शी जिनपिंग के अचानक गायब होने पर क्या अटकलें लगाई जा रही हैं?

शी जिनपिंग का अचानक गायब होना कोई सुनियोजित रणनीति हो सकती है या फिर कोई बड़ी अस्थिरता का संकेत या फिर देश के सत्ता शिखर में बदलाव की तैयारी.

Xi Jinping, Global times
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग

एक दशक से भी ज्यादा समय से राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीनी सत्ता के शिखर पर बिना किसी चुनौती के बने हुए हैं. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और सरकार पर उनकी पकड़ किसी राजा या सम्राट जैसी मानी जाती है.

अपने विरोधी नेताओं को रास्ते से हटाने के बाद पार्टी को संगठित कर शी जिनपिंग ने खुद को माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है.

इन सबके बावजूद पिछले कुछ दिनों से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आसपास एक असामान्य खामोशी नजर आ रही है, जिसने कई तरह के अटकलों को जन्म दिया. हाल के BRICS शिखर सम्मेलन समेत प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से उनकी अचानक और अस्पष्ट अनुपस्थिति ने वैश्विक स्तर पर चिंता पैदा कर दी है.

अधिनायकवादी व्यवस्था वाले देश यानी ऐसे देश जहां सत्ता किसी एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित हो, वहां राष्ट्राध्यक्षों के इस तरह से गायब होने की घटना को बेहद गंभीर माना जाता है. शी जिनपिंग और उनकी सरकार इस बात को अच्छी तरह से समझती होगी. इस सबके बावजूद पिछले कुछ दिनों से अहम मंचों पर उनकी अनुपस्थिति जानबूझकर अपनाई गई रणनीति या फिर गहरी अस्थिरता का संकेत देती है.

24 जून को आखिरी बार शी जिनपिंग सार्वजनिक कार्यक्रमों में नजर आए थे, जब उन्होंने बीजिंग के ‘ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल’ में सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग से मुलाकात की थी. इसके बाद पिछले दो सप्ताह से वे सार्वजनिक कार्यक्रमों से गायब हैं. 

हालांकि, 7 जुलाई को चीन के सरकारी समाचार चैनल शिन्हुआ ने एक तस्वीर जारी की थी. इस तस्वीर में जिनपिंग शांक्सी प्रांत के एक स्मारक में जापान के खिलाफ युद्ध में शहीद हुए जवानों को पुष्पांजलि अर्पित करते नजर आ रहे थे. संभव है कि इस तस्वीर का मुख्य मकसद शी जिनपिंग से जुड़ी अफवाहों को शांत करना रहो हो, लेकिन इस तस्वीर ने रहस्य को और गहरा कर दिया.

चीनी राष्ट्रपति जून में आयोजित होने वाले एक प्रमुख संवैधानिक समारोह में भी शामिल नहीं हुए थे. यह चीन सरकार की ओर से सालाना आयोजित होने वाला एक अहम कार्यक्रम है, जिसमें 50 से अधिक केंद्रीय मंत्री और पार्टी के अहम नेता शामिल होते हैं. 

चीन की राजनीति में जहां सब कुछ बहुत सोच-समझकर किया जाता है, वहां किसी बड़े नेता की ऐसी अनुपस्थिति को आमतौर पर सामान्य या अच्छा संकेत नहीं माना जाता. इसका मतलब साफ है कि शी जिनपिंग का अचानक गायब होना या तो कोई सुनियोजित रणनीति हो सकती है या फिर कोई बड़ी अस्थिरता का संकेत.

चीन पर नजर रखने वालों का दावा है कि देश राजनीतिक उथल-पुथल की ओर बढ़ रहा है. पिछले एक साल में सेना और सरकार में शी जिनपिंग के कई करीबी सहयोगियों को अचानक हटा दिया गया है. बड़े पदों पर रहने वाले जिनपिंग के कई करीबी नेता तो कहीं नजर ही नहीं आ रहे हैं. रक्षा मंत्री ली शांगफू और विदेश मंत्री किन गैंग अचानक गायब हो गए. कुछ दिनों बाद बिना किसी स्पष्टीकरण के उन्हें उनके पदों से हटा दिया गया.

यही नहीं शी के करीबी सेना के जनरल वेई फेंगहे को भी पिछले दिनों उनके पद से हटा दिया गया था. चीनी वायु सेना जनरल रहे जू किलियांग की भी मृत्यु हो गई है. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के एक अन्य जनरल हे वेइदोंग भी गायब हैं.

