मतदान के डेटा से जुड़े विवाद में जिस फॉर्म 17सी की सबसे ज्यादा चर्चा है, वो होता क्या है?

लोकसभा चुनाव-2024 के शुरुआती दो चरणों के बाद से ही चुनाव आयोग पर मतदान करने वाले वोटर्स की कुल संख्या के बजाय सिर्फ मतदान प्रतिशत जारी करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं

लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम टेस्ट करते पोलिंग अफसर
लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम टेस्ट करते पोलिंग अफसर

सुप्रीम कोर्ट 24 मई को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की तरफ से दायर एक याचिका खारिज कर दी है. इसमें चुनाव आयोग (ईसीआई) से मतदान खत्म होने के 48 घंटों के भीतर हर पोलिंग बूथ का फॉर्म 17सी ऑनलाइन उपलब्ध कराने की मांग की गई थी. 

लोकसभा चुनाव-2024 के पहले दो चरणों के मतदान के बाद मतदाताओं के डेटा में कथित हेरफेर को लेकर विपक्ष समेत कई नागरिक संगठन फॉर्म 17सी की मांग करने लगे थे. चुनावी प्रक्रिया से जुड़ा यह दस्तावेज इस पूरे विवाद का सबसे अहम हिस्सा है. 

फॉर्म 17सी होता क्या है?

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के अनुसार, ईसीआई को हर पोलिंग बूथ के लिए दो फॉर्म तैयार करने होते हैं - फॉर्म 17ए और 17सी - जिनमें मतदाताओं की संख्या और डाले गए वोटों का डेटा होता है. जहां फॉर्म 17ए का इस्तेमाल हर उस मतदाता का विवरण रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है, जो मतदान केंद्र में आता है और अपना वोट डालता है. वहीं फॉर्म 17सी दर्ज किए गए सभी वोटों का लेखा-जोखा होता है. 

फॉर्म 17सी के भी दो भाग होते हैं. भाग 1 में - मतदान केंद्र में उपयोग की जाने वाली ईवीएम की पहचान संख्या, मतदान केंद्र के मतदाताओं की कुल संख्या, रजिस्टर में दर्ज मतदाताओं की कुल संख्या (फॉर्म 17ए), उन मतदाताओं की संख्या जिन्होंने रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद अपना वोट दर्ज नहीं करने का फैसला किया, उन मतदाताओं की संख्या जिन्हें मतदान करने की अनुमति नहीं दी गई, टेस्ट के लिए किए गए वोटों की कुल संख्या और प्रति ईवीएम दर्ज किए गए वोट - शामिल होते हैं. वहीं फॉर्म के भाग 2 में निर्धारित दिन पर की गई गिनती के नतीजे शामिल होते हैं.

कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 के नियम 49 एस (2) के तहत, एक पीठासीन अधिकारी को मतदान खत्म होने पर सभी उम्मीदवारों के पोलिंग एजेंट को फॉर्म 17सी के भाग 1 की एक कॉपी प्रस्तुत करना अनिवार्य है. उम्मीदवार इसी फॉर्म 17सी में डेटा का इस्तेमाल मतदान के नतीजों को सत्यापित करने के लिए कर सकते हैं. अगर सत्यापन के वक्त किसी भी तरह की गड़बड़ी पाई जाती है तो हाई कोर्ट में इसके लिए याचिका भी दायर की जा सकती है.

क्यों उठा वोटर टर्नआउट में गड़बड़ियों का पूरा हल्ला

लोकसभा चुनाव 2024 के शुरुआती दो चरणों के बाद से ही चुनाव आयोग पर मतदान करने वाले वोटर्स की कुल संख्या के बजाय सिर्फ मतदान प्रतिशत जारी करने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों तक चुनाव आयोग हर पोलिंग बूथ पर मतदान करने वाले वोटर्स की संख्या जारी करता रहा है. इस बार मतदान प्रतिशत के अलावा मतदाताओं से जुड़े आंकड़ों को जारी करने में भी कई दिन लग गए जिसको लेकर विपक्षी पार्टियां और एडीआर जैसी संस्थाएं सवाल उठा रही हैं. 

