इस्लामाबाद में तैनात IFS माधुरी गुप्ता कैसे बनी थी पाकिस्तान की जासूस?
माधुरी गुप्ता इस्लामाबाद के भारतीय दूतावास में तैनात थी और इस दौरान उस पर ISI एजेंटों को खुफिया जानकारियां देने के आरोप लगे

जनवरी, 2010 की बात है. इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के निदेशक राजीव माथुर एक रोज दिल्ली स्थित अपने दफ्तर में बैठे थे. तभी इस्लामाबाद के भारतीय दूतावास से उन्हें एक हैरान करने वाली जानकारी मिली.
राजीव को बताया गया कि भारतीय दूतावास की एक महिला अधिकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के संपर्क में है. यह वह वक्त था, जब 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में पहले से तनाव बढ़ा हुआ था.
भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) अब एक भी चूक बर्दाश्त नहीं कर सकती थीं. ऐसे में सूचना मिलते ही इस्लामाबाद में तैनात महिला अधिकारी माधुरी गुप्ता जांच के दायरे में आ गई.
करीब 3 महीने बाद माधुरी गुप्ता को दिल्ली पुलिस ने ISI के लिए साजिश रचने और जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के वक्त जब उसे बताया गया कि जासूसी के आरोप में आपको गिरफ्तार किया जा रहा है, तो उसकी पहली प्रतिक्रिया थी, ''आपने इतना ज्यादा वक्त क्यों लगाया?”
ISI एजेंट के संपर्क में आने वाली यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर माधुरी गुप्ता चर्चा में है. अब 12 मई 2010 को ‘इंडिया टुडे मैगजीन’ में छपी सौरभ शुक्ल की स्टोरी के हवाले से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के जाल में फंसी पूर्व IFS अधिकारी माधुरी गुप्ता की कहानी जानते हैं-
पाकिस्तान में पोस्टिंग के बाद देश के दुश्मन से हुआ याराना
2007 में विदेश मंत्रालय में तैनात एक महिला अधिकारी माधुरी गुप्ता को प्रेस और सूचना सचिव बनाकर इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास भेजा गया. दिसंबर की एक सर्द सुबह को माधुरी की मुलाकात पाकिस्तान के एक उर्दू पत्रकार जफर से हुई.
यह पत्रकार पहले से ही गुप्तचर के तौर पर भारतीय दूतावास की निगाहों में था. जब अधिकारियों को पता चला कि माधुरी गुप्ता उस पत्रकार के साथ दोस्ती बढ़ा रही है तो उसे कहा गया कि वह इस व्यक्ति से सूचनाएं जुटाए.
सौरभ शुक्ल अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि यहां मामला उल्टा बैठा और पाकिस्तानी पत्रकार जफर बातचीत में यह भांप गया था कि माधुरी गुप्ता भावनात्मक तौर पर ज्यादा कमजोर है और दफ्तर में अपने सीनियर अधिकारियों के 'अपमानजनक व्यवहार' से भी परेशान है. इसका फायदा उठाकर पाकिस्तानी पत्रकार उसे अपने देश की खुफिया एजेंसी के लिए भावी रंगरूट मानने लगा.
2008 में एक डिनर के दौरान माधुरी गुप्ता की मुलाकात 40 वर्षीय पाकिस्तानी मेजर मुबशर रजा राणा से हुई. राणा ने अपना परिचय एक स्थानीय कारोबारी के रूप में दिया और बताया जाता है कि इसके बाद इनके बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.
इसके अलावा राणा से उसे महंगे गिफ्ट और नियमित तौर पर कैश भी मिलता रहा. चूंकि वह गुप्ता की पेशेवर काबिलियत की तारीफ भी करता रहता था, जाहिर है यह बात उसे बहुत अच्छी लगती थी और वह धीरे-धीरे इस पाकिस्तानी खुफिया एजेंट के करीब आ गई.
इसके बाद के महीनों में गुप्ता पाकिस्तान के उस गुप्तचर अभियान का महत्वपूर्ण अंग बन गई, जो भारतीय उच्चायोग के भीतर तक गहरी पैठ कर चुका था. जिन्ना सुपर नाम के स्थानीय पॉश मार्केट के नजदीक स्थित एक पार्क और एफ-7 बस्ती जैसी गोपनीय जगह पर जाकर वह दूतावास से जुड़ी अहम जानकारी पाकिस्तानी एजेंटों के साथ शेयर करने लगी. ये दस्तावेज अक्सर अखबार में लिपटे होते. ISI से जुड़े अपने दोस्तों को मैसेज भेजने के लिए वह मैडिग और मैडस्माइल्स जैसे नाम से कई अकाउंट बनाकर मैसेज किया करती थीं.
