ऑफिस मीटिंग कारगर या समय की बर्बादी, रिपोर्ट ने बता दिया
स्लैक नाम की संस्था ने चार अलग-अलग देशों में ऑफिस की मीटिंग और काम के बैलेंस को लेकर एक रिसर्च की है

"सुबह नौ बजे एक मीटिंग होती है जिसका एजेंडा ये है कि आज हम क्या-क्या करने वाले हैं. शाम वाली मीटिंग में हम बता रहे होते हैं कि नहीं कर पाए." यूट्यूब पर कॉमेडियन रवि गुप्ता के एक वीडियो का ये क्लिप खूब वायरल है. कई अलग-अलग चैनलों ने इसे अपलोड किया है जिनके व्यूज़ कुल जमा मिलियन में हैं.
यहां मीटिंग की-वर्ड है. कॉमेडी में कही गई इस बात को एक एजेंसी ने गंभीरता से ले लिया और रिसर्च करने लगा कि आखिर शाम वाली मीटिंग में लोग क्यों बता रहे हैं कि काम नहीं कर पाए. काम नहीं कर पाने में क्या मीटिंग का भी रोल है? स्लैक नाम की संस्था ने चार अलग-अलग देशों में मीटिंग और काम के बैलेंस को लेकर एक रिसर्च की है.
रिसर्च की रिपोर्ट ने कर्मचारियों के काम नहीं कर पाने के पीछे मीटिंगों को ही जिम्मेदार ठहराया है. रिपोर्ट कहती है कि हर दिन 2 घंटे से ज्यादा मीटिंग करना कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी पर असर डालता है जिससे काम की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है.
स्लैक की रिपोर्ट के अनुसार हर दिन मीटिंग का वक्त 2 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इस सर्वे में शामिल कर्मचारी मानते हैं कि 2 घंटे से ज्यादा देर तक मीटिंग करने की वजह से उनकी ऊर्जा खर्च हो जाती है और वे काम पर फोकस नहीं कर पाते. मीटिंग ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, अगर लंबा खिंचती है तो कर्मचारी मानते हैं कि उन्हें काम करने में दिक्कतें आती हैं.
स्लैक के रिसर्च एंड एनालिटिक्स डिपार्टमेंट की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट क्रिश्चियन जैंज़र कहती हैं, "हर एक मिनट जो आप मीटिंग में गुजारते हैं बगैर फोकस के बिताया जाता है. मीटिंग से एक लक्ष्य जरूर पूरा होता है लेकिन उसके लिए फोकस ज्यादा जरूरी चीज़ है."
अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, जर्मनी, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया की अलग-अलग कंपनियों के 10 हजार कर्मचारियों ने इस सर्वे में हिस्सा लिया. स्लैक ने इन कर्मचारियों से मीटिंग को लेकर अलग-अलग सवाल पूछे जिसके बाद ये रिपोर्ट सामने आई है.
हार्वर्ड बिज़नेस रिव्यू नाम की मैंगज़ीन की एक रिपोर्ट है- स्टॉप द मीटिंग मैडनेस. 2017 की इस रिपोर्ट में लेज़ली ए. पर्लो, कॉन्सटेंस नूनां हेडली और यूनस यूं लिखते हैं - 1960 के दरम्यान दफ्तर की मीटिंग में एग्जीक्यूटिव हफ्ते में 10 घंटे से भी कम वक्त देते थे जो कि अब 23 घंटे हो चुका है.
इंटरव्यू के दौरान कई एग्जिक्यूटिव ने ये बात स्वीकार की कि मीटिंग उनके लिए राहत भरा और बेहद परिणाम देने वाली होती है. लेकिन उनके टीम के सदस्य ऐसा नहीं मानते. अन्य कर्मचारी इसे एक बोझिल समस्या की तरह देखते हैं. रिपोर्ट में दावा है कि मीटिंग की वजह से पूरा सिस्टम प्रभावित होता है जिसका अंत में नुकसान कंपनी को होता है.
टेक्नीश यूनिवर्सिटी ब्राउन स्वेग के सिमोन कॉफ़ेल्ड और एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय के नेल लेहमैन-विलेनब्रोक ने ऑटोमोटिव सेक्टर, इलेक्ट्रिकल और पैकेजिंग इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों पर किए एक स्टडी में पाया कि मीटिंग के दौरान विषय से भटकाव, कर्मचारियों की शिकायत और आलोचना का प्रभाव कर्मचारियों के स्थायित्व और इनोवेशन पर पड़ता है.
मीटिंग के प्रभाव और परिणाम पर होने वाले स्टडी में दो अलग-अलग और विरोधाभासी विचार दिखते हैं. दोनों के ही अपने तर्क हैं. मैनेजर लेवल पर बैठा व्यक्ति इसे वर्क एजेंडा तय करने के टूल के तौर पर देखता है. दूसरी ओर मैनेजर के टीम मेंबर्स इसे समय की बर्बादी और भटकाव की वजह मानते हैं.