देश में तैयार फसलों की सौ से ज्यादा नई किस्में क्यों हैं खास? इनसे कितनी बदलेगी अन्नदाताओं की किस्मत?

सरकार ने फसलों की जिन 109 नई किस्मों को जारी किया है, उनमें खेती और बागवानी दोनों तरह की फसलें शामिल हैं. इनमें खेती की जहां 69 किस्में हैं वहीं बागवानी के लिए ये 40 हैं

पीएम मोदी और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान/एएनआई
पीएम मोदी और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान/एएनआई

अगस्त की 11 तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में जलवायु अनुकूल (क्लाइमेट फ्रैंडली) फसलों की 109 नई किस्मों को जारी किया. सरकार के मुताबिक ये सभी ज्यादा पैदावार देने वाली और जैव संवर्धित फसल किस्में हैं. जैव संवर्धित या बायो फोर्टिफाइड वे फसलें होती हैं, जिनमें बायो टेक्नोलॉजी के जरिए पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाया जाता है. 

जैव संवर्धन की यह प्रक्रिया प्लांट ब्रीडिंग, कृषि प्रणाली या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से की जाती है. बहरहाल, सरकार का कहना है कि ऊंची उपज देने वाली इन नई फसल किस्मों से किसानों और खेती-किसानी को मजबूती मिलेगी. ऐसे में आइए समझते हैं कि इससे किसानों को कैसे मजबूत बनाने की उम्मीद की जा रही है?

इंडिया टुडे की अपनी एक रिपोर्ट में वरिष्ठ संवाददाता अमरनाथ के. मेनन लिखते हैं, "जारी की गई नई किस्में देश के कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों की भिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन की गई हैं, जो फसलों की उच्च उपज किस्मों (हाई येल्डिंग वेराइटिज या HYV) और बेहतर गुणों का वादा करती हैं. HYV दरअसल, जेनेटिकली ट्वीक्ड (जीन् में छेड़छाड़) फसलें होती हैं जो उच्च खाद्य उत्पादन क्षमता को साकार करती हैं और उत्पादकता बढ़ाकर एक तरह से जो विशाल प्रोडक्शन सिस्टम है उसमें और ज्यादा खेती योग्य जमीन जोड़ने के दबाव को कम करती हैं."

HYV के बारे में आगे बताते हुए मेनन अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, "HYV बीज कीटों और बीमारियों के लिहाज से प्रतिरोधी स्वभाव की होती हैं और उनमें उच्च उपज की क्षमता होती है. ऐसे बीज उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं और वे अधिक मात्रा में और सुरक्षित ढंग से फसल उगाने के लिए एक बेहतर विकल्प होते हैं. सरकार ने जो 109 नई किस्में जारी की हैं, इनका उद्देश्य कृषि उत्पादकता को बढ़ाना और किसानों की आय में सुधार करना है." 

सरकार ने फसलों की जिन 109 नई किस्मों को जारी किया है, उनमें खेती और बागवानी दोनों तरह की फसलें शामिल हैं. इनमें खेती की जहां 69 किस्में हैं वहीं बागवानी के लिए ये 40 हैं. HYV युक्त खेती की इन फसलों में अनाज, बाजरा, चारा फसलें, तिलहन, दलहन, गन्ना, कपास और रेशे वाली फसलें प्रमुख हैं जो खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती हैं. वहीं बागवानी की किस्मों में फल, सब्जियां, बागानी फसलें, कंद, मसाले, फूल और औषधीय पौधे शामिल हैं. 

इन सभी नई किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित किया गया है. सरकार के मुताबिक किसानों को इन HYV किस्मों के बीज अगले तीन सालों में मिल जाएंगे. सरकार ने फसलों की इन नई किस्मों को जलवायु अनुकूल बताया है, आइए अब समझते हैं कि इसका क्या मतलब है.

कैसे जलवायु के अनुकूल हैं ये नई किस्में?

