क्रिप्टोकरेंसी पर नीति बनाने से क्यों ठिठक रहा है भारत?

क्रिप्टोकरेंसी पर भारत ने अब तक टैक्स लगाया है लेकिन कोई नीति नहीं बनाई है, अमेरिका मे बिटकॉइन ईटीएफ की ट्रेडिंग तक शुरू हो गई है और यूरोप भी इस मामले में काफी आगे बढ़ चुका है

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सांकेतिक तस्वीर

भारत सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर नीति बनाने और इस सेक्टर को नियंत्रित करने में ठिठकती दिख रही है जबकि सुप्रीम कोर्ट कई बार सरकार से नियम-कानून बनाने को कह चुका है. बीते हफ्ते 19 मई को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से क्रिप्टोकरेंसी पर नीति बनाने को कहा. 

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की बेंच ने सरकार से पूछा, "क्रिप्टोकरेंसी को नियंत्रित करने के लिए सरकार स्पष्ट नीति क्यों नहीं बना रही है." इसके साथ ही बेंच ने बिटकॉइन ट्रेड को हवाला कारोबार का ही एक तराशा हुआ रूप करार दिया.

कोर्ट की यह टिप्पणी गुजरात के एक बिटकॉइन कारोबारी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आई. इस आरोपी ने बिटकॉइन निवेश पर ऊंचे रिटर्न का भरोसा देकर लोगों से निवेश कराया था. 

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से नीति बनाने को कह चुका है, और यह स्पष्ट कर चुका है कि कोर्ट इस पर कोई नियम नहीं बनाएगा, यह काम केंद्र सरकार का है. दरअसल, केंद्र सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी के मामले में बहुत थोड़े कदम उठाए है और इस पर सिवाय लॉटरी के बराबर टैक्स लगाने के ज्यादा कुछ नहीं किया है. दरअसल, भारत इस मामले में जिन दूसरे देशों की तरफ देख रहा था उनमें चीन को छोड़कर बाकी काफी आगे निकल चुके हैं. इनमें यूरोपियन यूनियन और अमेरिका प्रमुख हैं.

यूरोपियन यूनियन दिसंबर 2024 से मार्केट इन क्रिप्टो एसेट्स (एमआइसीए) नियम लेकर आ गया है. मोटे तौर पर इन नियमों के तहत क्रिप्टो एक्सचेंज को लाइसेंस लेकर काम करना होगा और मनी लांड्रिंग संबंधी कानून का पालन करना होगा. साथ ही 2027 से बेनामी वॉलेट से ट्रेडिंग नहीं हो सकेगी. 

उधर, अमेरिका में क्रिप्टोकरेंसी की वैधानिक परिभाषा आ चुकी है ठीक उसी तरह जैसे प्रतिभूति और कमोडिटी की व्याख्या नियमों के तहत हुई है. साथ ही अमेरिका में वहां प्रतिभूति बाजार का नियंत्रक सिक्योरिटीज ऐंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी या सेक) ने बिटकॉइन ईटीएफ की ट्रेडिंग को पहले ही मंजूरी दे चुका है. इतना ही नहीं अमेरिका में तो राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप ने अपनी और अपनी पत्नी के नाम से क्रिप्टोकरेंसी जारी कर दी है. इससे जुड़े निवेश और ट्रंप के ऑफर इन दिनों अमेरिका में चर्चा का विषय बने हुए हैं. उन्होंने अपनी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले कुछ शीर्ष निवेशकों को व्हाइट हाउस का दौरा कराने और डिनर तक का ऑफर दे डाला है.

अमेरिका में एसईसी ने क्रिप्टो को एक तरह से मान्यता दे दी है लेकिन भारत के मार्केट रेगुलेटर सेबी का नजरिया अलग है. 22 मई को सेबी चीफ तुहिन कांत पांडे ने स्पष्ट कर दिया कि क्रिप्टोकरेंसी का नियमन सरकार ही करेगी. मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, "यह नीतिगत मामला है जिसपर सरकार को फैसला लेना है. क्रिप्टो का मामला प्रतिभूति से जुड़ा नहीं है.”

भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर सरकार का रवैया काफी सतर्कता भरा रहा है. 2013 में पहली बार रिजर्व बैंक ने वर्चुअल डिजिटल करेंसी या क्रिप्टोकरेंसी को अस्थिर और जोखिम भरा बताया था. रिजर्व बैंक का कहना था कि क्रिप्टोकरेंसी के निर्माता बगैर किसी निगरानी के इसकी सप्लाई करते हैं जिससे वित्तीय अस्थिरता का खतरा बना हुआ है. लेकिन रिजर्व बैंक की चिंता के बीच ही देश में क्रिप्टो एक्सचेंज खुलते गए और लोग क्रिप्टोकरेंसी खरीदने-बेचने लगे. 

फिर 2018 में रिजर्व बैंक ने क्रिप्टोकरेंसी के लेनदेन के लिए बैंकिंग चैनल का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी. इसका मतलब ये हुआ कि कोई भी बैंक क्रिप्टो लेनदेन के लिए पैसे को अपने चैनल से नहीं जाने देगा. इसकी गाज सीधे इन क्रिप्टो एक्सचेंजों पर गिरी. लेकिन 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक के इस आदेश को पलट दिया और कहा कि यह आदेश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिसके तहत संविधान किसी भी व्यक्ति को कोई भी पेशा या व्यवसाय करने की छूट देता है. 

इसके बाद सरकार 2021 में एक विधेयक का मसौदा लाई जिसमें प्राइवेट क्रिप्टो करेंसी पर पाबंदी और सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी लाने का प्रावधान था. लेकिन यह विधेयक का मसौदा अभी तक मसौदा ही रह गया है. 2022 में सरकार ने क्रिप्टो से अर्जित आय पर 30 प्रतिशत टैक्स लगाया और ट्रांजैक्शन पर 1 प्रतिशत टैक्स लगाने का फैसला किया. 2023 में वर्चुअल एसेट सर्विस प्रोवाइडर (वीएएसपी) को सरकार ने पीएमएलए नियमों के तहत रिपोर्टिंग एंटिटी बना दिया. इसके तहत रिकॉर्ड मेंटेन करना भी वीएएसपी के लिए अनिवार्य कर दिया गया. यानी एक ठोस नीति लाने के बजाय केंद्र सरकार ने पिछले 12 सालों में टुकड़ों में काम किया है, वह भी खतरा भांपने के बाद और क्रिप्टो से जुड़े अपराधों के समाधान के उपायों के तौर पर. 

दरअसल, भारत सरकार यह सोचकर ठिठकती है कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश बढ़ा तो देश के विकास में उस पैसे का कोई इस्तेमाल नहीं होगा. भारत और चीन दोनों की सोच क्रिप्टोकरेंसी को खुली छूट देने की नहीं हैं. बैंकिंग के जानकार भी इससे सहमति जताते हैं. बैंकिंग विशेषज्ञ अश्विनी राणा ने इंडिया टुडे से कहा, “सरकार की तीन प्रमुख चिंताएं हैं. एक, क्रिप्टो में निवेश से देश का कोई भला नहीं होगा, पैसा कहां जाएगा पता नहीं, दूसरा, क्रिप्टो में राष्ट्रविरोधी ताकतों का भी पैसा लगा हुआ है और तीसरा, क्रिप्टो के लेनदेन को ट्रैक करना मुश्किल है, खासकर वॉलेट से वॉलेट में हुए लेनदेन को. लिहाजा, भारत में क्रिप्टो ट्रेडिंग को देश में बहुत प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद नजर नहीं आती.“

भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिका की तरह नहीं है जहां क्रिप्टोकरेंसी की बड़े पैमाने पर खरीद-बिक्री हो. भारत में क्रिप्टोकरेंसी के नाम पर अपराध भी बहुत हो रहे हैं. इसलिए क्रिप्टोकरेंसी के बजाय भारतीय मुद्रा का ही डिजिटल रूप जिसका पायलट प्रोजेक्ट रिजर्व बैंक ने चलाया है, उसके ही बाजार में आने की संभावना ज्यादा है.

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