7 मई को इंडिया ब्लॉक के नेताओं को लिखी चिट्ठी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठाते हुए लिखा, "चुनाव आयोग मतदान के 24 घंटों के भीतर मतदान प्रतिशत डेटा जारी करता रहा है. इस बार क्या बदल गया? राजनीतिक दलों के साथ-साथ राजनीतिक कार्यकर्ताओं की ओर से बार-बार सवाल उठाए जाने के बावजूद, आयोग देरी को उचित ठहराने के लिए कोई स्पष्टीकरण जारी करने में क्यों विफल रहा है?"

मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया ब्लॉक के नेताओं को लिखी चिट्ठी ट्विटर पर भी साझा की थी

चुनाव आयोग ने 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण के मतदान के चार दिन बाद वोटिंग डेटा जारी किया था. इसके अलावा, 19 अप्रैल को शाम 7 बजे ईसीआई की ओर से जारी पहले चरण के लिए प्रोविजनल मतदान प्रतिशत लगभग 60% था और 26 अप्रैल को दूसरे चरण के लिए 60.96% था. हालांकि, पहले चरण के लिए 30 अप्रैल को जो अंतिम आंकड़े जारी किए गए वे 66.14% रहे जो साफ-साफ 5.5% से अधिक की वृद्धि दिखा रहे थे. 

वहीं दूसरे चरण के लिए अंतिम आंकड़े 66.71% थे जिनमें 5.74% से अधिक की वृद्धि थी. मतदान प्रतिशत में इस बढ़ोत्तरी को लेकर विपक्ष डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है और मतगणना के दौरान हेरफेर की आशंका भी जता रहा है.

फॉर्म 17सी का मामला सुप्रीम कोर्ट क्यों गया?

एडीआर ने मतदान खत्म होने के तुरंत बाद ईसीआई की ओर से जारी किए गए मतदान के शुरुआती आंकड़ों और बाद में जारी अंतिम मतदाता प्रतिशत में एक बड़े अंतर पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. फॉर्म 17सी को मतदान के 48 घंटों के भीतर चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जारी करने की मांग करते हुए एडीआर ने अपनी याचिका में कहा था, "30 अप्रैल के चुनाव आयोग के प्रेस नोट में असामान्य रूप से वृद्धि (5% से अधिक) के साथ-साथ अंतिम मतदाता और मतदान डेटा जारी करने में काफी देरी और प्रतिशत के बजाय कुल संख्या में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र और मतदान केंद्र के आंकड़ों की अनुपस्थिति चिंताजनक है. चुनाव आयोग के डेटा की सत्यता के बारे में जनता भी संदेह करने लगी है और इसलिए इन आशंकाओं को दूर किया जाना चाहिए और इन पर लगाम लगाई जानी चाहिए."

एडीआर ने यह भी कहा कि कई बार पोलिंग एजेंट फॉर्म 17सी डेटा लेने के लिए मतदान केंद्रों पर उपलब्ध नहीं होते, जिसके कारण ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी को ऑनलाइन जारी करना आवश्यक हो जाता है.

17 मई को याचिका पर ईसीआई की प्रतिक्रिया मांगते हुए, सीजेआई चंद्रचूड़ ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा, "प्रत्येक मतदान अधिकारी शाम 6 या 7 बजे के बाद मतदान का रिकॉर्ड जमा करता है, और इस वक्त तक मतदान पूरा हो जाता है. इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर के पास पूरे निर्वाचन क्षेत्र का डेटा मौजूद रहता है. आप इसे अपलोड क्यों नहीं करते?"

चुनाव आयोग ने क्या सफाई दी?

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाताओं की संख्या उपलब्ध करवाने के लिए वे कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं. इसके अलावा आयोग ने यह भी कहा कि एडीआर ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि ये आंकड़े प्रोविजनल थे और अस्थायी आंकड़े कभी भी अंतिम मतदान आंकड़े नहीं हो सकते. 

