कौन हैं शंकरदेव जिनके जन्मस्थली पर जाने से राहुल गांधी को रोक दिया गया?

असम क्षेत्र में भक्ति आंदोलन का सबसे प्रमुख चेहरा रहे शंकरदेव ने सगुण भक्ति की ओर मुड़ते हुए एकसारन धर्म स्थापित किया था

असम में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी/तस्वीर - इंडियन नेशनल कांग्रेस
असम में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी/तस्वीर - इंडियन नेशनल कांग्रेस

भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले राहुल गांधी असम के नागांव में धरने पर बैठे. उनका कहना था कि उन्हें राज्य के समाज सुधारक संत श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली बताद्रवा थान जाने की अनुमति नहीं दी गई. एक लोकल एमपी और एमएलए को छोड़कर, किसी भी कांग्रेस नेता को मंदिर स्थल से लगभग 20 किमी दूर हैबोरागांव से आगे जाने की अनुमति नहीं दी गई थी.

लेकिन ये शंकरदेव आखिर हैं कौन जिनके जन्मस्थली पर जाने के लिए राहुल गांधी अड़ गए और धरने तक पर बैठ गए? जब आप गूगल पर 'शंकरदेव' सर्च करेंगे तो एक शब्द आपको लगभग हर लिंक में मिलेगा - पॉलीमैथ. पॉलीमैथ का हिंदी मतलब होता है बहुश्रुत, यानि ऐसा व्यक्ति जो कई विषयों का ज्ञाता हो.

पंद्रहवीं शताब्दी में मौजूदा असम क्षेत्र में जन्मे श्रीमंत शंकरदेव भक्ति आंदोलन से जुड़े हुए एक कलाकार और समाज सुधारक थे जिनकी ख्याति नानक-कबीर से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं थी. एक संत के अलावा शंकरदेव कवि, नाटककार, नर्तक, अभिनेता, संगीतकार, सामाजिक-धार्मिक सुधारक और असम, भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में एक जरूरी व्यक्ति थे. 

अंग्रेजी में एक शब्द होता है ट्रांसक्रिएशन, जो ट्रांसलेशन यानी अनुवाद और क्रिएशन यानी सृजन शब्दों से मिलकर बना है. शंकरदेव ने अपने कला के साथ यही किया - उनके लिखे में जहां क्षेत्रीय संस्कृति का अनुवाद था तो वहीं भक्ति आंदोलन के प्रभाव में उन्होंने काफी नए विचार भी जने. शंकरदेव ने संगीत जना तो नया - बोरगीत, नाट्य में हाथ लगाया तो अंकिया नाट, भाओना की उत्पत्ति की, नृत्य में रमे तो विश्व को सत्त्रिया नृत्य दिया, और साहित्य रचने के लिए अपनी नई भाषा ब्रजावली का ही आविष्कार कर लिया. सिर्फ ब्रजावली ही नहीं, शंकरदेव असमिया और संस्कृत में भी धर्म और समाज के बारे में काफी कुछ लिखकर गए. 

असम क्षेत्र में भक्ति आंदोलन के प्रमुख चेहरे रहे शंकरदेव ने सगुण भक्ति की ओर मुड़ते हुए एकसारन धर्म भी स्थापित किया जिसमें उन्होंने कृष्ण के प्रति समर्पित होकर श्रवण (सुनना), कीर्तन के जरिए भक्ति की बात की. खास बात ये है कि इसमें राधा की पूजा कृष्ण के साथ नहीं की जाती. इसके अलावा ये धर्म इसलिए भी अनोखा है क्योंकि कृष्ण की भक्ति की वजह से जहां ये 'सगुण भक्ति' को चरितार्थ करता है तो वहीं 'निर्गुण भक्ति' के भी अंश इसमें भरपूर हैं. इस धर्म का ग्रंथ शंकरदेव की 'भागवत' है जिसे उन्होंने मूलतः संस्कृत में लिखे गए भागवत पुराण से ही 'ट्रांसक्रिएट' किया है. भक्ति आंदोलन से जुड़े होने की वजह से स्वाभाविक रूप से इस धर्म ने भी वर्ण व्यवस्था के खिलाफ घोर आपत्ति दर्ज की और ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म के लिए एक चुनौती बनकर उभरा. शंकरदेव का ये एकसारन धर्म इतना प्रचलित हुआ कि हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम से जुड़े कुछ लोगों ने भी इसे अपनाया. 

जैसे भक्ति आंदोलन के दौरान चैतन्य महाप्रभु ने एक मजबूत बंगाली अस्मिता की चेतना लोगों के जेहन में पैदा की थी ठीक वैसे ही असमिया संस्कृति को और संगठित करने में शंकरदेव का योगदान अहम समझा जाता है. उनके साहित्य और सिखाए गए का असर आज भी असम में देखा जा सकता है. 

हालिया मुद्दे की बात करें तो रविवार को, थान प्रबंधन समिति के अध्यक्ष ने बताद्रवा निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस विधायक को चिट्ठी लिखकर बताया था कि राहुल गांधी को सोमवार दोपहर 3 बजे से पहले परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि सुबह हजारों लोगों के वहां इकट्ठा होने की उम्मीद है. इसके अलावा असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने भी गुवाहाटी में मीडिया से बात करते हुए कहा था कि राहुल को सुबह नहीं बल्कि अयोध्या में कार्यक्रम के बाद बताद्रवा थान का दौरा करना चाहिए.

वहीं राहुल गांधी ने असम में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "श्रीमंत शंकरदेव असम के विचार को दर्शाते हैं और हम उनके ही रास्ते पर चलने का प्रयास कर रहे हैं. वह हमारे लिए एक गुरु की तरह हैं, और इसीलिए मैंने सोचा कि मुझे बताद्रवा थान का दौरा करना चाहिए. लेकिन लॉ एंड आर्डर की स्थिति का हवाला देते हुए मुझे (मंदिर) जाने की अनुमति नहीं दी गई. हालांकि, यह अजीब है कि गौरव गोगोई वहां जा सकते हैं, लेकिन मुझे अनुमति नहीं है.”

राहुल फिलहाल भारत जोड़ो न्याय यात्रा के सिलसिले में असम से होकर गुजर रहे हैं. 14 जनवरी से शुरू हुई राहुल गांधी की ये यात्रा 20 मार्च तक चलेगी. 

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