कभी बनना चाहते थे आर्किटेक्ट, अब 52वें CJI; दलित समुदाय से आने वाले जस्टिस गवई की कहानी
कभी एक निम्नवर्गीय इलाके के अपने स्कूल के फर्श पर बैठ कर पढ़ाई करने वाले जस्टिस बीआर गवई का देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनने तक कैसा रहा है सफर

सत्तर का दशक, महाराष्ट्र के अमरावती के फ्रेजरपुरा का सेमी-स्लम एरिया; जहां नगरपालिका का एक मराठी माध्यम वाला स्कूल था. उस स्कूल में कोई बेंच नहीं थी, बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ाई करते थे. क्लास 7 तक उस साधारण से स्कूल में पढ़ने वाले भूषण रामकृष्ण गवई को तब शायद ही लगा होगा, कि एक दिन नियति ऐसा गुल खिलाएगी कि वे अपने आर्किटेक्ट बनने की चाहत को तजकर देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बन जाएंगे.
लेकिन नियति ने यह गुल खिलाया. 14 मई को सुबह दस बजे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली. जस्टिस गवई ने जस्टिस संजीव खन्ना की जगह ली, जो 13 मई को SC के 51वें CJI के रूप में रिटायर हुए. जस्टिस गवई बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले पहले और अनुसूचित जाति से आए दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं. वे 23 नवंबर को रिटायर होने तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहेंगे.
1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई. लेकिन इसकी स्थापना के बाद से इन 75 सालों में शीर्ष अदालत में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से केवल सात न्यायाधीश ही रहे हैं. मुख्य न्यायाधीश के तौर पर जस्टिस गवई दलित समुदाय से आने वाले दूसरे व्यक्ति हैं. 2007 में केजी बालाकृष्णन पहले दलित मुख्य न्यायाधीश बने और तीन साल तक पद पर रहे थे. इस तरह, जस्टिस गवई की CJI के पद पर नियुक्ति ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक दोनों है.
जस्टिस गवई ने अक्सर संविधान की भावना का हवाला देते हुए माना है कि 'अफरमेटिव एक्शन' ने कैसे उनकी पहचान को आकार दिया है. उन्होंने अप्रैल, 2024 में एक भाषण में कहा था, "यह पूरी तरह से डॉ. बीआर आंबेडकर के प्रयासों के कारण है कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो नगरपालिका के स्कूल में एक अर्ध-झुग्गी इलाके में पढ़ता था, इस पद को हासिल कर सका." जब उन्होंने "जय भीम" के नारे के साथ अपना भाषण समाप्त किया, तो लोगों ने खड़े होकर तालियां बजाई.
मां लोगों के लिए 'भाखरी' बनाती, नन्हे गवई उनके पास लेट जाते
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को हुआ. वे तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. यह बात तब की है जब जस्टिस बीआर गवई 8-10 साल के होंगे. उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई (1929-2015), जिन्हें उनके अनुयायी "दादा साहब" कहा करते थे, आंबेडकरवादी संगठन रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे. सामाजिक कार्यों के चलते सीनियर गवई को लंबे समय तक घर से दूर रहना पड़ता था.
ऐसे में घर पर आने वाले मेहमानों को संभालने की जिम्मेदारी छोटे गवई की माता कमलताई पर ही थी. पूर्व स्कूल शिक्षिका कमलताई ने जस्टिस गवई को बचपन में ही समाज सेवा की गतिविधियों में शामिल कर लिया. जब कमलताई घर आने वाले मेहमानों के लिए भाखरी (एक खास तरह की मराठी रोटी) बनातीं, तो छोटे गवई उनके पास ही लेट जाते.
कमलताई को इस बात की चिंता थी कि उनके बच्चे भी राजनेताओं के बच्चों की तरह बिगड़ जाएंगे. उन्होंने सुनिश्चित किया कि किशोर गवई घर के कामों में उनकी मदद करें, जैसे - खाना बनाना, बर्तन धोना, खाना परोसना और बाद में खेती में हाथ बंटाना और देर रात बोरवेल से पानी निकालना.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कमलताई ने बताया, "शायद इसलिए क्योंकि वह सबसे बड़ा था, वह काफी पहले ही परिपक्व हो गया था." वे बताती हैं, "1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान, भले ही हमारी आर्थिक स्थिति खराब थी, लेकिन सैनिक फ्रेजरपुरा इलाके में हमारे छोटे से घर में खाना खाते थे और भूषण तमाम कामों में मेरी मदद करता था."
