ट्रंप के टैरिफ के बीच बड़ी अमेरिकी कंपनियां भारत में अरबों डॉलर निवेश क्यों कर रही हैं?

पिछले दो दिनों में दो अमेरिकी कंपनियां माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन ने भारत में कुल 52 अरब डॉलर के निवेश का ऐलान किया है

माइक्रोसॉफ्ट CEO नडेला ने पीएम मोदी से मिलकर निवेश की घोषणा की
माइक्रोसॉफ्ट CEO नडेला ने पीएम मोदी से मिलकर निवेश की घोषणा की

अमेरिका भारतीय सामानों के आयात पर 50 फीसद टैरिफ लगा चुका है. हालांकि 10 और 11 दिसंबर को एक बार फिर अमेरिका और भारत के बीच ट्रेड डील पर बात होने वाली है.

वहीं इसी दौरान दो बड़ी अमेरिकी कंपनियों- माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन ने भारत में कुल 52 अरब अमेरिकी डॉलर निवेश का ऐलान किया है. इनमें से माइक्रोसॉफ्ट 17.5 अरब डॉलर (1.5 लाख करोड़ रुपये) करने वाली है.

वहीं, अमेजन ने 2030 तक 35 अरब डॉलर (लगभग 3.15 लाख करोड़ रुपये) निवेश की बात कही है. भारत में निवेश करने वाली अमेरिकी कंपनियों की लिस्ट में सिर्फ ये दो नाम शामिल नहीं हैं, बल्कि दो महीने पहले अमेरिकी कंपनी गूगल ने भी भारत में 15 अरब डॉलर निवेश का ऐलान किया था.

ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिकी कंपनियों के निवेश के लिए भारत एक पसंदीदा जगह क्यों है?

अमेरिकी कंपनियों के सीईओ ने भारत में पैसा निवेश करने पर क्या कहा है?

9 दिसंबर 2025: माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्या नडेला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह घोषणा करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया. उन्होंने लिखा, “भारत में AI की संभावनाओं पर बातचीत के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद. देश की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के लिए, माइक्रोसॉफ्ट $17.5 बिलियन (लगभग ₹1,45,000 करोड़) निवेश करने जा रही है. यह माइक्रोसॉफ्ट का एशिया में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है. यह भारत के AI-फर्स्ट भविष्य के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा, स्किल डेवलपमेंट में मदद करेगा."

10 दिसंबर 2025: अमेजन के वार्षिक MSME इवेंट 'संभव' में कंपनी के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट अमित अग्रवाल ने कहा कि अमेजन ने भारत की डिजिटल ग्रोथ में पिछले 15 वर्षों से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने बताया कि कंपनी आने वाले समय में 10 लाख नई नौकरियों के अवसर पैदा करेगी. इसके साथ ही अमेजन 2030 तक एक्सपोर्ट को बढ़ाकर 80 अरब डॉलर करने का लक्ष्य लेकर चल रही है. इसके अलावा कंपनी AI को 1.4 करोड़ छोटे व्यवसायों तक पहुंचाने पर भी काम कर रही है.

14 अक्तूबर 2025: गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट के CEO सुंदर पिचाई ने भारत के आंध्र प्रदेश में एक AI डेटा हब बनाने के लिए 15 अरब डॉलर (11.29 अरब पाउंड) निवेश का ऐलान किया. इस मौके पर उन्होंने कहा, "इसके माध्यम से हम अपनी उद्योग-अग्रणी प्रौद्योगिकी को भारत में उद्यमों और उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाएंगे, AI इनोवेशन और देश भर में विकास को गति देंगे."

आखिर अमेरिकी कंपनियों को भारत क्यों भा रहा है?

भारत में ज्यादातर अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियां इन्वेस्ट कर रही हैं. 1 दिसंबर 2025 को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (अप्रैल-सितंबर) में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 18 फीसद से ज्यादा बढ़कर 35,180 अरब डॉलर हो गया है. इस दौरान अमेरिका से भारत में होने वाला निवेश दोगुना से भी ज्यादा बढ़कर 6.62 अरब डॉलर हो गया है. पिछले वित्त वर्ष की अप्रैल से सितंबर तिमाही में विदेशों से निवेश 29.79 अरब डॉलर था.

यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि विदेश से भारत में दो प्रमुख तरह से पैसा इन्वेस्ट होता है. पहला- यहां की कंपनियों में. दूसरा- यहां के शेयर बाजार में. दोनों ही लिहाज से अमेरिकी निवेशकों के लिए भारतीय बाजार बेस्ट च्वॉइस रहा है. इसकी कुछ प्रमुख वजहें इस तरह से हैं : 

  1. आसान नियम: कुछ साल पहले तक इनमें से ज्यादातर अमेरिकी कंपनियों का भारतीय सरकारी संस्थाओं के साथ नियमों को लेकर कई मुद्दों पर टकराव था. तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है. इसमें कोरोना काल ने अहम भूमिका निभाई. कोरोना के बाद कई नियम बदले हैं. 2 दिसंबर 2025 को सरकारी एजेंसी PIB ने रिपोर्ट जारी कर कहा है कि भारत सरकार विदेशी निवेश में नियमों से जुड़े बाधाओं को दूर कर प्रोसेस को आसान करने और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए लगातार काम कर रही है.

    यह सारी कवायद इसलिए की जा रही है कि कारोबारी माहौल में सुधार करके, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) को बढ़ाकर, बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के जरिए देश में विदेशी पैसा लाया जा सके. इसके लिए सरकार ने 2014 और 2019 के बीच महत्वपूर्ण सुधारों में रक्षा, बीमा और पेंशन क्षेत्रों में FDI सीमा में बढ़ोतरी की है.

    इसके अलावा निर्माण, नागरिक उड्डयन और एकल ब्रांड खुदरा व्यापार के लिए नीतियों को उदार बनाना शामिल है. 2019 से 2024 तक, कोयला खनन, अनुबंध निर्माण और बीमा में 100 फीसद FDI की अनुमति देना इसमें शामिल है.

  2. मजबूत डिजिटल मार्केट: निवेश की इस बाढ़ ने एक ऐसी बात को भी उजागर किया है, जो दुनिया के लिए एक हकीकत है. भारत की डिजिटल इकोनॉमी, जिसमें 70 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स हैं और लगभग 50 करोड़ लोग आने वाले समय में इंटरनेट यूजर्स बनने वाले हैं. ऐसे में भारत डेटा और बिग टेक के लिए एक ऐसा बड़ा अवसर है, जिसे वे लंबे समय तक अनदेखा नहीं कर सकते.

    अमेरिका-इंडिया बिजनेस काउंसिल से जुड़े जय गुलिश के मुताबिक, “बाहर के लोगों को भरोसा है कि लंबे समय में भारत एक अच्छा बाजार साबित होगा और यहां के नियम कंपनियों के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी होंगे. मुझे लगता है कि ये वो बातें हैं, जो पहले से मौजूद मजबूत नींव को और भी मजबूत कर रहे हैं.”

  3. चीन के बजाय भारत की बेहतर और उदार पॉलिसी: अमेरिकी कंपनियां कई सालों से चीन से काफी हद तक अलग-थलग रही हैं, जिसका एक बड़ा कारण चीन की सेंसरशिप है. यह सेंसरशिप तंत्र बेहद सख्त है, जिसे ग्रेट फायरवॉल भी कहा जाता है. हांगकांग जैसी जगहों परअधिक प्रतिबंध वाले इंटरनेट के कारण गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ता है.

    स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के निदेशक मार्क लेमली के मुताबिक, "चीन के साथ व्यापार करना दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है. साथ ही इन्वेस्टर्स में यह धारणा भी बढ़ती जा रही है कि चीन के साथ व्यापार करने में नैतिक रूप से चिंताजनक समझौते करने पड़ते हैं." भारत में कंपनियों को इस तरह की किसी समस्या का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ता. ऐसे में भारत इन कंपनियों और इन्वेस्टर्स के लिए बेहतर और बड़ा बाजार साबित हो रहा है.

