बिहार : केंद्रीय मंत्रियों के गोद लिए गांव आखिर बदहाल कैसे रह गए?

यहां हमने बिहार के उन चार गावों की जमीनी हालत की पड़ताल की है जिन्हें 'सांसद आदर्श ग्राम योजना' के तहत उन सांसदों ने गोद लिया था जो भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में मंत्री रहे हैं

पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के गोद लिए गांव जाफरपट्टी की बदहाल सड़क
पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के गोद लिए गांव जाफरपट्टी की बदहाल सड़क

पिछले दिनों बिहार के बेगुसराय में चुनावी दौरे पर निकले सांसद गिरिराज सिंह के काफिले को कुछ लोगों ने घेर लिया. उनका घेराव करने वालों के एक हाथ में भाजपा का झंडा और दूसरे में काला झंडा था. उन्होंने थोड़ी देर इस काफिले के सामने नारेबाजी की और फिर उन्हें जाने दिया. 

विरोध का नेतृत्व कर रहे बेगुसराय के ही रानी गांव के विनोद राय का कहना था, "हमारे सांसद गिरिराज सिंह ने चुनाव जीतने के बाद, इलाके के जिस गांव गोविंदपुर को गोद लिया वहां उन्होंने एक हैंडपंप तक नहीं लगवाया. वे इस संसदीय क्षेत्र में लगातार गैर हाजिर रहते हैं. इसलिए हम उनके सामने अपना विरोध जता रहे हैं."

इस घटना ने एक बार फिर से 2014 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई 'सांसद आदर्श ग्राम योजना' को चर्चा में ला दिया है. उस साल जयप्रकाश नारायण की जयंती के मौके पर इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की गई और लक्ष्य रखा गया कि गांधी के 'ग्राम स्वराज' को अपनाते हुए सांसद अपने क्षेत्र में एक गांव को आदर्श बनाने की कोशिश करेंगे. इसके लिए वे पहले पांच साल में तीन और दूसरे पांच साल में पांच गांवों को गोद लेंगे.

अब जब इस योजना के दस साल पूरे होने वाले हैं और हर लोकसभा क्षेत्र में आठ गांवों को आदर्श बन जाना चाहिए, ऐसे में इस योजना और इसके जरिये सांसदों के कामकाज का आकलन किया जाना जरूरी लगता है.

बिहार में लोकसभा के 40 और राज्यसभा के 16 सांसद हैं. इस लिहाज से बिहार में 56 सांसदों द्वारा 448 गांवों को आदर्श ग्राम के रूप में बदलना था. हालांकि इस स्टोरी में हमने सिर्फ चार सांसदों के पहले आदर्श ग्राम की पड़ताल करने की कोशिश की है. ये चार सांसद इस बार केंद्र सरकार में मंत्री हैं और इस बार भी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

वैसे तो बिहार के पांच लोकसभा सांसद अभी केंद्र सरकार में मंत्री हैं. इनमें आरके सिंह, गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, पशुपति पारस (19 मार्च 2024 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और एनडीए से अलग हो गए थे. हालांकि अब वे फिर से गठबंधन में वापस आ गए हैं) और नित्यानंद राय हैं. मगर अश्विनी चौबे को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया है, इसलिए हमने उनका गांव छोड़ दिया है.

ऊर्जा मंत्री के गांव में बारिश होने पर पसर जाता है अंधेरा 

आरा शहर से कुछ दूर हाईवे पर चलने के बाद एक पतली सी सड़क आती है, वहां से सात-आठ किमी कच्चे पक्के रास्ते पर सफर करते हुए एक पुरानी और सघन बस्ती शुरू होती है, जहां शहर के पुराने मोहल्लों की तरह संकरी सड़कें और गलियां हैं. इस गांव में घुसते ही सबसे पहले गंदगी के ढेर और सड़कों पर बिखरे गंदे पानी से सामना होता है. 

