क्या है सर क्रीक विवाद, जिस पर राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को दी कड़ी चेतावनी?

भारत और पाकिस्तान के बीच कच्छ के रण और सिंध प्रांत को बांटने वाले 96 किलोमीटर लंबे ज्वारीय मुहाने को सर क्रीक के नाम से जाना जाता है

भुज में शस्त्र पूजा के दिन राजनाथ सिंह
भुज में शस्त्र पूजा के दिन राजनाथ सिंह

2 अक्टूबर 2025 को भुज में शस्त्र पूजा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सर क्रीक सेक्टर पर पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी. उन्होंने कहा, "सर क्रीक सेक्टर में पाकिस्तानी सेना के जरिए किए गए किसी भी दुस्साहस का निर्णायक जवाब दिया जाएगा. भारत का जवाब इतना कड़ा होगा कि यह 'इतिहास और भूगोल दोनों को बदल सकता है."

भारतीय रक्षा मंत्री ने आगे कहा, "भारत ने बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाने के कई प्रयास किए हैं, लेकिन पाकिस्तान की मंशा स्पष्ट नहीं है. सर क्रीक सेक्टर के पास पाकिस्तानी सेना के हालिया सैन्य बुनियादी ढांचे के विस्तार से उसकी मंशा का पता चलता है."

क्यों दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है यह इलाका?

पहली नजर में सर क्रीक गुजरात और सिंध के बीच 96 किलोमीटर लंबे कीचड़ और दलदली जमीन वाले इलाके से ज्यादा कुछ नहीं लगता. लेकिन, सर क्रीक सेक्टर कई वजहों से दोनों ही देश के लिए महत्वपूर्ण हैं. उदाहरण के लिए तेल और गैस भंडारों पर नियंत्रण से लेकर अरब सागर में समुद्री सीमाओं और विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निर्धारण तक में यह पूरा क्षेत्र काफी अहम भूमिका निभाता है.

इससे सटे समुद्री इलाकों में हाइड्रोकार्बन और प्राकृतिक गैस के भंडार होने की संभावना है. अब, पाकिस्तान इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है. मकसद यहां मौजूद तेल, गैस के संभावित भंडारों पर कब्जा करना है. भारत ने पाकिस्तान की मंशा को भांपते हुए चेतावनी दी है, जिसके बाद से ही सर क्रीक सेक्टर एक बार फिर खबरों में आ गया है.

क्रीक विवाद (Photo Source: researchgate.net)

इस इलाके नाम सर क्रीक के नाम पर कैसे पड़ा?

इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कंफ्लीक्ट स्टडीज की एक रिपोर्ट मुताबिक, इस क्षेत्र का नाम ब्रिटिश अधिकारी सर विलियम क्रीक के नाम पर पड़ा है. सर विलियम क्रीक 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में एक बड़े अधिकारी थे.

उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान इस क्षेत्र का सर्वेक्षण कर एक मानचित्र तैयार किया था. इसी वजह से जब ब्रिटिश सरकार ने कच्छ और सिंध के बीच की सीमा को तय करने के लिए सर्वे किया तो उस वक्त क्षेत्र का नाम सर क्रीक सेक्टर रखा था.

बाद में 1914 के बॉम्बे गवर्नमेंट रेजोल्यूशन और 1925 के नक्शे में इस क्षेत्र को "सर क्रीक" के रूप में दर्ज किया गया था, जो उस समय के प्रशासनिक दस्तावेजों में सर विलियम क्रीक के नाम से जुड़ा था. कुछ रिपोर्ट्स यह दावा करते हैं कि इससे पहले इस क्षेत्र को बन गंगा के नाम से भी जाना जाता था.

सर क्रीक सेक्टर विवाद का इतिहास

यह क्षेत्र आजादी के वक्त से ही भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे जटिल विवादों में से एक रहा है. 1947 में बंटवारे के बाद सिंध पाकिस्तान का हिस्सा बन गया और गुजरात भारत में रहा.

1968 में इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने कच्छ के रण के अधिकांश सीमा मुद्दे को सुलझा लिया, लेकिन कई दौर की बातचीत के बावजूद सर क्रीक सेक्टर विवाद अनसुलझा रहा. भारत चाहता है कि पहले समुद्री सीमा का सीमांकन किया जाए, जबकि पाकिस्तान समु्द्री सीमा पर बात किए बिना ही इस विवाद को सुलझाना चाहता है.

पाकिस्तान 1914 के एक प्रस्ताव का हवाला देते हुए दावा करता है कि पूरी खाड़ी सिंध प्रांत की ही है. वहीं भारत का तर्क है कि इसी प्रस्ताव में थालवेग सिद्धांत का भी बात की गई है, जो नौगम्य चैनल के बीच में सीमा निर्धारित करता है. जबकि पाकिस्तान भारत के इस सिद्धांत को मानने से इनकार करता है.

दरअसल, थैलवेग सिद्धांत (Thalweg Principle) एक अंतरराष्ट्रीय कानूनी और भौगोलिक सिद्धांत है, जिसका इस्तेमाल दो देशों या क्षेत्रों के बीच जल सीमा (नदी, नाला, या जलमार्ग) को निर्धारित करने के लिए किया जाता है. पाकिस्तान का कहना है कि ये सिर्फ नदियों पर लागू होता है, समुद्री मुहानों पर नहीं. भारत थालवेग सिद्धांत के अलावा 1925 के मैप का भी हवाला देता है.

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