'समयसीमा नहीं, लेकिन बिल रोक नहीं सकते', जानें राज्यपाल की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चित काल तक नहीं रोक सकते

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की शक्तियों पर अहम फैसला सुनाया है. सर्वोच्च अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि राज्यपाल विधानसभा से पास विधेयकों को अनिश्चित काल तक नहीं रोक सकते.

कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के बाद कहा कि राज्यपाल के लिए बिल पर कार्रवाई करने के लिए समय-सीमा तय नहीं की जा सकती, लेकिन, लंबे समय तक सदन से पास बिल को रोक नहीं सकते.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी राज्य के गवर्नर के पास केवल तीन विकल्प हैं. किसी भी बिल को मंजूरी दें या दोबारा विचार के कैबिनेट में भेजें या फिर बिल को राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाए.

'बिलों के पास होने में देरी होने पर हम दखल देंगे'

राज्यपालों की संवैधानिक शक्तियों पर यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई समेत पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया है. पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और एएस चंद्रचूड़कर शामिल थे.

पीठ ने राज्यपाल की संवैधानिक सीमाओं का जिक्र करते हुए कहा कि सदन से पास बिलों को रोकना संघवाद का उल्लंघन है. कोर्ट ने साफ कहा कि बिलों के पास होने में देरी होने पर हम दखल देंगे.

बता दें कि इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसला में कहा था कि राज्यपाल के पास किसी बिल को रोकने का कोई वीटो पावर नहीं है. इस फैसले में कोर्ट ने बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के अंदर फैसला लेने की समय सीमा तय की थी. इसके बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर 14 सवालों के जवाब पूछे थे. 8 महीने की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है.

'राज्यपाल किसी दल के प्रतिनिधि नहीं बन सकते'

8 अप्रैल को सुनाए गए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पारदीवाला ने कहा था- "राज्यपाल को सियासी टकराव का केंद्र बनने की जगह मित्र, मार्गदर्शक और संयोजक की भूमिका निभानी चाहिए. संविधान राज्यपाल को राजनीतिक दलों का प्रतिनिधि बनने की अनुमति नहीं देता. उनकी भूमिका संतुलन की होनी चाहिए."

इसके अलावा डॉ. बी. आर. आंबेडकर का उदाहरण देते हुए पारदीवाला ने कहा था कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो, अगर इसे लागू करने वाले अच्छे नहीं होते तो यह बुरा साबित हो सकता है.

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