यह गांव पिछली सदी के छोटे से उदास कस्बे सा दिखता है जो कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह का गांव है. आरके सिंह 2014 से ही आरा के सांसद हैं. हालांकि उनकी पहचान एक राजनेता से अधिक एक सफल ब्यूरोक्रेट के तौर पर रही है. वे केंद्र सरकार में गृह सचिव रह चुके हैं. ऐसे में जब अपने पहले संसदीय कार्यकाल में उन्होंने गुंडी गांव को गोद लिया तो लोगों को लगा कि उनके जैसा एक सफल अफसर, एक चर्चित सांसद और एक केंद्रीय मंत्री इस गांव को ऐसे बदल देगा जिसे देखने लोग दूर-दूर से आया करेंगे.

आरा के सांसद आरके सिंह का गोद लिया गांव गुंडी

मगर गोद लिए जाने के दस साल बाद गुंडी के अनिल कुमार कहते हैं, "ऊर्जा मंत्री हैं तो गांव की बिजली व्यवस्था ही ठीक करा देते. अभी तो जरा-सी बारिश हुई या तूफान आया, बिजली रात भर के लिए गायब हो जाती है. इसे ठीक कराने के लिए भी गांव के लोगों को चंदा देना पड़ता है. गांव के हर वार्ड में दस सोलर लाइट लगना था, वह काम भी अभी तक नहीं हुआ है." इसके आगे वे यह भी बताते हैं कि पंचायत भवन और उप स्वास्थ्य केंद्र का भवन जरूर बना है. आरके सिंह ने गांव में एक विवाह मंडप का निर्माण करवाया है. हालांकि वह बहुत बुरी हालत में है. अनिल आरोप लगाते हैं, "इसमें घोटाला भी हुआ और केस भी चला."

विवाह भवन की स्थिति सचमुच अच्छी नहीं है. दिलचस्प है कि इस विवाह भवन का अमूमन सवर्ण और मझोली जाति के लोग ही इस्तेमाल करते हैं. दलित जाति के लोगों को पता भी नहीं है कि उनके गांव में कोई विवाह भवन बना है. राजेश पासवान कहते हैं, "विवाह भवन होता तो हम अपनी बारात वहां ठहराते न. हमें तो पता ही नहीं है."

गुंडी 26-27 हजार की आबादी वाला गांव है. यहां हर जाति के लोग रहते हैं. मोहम्मद हनीफ कहते हैं, "गरीबों के मोहल्ले में जाकर देखिये, क्या हाल है. कितनी गंदगी है. लोगों को इंदिरा आवास तक नहीं मिला है. बेघर रहने की मजबूरी है."

आरके सिंह के आदर्श गांव गुंडी की बदहाल नाली

गांव में ही महादलितों की बस्ती दुस-टोली (दुसाधों का टोला) है, जहां सामना सबसे पहले बजबजाती नालियों से होता है. काजल पासवान इन नालियों को दिखाते हुए कहते हैं, "2016 में ये बनी थीं. अब ये हमेशा जाम रहती हैं, पानी बहता ही नहीं है, जहां जाइयेगा, सड़क पर गंदा पानी बिखरा दिखेगा." वे भुइयां जाति के जयराम और धानजी के दरवाजे पर ले जाते हैं. दोनों परिवार आज भी मिट्टी के घरों में रहने को विवश हैं. काजल बताते हैं कि सिर्फ आधार कार्ड नहीं होने के कारण इन दोनों को इंदिरा आवास नहीं मिला.

इसी टोले के बुजुर्ग जगनारायण राम अपने दरवाजे पर मिलते हैं. वे बताते हैं, "बस नाम के लिए ही यह आदर्श ग्राम है. आरके सिंह पहली बार जब यहां आए तो एक आंगनबाड़ी भवन के निर्माण को रोक दिए. कहे गलत बन रहा है. तब से वह अधूरा बना हुआ है. उन्होंने चार जगह सार्वजनिक शौचालय बनाने की घोषणा की थी, आज तक नहीं बना."

अनिल आगे बताते हैं, "आरके सिंह अमूमन हर साल इस गांव में आ जाते हैं. उनकी थोड़ी सक्रियता रहती है. कुछ काम किया है." हालांकि जगनारायण राम के मुताबिक उन्होंने आरके सिंह को गांव में एक ही बार देखा है. उनके काम के लिहाज से उन्हें पासिंग मार्क्स भी नहीं दिया जा सकता.

