यूक्रेन का रूस पर वो हमला जो भविष्य में हर युद्ध का समीकरण बदल देगा! भारत के लिए क्या हैं सबक?
कुछ लाख रुपए के ड्रोन से युक्रेन ने जिस तरह अपने से कई गुना ताकतवर रूस का 'अभूतपूर्व' नुक्सान किया है, उसने तमाम देशों को अपनी रक्षा रणनीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है

रूस-यूक्रेन युद्ध, जो 2022 में शुरू हुआ था, अब तक के अपने सबसे खतरनाक और रणनीतिक मोड़ पर पहुंच चुका है. 1 जून 2025 को यूक्रेन ने एक ऐतिहासिक सैन्य ऑपरेशन को अंजाम दिया, जिसने न केवल रूस की सैन्य शक्ति को गहरा नुक्सान पहुंचाया, बल्कि आधुनिक युद्ध की रणनीतियों को भी नए सिरे से परिभाषित किया.
इस ऑपरेशन को ‘स्पाइडरवेब’ नाम दिया गया, और इसमें यूक्रेन ने महज 58 लाख रुपये की लागत वाले 116 FPV ड्रोनों का उपयोग करके रूस के 59,000 करोड़ रुपये के करीब 41 सैन्य विमानों को पूरी तरह नष्ट कर दिया या भारी नुक्सान पहुंचाया. इस हमले ने न केवल रूस की सैन्य क्षमता को कमजोर किया, बल्कि विश्व भर में ड्रोन युद्ध की तकनीक और रणनीति पर एक नई बहस छेड़ दी है.
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के दौरान दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को नुक्सान पहुंचाने के लिए अलग-अलग रणनीतियों का सहारा लिया है. रूस ने अपने लंबी दूरी के बमवर्षक विमानों (स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स) जैसे Tu-95, Tu-22M3, और A-50 का इस्तेमाल करके यूक्रेन के शहरों पर क्रूज मिसाइलों से हमले किए हैं. ये विमान रूस की सैन्य शक्ति का एक जरूरी हिस्सा हैं और इनका इस्तेमाल यूक्रेन के नागरिक ठिकानों को नष्ट करने में किया जाता रहा है. दूसरी ओर, यूक्रेन, जो संसाधनों और सैन्य शक्ति में रूस से काफी पीछे है, ने तकनीकी इनोवेशन और रणनीतिक चतुराई का सहारा लिया है.
रिपोर्ट्स बता रही हैं कि यूक्रेन की खुफिया एजेंसी SBU ने पिछले डेढ़ साल के दौरान ऑपरेशन की योजना बनाई थी. इसको यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की और SBU के प्रमुख वसिल मलियुक की सीधी निगरानी में अंजाम दिया गया. यूक्रेन का लक्ष्य स्पष्ट था- रूस के उन सैन्य ठिकानों को निशाना बनाना, जो यूक्रेनी शहरों पर हमले के लिए जिम्मेदार हैं, और रूस की सैन्य शक्ति को कमजोर करना.
ऑपरेशन स्पाइडरवेब : एक सपाट लेकिन साहसी योजना
‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ का नाम इसके जटिल और सघन नेटवर्क जैसी योजना को दर्शाता है. इस ऑपरेशन में यूक्रेन ने 116 FPV (फर्स्ट पर्सन व्यू) ड्रोनों का उपयोग किया, जिनकी लागत 42,000 से 58,000 रुपये प्रति ड्रोन थी. ये ड्रोन छोटे, सस्ते, और विस्फोटकों से लैस थे, लेकिन इनका असर बेहद खतरनाक था. इन ड्रोनों को रूस के चार प्रमुख एयरबेस- बेलाया (इरकुत्स्क क्षेत्र, साइबेरिया), द्यागिलेवो (रियाज़ान, पश्चिमी रूस), ओलेन्या, और एक अन्य अज्ञात ठिकाने- पर हमले के लिए तैयार किया गया.
