पाकिस्तान की तरह ‘सीजफायर’ के लिए ट्रंप को क्रेडिट क्यों नहीं दे रहा भारत?
भारत ने ऑफिशियल स्टेटमेंट में सीजफायर के लिए अमेरिका या किसी दूसरे देश के दखल की बात नहीं कही है.

मई की 10 तारीख को भारत और पाकिस्तान के बीच हवाई जंग जारी हुए 4 दिन बीत गए थे. शाम के वक्त दोनों ही देशों की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस की तैयारी चल रही थी. तभी शाम 5 बजकर 25 मिनट पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर दोनों देशों के बीच सीजफायर का ऐलान कर दिया.
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका की मध्यस्थता में पूरी रात चली बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमत हो गए हैं...”
राष्ट्रपति ट्रंप के इस ट्वीट के ठीक 12 मिनट बाद शाम 5 बजकर 37 मिनट पर अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने लिखा, "पिछले 48 घंटों में, उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और मैंने वरिष्ठ भारतीय और पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ बातचीत की है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ, विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर, सेनाध्यक्ष असीम मुनीर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और असीम मलिक शामिल हैं. मुझे यह घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि भारत और पाकिस्तान की सरकारें तत्काल युद्धविराम पर सहमत हो गई हैं.”
इसके साथ ही अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने ये भी कहा कि, “दोनों देश अपने तटस्थ स्थल पर व्यापक मुद्दों पर वार्ता शुरू करने पर सहमत हो गए हैं. हम शांति का मार्ग चुनने में प्रधानमंत्री मोदी और शरीफ की बुद्धिमत्ता, विवेक और कूटनीति की सराहना करते हैं.”
पाकिस्तान ने अमेरिका को 'धन्यवाद' कहा तो भारत ने नाम तक नहीं लिया
अमेरिका के दो बड़े नेताओं के इस ट्वीट के कुछ देर बाद भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने सीजफायर की पुष्टि की. वहीं, दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को सीजफायर के लिए धन्यवाद दिया. अमेरिकी ने चीन, तुर्किए और सऊदी अरब को भी सीजफायर कराने के लिए धन्यवाद कहा.
हालांकि, भारत ने सीजफायर कराने के लिए किसी देश को क्रेडिट नहीं दिया है. भारत सीजफायर के लिए अमेरिका या किसी दूसरे देश के दखल को मानने से इनकार करता है. लेकिन, आपको पता है कि आखिर इसकी वजह क्या है?
भारत सीजफायर के लिए पाकिस्तान की तरह अमेरिका को क्रेडिट क्यों नहीं दे रहा है?
विदेश मामलों के जानकार प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक, इसका साफ मतलब ये है कि भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ किसी भी मामले में तीसरे देश के दखल को स्वीकार नहीं करता. भारतीय प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री द्वारा अमेरिका को क्रेडिट नहीं दिए जाने की वजह कुछ इस प्रकार हैं :
1. भारत एक उभरती हुई शक्ति है. भारत मानता है कि अपने मामलों को सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश की जरूरत नहीं होगी. खासकर पाकिस्तान और चीन के मामले में. 5 साल पहले भी गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेना के बीच हुई झड़प के बाद 15 जून 2020 को अमेरिका ने मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया था, जिसे नई दिल्ली ने अस्वीकार कर दिया था.
2. भारत की नीति रही है कि कश्मीर के मुद्दे में हम तीसरी पार्टी के दखल को नहीं मानते हैं. हम अपने नेशनल इंट्रेस्ट के हिसाब से इसपर फैसला लेते हैं.
3. भारत की जनता स्वयत्ता को लेकर काफी जागरूक है. ऐसे में सरकार ये नहीं दिखा सकती कि अमेरिका के दवाब में आकर हमने सीजफायर किया है. भारत सरकार की यह आतंरिक नीति भी है कि हम बाहरी देशों के दवाब में कोई फैसला नहीं लेते हैं.
ये कारण हैं कि भारत के किसी भी ट्वीट में अमेरिका का नाम नहीं लिया है.
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान की स्वस्ति राव के मुताबिक भारत हमेशा से कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा मानता है. हम तीसरे पक्ष की एंट्री को स्वीकार नहीं करते हैं. दो देशों के बीच बातचीत कराना या शांति की स्थापित कराने का मतलब ये नहीं है कि उन्होंने ही ऐसा कराया है.
स्वस्ति के मुताबिक ईरान और सऊदी के विदेश मंत्री भी आए और उन्होंने दोनों देशों से बात की, लेकिन उन्होंने इसका श्रेय नहीं लिया, लेकिन अमेरिका ने आगे बढ़कर क्रेडिट ले लिया. यह ट्रंप की उस महत्वाकांक्षा को दिखाता है, जिसमें वो दिखाना चाहते हैं कि दुनिया के देश उनकी बात मानते हैं. जबकि ऐसा नहीं है.