पारस की सरपरस्ती में भी सोना नहीं बन सका जाफरपट्टी

"रामविलास जी के नाम पर हमने चुनाव में इनका समर्थन किया था. चुनाव में हम लोगों ने अपनी जेब से बीस हजार रुपये खर्च भी किए. जब उन्होंने इस गांव को गोद लेने की घोषणा की तो लगा कि गांव की किस्मत अब बदल जाएगी. मगर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पारस जी आजतक जाफरपट्टी नहीं आए हैं. न गोद लेते वक्त, न गोद लेने के बाद और न ही गोद लेने से पहले. अगरबत्ती जलाने भी नहीं आए. अब आप समझ लीजिये, गांव के विकास को लेकर वे कितने चिंतित रहते होंगे." जाफरपट्टी बाजार के पास अपने मित्रों के साथ खड़े विनय पासवान नाराजगी भरे स्वर में यह सब कहते हैं.

जाफरपट्टी 19 मार्च तक केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री रहे पशुपति पारस का गोद लिया गांव है. यह वैशाली जिले के राजापाकड़ प्रखंड का गांव है. जाफरपट्टी उस हाजीपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है, जो रामविलास पासवान का चर्चित चुनाव क्षेत्र है. यह उनके परिवार की सबसे पसंदीदा सीट रही है. जिस सीट के लिए इन दिनों उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस और उनके पुत्र चिराग पासवान के बीच राजनीतिक घमासान मचा है और एनडीए की तरफ से यह सीट चिराग पासवान के पाले में डाल दी गई है. हालांकि पशुपति पारस भी हर हाल में इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे.

पारस 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से सांसद चुने गए थे. मार्च, 2020 में उन्होंने इस गांव का चयन सांसद 'आदर्श ग्राम योजना' के तहत किया था. नियमानुसार उन्हें अपने नेतृत्व में इस गांव की समस्याओं का आकलन करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों की मदद से इस गांव के विकास की योजना बनानी थी और उसे लागू कराना था. मगर जब वे इस गांव में एक बार भी नहीं आए तो जाहिर है, इस गांव में यह योजना लागू ही नहीं हो पाई.

पशुपति पारस के गोद लिए गांव जफरपट्टी की बदहाल सड़क

गांव की मुख्य समस्या साफ-सफाई का अभाव और सड़कों की बदहाली है. गांव में घुसते ही बहदाल सड़कों और कीचड़ भरे रास्तों से सामना होता है. गांव के लोग शिकायत करते हुए कहते हैं कि रात होते ही सड़कों पर अंधेरा छा जाता है. गांव में अगर सोलर वाली लाइटें लग जातीं तो दिक्कत नहीं होती. मगर सांसद ने इस गांव के बदले उन गांवों में लाइटें लगवा दीं, जहां उनके पसंदीदा लोग रहते हैं.

गांव के एक राजनीतिक कार्यकर्ता राजीव रंजन शर्मा जो पिछले चुनाव में पारस के करीबी रहे, वे बताते हैं, "इस गांव में उनके स्वजातीय पासवान जाति के लोगों की संख्या सबसे अधिक है. शायद इसी वजह से उन्होंने इस गांव को चुना. मगर ये सच है कि वे कभी इस गांव में नहीं आए. उनके 'भाईसाब' रामविलास जी तब भी यहां आए थे, जब वे रेल मंत्री थे. उन्होंने उस जमाने में इस गांव को ईंट सोलिंग वाली सड़कें दी थीं, जब गांव में सड़कों का अभाव था. लोग उस बात को अब भी याद करते हैं. मगर हम पारस जी को क्यों याद रखें, आप ही बताइये."

इस गांव की हरपुर बस्ती में पासवान और दूसरी दलित जातियों की सर्वाधिक आबादी है. गांव में पहुंचते ही फूस और कच्चे मकान खूब दिखने लगे. एक चाय दुकान पर खड़े सोहन पासवान से जब यह पूछा कि इस बस्ती के लोगों को इंदिरा आवास का लाभ नहीं मिलता तो वे बिफर पड़े. बोले, "सबसे पहले तो इंदिरा आवास उनको मिलता है, जिनके पास अपना घर द्वार है, यानी पैसे वालों को. गरीबों को मिल भी गया तो उसमें डेढ़ लाख में पचास हजार का कमीशन खा लेते हैं. अब गरीब एक लाख में घर बनाए तो कैसे बनाए, आधा-अधूरा बनता है."