  4. चीन के बजाय भारत की विदेश नीति पर ज्यादा भरोसा: अमेरिका और चीन के बीच कई मुद्दों पर टकराव है. दोनों देश दुनिया की बड़ी ताकत हैं, जो सीधे एक-दूसरे से टकराते हैं. भारत के केस में ऐसा नहीं है. एक बार अमेरिका के साथ ट्रेड डील पर बात बन जाती है, तो भारत और अमेरिका के बीच सबकुछ अच्छा होने की संभावना है.

    रूस-यूक्रेन जंग के दौरान चीन ने जहां रूस का पक्ष लेकर स्पष्ट संकेत दिया कि वह एक खेमे में शामिल है. वहीं. भारत ने शांति की बात कहकर दोनों पक्षों से समान दूरी बनाए रखी. इससे निवेशकों को भरोसा हो गया कि भारत किसी खेमे में फंसने वाला नहीं है. 

    सप्लाई चेन विशेषज्ञ दीपक लाब्बा के मुताबिक, "इस दौर की जियो-पॉलिटिकल परिस्थिति में निवेश को लेकर 'प्रोटेक्शनिज्म' (जहां टैरिफ में छूट और सब्सिडी आदि मिले), 'फ्रेंडशोरिंग' (सहयोगी देशों से कच्चा माल खरीदना और वहीं प्रोडक्शन करना) और 'नियरशोरिंग' (पड़ोसी देश) जैसे शब्द पॉपुलर हैं, लेकिन जो वास्तव में मायने रखता है वह 'ट्रस्टशोरिंग' है. भारत वैश्विक सप्लाई चेन में 'ट्रस्ट' प्रदान करने के लिए अच्छी स्थिति में है. भारत एक समृद्ध लोकतंत्र है, जिसमें स्थिर वैश्विक संबंध हैं. यह भारत को चीन से बेहतर बनाता है, क्योंकि चीन में अनिश्चितता ज्यादा है."

  5. सस्ता मजदूर और कर्मचारी: दीपक लाब्बा के मुताबिक, "भारत में श्रम लागत चीन की तुलना में कम है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने विनिर्माण क्षेत्र में चीन के बाद में एंट्री की है. इस देरी ने भारतीय निर्माताओं को नवीनतम उपकरणों में निवेश करने का मौका दिया, जिसमें ऑटोमेशन और पर्यावरण अनुकूल तकनीकें शामिल हैं."

    भारत की करीब 1.4 अरब आबादी में कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) 2030 तक 100 करोड़ तक पहुंच जाएगा, जो वैश्विक कार्यबल का 20 फीसद होगा.

    व्हार्टन स्कूल की प्रोफेसर जेरेमी सीगेल के मुताबिक, भारत में उदार व्यवस्था है. जैसे लोकतांत्रिक सरकार और भ्रष्टाचार उजागर करने वाली स्वतंत्र प्रेस जो निवेशकों को भरोसा देता है. इतना ही नहीं भारत एशिया के उन देशों में शामिल है, जहां अंग्रेजी बोलने और समझने वाले युवाओं की आबादी अच्छी खासी है. ऐसे में पश्चिमी कंपनियों के लिए यहां के वातावरण को समझना और निवेश करना आसान होता है.

  6. भारत में मिडिल क्लास (मध्यम वर्ग) उपभोक्ताओं की संख्या: डेलाइट ग्लोबल इकोनॉमिक्स रिसर्च सेंटर के मुताबिक, 2030 तक देश में मध्यम-आय वर्ग और अमीर लोगों की आबादी और ज्यादा तेजी से बढ़ेगी. देश में 2025 तक 58 करोड़ लोग मध्यम वर्ग में शामिल हो चुके हैं, जिससे यहां ब्रांडेड उत्पादों की मांग बढ़ी है.

    भारत जल्द जर्मनी-जापान को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन सकता है. ऐसे में अमेरिकी कंपनियां इस बाजार में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहती हैं.

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