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में अमरनाथ के. मेनन लिखते हैं, "इन बीजों को प्रतिकूल मौसम में भी पनपने के लिए तैयार किया गया है और इनमें काफी उच्च न्यूट्रिशनल वैल्यू है. कई बीमारियों से प्रतिरोधी क्षमता होने के अलावा HYV किस्मों का एक फायदा ये है कि वे उर्वरकों के साथ बेहतर रिस्पांस करती हैं. साथ ही, बेहतर उपज और गुणवत्ता के साथ ये जल्दी पकती हैं. ये एडवांस्मेंट लक्षित फसल प्रजनन (टारगेटेड क्रॉप ब्रिडिंग) रणनीतियों का नतीजा है, जिसका लक्ष्य खेती में उत्पादकता और लाभप्रदता को बढ़ावा देना है."

जलवायु अनुकूल फसलों की जरूरत क्यों है, इसके बारे में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने एक लेख में लिखा है, "ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण असंतुलन जैसी समस्याओं के बीच उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती खड़ी हो गई है. इस चुनौती से निपटने के लिए अगले पांच सालों में सरकार का लक्ष्य जलवायु अनुकूल फसलों की 1500 नई किस्में तैयार करने का है. बढ़िया उत्पादन के लिए अच्छे बीज बहुत जरूरी हैं. अगर बीज उन्नत और मिट्टी और मौसम की प्रकृति के अनुकूल होंगे तो उत्पादन में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी होगी."

अच्छी उपज के साथ फसलों के जल्दी और बेहतर ढंग से पकने का मतलब यह है कि मान लीजिए कोई फसल 120 दिनों में पक कर तैयार हो रही हो, तो HYV बीजों के साथ वो 90 या कहिए 100 दिनों में तैयार हो सकती है. और अगर ऐसा होता है तो देश में बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए खाद्य सुरक्षा के लिहाज से यह काफी अहम साबित होगा.

पौधों की ये खास किस्में कौन सी हैं?

पीएम मोदी द्वारा जारी की गई फसलों की इन 109 नई किस्मों में से एक सीआर धान 416 है. यह तटीय खारे क्षेत्रों के लिए एक आदर्श चावल की किस्म है. इसकी उपज 48.97 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह 125-130 दिनों में पक जाती है. लेकिन इसकी सबसे खास बात यह है कि यह धान की सामान्य फसलों से जुड़े प्रमुख रोगों से अपना बचाव कर सकती है. 

सीआर धान 416 आमतौर पर धान की फसलों पर लगने वाले भूरे धब्बों, शीथ रॉट, राइस टंग्रो रोग के प्रति मॉडरेट रूप से प्रतिरोधी है, लेकिन यह ब्राउन प्लांट हॉपर, टिड्डी और स्टेम बोरर (फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट) से अपना पूर्ण बचाव कर सकती है. इसके अलावा मोदी ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त गेहूं की एक किस्म ड्यूरम भी जारी की. 

ड्यूरम किस्म सिंचाई की परिस्थितियों के लिहाज से काफी अनुकूल है. इसकी औसत उपज 30.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. साथ ही, यह 'टर्मिनल हीट' के प्रति काफी सहनशील है, इसके तने और पत्ती में चित्ती (एक प्रकार का फसली रोग) नहीं लग सकती. और यह जिंक (41.1 पीपीएम) और आयरन (38.5 पीपीएम) के उच्च स्तरों के साथ बायो फोर्टिफाइड है. इसमें 12 फीसद प्रोटीन भी होता है. 

टर्मिनल हीट से आशय उस स्थिति से है जब तापमान बढ़ने के साथ पछुआ हवा चलती है, और गेहूं की फसल पर इसका असर पड़ता है. गेहूं के दाने बनने के समय तापमान बढ़ने और पछुआ हवा चलने से दाने सूखने लगते हैं. इससे अगर दाना तैयार भी होता है, तब वह छोटा और पतला रह जाता है.

और कौन सी HYV किस्में जारी हुईं?

ड्यूरम और सीआर धान 416 के अलावा खेतों में उगाई जाने वाली फसलों में जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा और रागी की नई किस्में शामिल हैं. दालों में चना, अरहर, मसूर और मूंग की नई किस्में पेश की गईं. चने की ये किस्में रबी के मौसम में समय पर बुआई, वर्षा आधारित या सिंचित स्थितियों के लिए उपयुक्त हैं. इनकी पैदावार 17.79 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और ये करीब 130 दिनों में पक जाती हैं. 