उनकी बातें सुन रही बुजुर्ग महिला जीरा देवी कहती हैं, "इंदिरा आवास के पैसा से घर थोड़े बन सकता है. ऊ तो सहारा हुआ, जितना पैसा मिला-मिला बाकी यहां-वहां से कर्जा लीजिए और घर पूरा कर लीजिए." जब हम यह पूछते हैं कि माता जी आपके गांव को तो केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने गोद लिया है न? वे कहती हैं, "कौन पारस. हम उनको नहीं चीन्हते हैं."

इस पर पास बैठे बुजुर्ग नागेश्वर राय कहते हैं, "अरे हाजीपुर के सांसद हैं, रामबिलास जी के छोटका भाई हैं बूढ़ी." फिर वे हमारी तरफ मुखातिब होकर कहते हैं, "अच्छा बबुआ इस गांव को पारस जी गोद लिए हैं? ई बात तो हमको नहीं मालूम जी."

सांस नहीं ले पा रहा नित्यानंद के बहुआरा का आक्सीजन प्लांट

बहुआरा गांव के चौराहे पर मिले बुजुर्ग लगन सहनी को आज भी वह दिन याद है जब कृष्णवाड़ा गांव के हाई स्कूल पर उजियारपुर के सांसद नित्यानंद राय आए थे. उन्होंने ऐलान किया था कि वे बहुआरा पंचायत को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद ले रहे हैं और जल्द इस गांव की तस्वीर बदल जाएगी. सहनी याद करते हैं, "उस रोज भारी भीड़ उमड़ी थी. आसपास के कई गांवों से लोग नित्यानंद राय को सुनने आए थे. वे गांव को गोद लेने आए थे, गोद में उठाया और चले गए. भूल गए कि बहुआरा उनकी गोद का बच्चा है. एक पैसे का काम नहीं हुआ इस पंचायत में. लोगों ने खूब सपने देखे, मगर एक सपना पूरा नहीं हुआ. गरीब को देखने वाला कोई नहीं है."

उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र बिहार के वैशाली और समस्तीपुर जिले के अलग-अलग हिस्सों से मिलकर बनता है. नित्यानंद राय 2014 से ही इस क्षेत्र के सांसद रहे हैं. मई, 2019 से वे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं. उनके संसदीय क्षेत्र की यह बहुआरा पंचायत जिसे उन्होंने 2014 में ही गोद लिया था, वैशाली जिले के पातेपुर प्रखंड में पड़ती है. इस गांव का बाजार हाईवे पर ही है.

हाईवे पर एक कंस्ट्रक्शन मटेरियल की दुकान पर मुकेश कुमार मिलते हैं, जो बहुआरा पंचायत की मुखिया राधा देवी के बेटे हैं. वे कहते हैं, "सांसद जी के कराए गए दो काम मुझे याद हैं. एक बहुआरा पंचायत के उप स्वास्थ्य केंद्र के लिए दो कमरों का भवन, दूसरा हाई स्कूल में अतिरिक्त कमरे. यह उनके पहले कार्यकाल में हुआ. दूसरे कार्यकाल में बहुआरा उप स्वास्थ्य केंद्र में उन्होंने कोरोना के वक्त ऑक्सीजन प्लांट बनवाने की घोषणा की थी. प्लांट के लिए भवन भी बना, मगर मशीन नहीं आई. अभी सिर्फ भवन है. उन्होंने इस पंचायत में तीस बेड का सरकारी अस्पताल खोलने का वादा किया था, मगर वह अस्पताल यहां न खुल कर पातेपुर में खुला है."

जर्जर भवनों वाले बहुआरा उप स्वास्थ्य केंद्र के कैंपस में आज भी ऑक्सीजन प्लांट का वह भवन दिखता है, जिस पर ताला लगा है. वहां मौजूद सुरक्षा प्रहरी बताता है कि हमेशा इस पर ताला लगा रहता है. मशीन नहीं आई है. इससे अधिक वह कुछ नहीं बता सकता.

