नेहरू और पटेल बाबरी मस्जिद पर क्या सोचते थे, असल बात इन पत्रों में दर्ज है!

गुजरात में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद बनाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन पटेल ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया

पंडित नेहरू के साथ सरदार पटेल (फाइल फोटो)
पंडित नेहरू के साथ सरदार पटेल (फाइल फोटो)

दिसंबर की 2 तारीख को वडोदरा के साधली गांव में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, "जब पंडित नेहरू ने बाबरी मस्जिद पर सरकारी खजाने से पैसा खर्च करने का प्रस्ताव रखा, तो अगर किसी ने इसका विरोध किया, तो वे सरदार वल्लभभाई पटेल थे. उस समय उन्होंने पंडित नेहरू का विरोध करके सरकारी पैसे से बाबरी मस्जिद नहीं बनने दी थी."

3 दिसंबर को राजनाथ सिंह के इस बयान पर कांग्रेस ने पलटवार किया. कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने रक्षा मंत्री के बयान को पूरी तरह से झूठ और गलत बताया है. उन्होंने कहा, "नेहरू जी धार्मिक कार्यों के लिए सरकरी पैसे का इस्तेमाल करने के सख्त खिलाफ थे. उनका मानना था कि यह काम जनता के सहयोग से होना चाहिए."

हालांकि, राजनाथ सिंह ने किस आधार पर यह बयान दिया है और उनके बयान का क्या सोर्स है, यह उन्होंने नहीं बताया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट मुताबिक, नेहरू के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध पत्रों और भाषणों में, बाबरी मस्जिद पर सरकारी धन खर्च करने की उनकी इच्छा जताने का कोई जिक्र नहीं मिलता.

हालांकि, उनके पत्रों से यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि नेहरू बाबरी मस्जिद को लेकर किसी भी सांप्रदायिक विवाद के सख्त खिलाफ थे. बाबरी को लेकर नेहरू और पटेल ने कई नेताओं को पत्र लिखे थे. आज उन पत्रों के जरिए जानने की कोशिश करते हैं कि दोनों नेता बाबरी विवाद पर किस तरह से सोचते थे?

सबसे पहले जानिए 1949 में अयोध्या में क्या हुआ था?

22 दिसंबर, 1949 की रात को कुछ लोगों ने अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद परिसर में घुसकर उसके केंद्रीय गुंबद के नीचे भगवान राम और देवी सीता की मूर्तियां रख दीं. लगभग उसी समय, अयोध्या और पूरे उत्तर प्रदेश में कुछ अन्य जगहों पर सांप्रदायिक टकराव की घटनाएं भी हुईं. इनसे दुखी होकर तब के पीएम नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत सहित कई नेताओं को लिखे पत्रों में बाबरी और अन्य घटनाओं का ज़िक्र किया. ये सभी पत्र नेहरू अभिलेखागार में उपलब्ध हैं.

इन पत्रों से साफ होता है कि नेहरू अपनी ही पार्टी के भीतर बढ़ती सांप्रदायिक मानसिकता के नेताओं को लेकर बेहद चिंतित थे और उन लोगों को भविष्य में खतरे के तौर पर देख रहे थे. उनका मानना ​​था कि अयोध्या में अगर इस तरह का कुछ होता है, तो इसका असर कश्मीर मुद्दे समेत अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी पड़ेगा. वे इस घटना के बाद अयोध्या के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट के.के. नायर से भी नाराज थे, जिन्होंने मूर्तियां हटाने से इनकार कर दिया था.

अब जानिए नेहरू ने नेताओं को पत्र लिखकर बाबरी पर क्या कहा था?

26 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियां रखे जाने के तुरंत बाद नेहरू ने मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को एक तार भेजा, "मैं अयोध्या के घटनाक्रम से चिंतित हूं. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप व्यक्तिगत रूप से इस मामले में रुचि लेंगे. वहां एक खतरनाक मिसाल कायम की जा रही है जिसके बुरे नतीजे होंगे."

फरवरी 1950 में उन्होंने पंत को एक और पत्र लिखा, "मुझे खुशी होगी अगर आप मुझे अयोध्या की जानकारी भेजते रहें. जैसा कि आप जानते हैं कि मैं इस घटना को कश्मीर पर पड़ने वाले प्रभाव से जोड़कर देखता हूं." उन्होंने यह भी पूछा कि क्या उन्हें खुद अयोध्या जाना चाहिए, जिस पर पंत ने उत्तर दिया कि "अगर समय सही होता, तो मैं खुद आपसे अयोध्या आने का अनुरोध करता."

एक महीने बाद, प्रसिद्ध लेखक और गांधीवादी के.जी. मशरूवाला को लिखे एक पत्र में नेहरू ने कहा, "आप अयोध्या मस्जिद का जिक्र कर रहे हैं. यह घटना दो-तीन महीने पहले हुई थी और मैं इससे बहुत व्यथित हूं. उत्तर प्रदेश सरकार ने बहादुरी का दिखावा तो किया, लेकिन असल में कुछ खास नहीं किया... पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने कई मौकों पर इस कृत्य की निंदा की, लेकिन शायद बड़े पैमाने पर दंगे भड़कने के डर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की."

