अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद मोकामा में बाहुबल की राजनीति खत्म होने की कितनी उम्मीद?

बिहार का मोकामा बीते 35 सालों के आपराधिक छवि वाले नेताओं की विधानसभा सीट के तौर पर चर्चा में रहा है

बाहुबली विधायक अनंत सिंह (File Photo: ITG)
अनंत सिंह (फाइल फोटो)

“सत्यमेव जयते.” मोकामा के पूर्व विधायक और इस चुनाव में जदयू के प्रत्याशी अनंत सिंह के सोशल मीडिया अकाउंट से यही पोस्ट हुआ. रात एक बजे के करीब. एक नवंबर को उनकी गिरफ्तारी के ठीक बाद. उस पोस्ट में एक वीडियो था, जिसमें पुलिस उनके घर जाती नजर आ रही थी और वे अपने घर से निकल रहे थे. 

30 अक्टूबर 2025 को उनके खिलाफ मोकामा टाल के प्रभावशाली नेता दुलार चंद यादव की हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था और उन्हें नामजद अभियुक्त भी बनाया गया था. मगर उनकी गिरफ्तारी दो दिन बीत जाने के बाद हुई. इस बीच अनंत सिंह ने अपने समर्थकों के साथ मोकामा शहर के बीचो-बीच जनसंपर्क अभियान भी चलाया. 

जनसंपर्क के दौरान अनंत सिंह सीना ताने और अपनी खास अदा में हाथ जोड़ते हुए घूमते नजर आए. खबर यह भी आई कि उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई है.

इस बीच इंडिया टुडे से बातचीत में मोकामा से जन सुराज के प्रत्याशी प्रियदर्शी पीयूष कहते हैं, “यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है और आज के जमाने में एक व्यक्ति खुद को क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम से इतना ऊपर समझ रहा है कि दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर रहा है. सीट निकालना, नहीं निकालना अपनी जगह है, मगर कोई पार्टी ऐसे व्यक्ति को कैसे टिकट दे सकती है. अनंत सिंह जैसा राक्षस कैसे चुनकर सदन जा रहा है. आप टिकट देकर कैसे उसकी वैधानिकता पर मुहर लगाते हैं.”

जबकि गिरफ्तारी के बाद अनंत सिंह के अकाउंट से ‘सत्यमेव जयते’ का जो पोस्ट किया गया, उसमें आगे लिखा गया है, “मुझे मोकामा की जनता पर पूर्ण भरोसा है, इसलिए चुनाव अब मोकामा की जनता ही लड़ेगी.”

ये वही अनंत सिंह हैं, जिन्होंने अपने एफिडेविट में यह जानकारी दी है कि उन पर 28 मुकदमे दर्ज हैं. इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपरहण, हत्या के लिए धमकाना, चोरी, डकैती, घर और संपत्ति पर कब्जा करने, अपराधिक साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप भी हैं. ये मुकदमे 1979 से 2025 तक के हैं. इस एफिडेविट को पेश करने के बाद उन पर हत्या का यह एक और मुकदमा दर्ज हुआ है. मगर इतने संगीन अपराधों में शामिल होने के आरोप के बावजूद वे बिहार के राजनीतिक दलों के ‘पसंदीदा’ प्रत्याशी रहे हैं.

2005 से लेकर अब तक वे मोकामा से पांच बार विधायक चुने जा चुके हैं. छठी बार उनकी पत्नी नीलम देवी 2022 में तब मोकामा की विधायक चुनी गई, जब अवैध रूप से AK-47 जैसे हथियार रखने के आरोप में उन्हें कसूरवार ठहराया गया था और उन्हें दस साल की सजा सुनाई गई थी.

