सीताराम येचुरी की मृत्यु के बाद बॉडी डोनेशन फिर चर्चा में, लेकिन भारत इसमें पिछड़ा क्यों है?
बॉडी डोनेशन के नियम के साथ ही जानिए कि मृत्यु के बाद दान किए हुए शरीर के साथ डॉक्टर क्या करते हैं

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी का 12 सितंबर को 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उन्हें निमोनिया के कारण 19 अगस्त को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था. कम्युनिस्ट नेता की मृत्यु के बाद एम्स ने एक बयान में कहा कि सीताराम येचुरी के परिवार ने शिक्षण और अनुसंधान के लिए उनका शरीर अस्पताल को दान कर दिया है.
येचुरी का अंतिम संस्कार नहीं होगा और बॉडी को रिसर्च या एजुकेशन के काम में लिया जाएगा. अब बॉडी डोनेशन को लेकर कई सवाल तैरते हैं कि क्या शरीर दान करने के बाद पार्थिव शरीर परिवारजनों को वापस नहीं मिलता, उस शरीर का इस्तेमाल किस तरह से होता है, और भारत में बॉडी डोनेशन करने को लेकर प्रक्रिया और स्थिति क्या है, और यह अंगदान से कैसे अलग है?
मेडिकल छात्र और एक्सपर्ट मानव शरीर की रचना का विस्तार से अध्ययन करने के लिए दान किए गए शरीर का उपयोग करते हैं, वहीं सर्जन और चिकित्सा व्यवसायी नई तकनीकों के परीक्षण, मौजूदा प्रक्रियाओं को रिफाइन करने और सुरक्षित ऑपरेशन पद्धतियों को विकसित करने के लिए दान किए गए शरीर का उपयोग करते हैं.
इसके अलावा वैज्ञानिक और शोधकर्ता दान किए गए शरीर का उपयोग बीमारियों का पता लगाने, अलग-अलग अंगों की मेडिकल कंडीशन का अध्ययन करने और नए उपचार या दवाएं विकसित करने के लिए करते हैं. हालांकि भारत में देह दान करने की बात अभी बहुत आम नहीं हुई है. फिर भी ऐसे कई लोग हैं जो मृत्यु के बाद देहदान में दिलचस्पी रखते हैं.
मृत्यु के बाद दान किए हुए शरीर के साथ डॉक्टर क्या करते हैं?
बॉडी डोनेशन को लेकर दिल्ली के न्यूरोसर्जन डॉक्टर मनीष कुमार ने इंडिया टुडे से बातचीत में विस्तार से बताया कि शरीर दान के करने के बाद क्या-क्या होता है. मनीष के मुताबिक, "सबसे पहले बॉडी को फॉर्मेलिन के जरिए एक ऐसी प्रक्रिया से गुजारा जाता है, ताकि बॉडी में बैक्टीरिया या कीटाणुओं को पनपने से रोका जा सके. इससे शरीर एक लकड़ी की तरह हो जाता है और बॉडी खराब नहीं होती. इसके बाद इसे रिसर्च के काम में लिया जाता है. अक्सर बॉडी फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स के काम आती है और वे इसके जरिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों का फंक्शनिंग अच्छे से समझते हैं."
जब व्यक्ति के शरीर को मृत्यु के बाद किसी हॉस्पिटल को दान दिया जाता है तो एक समय के बाद उसे परिवार को वापस भी किया जाता है. डॉ मनीष बताते हैं, "पढ़ाई या शोध के दौरान हवा के संपर्क में आने से एक वक्त ऐसा आता है कि बॉडी को नष्ट करना होता है. इस स्थिति में शरीर फिर से परिवार को सौंप दिया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि जब बॉडी फैमिली को दी जाती है तो वह बुरी हालत में होती है. बस इतना है कि शरीर की बनावट बदल जाती है और हो सकता है कि चेहरा पहचान में ना आए. आम तौर पर कुछ महीने बाद ही बॉडी फैमिली को दे दी जाती है."
हालांकि कई जगहों पर बॉडी वापस ना देकर उसे या तो जला दिया जाता है या फिर दफना कर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. इसके बाद परिवार चाहे तो उन्हें अस्थियां या राख दे दी जाती है.
बॉडी डोनेशन के नियम
डोनेशन दो तरह के होते हैं - पहला ऑर्गन डोनेशन यानी अंग दान और दूसरा होता है बॉडी डोनेशन या देह दान जो सीताराम येचुरी के परिवार ने किया. ऑर्गन डोनेशन आमतौर पर किसी परिवारजन की मदद करने के लिए परिवार के ही लोग देते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि दो परिवार आपस में जरूरत के आधार पर अंगों का आदान-प्रदान कर लेते हैं. हालांकि, अपनी स्वेच्छा से भी अगर कोई चाहे तो अंग दान कर सकता है.
भारत में अंग दान को मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत रेगुलेट किया जाता है. यह कानून मृतक और जीवित दोनों दाताओं को अपने अंग दान करने की अनुमति देता है. यह 'ब्रेन डेड' (ऐसी स्थिति जब दिमाग पूरी तरह काम करना बंद कर देता है और इसमें जीवन को बनाए रखने के लिए जरूरी अनैच्छिक गतिविधियां ख़त्म हो जाती हैं) को भी मृत्यु का एक रूप मानता है. राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) देश में अंगों की खरीद, आवंटन और वितरण से जुड़े नियम बनाने और उनकी निगरानी से संबंधित गतिविधियों के लिए शीर्ष संस्था है.
