दिल्ली में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त, क्या हैं ऐसे अपराधों में सजा के प्रावधान
दिल्ली में पेड़ों की कटाई पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट रोक लगा चुके हैं. ऐसे में बिना कोर्ट की मंजूरी के बड़ी संख्या में पेड़ काटने पर अदालत में कोर्ट की अवमानना की याचिका दाखिल की गई थी

दिल्ली के दक्षिणी रिज इलाके में बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद ही सख्त रुख अपनाया है. इस मामले पर 16 मई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) को कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने कहा कि वह अब डीडीए पर भरोसा नहीं कर सकते और दोबारा से पेड़ लगाने का जिम्मेदारी अब किसी बाहरी एजेंसी को दी जाएगी.
दिल्ली के दक्षिणी हिस्से को रिज क्षेत्र कहा जाता है, जहां पर अरावली रेंज का एक हिस्सा भी आता है. इस इलाके में बड़ी मात्रा में वन क्षेत्र है जिस वजह से इसे दिल्ली का फेफड़ा भी कहा जाता है. दिल्ली में पेड़ों की कटाई पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट रोक लगा चुके हैं. ऐसे में बिना कोर्ट की मंजूरी के बड़ी संख्या में पेड़ काटने पर अदालत में कोर्ट की अवमानना की याचिका दाखिल की गई थी.
इसी याचिका की सुनवाई में डीडीए के वाइस चेयरमैन ने भी यह कुबूल किया कि बिना अदालत की मंजूरी लिए ही 642 पेड़ों को काटा गया. हालांकि उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि ऐसा फील्ड स्टाफ ने किया और उनको इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पेड़ काटने की हरकत को अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप के समान माना जाएगा. हम पहले ही इस मामले में सिविल अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर चुके हैं लेकिन अब हम आपराधिक अवमानना का नोटिस जारी करते हैं.
अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि लगातार 10 दिनों तक पड़ों को काटा जाता रहा. डीडीए ने इस तथ्य को दबा दिया, जबकि उसे इस बात की पूरी जानकारी थी कि बिना अदालत की मंजूरी के एक पेड़ को भी छुआ तक नहीं जा सकता. कानून और अदालत के आदेशों को पूरी तरह के किनारे रख कर इस काम को शुरू किया गया और अंजाम दिया गया. इससे यही साबित होता है कि डीडीए ने जानबूझ कर अदालत के निर्देशों को नहीं माना.
सुप्रीम कोर्ट ने अब भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून की टीम को दिल्ली की कटाई वाली सड़क का दौरा करने का निर्देश दिया है. इस दौरान भारतीय वन सर्वेक्षण को काटे गए पेड़ों और उससे हुए नुकसान का आकलन करेगा. अदालत ने निर्देश दिया है कि काटे गए पेड़ों के बदले में डीडीए को 100 नए पेड़ लगाने होंगे, साथ ही एफएसआई टीम को 20 जून तक इस बारे में प्रारंभिक रिपोर्ट को भी अदालत में दाखिल करना होगा.
जून 2022 में ही दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी थी. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि संबंधित अधिकारी की अनुमति के बिना केवल 15.7 सेमी परिधि तक के पेड़ों की शाखाओं को काटा जा सकेगा. कोर्ट ने पेड़ को एक जीवित प्राणी के समान ही माना था. साथ ही पेड़ों की कटाई या उसकी शाखाओं की छंटाई से पहले उसका अंतिम निरीक्षण भी अनिवार्य कर दिया था. अपने फैसले में अदालत ने कहा था कि वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1994 के तहत पेड़ों की छंटाई की मंजूरी नहीं दी जाएगी. यह फैसला प्रोफेसर और डॉक्टर संजीव बगई की याचिका पर सुनाया गया था.
इससे पहले 2018 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक आदेश पारित करते हुए बिना जरूरत पेड़ों की कटाई और छंटाई की अनुमति देने पर रोक लगा थी. मई 2022 के भी अपने एक दूसरे फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पेड़ों के संरक्षण से संबंधित एक अवमानना मामले पर सुनवाई करते हुए पेड़ों को काटे जाने पर रोक लगा दी थी.