25 साल की उम्र में जस्टिस गवई ने शुरू की कानून की प्रैक्टिस
बहुत कम लोग जानते होंगे कि 52वें CJI जस्टिस गवई आर्किटेक्ट बनना चाहते थे. लेकिन एनडीटीवी की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए वे वकील बन गए.
जस्टिस गवई ने 7वीं तक की पढ़ाई फ्रेजरपुरा के सेमी-स्लम एरिया में स्थित एक मराठी माध्यम के स्कूल में की. उसके बाद उन्होंने पढ़ाई के सिलसिले में मुंबई, नागपुर और अमरावती में भी समय बिताया.
बी.कॉम की डिग्री लेने के बाद जस्टिस बीआर गवई ने अमरावती विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और 1985 में 25 साल की उम्र में अपनी प्रैक्टिस शुरू की. शुरुआती कुछ समय वे मुंबई और अमरावती में ही रहे, इसके बाद वे नागपुर चले गए जहां बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच है.
नागपुर में उन्होंने अतिरिक्त लोक अभियोजक (आपराधिक मामलों के लिए) और बाद में जीपी या सरकारी वकील (सिविल मुकदमों में पेश होने वाले) के रूप में सरकार का प्रतिनिधित्व किया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमेशा से आजाद ख्यालों वाले वकील रहे जस्टिस गवई ने इस शर्त पर जीपी बनने पर सहमति जताई थी कि वे अपनी टीम खुद चुनेंगे.
सहायक सरकारी वकील के लिए उनके द्वारा चुने गए कम से कम दो जज - जस्टिस भारती डांगरे और अनिल एस किलोर - बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने. मौजूदा जीपी और वरिष्ठ अधिवक्ता देवेन्द्र चौहान ने भी कहा कि जस्टिस गवई ने ऐसी कार्य संस्कृति स्थापित की, जिसमें प्रत्येक एजीपी को समान काम मिला.
दो साल के इंतजार के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने
1985 में प्रैक्टिस शुरू करने के बाद जस्टिस गवई अगले 16 सालों तक वकालत करते रहे. उन्होंने अपनी कानूनी प्रैक्टिस को किसी फोरम या कानून के क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में पेश होने के अलावा वे जिला न्यायालय और तहसीलदार सहित राजस्व अधिकारियों के लिए भी मुकदमे लड़ते थे.
2001 में उन्हें न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में दो साल से ज्यादा का समय लग गया. निराश जस्टिस गवई ने न्यायाधीश बनने के लिए अपनी सहमति वापस लेने पर विचार किया, लेकिन उनके पिता ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी. 2003 में उन्हें आखिरकार बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बन गए.
2015 में उन्होंने अपने बीमार पिता आरएस गवई की देखभाल के लिए मुंबई में मुख्य सीट से नागपुर में स्थानांतरण की मांग की. आरएस गवई की जुलाई 2015 में मृत्यु हो गई. अपने निधन से पहले आरएस गवई 1998 में अमरावती से लोकसभा सांसद बन चुके थे. इसके अलावा आरएस गवई ने यूपीए शासनकाल के दौरान 2006 से 2011 के बीच बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में भी काम किया.
बहरहाल, 16 साल तक हाई कोर्ट के जज के तौर पर काम करने के बाद 25 मई 2019 को जस्टिस बीआर गवई को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया गया. इस प्रमोशन के बारे में जस्टिस गवई ने 2024 में न्यूयॉर्क सिटी बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक चर्चा के दौरान कहा था, "अगर अनुसूचित जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता, तो शायद मुझे दो साल बाद पदोन्नत किया जाता."
वहीं, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस गवई को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट करने की अपनी सिफारिश में कहा था, "उनकी सिफारिश का किसी भी तरह से यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट (जिनमें से दो मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं) जस्टिस गवई से कम उपयुक्त हैं. उनकी नियुक्ति के बाद सुप्रीम कोर्ट बेंच में लगभग एक दशक के बाद अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित कोई न्यायाधीश होगा."
