वैभव अनिल काले : पठानकोट का ये हीरो क्या इजरायली हमले का शिकार हो गया?
साल 2016 में जब आतंकियों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला किया तो कर्नल वैभव अनिल काले और उनकी यूनिट ने ही उनके खिलाफ पहला मोर्चा संभाला था

दो साल पहले जब कर्नल वैभव अनिल काले ने स्वेच्छा से सेना से रिटायरमेंट लिया तो सोचा कि कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए काम करेंगे. उन्होंने अमेजन और इसी तरह की कंपनियों के साथ काम भी किया. लेकिन जल्द ही उन्हें लगा कि वे डेस्क पर बैठकर काम करने के लिए नहीं बने हैं.
करीब एक महीना पहले उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के सेफ्टी एंड सिक्योरिटी विभाग (UNDSS) को ज्वॉइन किया और उन्हें फिलिस्तीन के गजा में सुरक्षा समन्वयक अधिकारी के तौर पर तैनात कर दिया गया. लेकिन 46 वर्षीय कर्नल काले को यह इल्हाम न था कि यह फैसला उनके लिए जानलेवा साबित होगा.
पिछले करीब सात महीनों से इजरायल और हमास के बीच संघर्ष का केंद्र बने गजा के रफाह इलाके में जब संयुक्त राष्ट्र की गाड़ी एक अस्पताल का दौरा करने जा रही थी कि वो एक हमले की चपेट में आ गई. इसी गाड़ी में कर्नल काले भी बैठे थे. वे बच न सके. इजराइल-हमास संघर्ष शुरू होने के बाद संयुक्त राष्ट्र के किसी अंतरराष्ट्रीय कर्मी की मौत का यह पहला मामला बताया जा रहा है.
हालांकि UN ने अभी तक यह नहीं बताया कि हमले के लिए वह किसे जिम्मेदार मानता है. लेकिन उसने जो अहम खुलासा किया है उसके मुताबिक इस घटना में इजरायली सेना की गलती नजर आती है. संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता रोलान्डो गोमेज ने कहा कि यूएन ने पहले ही इजरायल को बता दिया था कि उस इलाके में हमारे काफिलों का मूवमेंट हो सकता है. उन्होंने कहा, "यूएन ने इजरायली अथॉरिटीज को अपने काफिलों के मूवमेंट्स के बारे में बता दिया था. किसी भी मामले में ऐसा होता है. यह स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल है. ऐसा ही कल भी हुआ था और हमने इजरायली अथॉरिटीज को जानकारी दी थी. यही नहीं हमारे काफिले की गाड़ियों में यह भी लिखा था कि ये यूएन के वाहन हैं."
वहीं इजरायल का कहना है कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इजरायल की सेना ने कहा कि शुरुआती जांच से संकेत मिलता है कि गाड़ियों पर एक्टिव युद्ध क्षेत्र में हमला किया गया, और उसे इसके रास्ते के बारे में बताया नहीं गया था. बहरहाल, UN और इजरायल दोनों ने ही इस घटना की जांच कराने की बात कही है. यह पूछे जाने पर कि संयुक्त राष्ट्र की गाड़ी पर हमला कैसे हुआ? UN महासचिव एंतोनियो गुटारेस के प्रवक्ता ने कहा, "हम इस बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं. हम रिपोर्ट्स का इंतजार कर रहे हैं."
इस प्रवक्ता के मुताबिक गाड़ी अस्पताल की ओर जा रही थी और एक नियमित काम के तहत ही यह हो रहा था. ऐसा ये कर्मी उस इलाके के सुरक्षा हालात का जायजा लेने के लिए करते रहते हैं. कर्नल काले के निधन पर UN में भारत के स्थायी मिशन ने एक पोस्ट में कहा है, "गजा में कार्यरत कर्नल वैभव काले की मृत्यु से हमें गहरा दुख हुआ. इस कठिन समय में हमारी गहरी संवेदनाएं उनके परिवार के साथ हैं."
कर्नल काले के लिंक्डइन प्रोफाइल पर दी गई जानकारी के मुताबिक, उन्होंने 2004 में भारतीय सेना ज्वॉइन की थी. 2016 में जब पठानकोट एयरबेस पर आतंकवादियों ने हमला किया तो उस समय कर्नल काले और उनकी टीम ने ही उन आतंकियों के खिलाफ सबसे पहला मोर्चा संभाला था. कर्नल काले के सबसे खास दोस्तो में से एक लेफ्टिनेंट कर्नल हांगे, जो तब टैंक ट्रांसपोर्ट यूनिट को कमांड कर रहे थे, टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बातचीत में बताते हैं, "पुणे में नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के पूर्व छात्र काले पठानकोट हमले के समय भारतीय सेना की 11 जम्मू-कश्मीर राइफल्स बटालियन की कमान संभाल रहे थे. उन्होंने और उनकी यूनिट ने उस ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी."
यही नहीं पठानकोट हमले के बाद कर्नल काले को ही ये कमान सौंपी गई थी कि उनकी अगुवाई में आतंकियों के खिलाफ घेराबंदी अभियान चलाया जाए और इलाके से उन आतंकियों का सफाया सुनिश्चित किया जाए. कर्नल काले के दोस्त और भारतीय सेना में तैनात एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर टाइम्स ऑफ इंडिया को बताते हैं, "काले ने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत के इलाकों में बड़े पैमाने पर सेवा की थी. आतंकवाद विरोधी अभियानों में एक विशेषज्ञ के तौर पर उन्होंने कई अभियानों में हिस्सा लिया था. जब पठानकोट घटना हुई तब वे पश्चिमी सेक्टर में एक बटालियन की कमान संभाल रहे थे."
कर्नल काले का परिवार मूल रूप से नागपुर का रहने वाला है और करीब 30 साल पहले वे पुणे में आकर बस गए. अभी कुछ महीने पहले ही उनके पिता का निधन हुआ था. उनके परिवार में मां और पत्नी के अलावा दो छोटे बच्चे हैं. काले के एक पारिवारिक दोस्त के मुताबिक समय से पहले रिटायरमेंट लेने के बाद काले के परिवार ने उन्हें UN की नौकरी नहीं करने का आग्रह किया था. लेकिन कर्नल काले अपने फैसले पर कायम रहे. इससे पहले वे 2009-10 में भी कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में अपनी सेवा दे चुके थे.
अपने तीसरे प्रयास में NDA में शामिल होने वाले कर्नल काले असमय ही काल के गाल में समा चुके हैं. उनके पार्थिव शरीर को अब भारत लाए जाने की तैयारी की जा रही है.