इन ड्रोनों को रूस की सीमा के भीतर पहुंचाने के लिए यूक्रेन ने एक अनोखी रणनीति अपनाई. ड्रोनों को लकड़ी के शेड्स (छोटे ढांचों) की छतों में छिपाया गया, और इन्हें ट्रकों पर लादकर एयरबेस के पास तक पहुंचाया गया. सही समय पर इन शेड्स की छतों को रिमोट से खोला गया, और ड्रोनों ने उड़ान भरकर अपने टार्गेट पर हमला किया. इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि ये रूस के भीतर 4,500 किलोमीटर की दूरी तक अंजाम दिया गया, जो यूक्रेन की सीमा से बहुत दूर है.
हमले का नतीजा: पूरी दुनिया के लिए सबक
युक्रेन के दावे और रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 1 जून 2025 को किए गए इस हमले में यूक्रेन ने रूस के 41 सैन्य विमानों को तबाह किया या नाकाम करने की हद तक नुक्सान पहुंचा दिया. इनमें Tu-95 और Tu-22M3 जैसे स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स शामिल थे, जो क्रूज मिसाइलें दागने में सक्षम हैं, और A-50 जैसे रडार डिटेक्शन और कमांड विमान, जो रूस की हवाई निगरानी का एक जरूरी हिस्सा हैं. SBU के अनुसार, इस हमले से रूस के करीब एक तिहाई स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स तबाह हो गए, और रूस को लगभग 7 बिलियन डॉलर (लगभग 59,000 करोड़ रुपये) का नुक्सान हुआ.
सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियोज़ और तस्वीरों में बेलाया एयरबेस पर जलते हुए रूसी विमानों को देखा गया. कुछ फाइटर जेट्स को टायरों से ढंककर छिपाने की कोशिश की गई थी, लेकिन यूक्रेनी ड्रोन्स ने इन्हें सटीक तरीके से निशाना बनाया. एक वीडियो में दिखाया गया कि कैसे एक ड्रोन ने Tu-95 बॉम्बर को निशाना बनाया और उसमें विस्फोट कर दिया. यूक्रेन के ड्रोन ऑपरेटर्स ने इस हमले को अंजाम देने के लिए सही समय और सही जगह का चयन किया.
रूस की प्रतिक्रिया: पलटवार की चेतावनी
इस हमले के बाद रूस की ओर से ज़ाहिर तौर पर तीखा रिएक्शन आया. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी सहयोगी दिमित्री मेदवेदेव ने यूक्रेन को सख्त चेतावनी दी. उन्होंने कहा, “जो लोग इस हमले से चिंतित हैं कि जवाबी कार्रवाई होगी. वो सही हैं क्योंकि आम लोग यही करते हैं. बदला तय है.” रूस ने दावा किया कि उसने यूक्रेन के 162 ड्रोन्स को मार गिराया, लेकिन फ्रीलांस सोर्सेज़ ने इस दावे की पुष्टि नहीं की. रूस के लिए यह हमला एक बड़ा झटका था, क्योंकि उसके स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स न केवल ट्रेडिशनल वॉर में उसकी ताकत थे, बल्कि परमाणु हथियारों को ले जाने की क्षमता रखते थे.
कुछ विशेषज्ञों ने इस हमले को रूस के लिए “पर्ल हार्बर” जैसा करारा झटका बताया. 1941 में जापान के पर्ल हार्बर हमले ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए मजबूर किया था. इसी तरह, इस हमले ने रूस को अपनी सैन्य रणनीति पर फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. रूस अब इस बात पर विचार कर रहा है कि वह इस हमले का जवाब कैसे देगा. दुनिया भर के डिफेंस एक्सपर्ट इस हमले को बड़ी दुनियावी उठापटक की शुरुआत बता रहे हैं.
ड्रोन वॉर ही फ्यूचर है?
‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ ने आधुनिक युद्ध की रणनीतियों को बदल दिया है. इस हमले ने साबित कर दिया कि सस्ते और छोटे ड्रोन भी बड़े और महंगे सैन्य उपकरणों को नष्ट करने में सक्षम हैं. यूक्रेन ने कुल 58 लाख रुपए की लागत से जो नुक्सान रूस को पहुंचाया, वो 59,000 करोड़ रुपये का था- यह एक अभूतपूर्व कॉस्ट इफेक्टिवनेस का उदाहरण है. इस लागत में दुश्मन का ऐसा नुक्सान शायद ही दुनिया में किसी देश ने इससे पहले हासिल करके दिखाया हो. इस ऑपरेशन ने दुनिया भर के डिफेंस एक्सपर्ट्स को चौंका दिया है. भारत जैसे देश, जो अपनी सीमाओं पर ड्रोन हमलों का खतरा झेल रहे हैं, अब इस बात पर विचार कर रहे हैं कि वे इस तरह के हमलों से कैसे निपट सकते हैं.