ऑर्गन डोनेट करने के दो तरीके होते हैं – पहला तो यह कि व्यक्ति मौत से पहले ही इसका संकल्प ले लेते हैं और मृत्यु के बाद परिवार की सहमति के बाद डोनेशन की प्रक्रिया अपनाई जाती है. ऐसे में ऑर्गन डोनेशन का फॉर्म भरकर ऐसा किया जा सकता है, जिसमें दो गवाहों के साइन होते हैं. इसमें एक गवाह कोई करीबी रिश्तेदार होना जरूरी है. यह फॉर्म स्थानीय मेडिकल कॉलेज, अस्पताल या किसी एनजीओ से लिया जा सकता है. अगर किसी ने खुद से संकल्प नहीं लिया है तो परिवार के सदस्य भी अंगदान कर सकते हैं.
अगर कोई शख्स अपना कोई खास अंग ही दान कर रहा है तो मौत के कुछ तय समय में इस अंग को निकाल लिया जाता है. हर अंग के हिसाब से अलग वक्त होता है और उसी समय सीमा में ही अंग को निकालना जरूरी होता है. इसके बाद मृतक का शव सम्मानजनक तरीके से परिवार को वापस दे दिया जाता है. इसके लिए मौत के तुरंत बाद अस्पताल को इसकी जानकारी देनी होती है और तुरंत अंगदान की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है.
भारत में बॉडी डोनेशन की स्थिति क्या है?
इसी साल जुलाई में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से अपील की थी कि वे अस्पतालों के बाहर होने वाली मौतों की स्थिति में लोगों को शव दान करने के लिए प्रोत्साहित करें. राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के अनुसार, 2023 में 1,028 लोगों ने अपनी बॉडी डोनेट की थी जबकि 2022 में यह संख्या 941 थी.
कुछ प्रसिद्ध भारतीय जिन्होंने मेडिकल रिसर्च के लिए अपना शरीर दान किया है, उनमें न्यायविद लीला सेठ, सीपीआई (एम) नेता सोमनाथ चटर्जी, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और जनसंघ नेता नानाजी देशमुख शामिल हैं. इसी क्रम में अब सीताराम येचुरी का भी नाम जुड़ गया है. इसके अलावा आमिर, अमिताभ और ऋतिक जैसे कई फ़िल्मी सितारों ने भी मृत्यु के बाद अपनी आखें दान करने का संकल्प लिया है.
अंग विशेष दान करने की अगर बात करें तो ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने के मामले में 2019 में भारत केवल अमेरिका से पीछे था. फिर भी यह अपनी विशाल आबादी के कारण केवल 0.65 प्रति दस लाख जनसंख्या (2019) की डोनेशन रेट के साथ स्पेन (35.1), अमेरिका (21.9) और यूनाइटेड किंगडम (15.5) जैसे पश्चिमी देशों से बहुत पीछे है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में केवल 0.01 प्रतिशत लोग ही मृत्यु के बाद अपने अंग दान करते हैं. इस तरह के खराब प्रदर्शन के पीछे कुछ कारण सार्वजनिक जागरूकता की कमी और लोगों में धार्मिक मान्यताएं हैं.
देश में ऑर्गन डोनर्स के बीच एक बड़ी लैंगिक असमानता है क्योंकि महिलाएं असामान्य रूप से अधिक दान करती हैं. 2019 में, भारत सरकार ने मृतकों के अंग दान को बढ़ावा देने के लिए ₹149.5 करोड़ के बजट के साथ राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम भी लागू किया था.
किस अंग का दान किया जा सकता है?
हार्ट, लीवर, किडनी, आंत, फेफड़े और इंटेस्टाइन जैसे अंगों का दान सिर्फ ब्रेन डेथ की स्थिति में किया जा सकता है. वहीं, कॉर्निया, हार्ट वॉल्व, स्किन, हड्डियां आदि सिर्फ प्राकृतिक मृत्यु के मामले में ही दान किए जा सकते हैं. इसमें फेफड़ों को 4 से 6 घंटे, हार्ट को 4 घंटे, लीवर को 24 घंटे, किडनी को 72 घंटे, कॉर्निया को 14 दिन, हड्डियों को 5 साल, स्किन को 5 साल, हार्ट के वॉल्व को 10 साल के अंदर फिर से ट्रांसप्लांट करना होता है.
क्या कहते हैं ताजा आंकड़े?
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि भारत में ट्रांसप्लांट के लिए 3 लाख से ज़्यादा मरीज़ इंतजार में हैं. बढ़ती मांग के हिसाब से अंगों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, जिसकी वजह से हर दिन ट्रांसप्लांट के इंतज़ार में लगभग 20 मरीज़ मर रहे हैं. हालांकि, देश में सभी तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच ना होने की वजह से ये आंकड़े भी समस्या की असली संख्या से काफी कम हैं.