क्या है ज्ञानवापी में 'व्यास जी का तहखाना' जहां कोर्ट ने पूजा की अनुमति दी है?
मुलायम सिंह यादव की सरकार ने 1993 में लॉ एंड आर्डर का हवाला देते हुए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के इस तहखाने में पूजा करने पर रोक लगा दी थी

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के बीच 31 जनवरी को खबर आई कि वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने विवादित मस्जिद के एक हिस्से में पूजा करने की अनुमति दे दी है. बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी इस मस्जिद को लेकर दशकों से हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच तनातनी की स्थिति बनी हुई है.
ऐसे में स्थानीय अदालत का यह फैसला पूरे विवाद में काफी अहम मोड़ माना जा रहा है. मस्जिद के परिसर के जिस हिस्से में पूजा की अनुमति दी गई, उसे 'व्यास जी का तहखाना' कहा जाता है. ये जानने के लिए कि मस्जिद परिसर के एक हिस्से को 'व्यास जी का तहखाना' क्यों कहा जाता है, हमें इसके इतिहास-भूगोल को थोड़ा समझना पड़ेगा.
'व्यास जी का तहखाना' ज्ञानवापी परिसर के दक्षिणी छोर पर स्थित है. इसी के ठीक सामने काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थित नंदी की मूर्ति है और ठीक पीछे है मस्जिद का वुजूख़ाना जहां हिंदू पक्ष ने शिवलिंग होने की बात कही थी. हिंदू पक्ष के एक वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि व्यास परिवार तकरीबन 200 सालों से इस जगह पूजा कर रहा था.
1992 में जब बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था. फिर सालभर के राष्ट्रपति शासन के बाद मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए. मुलायम सरकार ने 1993 में लॉ एंड आर्डर का हवाला देते हुए ज्ञानवापी के इस तहखाने में पूजा करने पर रोक लगा दी थी. सुभाष नंदन चतुर्वेदी के अनुसार, पंडित सोमनाथ व्यास इस घटना से पहले तक हर रोज तहखाने में पूजा किया करते थे. चतुर्वेदी का दावा है कि हालिया ASI सर्वे के दौरान भी इस तहखाने से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली थीं.
वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने 31 जनवरी को मजिस्ट्रेट को दिए अपने ऑर्डर में कहा था कि विवादित तहखाने (व्यास जी का तहखाना) में स्थित मूर्तियों की पूजा और राग-भोग काशी विश्वनाथ ट्रस्ट द्वारा नामित किसी पुजारी से करवाई जाए. साथ ही कोर्ट ने इसके लिए सात दिन के अंदर लोहे की बैरिकेडिंग व अन्य सामान की समुचित व्यवस्था करने का भी आदेश दिया. इससे पहले 17 जनवरी को वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट को तहखाने का रिसीवर भी नियुक्त किया था. 17 जनवरी के आदेश के बाद 24 जनवरी 2024 को वाराणसी जिला प्रशासन ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के दक्षिणी तहखाने को अपने कब्जे में ले लिया था.
अदालत ने यह आदेश आचार्य वेद व्यास पीठ मंदिर के पुजारी शैलेंद्र कुमार पाठक के एक आवेदन पर पारित किया, जिन्होंने मां श्रृंगार गौरी और अन्य कथित दृश्य और अदृश्य देवताओं की पूजा करने का अधिकार मांगा था. उनका दावा था कि ये मस्जिद के तहखाने में थे. हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की मैनेजमेंट कमिटी ने अदालत में इन दावों को गलत बताया था.
याचिकाकर्ता शैलेंद्र पाठक व्यास, पंडित सोमनाथ व्यास के नाती हैं. फिलहाल वे वाराणसी के शिवपुर इलाके में आचार्य वेद व्यास पीठ के मुख्य पुजारी हैं. उनका दावा है कि उनके परिवार को तहखाने के अंदर पूजा करने के लिए जगह प्रदान की गई थी, और इसलिए उस स्थान को 'व्यासजी की गद्दी' के नाम से जाना जाता था. हिंदू पक्ष के एक और वकील मदन मोहन ने तो मीडिया को ये भी बताया कि 1809 में अंग्रेजी हुकूमत ने व्यास परिवार को ये तहखाना पूजापाठ करने के लिए दिया था.
कोर्ट के आदेश के बाद के कुछ ही घंटों के भीतर, 2 फरवरी को ही आधी रात के बाद लगभग 30 सालों के बाद 'व्यास जी के तहखाने' में पूजा हुई. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की मैनेजमेंट कमिटी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है.