रिटायर्ड कर्नल शरद नेगी कहते हैं, “भारत ने हाल के वर्षों में ड्रोन तकनीक पर ध्यान देना शुरू किया है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. भारत को न केवल ड्रोन हमलों का जवाब देने के लिए एंटी-ड्रोन टेक्नीक को और एडवांस करने की जरूरत है, बल्कि अपनी डिफेंस स्ट्रेटेजी में ड्रोन वॉर को एक मुख्य हिस्सा बनाना होगा. इस तरह के हमले को पाकिस्तान ज़रूर दोहराने की कोशिश करेगा क्योंकि इसमें भारत का कोई एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह कारगर नहीं होगा. लेकिन हमें बॉर्डर सिक्योरिटी और एयर बेस एडवांस डिफेंस को लगातार मजबूत करते रहना होगा और किसी तरह का कोई लूप होल छोड़ने की गुंजाइश नहीं रखनी होगी."
इस हमले ने यह भी सवाल उठाया कि क्या ये युद्ध तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा है. रूस और यूक्रेन के बीच तनाव पहले से ही चरम पर है, और इस हमले ने दोनों पक्षों के बीच शांति वार्ता की संभावनाओं को और कमजोर कर दिया है. इस्तांबुल में चल रही शांति वार्ता बीच इस हमले ने वैश्विक तनाव को बढ़ा दिया है. कई देशों ने इस हमले की निंदा की है, लेकिन कुछ ने यूक्रेन के साहस और तकनीकी कौशल की प्रशंसा भी की है.
अपनी कमज़ोरी पर काम कर रहा यूक्रेन
यूक्रेन के पूर्व कमांडर-इन-चीफ वलेरी ज़ालुझनी ने हाल ही में कहा था कि टेक्निकल इनोवेशन ही वो रास्ता है जिसके जरिए यूक्रेन रूस की सैन्य और आर्थिक श्रेष्ठता को हरा सकता है. ‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ ने उनकी बात को सही साबित कर दिया. यूक्रेन ने सस्ते FPV ड्रोनों को AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और विशेष तकनीकों से लैस किया, जिससे ये ड्रोन एक्यूरेसी और इफेक्टिवनेस में कहीं आगे डिफेंस बॉम्बर्स को मात दे सके.
एक बड़ी चिंता ये भी है
रूस अब इस स्थिति में है कि वो Tu-95 जैसे स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स का प्रोडक्शन नहीं कर सकता. ये विमान सोवियत युग के हैं, और रूस के पास इन्हें बनाने की तकनीकी क्षमता और संसाधन अब सीमित हैं. रूस की ये कमजोरी युक्रेन ख़ूब अच्छी तरह समझ रहा है और इसीलिए उसने इसी कमज़ोर नस पर हाथ रखा है.
इस हमले ने रूस-यूक्रेन युद्ध को एक नया आयाम दिया है. रूस अब अपने सैन्य ठिकानों की सुरक्षा को लेकर अपने नागरिकों के ही सवालों के घेरे में है. अगर यूक्रेन 4,500 किलोमीटर अंदर तक हमला कर सकता है, तो रूस के बाकी ठिकाने भी खतरे में हैं.
युद्ध में अब कोई कमजोर नहीं
‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ ने साबित कर दिया कि मॉडर्न वॉर अब ट्रेडिशनल डिफेंस पावर पर निर्भर नहीं है. टेक्निकल इनोवेशन, स्ट्रेटेजिक हुक, और बेहिसाब रिस्क टेकिंग फैक्टर ने यूक्रेन को एक ऐसी स्थिति में ला दिया है, जहां वो रूस जैसे शक्तिशाली देश को चुनौती दे सकता है. युक्रेन के इस ऑपरेशन ने दुनिया भर के देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वो अपनी डिफेंस स्ट्रेटेजी को कैसे अपडेट करें क्योंकि अब युद्ध के दौरान कमजोर से कमजोर लगने वाला देश भी बड़ा भारी दांव चलकर सामने वाले चित कर सकता है.