भाजपा नेताओं के निशाने पर क्यों है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी?
अलीगढ़ सांसद सतीश गौतम ने एएमयू के मेडिकल कालेज पर इलाज में भेदभाव का आरोप लगाया तो भाजपा एमएलसी मानवेंद्र प्रताप सिंह ने इतिहास विभाग में इस्लामिक इतिहास पढ़ाए जाने पर आपत्ति जताई है

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) पिछले पांच-छह सालों से कई बार भाजपा नेताओं के निशाने पर आई है. अब अलीगढ़ से तीसरी बार सांसद चुने गए सतीश गौतम ने यहां के पंडित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल को मिनी एम्स के रूप में विकसित करने की मांग की है.
इसके साथ उन्होंने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि एएमयू के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (जेएनएमसी) में अधिकांश डॉक्टर ‘एक विशिष्ट (मुस्लिम) समुदाय’ से हैं, इसलिए हिंदू मरीज एएमयू के मेडिकल कॉलेज में जाने से बचते हैं.
गौतम 2 अगस्त को लोकसभा में बोल रहे थे और उन्होंने जेएनएमसी में ट्रॉमा सेंटर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को धन्यवाद दिया. गौतम ने कहा, "एएमयू के जेएनएमसी में ट्रॉमा सेंटर बनाया गया, क्योंकि यह केंद्र द्वारा संचालित विश्वविद्यालय है, लेकिन इस मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक समुदाय (मुस्लिम) के डॉक्टरों की बहुलता के कारण हिंदू एएमयू के जेएनएमसी में इलाज कराने से बचते हैं."
गौतम पहले भी एएमयू विरोधी बयानबाजी करते रहे हैं. अपने भाषण में उन्होंने आगे कहा, "एएमयू के जेएनएमसी के काफी नजदीक अलीगढ़ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल है, जिसे अगर मिनी एम्स के रूप में अपग्रेड किया जाता है, तो यह न केवल अलीगढ़ बल्कि एटा, कासगंज, हाथरस और बुलंदशहर के हिंदू मरीजों को भी सेवा प्रदान करेगा."
शिक्षा के क्षेत्र में देश-विदेश में विख्यात अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में संचालित मेडिकल कालेज पर सांसद सतीश गौतम के आरोप को गैरजिम्मेदार बताते हुए परिसर में बड़ी संख्या में डॉक्टर और शिक्षक
इसके विरोध में उतर आए. अगले ही दिन आरोपों का खंडन करते हुए जेएनएमसी और एएमयू जनसंपर्क कार्यालय ने एक प्रेस नोट जारी किया, जिसमें कहा गया कि हाल ही में मेडिकल कॉलेज के खिलाफ सांप्रदायिक पूर्वाग्रह का गलत और भ्रामक आरोप लगाया गया है.
प्रेस नोट के मुताबिक, “अलीगढ़ के सांसद की राय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को मिनी इंडिया मानने के विचार के विपरीत है. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज ने हमेशा दीनदयाल अस्पताल अलीगढ़ से रेफर किए गए मरीजों का इलाज किया है.” बयान में आगे कहा गया है कि अस्पताल की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए जेएन मेडिकल कॉलेज पर बेबुनियाद आरोप लगाना अनुचित है.
इस मामले पर जेएनएमसी, एएमयू की प्रिंसिपल और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर वीना माहेश्वरी का कहना है, “जेएनएमसी जाति, पंथ, धर्म या लिंग की परवाह किए बिना सभी रोगियों के साथ गैर-भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है. हमारा कॉलेज बदायूं, मुरादाबाद, बुलंदशहर, एटा और कासगंज सहित विभिन्न जिलों से प्रतिदिन लगभग 4,000 से 4,500 रोगियों की देखभाल करता है. निष्पक्ष स्वास्थ्य सेवा के लिए कॉलेज की प्रतिबद्धता इसके कर्मचारियों की नियुक्तियों में भी दिखती है, जो सरकारी प्रक्रियाओं के माध्यम से की जाती हैं, जो समाज के एक विस्तृत स्पेक्ट्रम का प्रतिनिधित्व करती हैं. मैं पिछले 40 वर्षों से यहां हूं और मैंने कोई भेदभाव नहीं देखा है,”
सतीश गौतम के आरोप पर एएमयू का माहौल गरम ही था कि दो दिन बाद 4 अगस्त को भाजपा के विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) मानवेंद्र प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर एएमयू के इतिहास विभाग में धार्मिक इतिहास पढ़ाने की शिकायत की. इसमें कहा गया है कि एएमयू के इतिहास विभाग में बीए के चार वर्षीय कोर्स के पहले साल के दोनों सेमेस्टर में ऐसे दो विषय शामिल हैं.
इनमें पहले सेमेस्टर में प्री- इस्लामिक अरेबिया से पायस खलीफा और दूसरे सेमेस्टर में उमैयाद का इतिहास (661 ईसवी) से अब्बासीद के इतिहास (833 ईसवी) तक शामिल हैं. इनको एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है. पत्र में मानवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा है, “इससे भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी धक्का लगेगा क्योंकि, भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. एएमयू केंद्र सरकार से संचालित विश्वविद्यालय हैं. सिख, जैन, हिन्दू धर्म का इतिहास किसी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जा रहा है.” पत्र में मांग की है कि धार्मिक प्रारूप के स्थान पर भारत का गौरवशाली इतिहास राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पढ़ाए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. इस्लामिक इतिहास पर रोक लगाई जाए.
