ब्राह्मणों को रिझाने में कितना कामयाब हो पाएंगे अखि‍लेश यादव?

समाजवादी पार्टी ने 7 मई को लखनऊ स्थ‍ित राज्य मुख्यालय में आयोजित किया प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन. ब्राह्मणों के उत्पीड़न का मुद्दा उठाकर “ठाकुर बनाम ब्राह्मण” नैरेटिव सेट करने की रणनीति

Akhilesh Yadav with Brahmin leaders in SP office
सपा ऑफिस में ब्राह्मण नेताओं के साथ अखिलेश यादव

लखनऊ में विक्रमादित्य मार्ग पर मौजूद समाजवादी पार्टी (सपा) कार्यालय में 7 मई को वैसे तो प्रबुद्ध सम्मेलन का आयोजन था लेकिन फोकस ब्राह्मण मतदाताओं पर था. सपा कार्यालय के बाहर लगी होर्डिंग में “मठाधीश ने ठाना है, ब्राह्मणों को यूपी से मिटाना है, ब्राह्मणों ने भी अब माना है, 27 में पीडीए के सत्ताधीश की सरकार को लाना है.” जैसे नारे सीधे तौर पर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को निशाने पर ले रहे थे. 

दोपहर करीब डेढ़ बजे सपा के राज्य मुख्यालय लखनऊ के डॉ. राममनोहर लोहिया सभागार में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखि‍लेश यादव की बतौर मुख्य अतिथि मौजूदगी में मंच  का संचालन कर रहे पूर्व मंत्री पवन पांडेय ने प्रदेश की भाजपा सरकार में अब तक मारे गए ब्राह्मणों की पूरी सूची पढ़ी. 

उन्होंने प्रदेश सरकार पर ब्राह्मणों को प्रताडि़त करने का आरोप भी लगाया. प्रदेश विधानसभा में नेता विरोधी दल माता प्रसाद पाण्डेय की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में “जय परशुराम” के उद्घोष के साथ उपस्थित प्रबुद्धजनों ने दोनों हाथ उठाकर 2027 के विधानसभा चुनाव में श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी सरकार बनाने का संकल्प लिया. 

इस मौके पर अखि‍लेश यादव ने कहा, “समाजवादी पार्टी में ब्राह्मणों का बहुत सम्मान है और उनका मार्गदर्शन हमें मिलता रहा है. उनका सहयोग और समर्थन मिलने पर अब 2027 के विधानसभा चुनाव में विजय सुनिश्चित है.” कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अंकित शर्मा और पवन पाण्डेय ने अखिलेश यादव को भगवान परशुराम की चार फुट ऊंची प्रतिमा भेंट की. सुल्तानपुर के वरिष्ठ समाजवादी नेता संतोष पाण्डेय ने अखिलेश यादव को कई धातुओं से बना शंख और कामाख्या देवी मंदिर का अंगवस्त्र भेंट किया. कुल मिलाकर सपा के प्रबुद्ध सम्मेलन में ब्राह्मण मतदाताओं को सकारात्मक संदेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. 

इस तरह समाजवादी पार्टी (सपा) ने अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं. प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में अखि‍लेश यादव ने पूर्वांचल के बाहुबली ब्राह्मण नेता रहे हरिशंकर तिवारी के पुत्र और संत कबीर नगर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद कुशल तिवारी को अपने साथ मंच पर बिठाया. अखिलेश सरकार की आलोचना करने के लिए दिवंगत नेता हरि शंकर तिवारी के गोरखपुर आवास पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हालिया छापेमारी का मुद्दा उठा रहे हैं. 

एक कार्यक्रम में पत्रकारों से बात करते हुए अखि‍लेश यादव ने कहा था, "इन्हें हाता भी नहीं भाता." तिवारी को पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति का अगुआ माना जाता था और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले गोरखनाथ मठ के साथ उनका टकराव था. 7 अप्रैल को ईडी ने तिवारी के बेटे और सपा के राष्ट्रीय सचिव विनय शंकर को कथित तौर पर 754 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तार किया था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हरिशंकर तिवारी परिवार को अपना पूरा समर्थन देकर अखि‍लेश यादव प्रदेश में “ठाकुर बनाम ब्राह्मण” का नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रहे हैं. 

विनय तिवारी की गिरफ्तारी के बाद 20 अप्रैल को अखिलेश यादव ने पुलिस पोस्टिंग के आंकड़े साझा कर यह आरोप लगाया राज्य सरकार एक खास जाति का पक्ष ले रही है. सपा प्रमुख ने दावा किया था कि आगरा कमिश्नरेट के तहत 48 स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) और स्टेशन ऑफिसर (एसओ) में से केवल 15 पीडीए समुदायों से हैं, जबकि शेष एक खास जाति से ताल्लुक रखते हैं. 

