जेपी नड्डा के बाद बीजेपी अध्यक्ष के लिए इन चार नामों की चर्चा, लेकिन सबसे आगे कौन?
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा का कार्यकाल 30 जून 2024 को खत्म हो चुका है

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद से ही यह बिल्कुल साफ हो गया था कि अब पार्टी के किसी नए नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिलेगी. दरअसल, 2019 में अमित शाह के केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद पहले नड्डा कार्यकारी अध्यक्ष बने और बाद में वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए.
उनका कार्यकाल 2023 में ही खत्म हो गया था लेकिन लोकसभा चुनावों को देखते हुए उन्हें 30 जून, 2024 तक का कार्यकाल विस्तार दिया गया. अब 30 जून की मियाद भी खत्म हो गई है और नड्डा केंद्रीय मंत्रिमंडल में दो अहम और बड़े मंत्रालय- स्वास्थ्य और रसायन व उर्वरक मंत्रालय, संभाल रहे हैं. ऐसे में पार्टी के अंदर नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश चल रही है.
इस प्रक्रिया में कई नामों पर अलग-अलग स्तरों पर मंथन चल रहा और चार नेताओं की चर्चा सबसे ज्यादा है. हालांकि बीजेपी और इसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से बातचीत करने पर यह पता चलता है कि इस बार नए अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए संघ की 'सहमति' की जरूरत पिछले नौ सालों में सबसे ज्यादा होगी. फिलहाल हम समझते हैं कि बीजेपी में अध्यक्ष पद के लिए ये चार दावेदार कौन-कौन हैं और उनके पक्ष में क्या बातें जाती हैं.
केशव प्रसाद मौर्य
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का नाम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के दावेदारों में पहले शामिल नहीं था. लेकिन लोकसभा चुनाव के जब नतीजे आए और उत्तर प्रदेश में जिस तरह से पार्टी पिछड़ी, उसके बाद से मौर्य के नाम पर कई स्तर पर चर्चा शुरू हुई. 15 जुलाई को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में प्रदेश कार्यकारिणी की जो बैठक हुई, उसमें लोकसभा चुनाव के परिणामों की समीक्षा भी हुई थी. इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ बीजेपी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हुए.
इसी बैठक में केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ''जो दर्द आपका है, वही दर्द हमारा है. सरकार के ऊपर हमारे लिए संगठन और कार्यकर्ता है. कार्यकर्ता निराशा से बाहर निकले, किसी बड़े पेड़ की टहनी से जब कुल्हाड़ी बनती है, तभी वह पेड़ काटा जा सकता है.'' इस बयान के अगले दिन यानी 16 जुलाई को दिल्ली में केशव मौर्य एक बार फिर से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिल रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के पक्ष में कई मजबूत तर्क दिए जा रहे हैं. पहला यह कि वे पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं और अगर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के फिर से हो रहे उभार को रोकना है तो किसी ओबीसी नेता को आगे करके ही यह लड़ाई लड़नी होगी. बीजेपी के एक राष्ट्रीय महासचिव से जब इस बारे में इंडिया टुडे ने बातचीत की तो उन्होंने सीधे केशव मौर्य का नाम तो नहीं लिया लेकिन ये जरूर कहा कि कोई ओबीसी नेता ही नया अध्यक्ष होगा.
मौर्य के पक्ष में दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि वे उसी उत्तर प्रदेश से हैं, जहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान हुआ है. केशव प्रसाद मौर्य के पक्ष में एक यह बात भी जा रही है कि वे पार्टी लाइन और उसके अनुशासन को सख्ती से मानते हैं. 2017 में जब वे उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे और पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला था तो कई लोग मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी मान रहे थे लेकिन पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को कमान दी. केशव प्रसाद मौर्य योगी सरकार में उपमुख्यमंत्री के तौर पर काम करते रहे. उनके पक्ष में चौथा तर्क यह दिया जा रहा है कि संगठन में काम करने का अनुभव उनके पास है और वे कार्यकर्ताओं के लिए सहजता से उपलब्ध रहते हैं. इन दलीलों की बुनियाद और कई बीजेपी नेताओं से बातचीत के आधार पर अभी तक ऐसा लग रहा है कि मौर्य इस पद के सबसे तगड़े दावेदार हैं.