इन आरोपों पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हसन इमाम के अनुसार ‘हिस्ट्री आफ इस्लाम’ विषय 1980 से पढ़ाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह कोई नया विषय नहीं है. इस्लामी इतिहास पढ़ना अनिवार्य नहीं है. जिन छात्रों को यह विषय स्वेच्छा से पढ़ना है, वs पढ़ सकते हैं. एएमयू में 50 से अधिक कोर्स हैं, जिन्हें छात्र अपनी पसंद के अनुसार पढ़ते हैं.
एएमयू पहले भी रही है भाजपा नेताओं के निशाने पर
साल 2018 में भाजपा सांसद व एएमयू कोर्ट मेंटर सतीश गौतम ने तत्कालीन एएमयू वीसी प्रोफेसर तारिक मंजूर को पत्र लिखकर छात्रसंघ भवन में लगी जिन्ना की तस्वीर हटाने की मांग की थी. इसके बाद से अलीगढ़ में जिन्ना विवाद सुर्खियों में आ गया था. इसी दौरान एएमयू छात्र संघ की ओर से पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को आजीवन सदस्यता देने व उनके लेक्चर का कार्यक्रम रखा गया था. उपराष्ट्रपति के कार्यक्रम से पहले हिंदू जागरण मंच सहित अन्य हिंदूवादी नेताओं ने जिन्ना की तस्वीर एएमयू से हटाने व पुतला फूंकने का ऐलान कर दिया था.
हिंदूवादी नेता पहली बार एएमयू के बाब-ए-सैयद तक नारेबाजी करते हुए पहुंचे थे. इसे रोकने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग, आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा था. इस दौरान एएमयू छात्रों ने पथराव भी किया था जिसमें तत्कालीन एसपी सिटी अतुल श्रीवास्तव, एसडीएम कोल पंकज वर्मा, सीओ संजीव दीक्षित, सीओ पंकज श्रीवास्तव, दो इंस्पेक्टर समेत नौ पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे.
तब एएमयू कुलपति को लिखे पत्र में सतीश गौतम ने यह भी आरोप लगाया था कि विश्वविद्यालय ‘तालिबानी विचारधारा’ पर चल रहा है. अपने पत्र में उन्होंने उस वक्त हुए विवादों का जिक्र किया था, जैसे विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर लगाने के अलावा पूर्व पीएचडी स्कॉलर से कथित तौर पर आतंकवादी बने मन्नान वानी की मौत के बाद कुछ कश्मीरी छात्रों द्वारा जनाजे की नमाज पढ़ना और भारतीय मानचित्र वाले पोस्टर लगाना, जिसमें कथित तौर पर कश्मीर और उत्तर पूर्व के कुछ हिस्से गायब थे. हालांकि इन सारे मसलों पर एएमयू प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की थी लेकिन जिस तरह सांसद सतीश गौतम ने इन मुद्दों को उछाला था उसे एएमयू के छात्र-छात्राओं ने विश्वविद्यालय की छवि धूमिल करने का प्रयास माना था.
नवंबर, 2018 में एएमयू छात्र संघ के तत्कालीन मानद सचिव हुजैफा आमिर भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) कोर्ट, जो संस्थान की सर्वोच्च शासी संस्था है, से गौतम की सदस्यता समाप्त कर दी जाए. एएमयू कोर्ट के एक सदस्य बताते हैं, “पिछले कई सालों से सतीश गौतम लगातार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बेबुनियाद और निरर्थक बयान जारी कर रहे हैं. उनके बयानों में कोई तथ्य नहीं है और इससे एएमयू की छवि लगातार खराब हो रही है. गौतम ने कभी विश्वविद्यालय के विकास के बारे में बात नहीं की और सस्ते प्रचार में लगे रहे हैं.”
जिन्ना की तस्वीर के मुद्दे पर सांसद सतीश गौतम को मुंह की खानी पड़ी थी. वे आज तक एएमयू के यूनियन हॉल से जिन्ना की तस्वीर को नहीं हटवा सके हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व मीडिया सलाहकार प्रोफेसर जासिम मोहम्मद कहते हैं, “अलीगढ़ सांसद और दूसरे कई भाजपा नेता सस्ती
लोकप्रियता बटोरने के लिए एएमयू पर अनर्गल आरोप लगा रहे हैं. एएमयू केंद्रीय विश्वविद्यालय है और केंद्र सरकार लगातार विश्वविद्यालय के बजट में इजाफा कर रही है. एएमयू में अपनी पकड़ बनाने और यहां होने वाले एडमिशन और एपॉइंटमेंट में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ही ऐसे बेबुनियाद आरोपों को हवा दी जा रही है. प्रधानमंत्री मोदी स्वयं एएमयू को मिनी इंडिया कह चुके हैं. ऐसे में दुनिया भर में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को विवादों में खींचना शिक्षा का भी अपमान है.”
वर्ष 2014 और 2019 में अलीगढ़ लोकसभा सीट भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतने वाले सतीश गौतम इस बार (2024) बड़ी मुश्किल से 15,647 मतों से जीत हासिल कर पाए थे. 2019 के चुनाव के परिणाम से तुलना करें पिछले चुनाव में अलीगढ़ में सतीश गौतम को को 6.56 लाख वोट मिले थे, मगर इस बार महज 5.01 लाख वोट मिले. पिछले चुनाव से यह 1.54 लाख कम वोट हैं. पिछले चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी को कुल 4.26 लाख वोट मिले थे, मगर इस बार सपा और कांग्रेस के गठबंधन प्रत्याशी को 4.80 लाख वोट मिले हैं. पिछले चुनाव से यह 54 हजार अधिक हैं. संभवत: अपने खिसकते जनाधार को बचाने के लिए सतीश गौतम ने एएमयू को विवादों में खींचना शुरू किया है. हालांकि पिछले उदाहरण तो इससे किसी प्रकार का राजनीतिक लाभ न मिलने की ओर ही संकेत कर रहे हैं.