पगड़ी कूड़ेदान में फेंकी, डिटेंशन सेंटर में प्रताड़ित किया; अमेरिका से लौटे भारतीयों ने और क्या बताया?

16 फरवरी की शाम को अमेरिका से भारतीय अवैध अप्रवासियों का तीसरा जत्था अमृतसर पहुंचा. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अब तक कुल 332 लोग अमेरिका से भारत डिपोर्ट किए जा चुके हैं

जतिंदर सिंह का कहना है कि डिटेंशन शिविर में उनकी पगड़ी उतार कर कूड़ेदान में फेंक दी गई
जतिंदर सिंह का कहना है कि डिटेंशन शिविर में उनकी पगड़ी उतार कर कूड़ेदान में फेंक दी गई

फरवरी की 16 तारीख को अमेरिकी वायुयान RCH869 से भारतीय अवैध प्रवासियों का तीसरा जत्था अमृतसर हवाई अड्डे पर पहुंचा. इसमें 112 लोग सवार थे, जिन्हें अमेरिका ने अपनी धरती से वापस निकाल भेजा. इन 112 लोगों में 31 पंजाब से, 44 हरियाणा से, 33 गुजरात से, दो उत्तर प्रदेश से और एक-एक हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से हैं.

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका अब तक 332 भारतीय अवैध अप्रवासियों को निर्वासित कर चुका है. लेकिन ये 332 महज आंकड़े नहीं हैं, बल्कि अपने-आप में पूर्ण त्रासद कहानियां भी हैं. इनमें अमेरिका जाने की जिद्द और उसके लिए अपना सबकुछ तक दांव पर लगा देने, और फिर उसके बदले मिली हताशा और निराशा का मजमून चस्पा है.

पंजाब के फिरोजपुर के रहने वाले नवदीप को ही लीजिए. उनके पिता कश्मीर सिंह एक छोटी-सी मिठाई की दुकान चलाते हैं. वे बताते हैं कि ग्रेजुएशन कर चुका नवदीप भी कभी-कभार वहां हाथ बंटाता था, लेकिन उसे वहां काम करने में शर्मिंदगी महसूस होती थी. घरवाले चाहते थे कि वह कोई नौकरी कर ले. लेकिन नवदीप की हसरत अमेरिका जाने की थी.

पंजाब के इस युवा को लगता था कि वह भी अपने गांव-ज्वार के अन्य लोगों की तरह अमेरिका जाकर पैसे वाला बड़ा आदमी बन सकता है. इस हसरत को अंजाम देने के लिए करीब 40 लाख रुपयों की जरूरत थी. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में नवदीप के पिता बताते हैं कि इसके लिए पिछले साल उन्होंने अपनी एक जमीन बेच दी और 40 लाख रुपये का इंतजाम किया. कुछ पैसे कम पड़ रहे थे तो रिश्तेदारों से भी उधार लिया.

इसके बाद एजेंट को वो रकम दी गई. लेकिन हाय री किस्मत! नवदीप अभी पनामा शहर में ही थे कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उसके कुछ दिन बाद ही उन्हें भारत डिपोर्ट कर दिया गया. पनामा से निर्वासित होने के बाद नवदीप करीब दो महीने घर पर रुके. लेकिन उनका अमेरिका जाने का सपना नहीं मरा. आखिरकार उन्होंने उसी एजेंट से दोबारा संपर्क किया, जिसने पहले पैसे लिए थे.

इस बार एजेंट ने 15 लाख रुपये की रकम मांगी. इस बार भी जुगाड़ सटीक बैठा और नवदीप अमेरिका पहुंच गए. लेकिन दो महीने ही हुए थे कि स्थिति एक बार फिर बदल गई. ट्रंप के सत्ता संभालते ही अवैध प्रवासियों पर गाज गिरनी शुरू हो गई. नवदीप भी इसके चपेटे में आए, और उन्हें 27 जनवरी को हिरासत में ले लिया गया. लेकिन इसकी जानकारी दो दिन पहले उनके घरवालों को दी गई.