शी जिनपिंग के वफादारों का इस तरह से अचानक गायब होना भी हर किसी की नजर में आ चुका है. कुछ लोग इसे शी जिनपिंग की शक्ति को और भी मजबूत करने के संकेत के रूप में देखते हैं.

वहीं, कुछ लोग इसे शी जिनपिंग के खिलाफ बढ़ते असंतोष को दबाने के लिए एक हताश प्रयास या शायद प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा उन्हें अलग-थलग करने की चाल के रूप में देखते हैं. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के रॉकेट फोर्स में भ्रष्टाचार की रिपोर्ट सामने आने पर पिछले कुछ सालों में शी जिनपिंग को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है. 

चीन की राजनीति पर नजर रखने वाले लोग यह अनुमान लगा रहे हैं कि चुप्पी के बीच उत्तराधिकार की चर्चा शुरू हो गई है. पार्टी के बड़े नेताओं के बीच कई नामों पर चर्चा हो रही है. कभी शी जिनपिंग ने जिन सुधारवादी टेक्नोक्रेट वांग यांग को दरकिनार किया था, वे एक बार फिर चर्चा में हैं. उनके बारे में अफवाह है कि वे फिर से संभावित उत्तराधिकारी के रूप में उभर रहे हैं.

ऐसा कहा जा रहा है कि सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के मौजूदा उपाध्यक्ष जनरल झांग यूक्सिया ने सेना में कथित तौर पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. इसके अलावा शी जिनपिंग के उदय के बाद हाशिए पर चले गए तथाकथित हू चुनहुआ गुट को फिर से ताकत मिलती दिख रही है.

ये घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आए हैं, जब चीन की घरेलू चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं. रियल एस्टेट क्षेत्र में लगभग 15 फीसद की बेरोजगारी है और सेमीकंडक्टर जैसे उच्च तकनीक से जुड़े पेशे में भी लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. अमेरिका के साथ चल चल रहे व्यापार तनाव और पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था दशकों में अपनी सबसे गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है.

कई वरिष्ठ पर्यवेक्षकों ने इन अटकलों को खोखला बताया है. एक वरिष्ठ चीनी विश्लेषक इन अटकलों को कमतर आंकते हैं और इसे अफवाहों के वार्षिक चक्र का हिस्सा बताते हैं. वे जोर देकर कहते हैं कि शी जिनपिंग सिर्फ इसलिए चुप रहने का विकल्प चुन रहे हैं क्योंकि वैश्विक ध्यान दूसरी जगहों पर पर है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ युद्ध से लेकर भारत-पाकिस्तान तनाव तक, वे चुप रहे. कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा, "यह चीनी नीति है  कि चुप रहो और अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहो."

शायद यह बात सच भी हो. इसकी वजह यह है कि शी जिनपिंग लंबे समय से रणनीतिक धैर्य में विश्वास करते रहे हैं और सार्वजनिक टकराव के बजाय चुप्पी को प्राथमिकता देते रहे हैं. लेकिन, चीनी इतिहास एक चेतावनी भरी कहानी भी पेश करता है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की अपारदर्शी दुनिया में सर्वोच्च नेताओं को भी जब उनकी लोकप्रियता कम हो जाती है, तो चुपचाप दरकिनार कर दिया जाता है. उनके निष्कासन की घोषणा शायद ही कभी की जाती है. इसके बजाय वे अचानक से गायब हो जाते हैं. सत्ता से हटाने के बाद नए सिरे से सरकार बनाने की कोशिश होती है.

यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसे शी ने निर्ममता से चलाया है. अब यही व्यवस्था उनके खिलाफ जा सकती है. अगर पार्टी को लगता है कि वे बोझ बन गए हैं, तो उनका भी वही हश्र हो सकता है जो उन्होंने दूसरों के लिए तय किया था. प्रमुख आयोजनों से उनकी अनुपस्थिति, सहयोगियों का चुपचाप खात्मा और विरोधियों का उदय, ये सब शीर्ष स्तर पर चल रहे बदलाव का संकेत देते हैं. फ़िलहाल, CCP खामोश है, जैसा कि वह हमेशा बदलाव के क्षणों में करती है. लेकिन पर्दे के पीछे सत्ता का संतुलन बनाने की कोशिश चल रही है.

शी जिनपिंग बीमारी, अलगाव या अपने ही सिस्टम द्वारा धीरे-धीरे दरकिनार किए जाने के कारण गायब हुए हों, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि चीन राजनीतिक अनिश्चितता के दौर में प्रवेश कर रहा है. जिस नेता ने कभी विरोधियों को खत्म किया था, वह अब उन्हीं तरीकों से साइड लाइन किया जा सकता है.

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