दक्षिण कोरिया में भारतीय संस्कृति के महोत्सव और आचार्य बालकृष्ण की नई खोज में क्या है नाता ?
दक्षिण कोरिया में बीते दिनों 'वेलनेस फेस्टिवल-2023' के तहत भारतीय संस्कृति का एक भव्य उत्सव मनाया गया जिसमें पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण भी शामिल हुए थे

भारत में कोरियाई संस्कृति का असर चहुंओर है. वहां की फिल्में हों, या स्क्विड गेम्स सरीखी वेबसीरीज, भारतीय युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. कुछ ऐसा ही हाल कोरियन म्यूजिक, खासकर बीटीएस बैंड के मामले में भी है. यहां तक की कोरियाई फैशन और खानपान भी भारत की नई पीढ़ी के सिर-चढ़कर बोलता है. दक्षिण कोरिया के बाहर कोरियाई संस्कृति के बढ़ रहे प्रभाव को 'के-कल्चर' का प्रसार कहा जा रहा है. लेकिन इसी दक्षिण कोरिया में बीते दिनों 'वेलनेस फेस्टिवल-2023' के तहत भारतीय संस्कृति का एक भव्य उत्सव मनाया गया.
भारत और दक्षिण कोरिया अपने राजनयिक संबंधों के 50 साल पूरे होने पर अपने-अपने यहां खास कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. इसी कड़ी में दक्षिण कोरिया के यंगसुंग बुकतो प्रांत में आयोजित इस सांस्कृतिक उत्सव में भारत और दक्षिण कोरिया के कई प्रमुख लोगों ने भाग लिया. यंगसुंग बुकतो प्रांत के गवर्नर ली शेओल वू और वहां के मेयर येंगडेयोक गन समेत पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण समेत भारतीय दूतावास के राजनयिक तथा डिप्टी चीफ ऑफ मिशन निशिकांत सिंह इस समारोह में शामिल हुए.
इस कार्यक्रम में एक पुस्तक 'ग्लोसरी ऑफ कोरियन मेडिसिन' का विमोचन किया गया. इस अवसर पर यंगसुंग बुकतो के गवर्नर ने कहा कि आने वाले समय में वे अपने क्षेत्र में भारतीय गांव की स्थापना के साथ-साथ पतंजलि के साथ मिल कर कोरियन मेडिसिन सिस्टम पर काम करेंगे. उन्होंने कहा कि भारतीयता तथा भारत के गौरव को बढ़ाने वाले इस काम से निश्चित रूप से दोनों देशों के आपसी संबंध मजबूत होंगे.
उल्लेखनीय है कि पतंजलि योगपीठ पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों के क्षेत्र में लगातार शोध कार्य कर रहा है. योगपीठ लगातार ऐसे क्षेत्रों की खोज कर रहा है, जहां दुर्लभ औषधीय पौधे पाए जाते हों. सितंबर के पहले हफ्ते में आचार्य बालकृष्ण इसी कड़ी में अपनी टीम के साथ श्रीकंठ पर्वत और हर्षिल हॉर्न पीक-2 के मध्य में स्थित हिमशिखर पर पहुंचे. इनकी ऊंचाई तकरीबन 17,500 फुट है. अब तक इन हिमशिखरों पर कोई नहीं गया था और न ही इनका नामकरण हुआ था. आचार्य बालकृष्ण ने इनका नामकरण कैलाश शिखर और नंदी शिखर के रूप में किया.
आयुर्वेद के लिहाज से इन शिखरों के महत्व को बताते हुए आचार्य बालकृष्ण कहते हैं, "जैसे उत्तराखंड में 'वैली ऑफ फ्लावर (फूलों की घाटी)' है, उसी तरह से यह 'वैली ऑफ मेडिसिनल प्लांट (औषधीय पौधों की घाटी)' है. यहां ऐसे औषधीय पौधे हैं जो कहीं और नहीं मिलते. हमने इस घाटी में संजीवनी के पौधे समेत नील कमल और ब्रह्म कमल जैसे बहुत अधिक औषधीय महत्व वाले पौधों की पहचान की."
दक्षिण कोरिया में आयोजित सांस्कृतिक समारोह में पतंजलि योगपीठ का स्टॉल कोरियाई लोगों के लिए आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र रहा. इस पर आचार्य बालकृष्ण कहते हैं, "यहां पतंजलि के उत्पादों के प्रति लोगों में विश्वास तथा स्वीकार्यता है. हमें प्रसन्नता है कि यहां अधिकांश लोगों को पतंजलि के उत्पादों के विषय में पहले से ही जानकारी है. हमारे लिए यह कौतूहल का विषय है कि यहां के लोग पतंजलि दंतकांति और अन्य बहुत सारे उत्पाद पहले से ही प्रयोग करते हैं."
समारोह में 'वेलनेस वॉक' और योग का भी आयोजन किया गया. इन सब कार्यक्रमों के सफल समन्वय का कार्य सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ के यूनिवर्सिटी रिसर्च कमेटी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. हीरो हितो ने किया.