नितिन नबीन में ऐसी क्या खूबी है जो वे BJP के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए?

नितिन नबीन का नाम बिहार BJP में भी शीर्ष पांच नामों के बाद आता है. ऐसे में उनको पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पद पर चुना जाना खुद उनके भी बड़ी चुनौती बन सकता है

BJP के नए राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन

नितिन नबीन को जब BJP का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा हुई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत BJP और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें शुभकामनाएं दीं. मगर शुभकामना देने वालों की इस फेहरिस्त सबसे अलग नाम RJD के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी का था. 

उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा, “BJP से हमारा घोर वैचारिक मतभेद है. लेकिन इसके बावजूद नितिन जहां मिले घर के बड़े की तरह सम्मान दिया. इस खबर ने नवीन (नबीन सिन्हा,  नितिन नबीन के पिता) की भी याद दिला दी. अगर आत्मा सचमुच होती है तो पुत्र की इस उपलब्धि से नवीन की आत्मा जुड़ा गई होगी. नितिन के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं.”

यह कोई छिपी बात नहीं है कि शिवानंद तिवारी BJP के घनघोर विरोधी हैं, लेकिन हाल के वर्षों में यह पहला मामला ऐसा है, जिसमें वे BJP के किसी नेता की बिना किसी किंतु-परंतु के तारीफ करते नजर आए हैं. यही वह बात है जिसे BJP के नवनियुक्त राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन की सबसे बड़ी खूबी कहा जा सकता है.  

रविवार के दिन, 14 दिसंबर को तीसरे पहर जब उन्हें पार्टी का सबसे शीर्ष पद दिए जाने की घोषणा हुई तो यह खबर हर किसी के लिए हैरत भरी थी. हाल के दिनों में BJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा जिन लोगों की थी, उनमें नितिन का नाम तो नहीं ही था, बिहार के BJP नेताओं को भी इस बात का इल्म नहीं था कि उन्हें इतना महत्वपूर्ण पद दिया जा सकता है. 

जब यह खबर आई, उससे कुछ देर पहले नितिन नबीन के विधानसभा क्षेत्र बाकीपुर में कार्यकर्ता सम्मान समारोह चल रहा था, उसमें भी BJP नेताओं का जो क्रम था उसमें नितिन प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, दो उपमुख्यमंत्री- सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा, दो सांसद रविशंकर प्रसाद और विवेक ठाकुर, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव के बाद सातवें नंबर पर थे. 


मगर इस एक घोषणा ने उन्हें एक झटके में अपनी पार्टी की सर्वोच्च कुर्सी पर बिठा दिया. जब इस खबर की चिट्ठी राजधानी पटना के पत्रकारों तक पहुंची तो एक ने यह आशंका जाहिर की कि कहीं चिट्ठी में कोई प्रूफ की गलती तो नहीं है और पूछा- कहीं नितिन गडकरी की जगह नितिन नबीन तो नहीं लिख दिया गया है! उनका ऐसा सोचना वाजिब भी था, क्योंकि उम्र और अनुभव दोनों में बिहार में जूनियर समझे जाने वाले नितिन के बारे में किसी ने कल्पना नहीं की थी कि पार्टी उन्हें इतने ऊंचे पद पर बिठा सकती है.

ये वही नितिन नबीन हैं जिन्होंने तीन साल पहले महागठबंधन के नेता के रूप में मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार का बिहार विधानसभा में विरोध करने की कोशिश की थी तो नीतीश ने उन्हें यह कहते हुए डांट दिया था, “बैठो.., तुम क्या जानते हो, जब तुम्हारे पिता जी की मृत्यु हो गई थी तो पूरे पटना में 18 परसेंट वोट हुआ था, तब तुम जीते थे, तब तुम्हारे साथ हम लोग थे. तुम्हारे पिता जी के साथ हमारे कितने पुराने संबंध थे. हम सरकार में आए तभी उनका डेथ हो गया. तभी न तुमको बनाए थे!” नीतीश कुमार ने तब उन्हें उनके पिता से अपने संबंध और उन्हें उनके बदले विधायक बनाने की बात याद दिलाकर चुप करा दिया था. मगर साथ ही यह भी कहा था कि हमारा विरोध नहीं करोगे तो पार्टी में आगे कैसे बढ़ोगे?

इस प्रसंग से यह भी इशारा मिलता है कि लगभग 20 साल राजनीति करने के बाद भी नितिन नबीन की पहचान के साथ उनके पिता नबीन सिन्हा की पहचान जुड़ी है. उन्होंने अपने पिता का नाम भी अपने नाम के साथ जोड़ रखा है.

नबीन किशोर प्रसाद सिन्हा अपने जमाने के BJP के कद्दावर नेता थे और 2005 में जब NDA की सरकार बनी थी तब वे भी पश्चिमी पटना विधानसभा सीट के विधायक चुने गए थे, मगर 2006 में उनकी अचानक मृत्यु हो गई.  तब BJP ने उनके पुत्र नितिन नबीन को उपचुनाव में उतारा जो उस वक्त बमुश्किल 25-26 साल के थे और पढ़ाई ही कर रहे थे. तब से इस सीट से लगातार चुनाव जीत रहे हैं और इस बार पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं. 2010 में इस विधानसभा का नाम बदलकर बाकीपुर कर दिया गया है.