नवदीप के पिता बताते हैं, "पिछले 8 महीने में दो बार हमने उसे अमेरिका भेजने के लिए करीब 55 लाख रुपये खर्च किए. लेकिन दोनों ही बार किस्मत ने साथ नहीं दिया. नवदीप को अवैध अप्रवासियों के दूसरे जत्थे से ही भारत आना था. लेकिन वो बीमार पड़ गए, जिसके चलते उन्हें तीसरे जत्थे में डिपोर्ट किया गया."

'पगड़ी उतारने के लिए मजबूर किया और उसे कूड़ेदान में फेंक दिया'

16 फरवरी को भारतीय अवैध अप्रवासियों का तीसरा जत्था भारत पहुंचा

नवदीप की कहानी जहां हमें अमेरिका जाने के लिए घरेलू तिकड़म और उससे जुड़े तमाम तरह के जोखिम से रूबरू कराती है, वहीं तीसरे जत्थे से ही वापस लौटे जतिंदर सिंह की कहानी अमेरिका में भारतीय अवैध अप्रवासियों के साथ हुए सलूक पर रौशनी डालती है. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में जतिंदर सिंह ने अमेरिकी डिटेंशन शिविर में दो सप्ताह तक रहने के बारे में अपनी आपबीती सुनाई.

जतिंदर ने बताया कि हिरासत के दौरान उन्हें प्रताड़ित किया गया. उन्हें खाने के लिए उचित भोजन भी नहीं मिला. यहां तक कि उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिकी सेना ने उन्हें अपनी पगड़ी (टर्बन, जिसे सिख धर्म में काफी पवित्र माना जाता है) उतारने के लिए मजबूर किया और उसे कूड़ेदान में फेंक दिया.

इंडिया टुडे टीवी को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने बताया, "पिछले साल 27 नवंबर को अमेरिकी सीमा में घुसते समय पकड़े जाने के बाद मुझे दो सप्ताह के लिए डिटेंशन कैंप में भेज दिया गया था. पिछले साल 12 सितंबर को मैं घर से निकला था. डिटेंशन कैंप में मेरी आपत्ति के बावजूद उन्होंने मुझसे मेरी पगड़ी उतरवा दी. उन्होंने कहा कि यह उनका नियम है और पगड़ी कूड़ेदान में फेंक दी."

23 वर्षीय सिंह ने ये भी आरोप लगाया कि उन्हें अमेरिकी सैन्य विमान में करीब 36 घंटे तक बेड़ियों में जकड़े रखा गया. उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी सेना ने कम टेम्परेचर पर एयर कंडीशनर चालू कर दिया और हीटर का पॉवर बढ़ा दिया, जिसके चलते उनकी त्वचा रूखी हो गई. उन्होंने कहा, "मुझे वहां बिल्कुल भी अच्छा खाना नहीं मिला. उन्होंने मुझे दिन में दो बार सिर्फ लेज चिप्स और फ्रूटी जूस दिया."

जतिंदर अपनी अमेरिकी हसरत का सिरा खोलते हुए बताते हैं कि अमृतसर में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए अमेरिका में नौकरी करके बसना चाहते थे. इसी क्रम में वे अपने दोस्तों की सलाह पर नवंबर 2024 में एक एजेंट के संपर्क में आए. उसने उन्हें अमेरिका ले जाने का वादा किया और कीमत के तौर पर 50 लाख रुपये की मांग की.

जतिंदर ने जैसे-तैसे करके वो रकम एजेंट को दे दी. उन्हीं के शब्दों में, "मेरे परिवार ने अपनी सारी जमीन (1.3 एकड़) बेच दी और मैंने एजेंट को 22 लाख रुपये एडवांस में दे दिए. मैंने अपनी दो शादीशुदा बहनों के गहने भी बेच दिए और बाकी बची रकम भी एजेंट को दे दी." एजेंट ने उनसे कहा कि वह पहले तीन दिनों तक पनामा के जंगलों में घूमकर, फिर मैक्सिको के लिए विमान में सवार होकर अमेरिका में प्रवेश करेंगे, जहां से वे तिजुआना से अमेरिकी सीमा में घुसेंगे.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि अमेरिका की जोखिम भरी यात्रा करने पर उन्हें निर्वासित कर दिया जाएगा, जतिंदर ने कहा, "एजेंट ने कहा था कि इसमें कोई समस्या नहीं होगी. एजेंट ने कहा कि उसे यह सुनिश्चित करने का अनुभव है कि अवैध अप्रवासी बिना पकड़े गए सुरक्षित रूप से सीमा पार कर जाएं." सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि पनामा के जंगल बहुत घने हैं और उन्होंने वहां कई अवैध अप्रवासियों के शव देखे, जो एक काफी "निराशाजनक" मंजर था.