इसी पत्र में आगे अपनी लाचारी जाहिर करते हुए नेहरू ने कहा, "मुझे समझ नहीं आ रहा कि देश में बेहतर माहौल बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं. जिन लोगों में ज्यादा जोश चढ़ा हुआ है, वे सिर्फ़ सद्भावना का उपदेश देने से चिढ़ जाते हैं. बापू ने शायद ऐसा किया होता, लेकिन हम इस तरह की चीजों के लिए बहुत छोटे हैं."

जुलाई 1950 में उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को पत्र लिखकर आशंका व्यक्त करते हुए कहा, "हम फिर से किसी प्रकार की आपदा की ओर बढ़ रहे हैं." नेहरू ने शास्त्री को लिखे पत्र में कहा, "जैसा कि आप जानते हैं, अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला हमारे लिए एक बड़ा मुद्दा है और यह हमारी पूरी नीति और प्रतिष्ठा को गहराई से प्रभावित कर रहा है. लेकिन इसके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि अयोध्या में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि इस तरह की समस्या मथुरा और अन्य जगहों तक भी फैल सकती है."

इससे पहले अप्रैल में उन्होंने पंत को एक और लंबा पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, "मैं लंबे समय से महसूस कर रहा हूं कि सांप्रदायिक नजरिये से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश का पूरा माहौल बद से बदतर होता जा रहा है. दरअसल, उत्तर प्रदेश मेरे लिए लगभग एक विदेशी भूमि बनता जा रहा है. मैं वहां फिट नहीं बैठता... उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी, जिससे मैं 35 वर्षों से जुड़ा रहा हूं, अब जिस तरह से काम करती है, उससे मैं हैरान हूं... विशम्भर दयाल त्रिपाठी जैसे सदस्य ऐसी भाषा में लिखते और बोलते हैं जो हिंदू महासभा के किसी सदस्य के लिए आपत्तिजनक होगी. हम अनुशासनात्मक कार्रवाई की खूब बातें करते हैं, लेकिन कांग्रेस की नीतियों में ये बड़ी विकृतियां लगातार बनाई और स्वीकार की जा रही हैं." 

द नेहरू आर्काइव की वेबसाइट पर इन पत्रों को पढ़ सकते हैं.

बाबरी को लेकर पत्र लिखकर सरदार पटेल ने क्या कहा?

नेहरू की तरह ही सरदार पटेल ने भी बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को एक पत्र लिखकर कहा, "प्रधानमंत्री आपको अयोध्या की घटना पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए एक तार भेज चुके हैं. मैंने लखनऊ में आपसे इस बारे में बात की थी. मुझे लगता है कि यह विवाद बेहद अनुचित समय पर उठाया गया है... व्यापक सांप्रदायिक मुद्दों का हाल ही में विभिन्न समुदायों की आपसी संतुष्टि के साथ समाधान किया गया है. जहां तक मुसलमानों का सवाल है, वे अभी अपनी नई वफादारी के साथ तालमेल बिठा रहे हैं. हम यथोचित रूप से कह सकते हैं कि विभाजन का पहला झटका और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न अनिश्चितताएं अभी समाप्त होने लगी हैं."

इस पत्र का जिक्र दुर्गा दास द्वारा संपादित किताब सरदार पटेल का पत्राचार, खंड 9 में किया गया है. प्रदेश में शांति बनाए रखने पर जोर देते हुए पटेल ने आगे कहा, "...मेरा मानना ​​है कि यह ऐसा मुद्दा है जिसे दोनों समुदायों के बीच आपसी सहिष्णुता और सद्भावना की भावना से सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जाना चाहिए. मुझे एहसास है कि जो कदम उठाया गया है उसके पीछे गहरी भावनाएं हैं. साथ ही ऐसे मामलों का शांतिपूर्ण समाधान तभी हो सकता है जब हम मुस्लिम समुदाय की सहमति लें. ऐसे विवादों को बलपूर्वक सुलझाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. ऐसे में कानून और व्यवस्था बनाए रखने वाली ताकतों को हर कीमत पर शांति बनाए रखनी होगी."

पटेल आगे यह भी कहते हैं, "इसलिए, अगर शांतिपूर्ण तरीके अपनाए जाने हैं, तो आक्रामकता या दबाव के आधार पर की गई किसी भी एकतरफ़ा कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. इसलिए मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि इस मामले को इतना ज्वलंत मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए और वर्तमान असंगत विवादों को शांतिपूर्ण [तरीकों] से सुलझाया जाना चाहिए और वहां से जुड़े तथ्यों को सौहार्दपूर्ण समाधान के आड़े नहीं आने देना चाहिए."

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