नागालैंड से बिहार तक AK-47 जैसे हथियारों की तस्करी का नेटवर्क कैसे पकड़ा गया?

पूर्वी भारत के सीमावर्ती राज्य पश्चिम बंगाल, असम, नगालैंड और मेघालय से तस्करी होने वाले हथियारों और विस्फोटकों के लिए दीमापुर प्रवेश द्वार के रूप में काम करता है

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

पिछले दिनों राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने बिहार के चार आरोपियों के खिलाफ हथियार तस्करी के मामले में आरोपपत्र दाखिल किया. इस आरोप पत्र के दाखिल होते ही एक गुप्त हथियार तस्करी नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ.

NIA की जांच से पता चला कि नागालैंड से ये हथियार नक्सलियों और बिहार समेत दूसरे राज्यों के खतरनाक अपराधी गिरोहों तक कैसे पहुंच रहे हैं. हालांकि इस मामले में अब तक केवल चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है.

इन आरोपियों के दो बैंक खातों से 58 लाख रुपये के लेनदेन का पता चला है. हालांकि, यह कह पाना अभी मुश्किल है कि बिहार में और कितने लोग मुनाफे के लिए मौत के इस व्यापार से जुड़े हुए हैं.

मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तारी के बाद हुआ खुलासा

मई 2024 में रेल पुलिस ने मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर संदेह होने पर दो युवकों विकास कुमार और सत्यम कुमार से रोककर पूछताछ की. इस दौरान उनके पास से एक AK-47 राइफल का बट और ऑप्टिकल स्कोप बरामद हुआ.

दोनों ने पूछताछ में बताया कि उन्होंने एक पूरी AK-47 राइफल और पांच गोलियां देवमणि राय को दी थीं. इसके बाद जब पुलिस ने देवमणि राय के ठिकाने पर छापेमारी की तो वहां से हथियार और कारतूस मिले. दो दिन बाद इसी तरह के आरोप में एक और आरोपी अहमद अंसारी को नागालैंड के दीमापुर में गिरफ्तार किया गया.

आरोपियों के बैंक खाते से भारी ट्रांजेक्शन

गिरफ्तारी और पूछताछ के बाद जांच प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें भारी मात्रा में वित्तीय लेनदेन की बात सामने आई. देवमणि राय के मुजफ्फरपुर बैंक खाते में अप्रैल 2022 से अप्रैल 2024 के बीच 38 लाख रुपये की आमद दिखाई गई.

वहीं, दूसरे आरोपी अंसारी के दीमापुर स्थित आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के खाते में मार्च 2023 से अप्रैल 2024 के बीच 20 लाख रुपये जमा हुए. जांचकर्ताओं का मानना है कि यह रकम प्रतिबंधित हथियारों की खरीद और आपूर्ति के बदले में प्राप्त हुई है.

मोबाइल फोन से तस्करी नेटवर्क का पता चला

विकास कुमार, अहमद अंसारी और एक सह-आरोपी से पुलिस ने पांच मोबाइल फोन जब्त किए. इन मोबाइल फोन से इस मामले को सुलझाने में पुलिस को काफी मदद मिली है.

नई दिल्ली में केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला ने इनके फोन से भेजे गई कुछ तस्वीरों की जांच की. जांच में पता चला कि एक एके-47, एक बेरेटा पिस्तौल और एक ऑस्ट्रियाई  ग्लॉक की तस्वीर को इन्होंने कुछ लोगों के साथ शेयर किए हैं.

इनके पास से जब्त मोबाइल में एक अज्ञात व्यक्ति की तस्वीर मिली. अब पुलिस इस तस्वीर के बारे में जानकारी जुटा रही है. इतना ही नहीं इनके पास से मुजफ्फरपुर और दीमापुर के बीच रेल यात्रा के टिकट भी मिले.

कॉल-डिटेल रिकॉर्ड से पता चला कि ये सभी संदिग्ध फोन कॉल या मैसेजिंग ऐप के जरिए एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इन्होंने दीमापुर के रंजीत दास नामक एक व्यक्ति से भी संपर्क किया था.

‘नगालैंड टू बिहार’ हथियार पहुंचाने वाले गैंग का हुआ खुलासा

नगालैंड का व्यापारिक केंद्र दीमापुर लंबे समय से अवैध व्यापार और तस्करी दोनों का गढ़ रहा है. पूर्व में म्यांमार और पश्चिम में असम के मैदान होने के कारण अपराधियों के लिए यहां अवैध हथियारों की सप्लाई करना आसान होता है.

कई राज्यों के विद्रोही समूह आसानी से स्थानीय दलालों के माध्यम से हथियार प्राप्त कर लेते हैं.

अब जांचकर्ताओं का मानना ​​है कि अंसारी ने इसी नेटवर्क का इस्तेमाल किया. नकदी के बदले उसने असली AK-47 के पुर्जे खरीदे और उन्हें दूसरे मशीनों के पुर्जों या कृषि उपकरणों के बीच छिपाकर रेल के जरिए एक जगह से दूसरे जगह भेजा. यह इतना चालाकी से किया गया, जिसपर शायद ही किसी को संदेह हो.  