लेकिन जतिंदर ने आगे जो बताया, वो इससे भी भयावह हो सकता है. उन्होंने कहा, "एजेंट ने मुझे धोखा दिया और वह आधे रास्ते से भाग गया. पनामा के जंगलों को पार करने में मुझे तीन दिन लगे. जब मैं अंततः अमेरिकी सीमा पार कर गया तो वहां की बॉर्डर पुलिस ने मुझे पकड़ लिया और एक डिटेंशन कैंप में रखा, जहां मुझे यातनाएं दी गईं."

जतिंदर ने दावा किया कि भारत वापसी के दौरान करीब 36 घंटे तक अमेरिकी सैन्य विमान में उन्हें बेड़ियों में जकड़ा गया था. उन्होंने कहा, "मेरे हाथों में हथकड़ी लगी थी और पैरों को भी बांध दिया गया था. हमें ठीक भोजन भी नहीं मिला और यहां तक कि शौचालय जाने संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा. विमान के उतरने से 10 मिनट पहले उन्होंने हमारी बेड़ियां खोल दीं." उन्होंने कहा कि अब वे भारत में नौकरी की तलाश करेंगे और कभी विदेश नहीं जाएंगे.

5 फरवरी को जब अमेरिकी सैन्य विमान भारतीय अवैध अप्रवासियों का पहला जत्था लेकर अमृतसर उतरा, तब उसमें सवार कुछ लोगों ने भी बताया था कि उड़ान के दौरान उनकी कलाइयों और टखनों पर हथकड़ी लगा दी गई थी और भारत पहुंचने के बाद ही उन्हें मुक्त किया गया.

300 से अधिक भारतीय अवैध अप्रवासी अमेरिका से भारत भेजे गए

सांकेतिक तस्वीर

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका अब तक कुल 332 अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भेज चुका है. इन्हें अभी तक तीन जत्थे में भेजा गया है. 16 फरवरी को तीसरा जत्था अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा. इनमें कुल 112 लोग सवार थे. ये वो लोग हैं जो बिना दस्तावेज के अमेरिका में रह रहे थे.

इससे पहले 15 फरवरी की देर रात अमेरिकी सैन्य विमान दूसरा जत्था लेकर अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरा था. इनमें कुल 116 भारतीय थे. इन निर्वासित लोगों ने दावा किया कि उड़ान के दौरान वे बेड़ियों में जकड़े हुए थे और सिख युवक कथित तौर पर बिना पगड़ी के थे. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने इस घटना की निंदा की थी.

इन 116 निर्वासितों में से 65 पंजाब से, 33 हरियाणा से, आठ गुजरात से, दो-दो उत्तर प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र और राजस्थान से और एक-एक हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से थे. पांच फरवरी को अमेरिकी सैन्य विमान अवध प्रवासियों का पहला जत्था लेकर अमृतसर पहुंचा था. इनमें 104 लोग शामिल थे. इस जत्थे में 33-33 लोग हरियाणा और गुजरात से थे, जबकि 30 लोग पंजाब से थे.

अमेरिका से क्यों वापस भेजे जा रहे भारतीय?

अवैध भारतीय प्रवासियों को अमेरिका से उन नीतियों के तहत निकाला जा रहा है, जिनमें ट्रंप प्रशासन ने अवैध लोगों को देश से बाहर करने का फैसला किया है. इनमें वो लोग शामिल हैं जो अवैध रूप से देश में प्रवेश करते हैं या अपने वीजा की अवधि से अधिक समय तक देश में रहते हैं.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बीते दिनों अमेरिका की यात्रा पर गए थे, जहां उन्होंने इमीग्रेशन सहित प्रमुख द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी.

एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, पीएम मोदी ने भारतीय नागरिकों को वापस भेजने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की थी. साथ ही, प्रवासियों का शोषण करने वाले मानव तस्करी नेटवर्क से निपटने की जरूरतों पर भी जोर दिया था.

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