सितंबर 2023 में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्देश देते हुए घर बनाने के दौरान पेड़ों की कटाई पर रोक को जारी रखने का निर्देश दिया था. अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार किसी को भी पेड़ काटने की मंजूरी नहीं देगी. दिल्ली नगर पालिका परिषद की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक एनडीएमसी 20 सेमी की परिधि वाले पेड़ों की हल्की छंटाई कर सकता है.
भारी छंटाई के लिए उप वन संरक्षक (डीसीएफ)-दक्षिण, भारत सरकार को बागवानी विभाग एनडीएमसी के जरिए एक आवेदन भेजना होगा. वहीं निजी संपत्ति पर पेड़ों की छंटाई के लिए सीधे डीसीएफ को आवेदन भेजा जा सकता है. मंजूरी मिलने के बाद हल्की छंटाई को 3 दिनों के भीतर ही निपटाना होगा. वहीं भारी छंटाई तके लिए 30 दिनों तक का वक्त दिया जाता है.
दिल्ली में एनडीएमसी ट्रैफिक लाइट और स्ट्रीट लाइटों के लिए केवल 20 सेमी तक की हल्की छंटाई ही कर सकता है. पेड़ों की कटाई या छंटाई के लिए आवेदन फॉर्म (फॉर्म-बी) भी चाहिए होता है जो नगर पालिका परिषद की वेबसाइट पर मौजूद है. वहीं delhi.gov.in पर पेड़ों की कटाई और छंटाई के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है. हालांकि वन अधिकारियों के सर्वेक्षण और निरीक्षण के बाद ही पेड़ को काटने या छांटने की मंजूरी दी जाएगी. इसके लिए वन विभाग की अनुमति भी जरूरी होगी.
अगर बिना अनुमति पेड़ काटा जाता है तो फिर वृक्ष संरक्षण अधिनियम-1994 के तहत कार्रवाई की जाती है. इस अधिनियम में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पेड़ों को संरक्षण देने का प्रावधान शामिल है. इस अधिनियम के तहत दिल्ली सरकार पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए एक वृक्ष प्राधिकरण का गठन करेगी. जिसके बाद साल 2007 में इसे स्थापित किया गया.
इस प्राधिकरण में सरकार द्वारा नामित सचिव पद से नीचे के अधिकारी अध्यक्ष के पद पर होंगे. इसके अलावा इसके सदस्यों में दिल्ली के डिप्टी कमीश्नर, विधानसभा के दो सदस्य, स्थानीय निकाय के दो सदस्य और उप वन संरक्षक सचिव होंगे. इस अधिनियम के तहत अगर वृक्ष अधिकारी पेड़ों के संबंध में कोई अपराध पाता है तो वह संबंधित उपकरण को जब्त कर सकता है. अगर काटे गए पेड़ों की ढुलाई के लिए किसी वाहन का इस्तेमाल किया गया है तो वह भी जब्त किया जा सकता है.
इसके अलावा इस अधिनियम के तहत बिना वारंट गिरफ्तार करने का प्रावधान है. कोई भी वृक्ष अधिकारी या वन अधिकारी जो वन रेंजर के पद से नीचे न हो या पुलिस अधिकारी जो दरोगा के पद से नीचे न हो, इस अधिनियम के तहत किसी भी अपराध में शामिल होने के उचित संदेह वाले किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है.
अगर कोई संगठन पेड़ों से जुड़े किसी अपराध में शामिल है तो उसके संगठन के प्रभारी और जिम्मेदार हर एक व्यक्ति को दोषी मानते हुए उस पर मुकदमा चलाया जाएगा. अगर यह साबित होता है कि पेड़ों से संबंधित अपराध संगठन की मर्जी या मिलीभगत से हुआ है तो उसके अधिकारी, निदेशक, प्रबंधक, सचिव संगठन के दूसरे अधिकारियों को भी दोषी मानते हुए उनपर कार्रवाई की जाएगी.
अगर कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन का दोषी पाया जाता है तो उसे 6 महीने की जेल हो सकती है जिसे एक साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है. इसके अलावा इस अधिनियम के तहत 1000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है.