आखिर हॉटलाइन पर ही क्यों बात करते हैं भारत-पाक के DGMO? यह आम टेलीफोन से कैसे अलग है?
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद इन दोनों देशों के बीच पहली बार 'हॉटलाइन' संपर्क स्थापित किया गया

मई की 12 तारीख को शाम 5 बजे भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ (सैन्य संचालन महानिदेशकों) के बीच बातचीत हुई. यह दोनों देशों के बीच इस हफ्ते हुई सीजफायर सहमति के बाद पहली औपचारिक वार्ता थी. दोनों देशों के बीच यह बातचीत एक 'हॉटलाइन' के जरिए हुई.
यह हॉटलाइन एक सीधी लैंडलाइन है जो नई दिल्ली स्थित सेना मुख्यालय को रावलपिंडी के जनरल हेडक्वार्टर से जोड़ती है. अब यहां कुछ सवाल हैं कि ये बातचीत हॉटलाइन के जरिए ही क्यों होती है? इसका इस्तेमाल कौन लोग कर सकते हैं, और इसके माध्यम से बातचीत कैसे होती है?
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच संवाद कायम करने के लिए इस माध्यम की नींव रखी गई थी. यह अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध के दौर में स्थापित 'मॉस्को-वाशिंगटन हॉटलाइन' की तर्ज पर तैयार की गई थी.
यूएस और रूस के बीच इसकी स्थापना 30 अगस्त, 1963 को हुई, जब 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट ने दोनों देशों को परमाणु युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया. इस संकट ने दिखाया कि गलतफहमी और देरी से होने वाला संवाद कितना खतरनाक हो सकता है.
इसके अलावा सैन्य गतिविधियों या मिसाइल परीक्षणों को लेकर गलत अनुमान से बचने के लिए भी हॉटलाइन का इस्तेमाल हुआ. यह तय करता था कि कोई भी पक्ष दूसरे की गतिविधियों को हमले की तैयारी न समझे. इस तरह हॉटलाइन ने दोनों देशों के बीच न्यूनतम स्तर का विश्वास बनाए रखने में मदद की, जो शीत युद्ध के तनावपूर्ण माहौल में अहम था.
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद इन दोनों देशों के बीच इस तरह का संपर्क बनाया गया. इसका उद्देश्य रियल टाइम में सेना के बीच संवाद, किसी संकट की स्थिति में उसका समाधान और तनाव के हालात में जल्द से जल्द एक दूसरे को जानकारी पहुंचाना है.
यह एक फिक्स्ड, एन्क्रिप्टेड लैंडलाइन है, जो मोबाइल या इंटरनेट आधारित नहीं है और इसे केवल डीजीएमओ के ऑफिस से ही इस्तेमाल किया जा सकता है. यह एन्क्रिप्टेड होता है, जिसका मतलब है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति हॉटलाइन पर होने वाली बातचीत को टैप नहीं कर सकता. सेना से जुड़ी संवेदनशील और गोपनीय जानकारी को प्रसारित करने के लिए यह बहुत जरूरी है.
हालांकि, हॉटलाइन का इस्तेमाल पहले से तय हर हफ्ते (आमतौर पर हर मंगलवार को) होने वाली बातचीत के लिए किया जाता है, लेकिन इसे संकट के समय जैसे युद्ध विराम उल्लंघन, मिलिट्री एस्क्लेशन या आपात स्थिति के दौरान तुरंत सक्रिय कर दिया जाता है.
कूटनीतिक या राजनीतिक चैनलों से इतर यह वार्ता पूरी तरह से सैन्य स्तर पर होती हैं, ताकि घटनाओं का तुरंत स्पष्टीकरण हो सके और नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर गलतफहमी को रोका जा सके.
इसकी भूमिका भारत-पाक के बीच हुए हालिया सीजफायर समझौते के बाद और स्पष्ट हुई. 9 मई को दोनों देशों के डीजीएमओ के बीच हॉटलाइन पर बातचीत हुई. इसमें दोनों पक्षों को युद्ध विराम समझौते को मजबूत करने, सैन्य तैनाती को एड्रेस करने और भविष्य की घटनाओं को प्रबंधित करने के लिए मैकेनिज्म पर चर्चा करने का अवसर मिला.
ऐतिहासिक रूप से, हॉटलाइन का इस्तेमाल सिर्फ संकट के समय बातचीत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसे नियमित सैन्य प्रबंधन के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है. जैसे - युद्धविराम की निगरानी, सैन्य अभ्यासों की सूचना देना और 1998 में दोनों देशों के परमाणु परीक्षणों के बाद परमाणु अलर्ट दिया गया. जब तनाव बहुत ज्यादा होता है, तब हॉटलाइन का इस्तेमाल दिन में कई बार किया जाता है.
पाकिस्तान की सेना ने दोनों देशों के बीच स्थिरता और आपसी सम्मान की प्रतिबद्धता पर जोर दिया, जबकि भारत ने कहा कि धमकियां समस्याओं को सुलझाने का सही तरीका नहीं हैं. दोनों पक्षों ने दोहराया कि हॉटलाइन घटनाओं को नियंत्रित करने और राजनीतिक बातचीत शुरू होने से पहले तनाव बढ़ने से रोकने का मुख्य जरिया है.
हॉटलाइन और टेलीफोन में तकनीकी अंतर
जहां टेलीफोन एक सामान्य संचार उपकरण है, जिसका इस्तेमाल निजी या कॉमर्शियल कॉल, डायलिंग और विभिन्न नंबरों से संपर्क के लिए किया जाता है. यह मैन्युअल डायलिंग पर आधारित होता है.
वहीं, हॉटलाइन एक समर्पित, विशेष प्रयोजन वाली टेलीफोन लाइन होती है, जो दो पक्षों के बीच तेजी से और सीधा संचार सुनिश्चित करती है. इसे प्री-कॉन्फिगर किया जाता है ताकि कॉल स्वचालित रूप से एक विशिष्ट नंबर पर जाए, बिना डायलिंग की जरूरत के.
सामान्य टेलीफोन लाइनें सार्वजनिक स्विच्ड टेलीफोन नेटवर्क (PSTN) या VoIP के माध्यम से काम करती हैं. इस्तेमालकर्ताओं को नंबर डायल करना पड़ता है, और कॉल नेटवर्क के माध्यम से रूट की जाती है.
हॉटलाइन आमतौर पर एक पॉइंट-टू-पॉइंट डेडिकेटेड लाइन या प्री-प्रोग्राम्ड सर्किट पर आधारित होती है. यह एक निश्चित गंतव्य (जैसे आपातकालीन सेवा, ग्राहक सेवा, या सरकारी कार्यालय) से सीधे जुड़ी होती है. इसमें स्वचालित रिंगडाउन (जैसे ही फोन उठाया जाता है, कॉल कनेक्ट हो जाती है) या डायरेक्ट कॉल रूटिंग हो सकती है.