क्या GST स्लैब में बदलाव छोटे कारोबारियों को सच में बड़ी राहत दे सकता है?
GST स्लैब में सुधार घरेलू खपत को तो बढ़ाएगा ही लेकिन इसके साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों यानी MSME के लिए कारोबारी सहूलियतें भी बढ़ेंगी

केंद्र सरकार ने हाल ही में आठ साल पुरानी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था जीएसटी में बदलाव की घोषणा की है. प्रस्ताव ये है कि 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी के मौजूदा चार-स्तरीय ढांचे को 5 फीसदी और 18 फीसदी की सरल टू टियर प्रणाली में बदलना. इसमें विलासिता और हानिकारक वस्तुओं के लिए 40 फीसदी की विशेष दर भी शामिल है.
उम्मीद जताई जा रही है कि इससे जीएसटी को लागू करने से जुड़ी दिक्कतों में कई आएगी वहीं दूसरी ओर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए कारोबारी सहूलियत में काफी वृद्धि होगी. दरअसल अधिक स्लैब के होने से अक्सर विवाद बढ़ते हैं और इससे मुकदमेबाजी भी बढ़ जाती है.
उद्योग संघ पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) की अप्रत्यक्ष कर समिति के अध्यक्ष प्रमोद कुमार राय कहते हैं, “कम कर स्लैब से वर्गीकरण संबंधी विवाद कम होने की संभावना है.” राय बताते हैं कि अगर किसी ड्रेस का विक्रय मूल्य 1,000 रुपये है, लेकिन उस पर 20 फीसदी की छूट दी जा रही है तो निर्माता 800 रुपये को उसका अधिकतम खुदरा मूल्य मानकर उसे 12 फीसदी की श्रेणी में रख सकता है, लेकिन कर विभाग 1,000 रुपये को उत्पाद का मूल्य मानकर उसे 18 फीसदी की श्रेणी में रख सकता है.
स्लैब में बदलाव काफी अहम रहेगा. राय कहते हैं, "28 फीसदी वाले स्लैब में से 90 प्रतिशत उत्पाद 18 फीसदी की श्रेणी में आ जाएंगे और केवल 10 फीसदी ही 40 फीसदी वाले स्लैब में जाएंगे." उन्होंने आगे कहा, "इसके अलावा 12 फीसदी वाले स्लैब में आने वाले 99 फीसदी उत्पाद 5 फीसदी जीएसटी स्लैब में आ जाएंगे और केवल एक फीसदी ही 18 फीसदी वाले स्लैब में जाएंगे. करों में यह 7-10 फीसदी की कमी किसी भी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है."
उदाहरण के लिए 28 फीसदी वाले कंज्यूमर ड्यूरेबल्स 18 फीसदी वाले स्लैब में आ जाएंगे, जिससे रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, माइक्रोवेव, ओवन, टेलीविजन आदि की कीमतें 10 फीसदी कम हो जाएंगी. इसी तरह, ऑटोमोबाइल, मोटरसाइकिल, स्कूटर और एंट्री-लेवल कारें 28 फीसदी से 18 फीसदी वाले स्लैब में आ जाएंगी, जिससे उनकी क्षमता बढ़ेगी और मांग में भी बढ़ोतरी होगी.
सीमेंट भी 28 फीसदी वाले स्लैब से 18 फीसदी वाले स्लैब में आ सकता है, जिससे रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र को खासकर बढ़ती निर्माण लागत से राहत मिलेगी. गारमेंट्स और फुटवियर जो 12 फीसदी वाले स्लैब में थे अब 1,000 रुपये से कम कीमत वाले इन उत्पादों पर 5 फीसदी और बाकी पर 18 फीसदी जीएसटी लगेगा. राय कहते हैं, "कर की दर में यह कमी कई उत्पादों को उपभोक्ताओं की पहुंच में लाएगी, जिससे वे ज्यादा पैसे खर्च कर सकेंगे. अधिक मांग इन क्षेत्रों में MSME को बढ़ावा देगी."
यह कदम वर्तमान जीएसटी व्यवस्था द्वारा कुछ MSME के लिए बनाए गए "उल्टे शुल्क ढांचे" को भी सरल बनाएगा, जो इस क्षेत्र की लंबे समय से चली आ रही मांग है. ऐसा तब होता है जब कच्चे माल (इनपुट) पर कर, तैयार उत्पाद (आउटपुट) पर कर से अधिक होता है. इससे इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का संचय हो सकता है जिसका पूरा उपयोग नहीं हो पाता.
इससे कारोबारी पूंजी इस्तेमाल होने के बजाय अटक जाती है. फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्माल ऐंड मीडियम इंटरप्राइजेज (एफआइएसएमई) के महासचिव अनिल भारद्वाज कहते हैं, "प्रस्तावित सुधार का उद्देश्य अधिक वस्तुओं को एकल, तर्कसंगत दर में लाकर इन विसंगतियों को दूर करना है, जिससे MSME को पूंजी उपलब्ध हो सके."
ध्रुव एडवाइजर्स के पार्टनर कुलराज अश्पनानी के अनुसार, प्रस्तावित सुधारों में-सुव्यवस्थित पंजीकरण, प्रि-फिल्ड रिटर्न और रिफंड में तेजी जैसे कदम प्रशासनिक बोझ घटाएंगे जिससे MSME को अपने कारोबार के विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी. हालांकि, भारद्वाज इस बात पर ज़ोर देते हैं "जीएसटी 2.0" को MSME के लिए एक सच्चा "दिवाली उपहार" बनाने के लिए, जीएसटी प्रणाली में मौजूद कई संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना होगा.
मौजूदा जीएसटी ढांचे में किसी व्यवसाय के पास हर उस राज्य में एक अलग जीएसटी रजिस्ट्रेशन होना चाहिए जहां वह व्यवसाय करता है. इसके लिए अक्सर प्रत्येक राज्य में एक ऑफिस या कारोबार की एक तय जगह होनी जरूरी है. भारद्वाज कहते हैं, " यह सीमित संसाधनों में काम करने वाले MSME के लिए ढुलाई और वित्तीय मोर्चे पर एक बोझ है." इसके अलावा, प्रत्येक राज्य के अपने कर प्राधिकरण होते हैं, जिससे एक ही व्यवसाय के लिए कई ऑडिट और जांच हो सकती हैं, जिससे उत्पीड़न होता है और जीएसटी के नियम-कायदों को लागू करने की लागत बढ़ जाती है.
चिंता का एक और पहलू यह है कि जीएसटी प्रणाली में प्रत्येक रजिस्टर्ड कारोबार के लिए तीन इलेक्ट्रॉनिक लेज़र हैं: इलेक्ट्रॉनिक कैश लेज़र, इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेज़र और इलेक्ट्रॉनिक लाइबेलिटी रजिस्टर. आईटीसी इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेज़र में जमा होता है. एक प्रमुख चुनौती यह है कि इस क्रेडिट का उपयोग किस विशिष्ट क्रम में किया जाना चाहिए.
ये सभी सुधार वर्तमान में प्रस्ताव के चरण में हैं और लागू होने से पहले जीएसटी परिषद में इन पर विचार-विमर्श किया जाएगा. इस समय, ये घरेलू खपत को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, खासकर ट्रम्प टैरिफ के युग में, जिसमें कई वे क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं जो एक्सपोर्ट पर ज्याद निर्भर करते हैं.