विनोद तावड़े
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर काम कर रहे विनोद तावड़े का कद पार्टी में सांगठनिक स्तर पर पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से बढ़ा है. संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले विनोद तावड़े महाराष्ट्र से हैं. उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का विश्वस्त माना जाता है. यही वजह है कि बीजेपी के सबसे ताकतवर महासचिवों में उनकी गिनती होती है और पिछले दो सालों में पार्टी ने उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां दी हैं.
तावड़े की दावेदारी के पक्ष में पहला तर्क यह दिया जा रहा है कि उनके पास संगठन में लंबे समय तक अलग-अलग पदों पर काम करने का अनुभव है. वहीं लोकसभा चुनावों से पहले दूसरे दलों के नेताओं को बीजेपी में शामिल कराने को लेकर जो समिति बनी थी, उसके नेतृत्व की जिम्मेदारी विनोद तावड़े को मिली थी और उन्होंने इस काम को बखूबी अंजाम दिया. तावड़े की दावेदारी के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि वे महाराष्ट्र से हैं जहां इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और लोकसभा चुनावों में बीजेपी यहां अपेक्षाकृत कमजोर हुई है. ऐसे में अगर तावड़े राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो बीजेपी को महाराष्ट्र में फायदा मिल सकता है.
सुनील बंसल
मूलत: राजस्थान के रहने वाले सुनील बंसल 2022 में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए. उनकी सबसे बड़ी ताकत उनका सांगठनिक कौशल है. बंसल ने भी अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी और परिषद में अलग—अलग पदों पर काम करने के बाद अमित शाह उन्हें बीजेपी में लेकर आए. अमित शाह ने उन्हें उत्तर प्रदेश में काम पर लगाया और 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के पीछे के शिल्पकारों में जिन लोगों का नाम लिया जाता है, उनमें सुनील बंसल भी एक प्रमुख नाम हैं.
सांगठनिक अनुभव और उनका सांगठनिक कौशल, सुनील बंसल के पक्ष में भी यही सबसे बड़ी दलील दी जाती है. फिर यह भी है कि अमित शाह उन पर बहुत भरोसा करते हैं. उनके पक्ष में तीसरी बात यह कही जा रही है कि जिस तरह का काम उन्होंने उत्तर प्रदेश में किया, वैसा काम वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद दूसरे राज्यों में भी कर सकते हैं. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद सभी प्रमुख कार्यों में उनकी भूमिका रही है. ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्य का काम देखने के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनावों के प्रबंधन में भी उनकी अहम भूमिका थी.
ओमप्रकाश माथुर
राजस्थान के ही ओमप्रकाश माथुर का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए तब भी चला था, जब जेपी नड्डा अध्यक्ष बनाए गए थे. बीजेपी संगठन में अलग-अलग स्तर पर कई जिम्मेदारियां निभा चुके ओम माथुर अभी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. कई राज्यों के चुनाव प्रभारी का दायित्व भी उनके पास रहा है. 2023 में पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव प्रभारी बनाया था. जिस राज्य के बारे में यह कहा जा रहा था कि वहां बीजेपी के लिए कोई संभावना नहीं है, वहां पार्टी जीत हासिल करने में कामयाब हुई. इसके बाद ओमप्रकाश माथुर ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि वे जहां भी जाते हैं, वहां जीत पक्की रहती है.
ओमप्रकाश माथुर के बारे में पार्टी में यह चर्चा है कि जब पहले तीन नामों पर सहमति नहीं बनेगी तो उस स्थिति में माथुर को यह जिम्मेदारी मिल सकती है. दरअसल माथुर के बारे में यह माना जाता है कि वे सभी को साथ लेकर चलने वाले व्यक्ति रहे हैं और उनके नेतृत्व को लेकर कहीं से कोई विवाद नहीं हो सकता.
माथुर के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वस्त लोगों में उनकी गिनती होती है. जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उस समय ओमप्रकाश माथुर गुजरात के प्रभारी होते थे. उस वक्त दोनों ने साथ में काम किया और दोनों के संबंध मजबूत हुए. यही वजह थी कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य का प्रभारी बनाया गया था. ओमप्रकाश माथुर की उम्र 72 साल है. बीजेपी जिस तरह से पीढ़ीगत बदलावों की तरफ बढ़ रही है, उसमें माथुर की यह उम्र जरूर उनकी दावेदारी को कमजोर कर सकती है.