हालांकि इसी मुद्दे पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने एक टीवी चैनल को दिए बयान में बताया, "मतदान के आंकड़ों में अंतर नहीं हो सकता क्योंकि यह रियल टाइम डेटा होता है. मतदान के दिन किसी भी वक्त यह देखा जा सकता है कि अब तक कितने लोगों ने वोटिंग की. जैसे ही मतदान खत्म होता है, फॉर्म 17सी में तुरंत ही यह डेटा डालकर पोलिंग एजेंट्स को दे दिया जाता है. तो ऐसा नहीं है कि प्रोविजनल आंकड़े कुछ और होंगे और अंतिम आंकड़े कुछ और."

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा है कि फॉर्म 17सी का डेटा ऑनलाइन जारी करने से मतदाताओं के मन में भ्रम पैदा हो सकता है क्योंकि इसमें पोस्टल बैलट की गिनती भी शामिल होगी. चुनाव आयोग के हलफनामे के मुताबिक, "वेबसाइट पर सार्वजनिक पोस्टिंग से वोटिंग के नतीजों के साथ ही तस्वीरों के साथ भी छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है, जो पूरी चुनावी प्रक्रिया में असुविधा और अविश्वास पैदा कर सकती है."

एडीआर की मंशा पर सवाल उठाते हुए, चुनाव आयोग ने कहा कि याचिका भ्रामक आरोप लगाकर हर संभव तरीके से चुनाव आयोग के खिलाफ संदेह पैदा करने के लिए एक दुर्भावनापूर्ण अभियान का हिस्सा थी. आयोग का आरोप है कि कुछ लोगों का उद्देश्य चुनाव के आसपास संदेह का माहौल पैदा करके बैलट पेपर की ओर लौटना था. कोर्ट में चुनाव आयोग के वकील ने ईवीएम-वीवीपीएटी क्रॉस-वेरिफिकेशन मामले में एडीआर की असफल चुनौती का भी जिक्र किया था.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल चुनाव आयोग के हलफनामे पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "जब वोटों की गिनती जारी की जा सकती है तो वोटर्स की क्यों नहीं? ऐसे आयोग पर हम कैसे भरोसा करें?"

ईसीआई ने दावा किया था कि पोलिंग एजेंट की फॉर्म 17सी के डेटा तक पहुंच है, ऐसे में इस जानकारी को ऑनलाइन जारी करने की जरूरत नहीं है. इस दावे के जवाब में एडीआर के संस्थापक जगदीप एस. छोकर ने 'द वायर' में अपने एक लेख में बताया है, "राजनीतिक दल सभी निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव नहीं लड़ते. क्या इसका मतलब यह है कि जो पार्टी किसी विशेष निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव नहीं लड़ रही है, उससे उस विशेष निर्वाचन क्षेत्र में क्या होता है, इसमें कोई दिलचस्पी होने की उम्मीद नहीं है या नहीं होनी चाहिए? यह तर्कसंगत नहीं है." 

इसके अलावा प्रोफेसर जगदीप ने यह भी बताया कि कैसे छोटे राजनीतिक दल वित्तीय बाधाओं के कारण सभी बूथों या निर्वाचन क्षेत्रों में पोलिंग एजेंट नहीं रख पाते. 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में क्या कहा गया है

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने एडीआर की याचिका को ख़ारिज करते हुए कि जब ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो फिर अभी यह याचिका क्यों? दरअसल, 2019 में ईवीएम के डेटा पर सवाल उठाते हुए एडीआर ने ही एक याचिका दायर की थी जिसमें फॉर्म 17सी को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध करने की बात कही गई थी. इस याचिका पर जुलाई में सुनवाई होनी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर की याचिका पर किसी भी तरह की अंतरिम राहत से इनकार करते हुए कहा कि चुनावों के बीच हमें 'हैंड्स ऑफ एप्रोच' रखने की आवश्यकता है. सुप्रीम कोर्ट की इस बात का सीधा मतलब यह है कि कोर्ट चुनावों में सीधे तौर पर दखल देने से बचना चाहता है. 

Read more!