क्या अब प्रियंका गांधी दक्षिण भारत में कांग्रेस की जिम्मेदारी संभालने जा रही हैं?
प्रियंका गांधी के वायनाड से चुनावी राजनीति में उतरने के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं और वे बेवजह भी नहीं हैं

चुनाव लड़े बिना ही भारतीय राजनीति में अपनी धमक रखने वाली प्रियंका गांधी के जब से वायनाड से प्रत्याशी होने की बात सामने आई है, सियासी हलकों में इसे लेकर जोर-शोर से चर्चा शुरू हो गई है. सबकी अपनी राय है कि प्रियंका के आने से क्या बदलेगा.
राहुल गांधी के वायनाड की सीट छोड़ रायबरेली को चुनने के बाद गांधी परिवार का एक और सदस्य अब वायनाड से चुनावी मैदान में उतरेगा. ऐसे में यह जानना अहम है कि प्रियंका के इस फैसले के सियासी परिणाम क्या होंगे.
राहुल गांधी के सीट छोड़ने के बाद, वायनाड लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) महासचिव प्रियंका गांधी को नामित करने का कांग्रेस का फैसला मुख्य रूप से 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए केरल में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) की संभावनाओं को बढ़ावा देने वाला लगता है. कईयों का मानना है कि प्रियंका की करिश्माई उपस्थिति कांग्रेस के विरोधी गुटों को एकजुट करेगी और कांग्रेस नेताओं के बीजेपी में जाने पर लगाम लगाएगी.
कांग्रेस ने 2024 और 2019 के लोकसभा चुनावों में केरल में जोरदार जीत हासिल की है. ऐसे में प्रियंका का राज्य से प्रतिनिधित्व कांग्रेस की राज्य इकाई को 2026 के विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) से मुकाबला करने के लिए ईंधन मुहैया कर सकता है. इसके अलावा राहुल के साथ कई दौरे कर चुकीं प्रियंका पहले से ही निर्वाचन क्षेत्र में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं और युवाओं तथा महिलाओं के बीच एक बड़ा आकर्षण साबित हो सकती हैं.
प्रियंका के मैदान में आने से केरल के कांग्रेस नेताओं को एलडीएफ और भाजपा के इस आरोप का जवाब देने में बेहतर स्थिति में होना चाहिए कि राहुल ने वायनाड के लोगों को छोड़ दिया है. राहुल गांधी ने भी कहा है कि वे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों की सेवा करना जारी रखेंगे और अब प्रियंका के साथ उनके पास 'दो सांसद' होंगे. केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के. सुधाकरण ने प्रियंका की शानदार जीत की बात कही है. सुधाकरण ने कहा है, "उन्हें मैदान में उतारने का फैसला गांधी परिवार की ओर से वायनाड के प्रति प्यार और देखभाल का प्रतीक है."
प्रियंका गांधी अपनी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की यादों को ताजा कर सकती हैं, जिनका केरल के लोगों के साथ एक भावनात्मक रिश्ता था. पहले ही कांग्रेस केरल की तरफ से ट्वीट किया जा चुका है, "यह इतिहास है! वायनाड में प्रियंका गांधी नहीं बल्कि भारत की लौह महिला इंदिरा प्रियदर्शिनी आ रही हैं." कलपेट्टा से कांग्रेस विधायक टी. सिद्दीकी के मुताबिक, प्रियंका का लोगों से स्वाभाविक जुड़ाव है. उन्होंने इंडिया टुडे को दिए बयान में कहा, "कई लोग उनमें इंदिरा गांधी जैसी समानता देखते हैं, जिनके केरल में बहुत बड़े प्रशंसक थे."
यह प्रियंका गांधी की चुनावी राजनीति में औपचारिक एंट्री का प्रतीक है. वे औपचारिक रूप से जनवरी 2019 में लोकसभा चुनावों से पहले राजनीति में शामिल हुई थीं और तब से उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन को संभाल रही हैं. प्रियंका ने हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में पार्टी की चुनावी तैयारियों की भी देखरेख की है.
इंडिया टुडे के पत्रकार जीमोन जैकब ने प्रियंका के वायनाड से चुनावी मैदान में उतरने के मायने अपनी रिपोर्ट में बताए हैं. जीमोन के मुताबिक, अगर प्रियंका वायनाड से जीतती हैं, तो यह पहली बार होगा जब गांधी परिवार के तीन सदस्य एक साथ संसद में होंगे. अपनी वाकपटुता और करिश्मे के लिए जानी जाने वाली प्रियंका से उम्मीद की जा रही है कि वे एक सांसद के तौर पर लोकसभा में कांग्रेस के एजेंडे को मजबूत करेंगी और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करेंगी.
जीमोन जैकब अपनी रिपोर्ट में आंकड़ों का हवाला देते हुए एक जरूरी बात बताते हैं. वे लिखते हैं, "वायनाड से प्रियंका की उम्मीदवारी यह भी दिखाती है कि बात जब बेशकीमती सीटों की हो तब गांधी परिवार को कांग्रेस के दूसरे नेताओं पर कितना भरोसा है. जब राहुल ने अमेठी से दोबारा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया, तो यह सीट किसी नियमित पार्टी नेता को नहीं बल्कि परिवार के एक भरोसेमंद वफादार किशोरी लाल शर्मा को ऑफर की गई. राहुल गांधी ने वायनाड से 3,64,000 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की. उनका वोट शेयर 59.69 प्रतिशत था. प्रियंका को वायनाड से इसलिए मैदान में उतारा गया है ताकि इस निर्वाचन क्षेत्र को परिवार के लिए सुरक्षित सीट बनाया जा सके."
जीमोन अपनी रिपोर्ट में एक और दिलचस्प जानकारी देते हैं. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक, इस फैसले से गांधी भाई-बहनों के बीच भूमिकाओं का बंटवारा भी हो गया है. राहुल उत्तर का प्रतिनिधित्व करेंगे, जबकि प्रियंका दक्षिण से ऐसी ही भूमिका निभाने जा रही हैं - यह सब कांग्रेस की अखिल भारतीय अपील को आगे बढ़ाने की दिशा में है.
सोशल मीडिया पर प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की खबर के बाद उनके प्रशंसकों की पोस्ट पढ़कर समझ आता है कि लम्बे वक्त से उनके चुनावी राजनीति में उतरने का इंतजार किया जा रहा था. अब अगर प्रियंका जीतकर संसद पहुंचती हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह वे जनता की बात को रखने के अलावा बीजेपी को काउंटर करती हैं.