क्या अमेरिका इस पूरे परिस्थिति को एक ऑपर्च्युनिटी के तौर पर देख रहा है?
प्रोफेसर राजन बताते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि इस पूरे मामले में अमेरिका अपनी ऑपर्च्युनिटी देख रहा है. जहां तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी IMF की बात है तो इसमें आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को कर्ज तब नहीं मिलता, जब इसके सदस्य देश एकजुट होते.
इस वक्त अमेरिका और पश्चिमी देश इस मुद्दे पर पूरी तरह से पाकिस्तान को अलग नहीं करना चाहते हैं. यही वजह है कि ट्रंप और उनके प्रशासन के 'युद्धविराम' के संबंध में सार्वजनिक दावा करते हुए कश्मीर विवाद को सुलझाने में मदद करने का उनका वादा भी कर दिया
अमेरिका आतंकवाद के मुद्दे पर अभी पाकिस्तान को अलग क्यों नहीं करना चाहता है?
प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक अमेरिका मुख्य तौर पर 4 वजहों से इस जंग में इंट्रेस्ट ले रहा है और वह आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग नहीं कर रहा है:
1.अमेरिका को लगता है कि इस जंग के शुरू होने के बाद पाकिस्तान पूरी तरह से चीन को ओर झुक जाएगा. अमेरिका ऐसा नहीं चाहता कि पाकिस्तान और चीन की करीबी बढ़े. अमेरिका को भारत के रूस के करीब भी जाने का डर है. यही वजह है कि दोनों देशों को साधते हुए अमेरिका ने इस मामले में तुरंत इंट्रेस्ट लेना शुरू कर दिया.
2. अमेरिका को लगता है कि अगर यह युद्ध शुरू होता है तो दोनों देश न्यूक्लियर पावर है और जंग उस हद तक जा सकता है. इससे पूरी तरह से क्षेत्रीय अशांति फैल सकती है.
3. अमेरिका को यह भी लगता है कि भारत अगर जंग में फंसा तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलने वाला टैरिफ के मुद्दे पीछे चले जाएंगे. वह टैरिफ समेत इकोनॉमिक मुद्दों को पहले हल करना चाहता है. इसी वजह से अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के मुद्दे पर तुरंत दखल की है.
4. अमेरिका जम्मू-कश्मीर के इश्यू को दोनों देशों के बीच के विवाद का मुद्दा मानता है. अमेरिका भारत के साथ ट्रेड बढ़ाना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान को भी साधना चाहता है. इसी वजह से ट्रंप ने अपने ट्वीट में कई कदम आगे बढ़ते हुए कश्मीर के मामले पर भी मध्यस्थता करने की बात कह दी है.
इसका मतलब साफ है कि अमेरिका पाकिस्तान को दरकिनार करने के लिए तैयार नहीं है. वह ईरान, अफगानिस्तान जैसे देशों के करीब बसे पाकिस्तान को अपने हितों की वजह से भी दरकिनार नहीं करेगा.
इस मामले में अमेरिका ने इकोनॉमिक और स्ट्रैटेजिक हित को ध्यान में रखकर भारत का साथ उस तरह से नहीं दिया, जितना मदद की उम्मीद थी.
पाकिस्तान के साथ जंग की स्थिति में अमेरिका से क्या उम्मीद की जा सकती है?
विदेश मामलों के जानकार राजन का कहना है कि भारत को अपनी शक्ति पर भरोसा रखकर ही आगे बढ़ना चाहिए. भारत को अमेरिका या रूस के भरोसे कभी कोई ऐसा फैसला नहीं लेना चाहिए. जो भी देश अमेरिका के भरोसे जंग करेगा, वह निश्चित ही फंसेगा.
अमेरिका ने यूक्रेन को बीच में छोड़ दिया. इसी अमेरिका ने कभी पाकिस्तान को भी छोड़ दिया था. अमेरिका हमेशा शक्तिशाली देश के साथ संबंध बेहतर करने की कोशिश करता है. अभी तो यूरोप भी अमेरिका की वजह से बीच मझदार में फंसता नजर आ रहा है. ऐसे में भारत भी उसपर भरोसा नहीं कर सकता है.
भारत कश्मीर के मुद्दे पर तीसरे देश का दखल क्यों नहीं चाहता है?
राजन कुमार कहते हैं कि इतिहास से हमें इस बात की सीख मिलती है. पाकिस्तान के साथ किसी मुद्दे को हल करने के लिए हम तीसरे पक्ष की दखल नहीं पसंद करते हैं. इसकी तीन वजह हैं-
1. 1947 में पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ किए जाने के बाद हम अंतरराष्ट्रीय संगठनों के पास गए. मामला यूएन में पहुंचा, लेकिन रूस को छोड़कर किसी ताकतवर देश ने भारत का साथ नहीं दिया. वह भी तब, जब भारत विक्टिम यानी आतंकी घुसपैठ से पीड़ित था.