बतौर SC जज जस्टिस गवई के मुख्य फैसले
जस्टिस गवई ऊंचे-दांवपेच वाले राजनीतिक मामलों में अपने फैसलों के लिए जाने जाते हैं, जिनमें वे अक्सर सरकार के खिलाफ मुकदमा चलाने वाले पक्ष को राहत प्रदान करते हैं.
न्यूजक्लिक के संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़े मामलों सहित ऐतिहासिक फैसलों में जस्टिस गवई की अगुवाई वाली पीठ ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) और मनी लॉन्ड्रिंग (पीएमएलए) जैसे कड़े कानूनों के तहत मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय स्थापित किए.
नवंबर 2024 में उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने माना था कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना नागरिकों की संपत्तियों को ध्वस्त करना कानून के शासन के खिलाफ है. जस्टिस गवई उन सात न्यायाधीशों की पीठ का भी हिस्सा थे जिसने अनुसूचित जाति कोटे के उप-वर्गीकरण के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. जस्टिस गवई ने अपनी अलग राय में अनुसूचित जाति समूहों द्वारा कोटे को विभाजित करने के विरोध की तुलना "उच्च जातियों द्वारा अनुसूचित जातियों के साथ किए गए भेदभाव" से की थी.
पिछले साल फरवरी में जस्टिस गवई उस बेंच का हिस्सा थे जिसने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था. दिसंबर 2023 में वे एक अन्य संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को हटाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा.
जस्टिस गवई वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ हाई-प्रोफाइल अवमानना कार्यवाही में भी पीठ का हिस्सा थे, यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायिक जवाबदेही से संबंधित अहम मुद्दों पर केंद्रित था. इनके अलावा, जस्टिस गवई ने बहुमत की राय लिखी, जिसमें केंद्र सरकार के 2016 के नोटबंदी के फैसले को बरकरार रखा गया.
राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला
जुलाई 2023 में राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने अपने परिवार के कांग्रेस से जुड़ाव का खुलासा करते हुए मामले से अलग होने की पेशकश की थी.
उन्होंने कहा, "मेरी ओर से कुछ मुश्किल है...हालांकि (मेरे पिता) कांग्रेस के सदस्य नहीं थे, लेकिन वे 40 से अधिक वर्षों तक कांग्रेस से बहुत करीब से जुड़े रहे. वे कांग्रेस के समर्थन से संसद सदस्य, विधानमंडल के सदस्य रहे और मेरे भाई अभी भी राजनीति में हैं और कांग्रेस से जुड़े हुए हैं." हालांकि, सरकार ने उन्हें सुनवाई से अलग होने की अनुमति नहीं दी. अंततः पीठ ने उनकी सजा पर रोक लगा दी, जिससे गांधी की लोकसभा में वापसी का रास्ता साफ हो गया.
CJI के रूप में सुनवाई के लिए पहला मामला होगा - वक्फ कानून
जस्टिस गवई 23 नवंबर, 2025 को रिटायर होंगे. लेकिन अगले छह महीनों में CJI के रूप में जस्टिस गवई के सामने कई काम हैं. वे 52वें CJI के रूप में ऐसे समय में कार्यभार संभाल रहे हैं, जब दो मौजूदा हाई कोर्ट जजों के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही चल रही है.
इनमें से एक इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव हैं, जिनकी VHP (विश्व हिंदू परिषद्) की एक सभा में की गई टिप्पणियों को विभाजनकारी और पक्षपातपूर्ण माना गया था. दूसरे हैं - दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज यशवंत वर्मा, जिनके आवास पर 14 मार्च को आग लगने के बाद बेहिसाब नकदी मिली थी.
बतौर CJI जस्टिस गवई के सामने सुनवाई के लिए पहला मामला 15 मई को सामने आएगा, जब SC वक्फ कानून में विवादास्पद संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, पिछले छह सालों में वे लगभग 700 पीठों का हिस्सा रहे, जिन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून, सिविल, आपराधिक, वाणिज्यिक विवाद, मध्यस्थता, विद्युत कानून, शिक्षा, पर्यावरण आदि जैसे विविध विषयों पर मामलों की सुनवाई की.
उन्होंने लगभग 300 फैसले लिखे हैं, जिनमें कई संविधान पीठ के निर्णय शामिल हैं जो कानून के शासन, नागरिकों के मौलिक, मानव और कानूनी अधिकारों की रक्षा करते हैं.