इसी तरह, अपने गृह जिले मैनपुरी, महोबा और प्रयागराज के आंकड़ों का हवाला देते हुए, सपा प्रमुख ने दावा किया कि पुलिस पोस्टिंग में पीडीए समुदायों की हिस्सेदारी केवल 25 फीसदी थी, जबकि उनकी संख्या राज्य की आबादी का 90 फीसदी है. हालांकि अखि‍लेश यादव के आरोपों पर पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रशांत कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया दी, जिन्होंने इन दावों को “निराधार और भ्रामक” करार दिया और राजनीतिक नेताओं से “गलत और अधूरे आंकड़ों के आधार पर जल्दबाजी में निष्कर्ष नहीं निकालने” का आग्रह किया. 

उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने आरोप लगाते हुए कि सपा के शासन के दौरान जाति-आधारित पोस्टिंग का ही चलन था. चौधरी ने कहा, "आगरा कमिश्नरेट के तहत तैनात पुलिस अधिकारियों में ओबीसी और अनुसूचित जाति (एससी) समुदायों के सदस्य क्रमशः 39 फीसदी और 18 फीसदी हैं, जबकि मैनपुरी में यह संख्या 31 फीसदी और 19 फीसदी है." मोटे अनुमान के अनुसार, ठाकुर उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 8 फीसदी हिस्सा बनाते हैं जबकि ब्राह्मण लगभग 10 फीसदी हैं. दोनों समुदायों ने 2017 से लगातार दो बार राज्य में भाजपा को एकतरफा समर्थन दिया है. 

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार पुलिस पोस्टिंग में जातिगत पूर्वाग्रह का दावा सपा द्वारा भाजपा सरकार को उसके कथित "ब्राह्मण विरोधी रुख" पर निशाना बनाने का प्रयास है. सपा जिन मुद्दों को उठा रही है उनमें से एक अपना दल (कृष्णा पटेल) के पूर्व नेता हरीश मिश्र का मामला है, जो कुछ महीने पहले सपा में चले गए थे. ब्राह्मण हरीश मिश्र पर कथित तौर पर करणी सेना के सदस्यों द्वारा हमला किया गया था. करणी सेना खुद को क्षत्रिय दूसरे शब्दों में कहें तो राजपूत हितों के लिए काम करने वाला संगठन बताता है.  सपा सांसद रामजी लाल सुमन के राणा सांगा पर कथित अपमानजनक बयानों को लेकर करणी सेना के कार्यकर्ता उग्र हैं. 

अप्रैल में सपा ने लखनऊ में एक विरोध प्रदर्शन किया था, जहां उसके कार्यकर्ता तख्तियां लिए हुए थे, जिन पर लिखा था “बाबा को हाता नहीं भाता” और “ब्राह्मणों पर अत्याचार बंद करो.” सपा प्रवक्ता अभिषेक मिश्र कहते हैं, “सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का मानना है उच्च जातियों के वे लोग जो शैक्षणिक, आर्थिक और कल्याण के मामले में पिछड़े हैं, वे भी पीडीए का हिस्सा हैं.” प्रबुद्ध सम्मेलन के बाद प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पर ब्राह्मण समाज को लेकर तीखा हमला बोला. 

पाठक ने अखिलेश की राजनीति को जातिवाद पर आधारित बताते हुए कहा कि सपा ने समाज में जातिवाद का जहर बोने का काम किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि ब्राह्मण समाज पर बोलने का अखिलेश को कोई अधिकार नहीं है. पाठक ने सपा के शासनकाल में ब्राह्मण समाज के खिलाफ अत्याचार और अपमान के कई उदाहरण गिनाए. 

उन्होंने कहा कि कन्नौज के मासूम नीरज मिश्र की गर्दन कटवाकर लखनऊ मंगवाने का काम सपा के शासन में हुआ. इटावा में वाजपेयी परिवार का सार्वजनिक अपमान किया गया. पाठक कहते हैं, “सपा के शासनकाल में पूरे प्रदेश में ब्राह्मण समाज पर संगठित ढंग से अत्याचार और अनाचार हुए. जब-जब ब्राह्मण समाज का मान-मर्दन हुआ, तब-तब प्रदेश में सपा की सरकार थी.” 

हालांकि, ब्राह्मण समाज से आने वाले कई प्रभावी लोग निजी तौर पर भाजपा संगठन और सरकार से "अपेक्षित सम्मान और प्रतिनिधित्व" न मिलने पर "निराशा" की बात स्वीकार करते हैं और इन्हीं ‘निराश’ मतदाताओं पर अखिलेश यादव की नजर है. लेकिन हिंदुत्व के मुद्दे पर भगवा दल का एकतरफा समर्थन करने वाले इन मतदाताओं के बीच साइकिल की पैठ बनाने के लिए अखि‍लेश यादव अपने तरकश के सभी तीर आजमा रहे हैं. 

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