अनंत सिंह तीन बार जदयू के टिकट से मोकामा के विधायक चुने गए, एक बार निर्दलीय चुनाव जीता और एक बार राजद के टिकट पर. उनकी पत्नी नीलम देवी भी राजद के टिकट पर ही विधायक चुनी गईं मगर विश्वास मत के वक्त उन्होंने पाला बदल लिया और अब वे जदयू के साथ हैं. मोकामा से निर्दलीय चुनाव जीतकर अनंत सिंह ने बिहार के दोनों प्रमुख गठबंधनों को संदेश दिया है कि इस विधानसभा सीट पर वे ही जीत की गारंटी हैं. इसलिए दोनों गठबंधन उन्हें अपने पाले में रखने की कोशिश करते रहे हैं.

इस बार भी ऐन चुनाव के पहले अगस्त, 2025 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें रिहाई दी और उनके रिहा होते ही मुंगेर के सांसद ललन सिंह ने उनसे संपर्क साधा. बिहार सरकार में मंत्री और जदयू के बड़े नेता अशोक कुमार चौधरी के आवास पर 31 अगस्त को उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कराई गई और 16 सितंबर को NDA के कार्यकर्ता सम्मेलन में सांसद ललन सिंह ने कहा, “मोकामा का रक्षक एक नीतीश कुमार, दूसरा अनंत सिंह है.”

हैरत की बाद है कि महागठबंधन (राजद) की तरफ से मोकामा में वीणा देवी को टिकट दिया गया है. उनके पति सूरजभान की भी आपराधिक पृष्ठभूमि है. 2004 में जब वे बलिया लोकसभा से सांसद चुने गये थे, तब उन पर भी 17 मुकदमे थे. इनमें भी हत्या, हत्या के प्रयास, फिरौती और डकैती जैसे गंभीर आरोप थे. इस चुनाव का टिकट हासिल करने से पहले वे पशुपति पारस की लोक जनशक्ति पार्टी में थे. इस बीच राजद की तरफ से तेजस्वी यादव ने 17 सितंबर को बिहार अधिकार यात्रा के दौरान युवाओं के बीच कलम बांटा और कहा, “जहां लोग युवाओं के हाथ में बंदूक थमाते हैं, वहां मैं कलम बांटने आया हूं.” फिर ऐन चुनाव के वक्त सूरजभान सिंह ने पाला बदल लिया और राजद ने उनकी पत्नी वीणा देवी को टिकट दे दिया. प्रियदर्शी पीयूष के शब्दों में, “इस तरह से मोकामा में फिर से AK-47 बनाम AK-56 की लड़ाई तय हो गई.”

औद्योगिक शहर रहे मोकामा की पहचान कैसे बदली

मोकामा की पहचान 1990 से पहले बिहार के एक बड़े औद्योगिक शहर के तौर पर होती रही है. यहां बाटा, मैकडोवल, भारत वैगन, नेशनल टेक्सटाइल जैसी कंपनियों की फैक्टरियां हुआ करती थीं. बताते हैं कि यहीं आजाद भारत के पहले चुनाव में स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर जगदीश नारायण सिंह को अपना उम्मीदवार चुना था और उनके खिलाफ कोई खड़ा नहीं हुआ.

इसी मोकामा के साथ पिछले 35 वर्षों से बाहुबलियों की विधानसभा सीट का टैग चिपका हुआ है. इस दौरान यहां से पांच बार अनंत सिंह, दो बार उनके बड़े भाई दिलीप सिंह, एक बार उनके विरोधी सूरजभान चुने गए हैं. साथ ही एक बार उपचुनाव में अनंत सिंह की पत्नी ने जीत हासिल की है. 

मोकामा के साथ यह टैग नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अटका रहा, जिनके बारे में उनके समर्थक कहते हैं कि वे क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म से समझौता नहीं करते. उनकी पार्टी जदयू बार-बार अनंत सिंह को बार-बार टिकट देती रही और नीतीश कुमार के साथ उनकी ‘सौजन्य भेंट’ वाली तसवीरें उनकी जेल से हर रिहाई के बाद सामने आती रहीं.