इस दौरान ही माधुरी जमशेद या ‘जिम’ नाम के एक अन्य पाकिस्तानी हैंडलर के संपर्क में आ गई, उसको सूचनाओं का प्रमुख रिसीवर बताया गया. रिपोर्ट के मुताबिक, गुप्ता के साथ उसका कथित रूप से रोमांटिक संबंध भी था.
पाकिस्तानी ISI एजेंट से मुलाकात के बाद रडार पर आई माधुरी
जम्मू-कश्मीर स्थित रजौरी में इंटरसर्विसेस इंटेलिजेंस (ISI) की एक महिला जासूस, जो बार-बार पाकिस्तान जाती थी, वह भारतीय खुफिया एजेंसी की नजरों पर आ गई. उसकी पड़ताल करते समय भारतीय जांच एजेंसियों को अचानक माधुरी की भनक लग गई.
वह ISI जासूस तो काफी समय तक नहीं पकड़ी गई, लेकिन सूत्र बताते हैं कि वह गुप्ता के संपर्क में थी और दोनों इस्लामाबाद के एक शॉपिंग सेंटर में नियमित तौर पर मुलाकात किया करती थीं और फोन पर बात भी किया करती थीं.
फोन से ही भारतीय एजेंसियों को इस बारे में पहला सुराग मिला. काम के दौरान ही उसने एक और गलती की. अपने ऑफिस कंप्यूटर से उसने पाकिस्तानी एजेंट को एक ई-मेल भेज दिया, जिसकी वजह से उसे जाल में फंसाने का अभियान शुरू हुआ.
जब IB की शुरुआती जांच में यह संकेत मिला कि माधुरी गुप्ता एक “जासूस” हैं, तो तत्कालीन ब्यूरो प्रमुख राजीव माथुर ने रॉ प्रमुख केसी वर्मा और गृह सचिव जीके पिल्लई को इसकी जानकारी दी.
मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई गई. हालांकि उसने तत्काल गिरफ्तारी से इनकार कर दिया और मार्च 2010 में दो-तीन सप्ताह की अवधि के लिए निगरानी जारी रखने पर सहमति व्यक्त की. गुप्ता को विभिन्न चैनलों के माध्यम से गलत जानकारी दी गई, जिन तक उनकी पहुंच थी, और सूचना की आवाजाही पर नजर रखी गई. जब सूचना लीक हुई, तो कथित तौर पर उसका पता लगाया गया.
हालांकि जब तक इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिली तब तक भारत में कुछ चुनिंदा लोगों को छोड़कर किसी को भी इस जांच के बारे में पता नहीं था और पाकिस्तान स्थित दूतावास में भी किसी को इसकी जानकारी नहीं दी गई थी.
क्या गृहमंत्री को जानकारी दिए बिना माधुरी के मामले में हुई बड़ी बैठक?
'द कारवां' मैगजीन में छपी अपनी रिपोर्ट में कृष्ण कौशिक बताते हैं कि नई दिल्ली स्थित गृह मंत्रालय में 2010 की शुरुआत में एक गोपनीय उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई, जिसमें रॉ प्रमुख केसी वर्मा, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक राजीव माथुर और गृह सचिव जीके पिल्लई शामिल हुए.
इस बैठक का मकसद था माधुरी गुप्ता द्वारा संभावित जासूसी के मामले पर चर्चा करना, जिसे एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा उल्लंघन माना गया था.
हैरानी की बात ये है कि तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम को इस बैठक की जानकारी नहीं थी, ऐसा कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था. हालांकि, इसकी वजह आज भी स्पष्ट नहीं है.
इस पुष्टि के बाद खुफिया एजेंसियों ने गुप्ता को बिना किसी शोर-शराबे के भारत वापस लाने की योजना बनाई ताकि इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के अन्य अधिकारियों को भी इसकी भनक न लगे.
इसके बाद इस्लामाबाद के भारतीय उच्चायोग में तैनात सचिव 53 वर्षीया माधुरी गुप्ता को दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय से संदेश मिला कि भूटान की राजधानी थिंपू में हो रहे सार्क शिखर सम्मेलन में उसे अस्थायी तौर पर तैनात किया जाना है. ऐसे में वह जल्द से जल्द दिल्ली पहुंचे.
पाकिस्तान से वापस देश लौटने से पहले माधुरी ने पाकिस्तानी ISI एजेंट से मुलाकात की और उसे आत्मविश्वास के साथ बताया कि वह अमूल्य जानकारी के साथ भारत और भूटान से लौटेगी. उसे अभी तक पता नहीं था कि भारतीय खुफिया एजेंसियां उस पर नजर रख रही हैं और दिल्ली की उसकी यात्रा उसे गिरफ्तार करने के इरादे से रची गई है.