शुरुआती गिरफ्तारी के सात महीने बाद NIA ने दिसंबर 2024 में 17 जगहों पर तलाशी ली. अकेले बिहार में छह जगहों पर इस मामले में तलाशी हुई. मुजफ्फरपुर जिले के मनकौली गांव में एजेंटों ने पंचायत प्रमुख नंद किशोर यादव (उर्फ भोला राय) के घर की तलाशी ली, जिसमें बहीखाते, वॉकी-टॉकी और लाखों की नकदी जब्त की गई.

कैसे काम करता था हथियार सप्लायर का नेटवर्क

इस ऑपरेशन के केंद्र में कट्टर उग्रवादी नहीं, बल्कि स्थानीय निर्वाचित जन प्रतिनिधि यानी पंचायत प्रमुख और कुछ अन्य लोग थे. पंचायत प्रमुख नंद किशोर यादव के जिम्मे राइफल के पुर्जों को सुरक्षित रखने, जाली परमिट की व्यवस्था करने और भुगतान का समन्वय करने का काम था.

भोला राय के बहीखाते में नगालैंड की फर्जी फर्मों को लाखों रुपए भुगतान किए जाने का जिक्र था. परसा के नगरपालिका रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि यहां से पैसे को गलत तरीके से अंसारी और उससे जुड़े लोगों के खातों में भेजा गया था.

इस पेशे से जुड़े सभी लोग हथियारों की तस्करी को एक आकर्षक व्यावसायिक उद्यम के रूप में देखते थे. इस तरह हथियार सप्लाई करने वाले एक बड़े नेटवर्क का पता चलता है. दीमापुर के बाजारों में खरीदे गए प्रतिबंधित हथियार भारत के विशाल रेल और सड़क नेटवर्क के माध्यम से बिहार में लाए जाते हैं.

इसके बाद ये हथियार यहां उग्रवादियों और आपराधिक सिंडिकेट के बीच सप्लाई किए जाते हैं. पूर्वी भारत के सीमावर्ती राज्य पश्चिम बंगाल, असम, नागालैंड और मेघालय से  तस्करी होने वाले हथियारों और विस्फोटकों के लिए दीमापुर प्रवेश द्वार के रूप में काम करता है.

इसके बाद ही यहां से हथियारों का जखीरा देश के बाकी हिस्से में भेजा जाता है. इस तरह इन राज्यों में आसानी से हथियारों के सप्लाई होने के कारण उग्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है.

वे सवाल जिनके जवाब बाकी हैं

NIA अब भी मोबाइल फोन डेटा और वित्तीय लॉग के टेराबाइट्स को खंगाल रहा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी है कि एके-47 के पुर्जे बिना जांचे सैकड़ों किलोमीटर तक कैसे पहुंच गए?

चारों आरोपी अब जेल में बंद हैं. उन पर आर्म्स एक्ट और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत केस दर्ज किए गए हैं. हालांकि, सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि प्रशासन की असली जीत तब होगी, जब उन व्यवस्थागत खामियों को दूर कर दिया जाए, जिसकी वजह से यह मजबूत नेटवर्क बनकर तैयार हुआ.

दीमापुर में खरीदे गए ये प्रतिबंधित हथियार भारत के विशाल रेल और सड़क नेटवर्क के माध्यम से बिहार में लाए गए. इसके बाद यहां विद्रोहियों और आपराधिक सिंडिकेट के बीच यह समान रूप से वितरित किए गए.

इन हथियारों के पार्ट्स पहुंचाने वाले लोग न केवल ट्रेन से यात्रा करते थे, बल्कि देवमणि राय की मां के नाम से पंजीकृत एक काले रंग की महिंद्रा थार में भी यात्रा करते थे. एक सामान्य मध्यमवर्गीय इंसान की तरह गैंग के सदस्यों का हथियारों के पुर्जे के साथ एक जगह से दूसरी जगह जाना अंडरवर्ल्ड उद्यम को छिपाने का एक सुनियोजित तरीका था.  

बिहार चुनाव की तैयारियों के बीच सुरक्षा बलों को सीमा पार से राज्य में हो रहे हथियारों की आपूर्ति को रोकने के लिए तैयार रहना होगा. स्थानीय पुलिस और प्रशासन के लिए मुजफ्फरपुर-दीमापुर की घटना एक स्पष्ट चेतावनी है.

आंतरिक विद्रोह के खिलाफ भारत का दशकों पुराना संघर्ष अब केवल दूरदराज के जंगलों या पहाड़ियों तक सीमित नहीं है. यह भारतीय रेल और राजमार्गों से होते हुए गांवों, शहरों और कस्बों तक में पहुंच गया है. ऐसे में अब पुलिस-प्रशासन को पहले से अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है.
 

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