रिपब्लिक डे परेड : केंद्र और राज्यों में झांकियों को लेकर मतभेद, लेकिन इनका चुनाव कैसे होता है?
इस बार गणतंत्र दिवस परेड के लिए दिल्ली, कर्नाटक, पंजाब और पश्चिम बंगाल की झांकियों को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है

इस साल 26 जनवरी को भारत अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाएगा. हालांकि, जब भी यह समारोह करीब आता है, इसमें दिखाई जाने वाली झांकियों को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच विवाद सामने आते रहते हैं.
इस बार परेड में कर्नाटक की झांकी शामिल न होने पर वहां के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि केंद्र ने झांकी का मौका न देकर सात करोड़ कन्नड़वासियों का अपमान किया है.
झांकियों की प्रदर्शनी के लिए इस साल 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का चयन किया गया है. थीम है, "विकसित भारत" और "भारत : लोकतंत्र की मातृका".
कर्नाटक के अलावा कुछ और राज्य भी इस बात पर विरोध जता रहे हैं कि उनकी झांकियों को जानबूझकर शामिल नहीं किया जा रहा. दिल्ली, कर्नाटक, पंजाब और पश्चिम बंगाल की झांकियां खारिज होने के बाद विपक्ष केंद्र पर पक्षपात का आरोप लगा रहा है. वहीं, केंद्र का कहना है कि ये झांकियां तय दिशानिर्देशों के मुताबिक नहीं थीं, इस वजह से खारिज हुईं. तो सवाल उठता है कि इन झांकियों का चुनाव कैसे होता है? कौन तय करता है कि कौन सी झांकी इस बार समारोह का हिस्सा बनेगी?
हर साल रक्षा मंत्रालय (गणतंत्र दिवस समारोह के लिए जिम्मेदार) राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, केंद्रीय विभागों और कुछ संवैधानिक अथॉरिटी को अपना झांकी प्रस्ताव भेजने के लिए आमंत्रित करता है. इच्छुक प्रतिभागी एक कांसेप्ट नोट और डिजाइन ब्लूप्रिंट मंत्रालय में जमा करते हैं. मंत्रालय द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति, जिसमें कला, संस्कृति, चित्रकला, संगीत, वास्तुकला, नृत्यकला, मूर्तिकला आदि क्षेत्रों की नामचीन हस्तियां शामिल होती हैं, इन प्रस्तावों का मूल्यांकन करती है.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, विशेषज्ञ समिति थीम, कांसेप्ट, डिजाइन और इसके विजुअल इंपैक्ट के आधार पर प्रस्तावों की जांच करती है. यह कई चरणों में होता है. पहले चरण में, प्रस्तावों के स्केच/डिज़ाइन का आकलन किया जाता है, और यदि जरूरी लगे तो बदलाव के लिए सुझाव भी दिया जाता है. कई प्रस्ताव तो शुरुआती चरण में ही रद्द हो जाते हैं.
एक बार जब ये डिजाइन समिति से मंजूरी पा जाते हैं, तो प्रतिभागियों को इनका थ्री-डी मॉडल प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. सिलेक्शन के दूसरे चरण में, समिति इन मॉडलों की समीक्षा करती है. यदि सब कुछ ठीक पाया जाता है, तो इन्हें आगे निर्माण के लिए भेज दिया जाता है. मंत्रालय के मुताबिक, "चयन के बहुत से कारक होते हैं, जिनमें विजुअल अपील, लोगों पर प्रभाव, झांकी का विषय, झांकी में विवरण का स्तर, संगीत का इस्तेमाल, स्थानीय कलाकारों की भूमिका आदि शामिल हैं. हालांकि ये इतने तक ही सीमित नहीं है."
इस चयन प्रक्रिया में कई दिनों तक चलने वाली छह से सात दौर की बैठकें शामिल होती हैं, जिसमें प्रत्येक चरण में शॉर्टलिस्टिंग और एलिमिनेशन (अवांछित चीजों को हटाना) की प्रक्रिया होती है. विशेषज्ञ समिति के पास तय करने का यह अंतिम अधिकार होता है कि फाइनल प्रारूप क्या हो. उसे यदि जरूरत लगे तो संशोधन का सुझाव दे सकती है. जबकि रक्षा मंत्रालय दिखाई जाने वाली झांकियों के लिए 'डूज और डोंट्स' (क्या करें, क्या न करें) का दिशानिर्देश तय करता है.
जैसे, प्रतिभागियों को प्रतिष्ठित संस्थानों के योग्य डिजाइनरों को शामिल करना होता है, जो प्रस्तावित झांकी की बेहतर ढंग से निगरानी करते हैं. झांकी में ब्राइट डिस्पले लगाया जाता है ताकि इमेज या कंटेंट खुल कर सामने आए. दो अलग-अलग राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की झांकियां एक जैसी नहीं होनी चाहिए. इसमें राज्य के नाम के अलावा कोई लोगो का उपयोग नहीं होना चाहिए. राज्य या केंद्रशासित प्रदेश का नाम सामने हिंदी में, पीछे अंग्रेजी और किनारों पर क्षेत्रीय भाषाओं में लिखा होना चाहिए.
इस बार परेड में राज्यों की झांकियां शामिल न होने पर पीटीआई से बातचीत में रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि उन राज्यों की झांकियों को इसलिए अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि वे परेड की 'ब्रॉडर थीम' (व्यापक विषय) के साथ मैच नहीं कर रही थीं. इसके अलावा सूत्रों ने कहा कि जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को परेड के लिए नहीं चुना गया, उन्हें 23-31 जनवरी तक दिल्ली के लाल किले में चलने वाले भारत पर्व में झांकी दिखाने के लिए आमंत्रित किया गया है.
इस बीच, रक्षा मंत्रालय ने एक 'रोलओवर योजना' का प्रस्ताव दिया है. इसके मुताबिक, अगले तीन गणतंत्र दिवस समारोहों में सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को अपनी झांकियां प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा. हर साल गणतंत्र दिवस परेड के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लगभग 15 झांकियों का चयन किया जाता है. इस लिए सभी को मौका मिलना मुश्किल होता है. लेकिन रोलओवर प्लान से सभी के पास मौका होगा. इसके तहत समझौते पर अभी तक 28 राज्य दस्तखत कर चुके हैं, जिनमें कर्नाटक भी शामिल है.