उजियारपुर के सांसद नित्यानंद राय के गोद लिए गांव का स्वास्थ्य केंद्र

हाइवे से थोड़ी दूर वह कृष्णवाड़ा गांव है, जहां नित्यानंद राय ने इस गांव को आदर्श ग्राम के रूप में गोद लेने की घोषणा की थी. वहां तक पहुंचने का रास्ता जर्जर है. रास्ते में गंदगी खूब दिखती है. गांव में एक नाई की दुकान पर चंद्रनारायण पंडित मिलते हैं. वे कहते हैं, "आप तो रास्ता देखते हुए आए होंगे कि यह कैसा आदर्श ग्राम है. हम क्या कहें, आप खुद समझ गए होंगे. उस बार जब नित्यानंद राय आए थे तो गांव वालों ने उनके स्वागत समारोह के लिए बीस हजार रुपये का चंदा किया था. नित्यानंद राय ने भी उस रोज खूब सपने दिखाए. मगर वे लौट कर जो गए दुबारा कृष्णवाड़ा नहीं आए."

पास खड़े एक अन्य ग्रामीण कहते हैं, "तब नित्यानंद राय ने कहा था, गांव में साफ-सफाई की अच्छी व्यवस्था होगी. पार्क बनाए जाएंगे, सड़क के दोनों तरफ नाले होंगे. पूरे गांव में एक भी मकान फूस का नहीं होगा. हमलोग भी कुछ दिन उन सपनों में खोए रहे. मगर जल्द सपना बिखर गया. अब तो कृष्णवाड़ा की हालत पास पड़ोस के गांवों से भी बदतर है."

गिरिराज बाबू ने गोद तो ले लिया मगर गोविंदपुर रो रहा है

बेगुसराय के बछवाड़ा प्रखंड से आगे एक ढाबे पर अनिल कुमार राम और भोला ठाकुर बैठे मिलते हैं. उनसे जब हम गिरिराज सिंह के आदर्श ग्राम गोविंदपुर का पता पूछते हैं तो वे नाराजगी जताते हैं. भोला कहते हैं, "काहे का आदर्श ग्राम. एक काम किया नहीं गिरिराज बाबू ने. जीते तो दुबारा गांव नहीं आये. आप देखे नहीं यहां के लोगों ने कैसे पिछले दिनों उनका घेराव किया था. काले झंडे दिखाए थे. रेलवे की जमीन पर मनरेगा के फंड से कुछ पौधे लगवाने के अलावा उन्होंने कोई काम नहीं कराया है इस गांव में."

दोनों बताते हैं कि वे गोविंदपुर तीन पंचायत के ही रहने वाले हैं. अनिल राम वार्ड छह के और भोला ठाकुर वार्ड 13 के. अनिल कहते हैं, "और कुछ नहीं करते तो गांव में साफ-सफाई की व्यवस्था ही करवा देते. स्वच्छता को आदर्श ग्राम का सबसे आसान कंपोनेंट है. रोजगार की व्यवस्था तो उनसे मुमकिन नहीं, यह हम लोग मानकर चलते हैं."

वहां से जब हम बस्ती की तरफ जाते हैं तो रास्ते में जितने लोग मिलते हैं इतनी ही नाराजगी से मिलते हैं. कई लोग तो गाली-गलौज पर उतारू हो जाते हैं. एक सज्जन ऐसी गंदी गालियां देते हैं कि उसका उल्लेख इस स्टोरी में किया नहीं जा सकता. 

गिरिराज सिंह की गोद ली हुई पंचायत गोविंदपुर-3 के निवासी

गोविंदपुर तीन के पंचायत भवन के सामने कुछ युवा मिलते हैं. इनमें से एक कहते हैं, "गिरिराज बाबू ने इसी पंचायत को गोद लिया है न. आप एकदम सही जगह पर आए हैं. अब जरा इस पंचायत भवन की हालत देख लीजिए. बाहर तो जर्जर है ही, जरा अंदर घुसकर देखिए और दुनिया को दिखाइए. जहां के पंचायत भवन का यह हाल है, वह कितना विकसित हुआ होगा, समझ ही सकते हैं."

