'लिफ्ट से निकलकर कॉल करता हूं' बोलने वालों को लिफ्ट में क्यों नहीं मिलता कनेक्शन?
आखिर ऐसा क्या है कि लोगों को लिफ्ट में नेटवर्क नहीं मिलता? जबकि लिफ्ट से बाहर निकलते ही नेटवर्क का प्रवाह ऐसे होता है मानो आप गंगोत्री के नीचे पानी पीने बैठे हों.

आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि लिफ्ट में हूं...बाद में कॉल करता हूं. कई बार लोग सामने वाले को टालने के लिए भी लिफ्ट का बहाना बना देते हैं. लेकिन आखिर ऐसा क्या है कि लोगों को लिफ्ट में नेटवर्क नहीं मिलता? जबकि लिफ्ट से बाहर निकलते ही नेटवर्क का प्रवाह ऐसे होता है मानो आप गंगोत्री के नीचे पानी पीने बैठे हों. इसका जवाब जानने के लिए आपको 'फैराडे केज' के बारे में जानना पड़ेगा.
क्या है फैराडे केज?
19वीं शताब्दी के ब्रिटेन में माइकल फैराडे नाम के एक वैज्ञानिक हुए जिन्होंने उस सदी का सबसे बड़ा एक्सपेरिमेंटल फिजिसिस्ट कहा गया. उन्होंने दुनियाभर की खोज की मगर जो सबसे नायाब चीज उन्होंने बनाई, वो थी इलेक्ट्रिक मोटर. आज आपके पंखे से लेकर गाड़ी के पहिए तक अगर घूम रहे हैं तो वो फैराडे की खोज की देन हैं. कहते हैं कि अल्बर्ट आइंस्टीन अपनी स्टडी में न्यूटन के साथ फैराडे की तस्वीर लगाकर रखते थे.
तो इन्हीं फैराडे ने एक सिद्धांत दिया जिसमें उन्होंने बताया जब बिजली किसी मेटल के ऑब्जेक्ट से टकराती है तो वो उसके बाहरी सतह को तो भेद सकती है लेकिन अंदर का हिस्सा बिजली से एकदम अछूता रहता है. यही वजह है कि जब बिजली गिरती है तो कार या प्लेन के अंदर बैठे लोग उससे सुरक्षित रहते हैं. इसी सिद्धांत को आगे चलकर फैराडे केज कहा गया.
लिफ्ट के अंदर क्यों नहीं आता कनेक्शन?
अब आप कहेंगे कि इस फैराडे केज के सिद्धांत से लिफ्ट में कनेक्शन का क्या सम्बन्ध? इसी संबंध में हमने सैमसंग इंडिया में रिसर्च इंजीनियर के तौर पर कार्यरत शुभम वत्स से बातचीत की. शुभम ने इंडिया टुडे से बातचीत में बताया, "साधारण शब्दों में अगर समझें तो लिफ्ट एक 'फैराडे केज' को रिजेम्बल करता है. ये चारों तरफ से मेटल की दीवारों से घिरा होता है. इन मेटल की दीवारों की बाहरी परत तो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के लिए अंदर आने का रास्ता देती हैं मगर अंदर की परत उन्हें वापस भेज देता है. अब फोन के नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्शन भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स ही होती हैं. जब फोन का नेटवर्क लिफ्ट के केज में अंदर आने की कोशिश करता है तो 'फैराडे केज' के सिद्धांत का पालन करते हुए लिफ्ट की दीवारें उन्हें बाहर ही बिखरने पर मजबूर कर देती हैं जिससे लोगों को सिग्नल में रुकावट जैसी दिक्कतें आने लगती हैं.
हमने ये जानने की भी कोशिश की कि क्या लिफ्ट को बनाते वक्त इतना विज्ञान इस्तेमाल होता है जितना वो बता रहे हैं तो उन्होंने जवाब दिया नहीं. उनका कहना था कि लिफ्ट बनाते वक्त ये ध्यान में नहीं रखा जाता कि वो एक 'फैराडे केज' बना रहे हैं, मगर उसकी बनावट में मेटल का इस्तेमाल किया जाता है जो मजबूत, सुरक्षित और सबसे अहम, सस्ता होता है. जब वो लिफ्ट बनकर तैयार होती है तो गैरइरादतन ही वो एक 'फैराडे केज' की तरह व्यव्हार करने लगती है.
खैर अब तकनीक और उन्नत हो चली है और अब स्मार्ट टीवी और स्मार्टफोन की तरह लिफ्ट भी स्मार्ट हो गए हैं. कुछ लिफ्ट के ऐड में ही अब बताया जाता है कि ये लिफ्ट 'कनेक्टेड एलीवेटर' है और आपको उनमें नेटवर्क की कोई समस्या नहीं आएगी. खैर अभी इस लिफ्ट को आम लोगों तक पहुंचने में वक्त है. तब तक यही कीजिए कि अगली बार जब लिफ्ट में कॉल आए तो मन ही मन फैराडे बाबा को याद कीजिएगा और थोड़ा धैर्य रखते हुए लिफ्ट से बाहर निकलने के बाद ही बात कीजिएगा.