2021 में नितिन को पहली बार बिहार में NDA सरकार में मंत्री बनाया गया. इस बार भी उन्हें मंत्री बनाया गया है. उनके जिम्मे पथ निर्माण विभाग और नगर विकास विभाग जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय रहे हैं. उन्हें गृहमंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है और कहा जाता है कि बिहार में दो नेता मंगल पांडेय और नितिन नबीन अमित शाह के करीबी हैं, इसलिए NDA की जब भी सरकार बनती है, ये मंत्री जरूर बनते हैं.

नितिन नबीन बिहार BJP में कभी किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं रहे, मगर भाजपा युवा मोर्चा (भाजयुमो) और छत्तीसगढ़ BJP में उनके काम को महत्वपूर्ण माना जाता है. 2008 में ही पार्टी ने इन्हें भाजयुमो का सह-प्रभारी बना दिया था. 2010-13 तक वे भाजयुमो के राष्ट्रीय महामंत्री रहे और 2016 से 2019 तक वे भाजयुमो के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष भी रहे. 

2019 में पार्टी ने नितिन पर भरोसा जताते हुए पहली बार सिक्किम में चुनाव प्रभारी बनाया. फिर वहां संगठन प्रभारी बना दिया. 2021 से 2024 के बीच वे छत्तीसगढ़ में BJP के सह-प्रभारी रहे. 2024 में उन्हें चुनाव प्रभारी बनाया गया और फिर चुनाव के बाद से वे राज्य में संगठन के प्रभारी हैं.

छत्तीसगढ़ में प्रभारी के रूप में इनका काम बेहतर माना जाता है. उन्होंने वहां प्रभारी रहते पार्टी को लोकसभा, पंचायत और नगर निकाय चुनाव में जीत दिलाई. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उनके व्यवहार कुशल होने की वजह से छत्तीसगढ़ BJP के नेताओं के साथ काफी बेहतर संबंध हैं और नितिन के हर चुनाव में वहां से नेता इनके लिए प्रचार करने आते हैं. इसके अलावा नितिन की एक और पहचान पटना में रामनवमी शोभायात्रा के आयोजक के रूप में भी है, जो वे पिछले 14 साल से आयोजित करवा रहे हैं.

इनकी खूबियों का जिक्र करते हुए बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, “नबीन एक अच्छे संगठनकर्ता हैं. इनकी सबसे बड़ी खूबी कार्यकर्ताओं के साथ इनकी अच्छी ट्यूनिंग है. इनमें नेताओं वाला अहंकार नहीं है, ये अपने कार्यकर्ताओं के साथ घुलमिल जाते हैं और इन पर कोई बड़ा आरोप भी नहीं है. इसके अलावा अमित शाह से इनकी नजदीकी ने भी शायद इनकी उम्मीदवारी को ताकत दी होगी.”

प्रवीण यह भी बताते हैं, “इनके पिता के साथ BJP में अन्याय हुआ था. नबीन सिन्हा अपने जमाने में BJP के बड़े नेता थे, सुशील मोदी से भी सीनियर. मगर उनमें भी सरलता थी, इसलिए वे मंत्री नहीं बन पाए और सुशील मोदी उनसे आगे निकल गए. 2006 में मंत्रीमंडल को लेकर दिल्ली में BJP की एक बैठक थी, वहीं किसी तनावपूर्ण मसले पर बात करते हुए उन्हें हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया. नितिन नबीन को यह पद मिलना एक तरह से उस अन्याय की भरपाई होगी.”

हालांकि नितिन नबीन BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी उठा पाएंगे और उसे निभा पाएंगे, इसको लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस के सीनियर असिस्टेंट एडिटर संतोष सिंह कहते हैं, “नितिन की राह आसान नहीं होगी. उनके सामने BJP जैसी राष्ट्रीय पार्टी के पूरे देश में फैले संगठन को समझने की चुनौती होगी. यह चुनौती बौद्धिक भी होगी और सांगठनिक भी.”

संतोष सिंह इस फैसले को लेकर BJP की तारीफ करते हुए कहते हैं, “इस चयन से यह जरूर समझ आता है कि BJP में एक सामान्य कार्यकर्ता भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकता है. इस फैसले में चौंकाने वाली बात भी है, जिसके लिए BJP नेतृत्व जाना जाता है. फिर भी मैं कह सकता हूं कि मैंने किसी पार्टी में अब तक ऐसा राइज नहीं देखा. बिहार में भी नितिन पार्टी में दसवें नंबर के नेता रहे हैं.”

नितिन के पद के साथ कार्यकारी शब्द का जुड़ा होना भी इस बात की तरफ इशारा करता है कि पार्टी भी मानती है कि उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष की स्वतंत्र जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती. पार्टी अभी इंतजार करेगी और उनके कामकाज को देखेगी. कहा यह भी जा रहा है कि चूंकि पार्टी में अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर किसी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही, इसलिए फिलहाल नितिन को कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है. खैर, आगे जो भी हो मगर यह तो सच है कि BJP संसदीय बोर्ड के इस फैसले ने एक झटके में बिहार BJP के एक युवा नेता को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया है.

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