आगे कुछ लोग एक जगह बैठे मिलते हैं. उनमें से एक उमापति राय बताते हैं, "गिरिराज सिंह ने गांव को गोद तो ले लिया है, मगर बच्चा रो रहा है. वे आस-पास से आते हैं, जाते हैं, मगर रुककर देखते नहीं कि उनके गोद लिए बच्चे का क्या हाल है. बच्चे के पास आएंगे तब न बच्चा कहेगा पप्पा हमको ये परेशानी है. अब पप्पा आते नहीं हैं, बच्चा अपना दर्द सुनाए तो किसको सुनाए."

जयराम यादव कहते हैं, "नल जल योजना का हाल बुरा है. नालियां कहीं बनी नहीं. उप स्वास्थ्य केंद्र में भैंस बांधी जाती है. भवन को लेकर स्कूल का ऐसा विवाद खड़ा हुआ है कि समझ नहीं आता क्या करें. स्कूल बस कागज पर है. आदर्श ग्राम ऐसा ही होता है?"

विजय शंकर दास कहते हैं, इसी गांव के मसले पर तो विवाद हुआ था और लोगों ने उनको काला झंडा दिखाया था. हम तो कहते हैं, "मोदी तुमसे बैर नहीं, गिरिराज तुम्हारी खैर नहीं."आदर्श ग्राम की बात करते ही पूरे गोविंदपुर तीन पंचायत के लोग भड़क उठते हैं. हर कोई नाराजगी जाहिर करने लगता है. कोई तथ्य पर बात नहीं करता.

ऐसे में हम विनोद राय से मिलने पास के गांव रानी पहुंचते हैं. जहां वे अपने कुछ साथियों के साथ बैठे मिलते हैं. वे कहते हैं, "मैंने तो छह महीने पहले ही घोषणा कर दी थी कि गिरिराज सिंह जहां मिल जाएंगे, काले झंडे से हम उनका विरोध करेंगे. अटल जी की पुण्यतिथि के आयोजन में जब मैंने सार्वजनिक घोषणा की थी तो वह वीडियो काफी वायरल हो गया था. उसके बाद गिरिराज इस रास्ते से आना बंद कर दिए. अब तो चुनाव है, आना ही पड़ा. ऐसे में हम लोगों ने काला झंडा दिखाकर उनका विरोध किया."

यह पूछे जाने पर कि आप भाजपा से किस तरह जुड़े हैं, वे बताते हैं, "मैं उस दौर से आरएसएस की शाखा में जाता हूं, जब बेगुसराय को लेनिनग्राद कहा जाता था. मैंने आरएसएस की आईटीसी और ओटीसी का प्रशिक्षण प्राप्त किया है. भाजपा में किसी पद पर नहीं हूं. मगर पार्टी में तो हूं." आगे वे आरोप लगाते हैं, "गिरिराज सिंह ने जनमत का अपमान किया है. चुनाव जीतने के बाद न क्षेत्र में रहे, न कोई काम किया. मैं इसलिए उनका विरोध करता रहूंगा. पूरे क्षेत्र में उनके खिलाफ कैंपेन चलाऊंगा. मेरे साथ इस इलाके के बहुत सारे लोग हैं. उस रोज इनका विरोध करने आठ सौ से अधिक लोग पहुंचे थे. बाद में मेरे समेत 16 लोगों पर शांति भंग करने का मामला दर्ज कराया गया. हम लोगों को बेल लेना पड़ा. मगर हम डरेंगे नहीं. उनका विरोध करते रहेंगे."

यह पूछे जाने पर कि आपका विरोध किस बात को लेकर है, वे बताते हैं, "2019 में गिरिराज बाबू के चुनाव जीतने में गोविंदपुर पंचायत का बड़ा रोल था. पूरे लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक वोट उन्हें इसी पंचायत से मिला. तभी उन्होंने इसे गोद लिया. मगर चुनाव जीतकर ऐसे गायब हुए कि इस गांव की तरफ आना भूल गये. एक हैंडपंप तक नहीं गांव में लगवाया. ऐसे में लोगों की नाराजगी तो स्वाभाविक है न."

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