इंडियन साइंस कांग्रेस : सौ साल से चली आ रही बैठक पहली बार टाली गई, क्या है वजह?
भारतीय विज्ञान कांग्रेस साइंस पर आधारित एक सालाना बैठक है, जिसमें न सिर्फ देश के प्रीमियर संस्थानों से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भाग लेते हैं बल्कि कॉलेज और विश्वविद्यालयों से भी विज्ञान अध्यापक शामिल होते हैं

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 110 साल के इतिहास में यह पहली बार है, जब इसकी सालाना बैठक इस साल आयोजित नहीं हो रही. साल 1914 में शुरू होने के बाद परंपरागत रूप से इसकी बैठक हर साल 3 से 7 जनवरी तक होती रही है.
कोविड के कारण साल 2021 और 2022 में इसकी बैठक नहीं हो पाई थी. लेकिन अगले साल जनवरी, 2023 में नागपुर में इसकी 108वीं बैठक हुई. तो इस साल इसका आयोजन क्यों नहीं हो रहा है?
क्या है इसके पीछे वजह? यह जानने से पहले थोड़ा भारतीय विज्ञान कांग्रेस को और जान लेते हैं :
भारतीय विज्ञान कांग्रेस साइंस पर आधारित एक सालाना बैठक है, जिसमें न सिर्फ देश के प्रीमियर संस्थानों से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भाग लेते हैं. बल्कि कॉलेज और विश्वविद्यालयों से भी विज्ञान अध्यापक शामिल होते हैं. इसमें विज्ञान की दुनिया में हो रहे इनोवेशन पर चर्चा होती है. लोग अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत करते हैं, व्याख्यान देते हैं. हालांकि पिछले कुछ दशकों से इसकी क्वालिटी में गिरावट की बात कही जाती रही है. लेकिन इस बार आयोजन न होने के पीछे की वजह कुछ और है.
दरअसल, इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन (आईएससीए) और केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) के बीच पिछले कुछ समय से असहमतियां देखने को मिली हैं. आईएससीए ही साइंस कांग्रेस का आयोजन करता है, लेकिन इसके अधिकांश क्रियाकलापों के लिए फंडिंग डीएसटी से मिलती है. पिछले साल सितंबर में डीएसटी ने वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाते हुए साइंस कांग्रेस की फंडिंग रोक दी थी.
आईएससीए ने इन आरोपों से इनकार किया था, और अदालत में डीएसटी के निर्देशों को चुनौती भी दी थी. हालांकि यह मामला अभी-भी अदालत में ही है. इसके अलावा जगह के चयन को लेकर भी इन दोनों के बीच असहमतियां रही हैं. साइंस कांग्रेस का आयोजन लखनऊ यूनिवर्सिटी में होता रहा है. लेकिन इस साल आईएससीए ने यह सोचकर कि उसे वहां फंडिंग में सहायता मिलेगी, लखनऊ के बजाय जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में आयोजन कराने का निर्णय लिया. लेकिन कथित तौर पर डीएसटी इस फैसले से खुश नहीं था. इस पर आईएससीए का तर्क है कि जगह के चयन को लेकर उसे डीएसटी के क्लीयरेंस की जरूरत नहीं है.
बैठक में चर्चा का गिरता स्तर!
पिछले कुछ दशकों में साइंस कांग्रेस की बैठकों में चर्चा के स्तर में गिरावट देखने को मिली है. साल 2019 में पंजाब में जब बैठक हो रही थी, तो बच्चों के एक सत्र के दौरान आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति जी नागेश्वर राव ने कुछ दावे किए. उन्होंने महाभारत और रामायण की कहानियों का हवाला देते हुए कहा कि भारत हजारों साल पहले स्टेम सेल, टेस्ट ट्यूब फर्टिलाइजेशन और गाइडेड मिसाइलों से अच्छी तरह वाकिफ था. वैज्ञानिक संस्थानों ने इस का विरोध किया और कहा गया कि वैज्ञानिकों को पौराणिक कथाओं को विज्ञान के साथ नहीं मिलाना चाहिए. इसी तरह के कुछ और दावे भी सामने आए. इसके अलावा जो पेपर प्रस्तुत किए जाते हैं, उनका भी स्तर काबिलेगौर नहीं होता.
सरकार की दुविधा क्या है?
चूंकि आईएससीए एक स्वतंत्र निकाय है और वह जो वक्ता या पैनलिस्टों का चयन करता है, या उसमें जो लोग पेपर प्रस्तुत करते हैं या जिन विषयों पर उसमें चर्चा होती है, उसमें सरकार का कोई दखल नहीं होता. लेकिन आईएससीए, डीएसटी की मदद से ही संचालित होता है. सरकार आईएससीए के स्थायी कर्मचारियों को तनख्वाह भी देती है. इन आयोजनों में प्रधानमंत्री सहित कई बड़े अधिकारी शामिल होते हैं. ऐसे में जब भी कोई विवाद खड़ा होता है, सरकार का नाम इससे जुड़ जाता है.
सरकार इससे मुंह भी नहीं मोड़ सकती है, क्योंकि इससे उस पर एंटी-साइंस होने का आरोप लग सकता है. साथ ही, उसे इस बात का भी भान है कि इस इवेंट में बड़ी संख्या में छात्र भाग लेते हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एक सरकारी अधिकारी ने कहा है, "साल 2025 में होने वाली इंडियन साइंस कांग्रेस की बैठक के लिए चर्चा जारी रहेगी." वहीं, आईएससीए के जेनरल सेक्रेटरी रंजीत कुमार को उम्मीद है कि वे 31 मार्च से पहले साइंस कांग्रेस की बैठक संपन्न कराने में समर्थ होंगे.