इसे सामान्य तैनाती जैसा दिखाने के लिए वाणिज्यिक विभाग के एक सचिव को भी उसके साथ आने के लिए कहा गया. इसके बाद जैसे ही माधुरी दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरी दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
वह दुनिया की ऐसी पहली महिला अधिकारी थी जिसे किसी दुश्मन देश के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. यह पूरा ऑपरेशन कितना गुप्त रखा गया था, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जब इस मामले में विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा से पूछा गया तो उनका कहना था, “उसे दिल्ली वापस बुलाने की वजह से लगता है, उसके खिलाफ गंभीर आरोप हैं.''
2 साल बाद जमानत, 8 साल बाद दोषी और 11 साल बाद मौत
2010 में गिरफ्तार होने के बाद पाकिस्तानी दूतावास में काम करने वाले उसके एक वरिष्ठ सहकर्मी की टिप्पणी थी, “हमें इससे झटका लगा. वह नफासत पसंद थी और बेहतरीन अंग्रेजी बोलती थी, पर थोड़ी तुनकमिजाज थी.”
गिरफ्तारी के 2 साल बाद 2012 में उसे जमानत दे दी गई थी. उसी साल, उसके खिलाफ आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के कड़े प्रावधानों के तहत आरोप भी तय किए गए थे.
आठ साल बाद 18 मई 2018 को दिल्ली की एक अदालत ने माधुरी गुप्ता को जासूसी मामले में दोषी ठहराया. 2021 में भारतीय विदेश सेवा की पूर्व अधिकारी माधुरी गुप्ता की मृत्यु हो गई. उनके वकील और लंबे समय के मित्र जोगिंदर दहिया यह जानकारी सार्वजनिक की थी. मौत के समय माधुरी की उम्र 64 साल थी.
माधुरी की गिरफ्तारी के बाद जांच एजेंसी को क्या पता चला?
इंडिया टुडे मैगजीन में छपी सौरभ शुक्ल की स्टोरी के मुताबिक, माधुरी ने पूछताछ में बताया था, “भारतीय उच्चायोग के सीनियर अधिकारी अपने जूनियरों पर रौब झाड़ते हैं और वह इन IFS अधिकारियों को सबक सिखाना चाहती थी.” उसके दावे के मुताबिक, वह यह साबित करना चाहती थी कि अपने ऊंचे ओहदे और विशेषाधिकारों के बावजूद वह क्या कर रही है, इसका वे लोग सुराग नहीं लगा पाएंगे.
चिंता तब और ज्यादा बढ़ गई, जब माधुरी गुप्ता और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) के स्टेशन प्रमुख आर. के. शर्मा से दोस्ती की खबर सामने आई. कयास लगाया जाने लगा कि हो सकता है कि माधुरी ने उसके साथ अपने संपर्क का इस्तेमाल संवेदनशील जानकारी जुटाने में किया हो. लेकिन जांच से जुड़े अधिकारियों ने शर्मा से पूछताछ के बाद कहा था कि वह अकेली जासूस थी.
माना जाता है कि पूछताछ के दौरान माधुरी गुप्ता ने 2009 में ही उच्चायोग छोड़ चुके एक और वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का नाम लेकर मानो बिजली गिरा दी थी. हालांकि, जांच के बाद ऐसा कुछ सामने नहीं आया था.
माधुरी के ईमेल और लैपटॉप से क्या जानकारी हासिल हुई?
जुलाई 2010 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने माधुरी गुप्ता के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया. जांच के दौरान गुप्ता के जीमेल अकाउंट से कुल 73 ईमेल बरामद हुए, जिनमें 54 भेजे गए और 19 मेल आए थे.
गुप्ता ने बताया कि यह ईमेल आईडी उसके पाकिस्तानी संपर्क मुबशर रजा राणा ने बनाई थी, जो ISI का ऑपरेटिव था. इसके अलावा एक अन्य पाकिस्तानी हैंडलर, जमशेद के साथ उसका कथित रूप से रोमांटिक संबंध भी था.
माधुरी गुप्ता द्वारा भेजे गए ईमेल की सामग्री, जो 300 से अधिक पृष्ठों में दर्ज की गई थी, उसमें इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के कर्मचारियों के नाम, जीवन संबंधी विवरण, नौकरी की भूमिकाएं और उनकी आने-जाने की जानकारी शामिल थी.
कुछ मामलों में, इन कर्मचारियों के खुफिया एजेंसियों से कथित संबंधों का भी खुलासा किया गया था. गुप्ता पर RAW अधिकारियों की गुप्त पहचान उजागर करने, विदेश मंत्रालय को भेजे गए आंतरिक आकलनों को लीक करने और यहां तक कि ‘भारत के लिए संभावित गुप्त मार्गों’ की जानकारी पाकिस्तान को देने का गंभीर आरोप लगाया गया था.