2. अमेरिका समेत ज्यादातर पश्चिमी देश कश्मीर को विवादित क्षेत्र के तौर पर देखते हैं. जबकि भारत कश्मीर को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है. ज्यादातर देश अपने मैप में कश्मीर को पाकिस्तान और कुछ इलाका चीन का दिखाते हैं. ऐसे में भारत को इन देशों से ये उम्मीद नहीं है कि वह इस मुद्दे पर भारत का साथ देंगे. जबकि रूस कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानता है.
3. यह कश्मीर पर नई दिल्ली के लंबे समय से चले आ रहे रुख के विपरीत है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 के शिमला समझौता और 1999 के लाहौर घोषणापत्र ने दोनों पड़ोसियों के बीच मुद्दों को सुलझाने में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका निभाने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है.
यह सबकुछ जानते हुए भी पाकिस्तान अमेरिका से इस मुद्दे पर दखल देने की अपील करता है और अमेरिकी राष्ट्रपति भी कश्मीर मुद्दे को हल करने का वादा कर रहे हैं.
वहीं, स्वस्ति राव बताती हैं कि भारत भले ही कश्मीर के मामले में अमेरिका या किसी दूसरे देश के दखल को स्वीकार नहीं करे, लेकिन पाकिस्तान ऐसा ही चाहता है. यही वजह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर दो बार ट्रंप का नाम लेकर उन्हें थैंक्स कहा है.
ऐसा इसलिए क्योंकि ये डिप्लोमेसी उसपर शूट करता है. वह चाहता है कि अमेरिका कश्मीर के इश्यू को इंटरनेशनल स्तर पर विवादित मुद्दा माने. पाकिस्तान इसे दो देशों के बीच का मुद्दा नहीं रहने देना चाहता है और बार-बार इसे इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने की कोशिश करता है. इसबार उसे अपनी मंशा कामयाब होते नजर आ रही है.
आखिर में जानिए भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सीजफायर पर क्या कहा है?
सीजफायर की घोषणा के बाद पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने दो-दो ट्वीट कर अमेरिकी राष्ट्रपति को संघर्ष विराम कराने के लिए धन्यवाद कहा है. अपने पहले ट्वीट में 10 मई को रात 8 बजकर 39 मिनट पर पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने कहा, “हम राष्ट्रपति ट्रंप को क्षेत्र में शांति के लिए उनके नेतृत्व और सक्रिय भूमिका के लिए धन्यवाद देते हैं. पाकिस्तान इस परिणाम को सुगम बनाने के लिए अमेरिका की सराहना करता है, जिसे हमने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हित में स्वीकार किया है.”
इसके आगे शहबाज ने अपने ट्वीट में कहा, “हम दक्षिण एशिया में शांति के लिए उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें धन्यवाद देते हैं. पाकिस्तान का मानना है कि यह उन मुद्दों के समाधान की दिशा में एक नई शुरुआत है, जिन्होंने इस क्षेत्र को परेशान किया है और शांति, समृद्धि और स्थिरता की ओर इसके मार्ग को बाधित किया है.”
वहीं, पाकिस्तान के डिप्टी पीएम और विदेश मंत्री इसहाक डार ने ट्वीट कर कहा, “पाकिस्तान और भारत ने तत्काल प्रभाव से युद्ध विराम पर सहमति जताई है. पाकिस्तान ने हमेशा अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किए बिना क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिए प्रयास किया है.”
अब अगर भारत की बात करें तो संघर्ष विराम के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने तीन ट्वीट किए हैं, लेकिन एक भी पोस्ट सीजफायर से जुड़ी नहीं है. इस संबंध में भारतीय पीएमओ के सोशल मीडिया अकाउंट से भी कुछ पोस्ट नहीं किया गया है.
वहीं, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ट्वीट कर कहा, “भारत और पाकिस्तान ने आज गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बनाई है. भारत ने आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों के खिलाफ लगातार दृढ़ और अडिग रुख अपनाया है. भारत आगे भी ऐसा करना जारी रखेगा.”
विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने एक ट्वीट में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से बात होने की पुष्टि जरूर की है. उन्होंने इसकी जानकारी देते हुए लिखा, “अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से बातचीत हुई. हमने उन्हें बताया कि भारत का दृष्टिकोण हमेशा से संतुलित और जिम्मेदाराना रहा है और आज भी ऐसा ही है.”
इसके अलावा भारत की ओर से सीजफायर कराने का क्रेडिट नहीं दिया गया है. भारत के प्रधानमंत्री या विदेश मंत्री ने अपने ट्वीट में अमेरिका का नाम तक नहीं लिया है.