

पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर असर

दीपोत्सव ने अयोध्या को धार्मिक पर्यटन के वैश्विक नक्शे पर ला खड़ा किया है. उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (यूपीएसटीडीसी) ने इस साल लखनऊ से अयोध्या तक एकदिवसीय विशेष पैकेज शुरू किया है. उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (यूपीएसटीडीसी) बसों से 19 अक्टूबर को पर्यटकों को लेकर लखनऊ जाएगा और वहां दीपोत्सव और अन्य मंदिरों के दर्शन कराकर उसी दिन रात में लखनऊ लौट आएगा. इसके लिए सभी बसें बुक हो चुकी हैं जिससे पर्यटकों के उत्साह का अंदाजा लगाया जा सकता है.

पर्यटन मंत्री डॉ. जयवीर सिंह ने बताया, “दीपोत्सव सिर्फ एक उत्सव नहीं, यह एक भावना है. यह आयोजन लोगों को आस्था और प्रकाश के माध्यम से जोड़ता है और उत्तर प्रदेश को विश्व पर्यटन का केंद्र बनाने की दिशा में अहम कदम है.” इस यात्रा में स्थानीय गाइड यात्रियों को भगवान राम से जुड़ी कथाएं सुनाएंगे. पिछले वर्षों में इस यात्रा में परिवारों और वरिष्ठ नागरिकों की बड़ी भागीदारी रही है. 

इस बार रिकॉर्ड बुकिंग हो चुकी है. अयोध्या के व्यापारी भी दीपोत्सव को लेकर उत्साहित हैं. सरयू घाट के पास मिठाई की दुकान चलाने वाले राजेश गुप्ता कहते हैं, “दीपोत्सव के हफ्तेभर पहले से इतनी भीड़ रहती है कि दुकानें रात-दिन चलती हैं. होटल, ऑटो, नाविक- सभी को काम मिलता है. अयोध्या में यह अब त्योहार नहीं, आर्थिक उत्सव बन गया है.” राजेश के मुताबिक अकेले दीपोत्सव में उनकी आमदनी एक हफ्ते की कुल आमदनी से अधिक होती है. प्रशासनिक अनुमान के मुताबिक दीपोत्सव में कम से कम पांच लाख लोग आसपास के जिलों से अयोध्या में जुटते हैं. अगर आने जाने और अयोध्या में रहने खाने पर प्रति व्यक्त‍ि औसतन 1000 रुपए भी खर्च कर रहा है तो अकेले एक दिन कम से कम 50 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होते हैं. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है. 

सांस्कृतिक कूटनीति और राजनीतिक संदेश

दीपोत्सव अब एक राजनीतिक प्रतीक भी बन चुका है. अयोध्या में दीपोत्सव से ठीक पहले योगी सरकार ने राममंदिर के पास टेढ़ी बाजार चौराहे का नाम बदलकर निषाद चौराहा कर दिया है. साथ ही राम मंदिर में बने वाल्मीकि मंदिर की दीवार में ताम्रपत्र में वाल्मीकि का जीवनवृत्त उकेरा गया है. 

इस तरह योगी सरकार ने दीपोत्सव की तैयारियों के जरिए पिछड़ा और दलित समाज को भी संदेश देने की कोशिश की है. राजनीतिक विश्लेषक और अयोध्या के प्रतिष्ठ‍ित साकेत कालेज के पूर्व प्राचार्य वी. एन. अरोरा कहते हैं, “दीपोत्सव अब यूपी सरकार की ब्रांडिंग का हिस्सा है. यह आयोजन बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उस धारणा को पुष्ट करता है, जिसमें धर्म, संस्कृति और विकास- तीनों एक सूत्र में बंधे हैं.” विपक्ष हालांकि इसे सरकार की “राजनीतिक रंगत” देने की कोशिश बताता है. अयोध्या से सपा के पूर्व विधायक पवन पांडेय बताते हैं, “अयोध्या आस्था का केंद्र है, लेकिन सरकार इसे सियासी मंच बना रही है. दीपोत्सव को जनभागीदारी से ज्यादा प्रशासनिक तमाशे में बदला जा रहा है. दीपोत्सव से पहले अयोध्या की गलियों और सड़कों में आवाजाही पर पाबंदी लग जाती है जिससे स्थानीय लोग त्योहार की खरीददारी नहीं कर पाते. ऐसे में पिछले कई वर्षों से अयोध्या के स्थानीय लोग दीपावली का त्योहार ठीक से नहीं मना पा रहे हैं.” 

हालांकि प्रशासन इस आलोचना को खारिज करता है. अयोध्या में तैनात एक अपर जिलाधिकारी बताते हैं, “दीपोत्सव में तो स्थानीय लोगों की सबसे ज्यादा भागीदारी होती है. सड़कों पर कोई पाबंदियां नहीं होती बल्क‍ि ट्रैफिक के दबाव को कम करने के लिए कुछ डायवर्जन होते हैं.” 

दीपोत्सव के सामाजिक प्रभाव भी कम नहीं हैं. इस आयोजन में हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं- स्थानीय छात्र, महिलाएं, स्वयंसेवी संगठन और छोटे कारोबारी. अयोध्या की गलियों में महिलाएं दीप सजाती दिखती हैं, जबकि कॉलेज के छात्र रंगोली बनाते हैं. 

यह आयोजन अयोध्या की सामाजिक बुनावट में भी एक नई एकता का भाव भर रहा है. शहर के मुस्लिम कारीगर भी दीपोत्सव की तैयारी में जुड़े हैं. हनुमानगढ़ी के पास की गली में मिट्टी के दीप बनाने वाले सलीम अंसारी कहते हैं, “हम सालों से दीये बना रहे हैं. अब सरकार का ऑर्डर मिलने से काम बढ़ा है. अयोध्या हमारी भी है, त्योहार सबका है.” इतनी बड़ी संख्या में दीप जलाने के साथ पर्यावरणीय चिंता भी उठी है. हालांकि प्रशासन ने इस बार पर्यावरण-मित्र मिट्टी के दीप और बायोडिग्रेडेबल तेल का उपयोग सुनिश्चित किया है. दीपोत्सव के बाद घाटों की सफाई के लिए स्वच्छता समिति बनाई गई है.

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