आखिर मोकामा को आपराधिक छवि वाले राजनेताओं से छुटकारा क्यों नहीं मिल पाया?  इसका जवाब अस्सी के दशक में मोकामा से दो बार विधायक चुने गये कांग्रेसी नेता श्याम सुंदर सिंह धीरज देते हैं, “मोकामा में अपराधियों को चुनावी मैदान में उतारने के गुनहगार पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. 1985 में जब दिलीप सिंह मेरे खिलाफ चुनाव में निर्दलीय उतरे थे तो उनके ऊपर जगन्नाथ मिश्रा का हाथ था. 1990 में जनता दल से टिकट भले उन्हें लालू प्रसाद यादव ने दिया, मगर इसमें तब बाढ़ से सांसद रहे नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका थी. सच तो यह है कि मोकामा क्षेत्र में अपराधियों को राजनीति में लाने में नीतीश कुमार की भूमिका सबसे बड़ी है.”

30 अक्टूबर दुलार चंद यादव की हत्या के बाद पूरे मोकामा में तनावभरा माहौल है. श्याम सुंदर सिंह के मुताबिक, “ दुलार चंद को भी बाहुबली कहा जाता था और उन्हें भी सबसे पहले माला पहनाकर नीतीश कुमार ने ही वैधता दी थी.”  

श्याम सुंदर को 1990 के चुनाव में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह ने हराया था. वे बताते हैं, “मुझे अपनी हार का अंदाजा नहीं था और यह भी नहीं लगा था कि इसके बाद मोकामा में स्थाई रूप से बाहुबलियों का राज हो जाएगा. नीतीश कुमार ने दिलीप सिंह के बाद सूरजभान पर दांव लगाया. सूरजभान जब लोक जनशक्ति पार्टी की तरफ चले गए तो नीतीश फिर दिलीप सिंह की शरण में गए. उसे विधान परिषद भेजा और भाई (अनंत सिंह) को विधायक बनवाया और जो आज भी उनके साथ है.”  

इस बात की पुष्टि वरिष्ठ राजद नेता शिवानंद तिवारी भी करते हैं. उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि किस तरह लालू प्रसाद यादव की अनिच्छा के बावजूद 1991 के चुनाव में दुलार चंद यादव से मिलने और उनका समर्थन पाने नीतीश उनके दरवाजे पर गए थे, जहां यादव ने नीतीश के सिर पर पगड़ी बांधी थी.

बिहार की राजनीति में अपराधीकरण की शुरुआत 1980 के दशक से मानी जाती है और 2005 तक इसका खूब बोलबाला था. 2005 के बाद आनंद मोहन, शहाबुद्दीन, पप्पू यादव और मुन्ना शुक्ला जैसे बड़े अपराधी जेल भेजे गये. मगर इसी दौर में जहां पूर्णिया से बुट्टन सिंह और अवधेश मंडल जैसे अपराधियों की पत्नियों को जदयू के टिकट पर विधानसभा भेजा गया. वहीं आने वाले दिनों में खगड़िया के रणवीर यादव और सिवान के अजय सिंह जैसे अपराधियों की पत्नी भी जदयू से चुनाव जीतती रहीं. जहां तक मोकामा की बात है, वहां अनंत सिंह को जदयू की तरफ से टिकट दिया जाता रहा.

इस विधानसभा चुनाव में भी बिहार की बड़ी पार्टियों ने अपराधियों और उनके परिजनों को टिकट देने में कोई संकोच नहीं बरता है. जदयू ने अनंत सिंह के अलावा, आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद को टिकट दिया है तो राजद ने शहाबुद्दीन के पुत्र ओसामा शहाब और मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी को टिकट दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या अनंत सिंह की गिरफ्तारी से बिहार की राजनीति के अपराधीकरण की बची-खुची कहानी खत्म होगी या यह सिर्फ इंटरवल है.

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