ये किस्में विल्ट, कॉलर रॉट और स्टंट (चने की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले रोग) के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी हैं और इनकी फलियों को भी जल्दी नुकसान नहीं पहुंचता. पीएम मोदी ने चावल, गेहूं, जौ, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी और बार्नयार्ड बाजरा सहित 23 अनाजों की किस्में जारी की. अलावा इसके उन्होंने कुसुम, सोयाबीन, मूंगफली और तिल जैसी सात तिलहन किस्में और चारा मोती बाजरा, बरसीम, जई, चारा मक्का और चारा ज्वार सहित सात चारा फसलें भी पेश की. 

पीएम मोदी ने चार गन्ना किस्मों, कपास और जूट सहित छह रेशेदार फसलों और 11 संभावित फसलों जैसे कि कुट्टू, ऐमारैंथ, विंग्ड बीन, अडजुकी बीन, पिलिपेसरा, कलिंगडा और पेरिला को भी जारी किया. आइए अब बागवानी वाली फसलों पर भी बात कर लेते हैं. 

बागवानी क्यों महत्वपूर्ण है?

इंडिया टुडे की अपनी एक रिपोर्ट में अमरनाथ के. मेनन लिखते हैं, "बागवानी में निर्यात की अपार संभावनाएं हैं, जिससे अधिक आय होती है. इसमें प्रति एकड़ के हिसाब से उपज अधिक होती है, जिससे उत्पादकों को तेजी से लाभ होता है. खाद्यान्न फसलों की उत्पादकता के बरक्स बागवानी फसलों की उत्पादकता बहुत अधिक है. जहां खाद्यान फसलों की उत्पादकता औसतन 2.23 टन प्रति हेक्टेयर होती है, वहीं इसकी तुलना में बागवानी फसलों की औसत उत्पादकता 12.49 टन प्रति हेक्टेयर है."

मेनन आगे बताते हैं,"इसके अलावा फायदा यह है कि बागवानी देश की पोषण संबंधी जरूरतों में योगदान देती है और ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा करती है. साथ ही, कृषि गतिविधियों की सीमा का विस्तार करती है और किसानों के लिए अधिक आय पैदा करती है. एक हेक्टेयर फल उत्पादन से हर साल 860 मानव-दिवस (मैन डेज) का सृजन  होता है, जबकि अनाज की फसलों से महज 143 मानव-दिवस ही पैदा होते हैं."

मैन डेज या मानव दिवस दरअसल माप की एक इकाई है जो एक व्यक्ति द्वारा एक दिन में किए गए काम की मात्रा को बताता है. मान लीजिए एक मैन डेज की औसत अवधि 8 घंटा है तो इस हिसाब से एक हेक्टेयर अनाज की फसलों के लिए एक साल में जहां औसतन 143 मैन डेज का सृजन होता है, वहीं एक हेक्टेयर फल उत्पादन के लिए ये बढ़कर औसतन 860 मैन डेज हो जाता है.  

जारी की गई बागवानी फसलों की नई किस्में कौन सी हैं?

पीएम मोदी ने बागवानी फसलों की जो नई किस्में जारी की हैं, उनमें अर्का उदय (आम), अर्का किरण (अमरूद) और अर्का निकिता जैसी फसलें हैं, जो आयोडीन से भरपूर होती हैं. अलावा इसके अर्का वैभव, जो रजनीगंधा की एक किस्म है जिसमें डबल टाइप सफेद फूल होते हैं, उसे भी जारी किया गया है. 

कट फ्लावर्स के लिए आदर्श अर्का वैभव की खास बात यह है कि इसकी उपज का स्तर 25,000 से 300,000 स्पाइक प्रति हेक्टेयर है. एक और अर्का श्रेया, जो क्रॉसेंड्रा किस्म की एक बड़ी और अनोखी किस्म है, जिसमें नारंगी-लाल रंग के फूल होते हैं, उसे भी जारी किया गया है. इसकी खास बात यह है कि ये फाइटोफ्थोरा विल्ट (एक तरह का फूलों से संबंधित रोग) से अपना बचाव करने में सक्षम है.

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