भारत से चावल क्यों 'चुरा' रहा है पाकिस्तान?

भारत में विकसित बासमती की एक वैराइटी की वजह से पाकिस्तान ने यूरोपीय यूनियन के बाजार में 66-70% हिस्सेदारी हासिल कर ली है

पाकिस्तानी पंजाब के चावल के खेत काम करती महिला/तस्वीर - डॉन
पाकिस्तानी पंजाब के चावल के खेत काम करती एक महिला/तस्वीर - डॉन

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिकों और अपने देश के निर्यातकों ने पाकिस्तान में उन्नत बासमती चावल की अलग-अलग किस्मों की अवैध खेती से जुड़े खतरों पर सरकार को आगाह किया है. पाकिस्तान के मुल्तान, बहावलनगर और हफीजाबाद इलाकों से कुछ बीज कंपनियों की तरफ से प्रमोशनल यूट्यूब वीडियोज बनाए गए हैं. इन वीडियोज में हाल ही में जारी किए गए आईएआरआई वैराइटीज की विशेषता वाले बासमती बीजों का जिक्र था. 

इन्हीं वीडियोज के सामने आने के बाद से भारतीय वैज्ञानिकों और कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर एके सिंह का ध्यान इस ओर गया और उन्होंने कानूनी कार्रवाई की मांग की. जिस खतरे की बात आइएआरआई के वैज्ञानिक और देश के एक्सपोर्टर्स कर रहे हैं, वो दरअसल विकसित बासमती चावल की हाई-यील्डिंग वैराइटीज यानी ज्यादा उपज वाली बीजों की पाकिस्तान में कथित चोरी और गैरकानूनी खेती से संबंधित है.

एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी के डेटा के मुताबिक, साल 2023 में चावल की खेती करीब 21 लाख हेक्टेयर में हुई. इसमें भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की इन हाई-यील्डिंग वैराइटी का हिस्सा करीब 89 फीसदी था.  पूसा बासमती (पीबी) लेबल से जानी जाने वाली इन वैराइटीज की देश के 5-5.5 अरब डॉलर के वार्षिक बासमती निर्यात में 90% से अधिक हिस्सेदारी है.

पीबी-1, पीबी-1121, पीबी-6, पीबी-1509, पीबी-1121, पीबी-1509 और पीबी-6 के एडवांस्ड वर्जन्स के बीज को पाकिस्तान में नाम बदलकर प्रचारित किया जा रहा है. हाल ही में पाकिस्तानी बीज कंपनियों और तथाकथित अनुसंधान संस्थानों और कृषि सलाहकारों के यूट्यूब वीडियो आए जिनमें नई आईएआरआई वैराइटीज की बीजों पर चर्चा की गई. इसमें पीबी-1847, पीबी-1885 और पीबी-1886 शामिल हैं. 

गौर करने वाली बात है कि जनवरी 2022 में ही भारत के बीज अधिनियम के तहत इन बीजों की वैराइटीज को नोटिफाई किया गया था. इन वीडियोज के सामने आने के बाद से ही भारत में अधिकारियों और आईएआरआई वैज्ञानिकों को सतर्क कर दिया गया.  इंडियन एक्सप्रेस ने इस मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट की थी जिसमें इन वीडियोज का जिक्र किया गया है. इनमें से एक वीडियो आप नीचे देख सकते हैं.

हालांकि एकबारगी यह ज़्यादा चिंताजनक नहीं लगता क्योंकि पाकिस्तान का बासमती निर्यात 2021-22 में 6945.5 लाख डॉलर से गिरकर 2022-23 में 6504.2 लाख डॉलर हो गया है. मगर इसके बावजूद भारत के पास चिंतित होने के कई कारण हैं.

पहली बात तो यह कि बासमती चावल केवल भारत और पाकिस्तान में उगाया जाता है और आईएआरआई के पीबी-1 के जैसी बासमती की एक वैराइटी की वजह से पाकिस्तान ने यूरोपीय यूनियन और यूनाइटेड किंगडम के बाजार में 66-70% हिस्सेदारी हासिल कर ली है. सितंबर 2023 के बाद यह बढ़कर 85% हो गई है.

इसके अलावा अगर भारत की बात करें तो सऊदी अरब, ईरान, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और दूसरे पश्चिम एशियाई देशों के बासमती बाजार में अपना देश सबसे आगे है. लेकिन अब चूंकि पाकिस्तान की मिलें नई तकनीक अपना रही हैं और वहां के किसान बेहतर आईएआरआई बासमती वैराइटीज को उगा रहे हैं, इसलिए आगे चलकर भारत के लिए इन बाजारों में भी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं.

भारत के लिए चिंता का तीसरा सबब कमजोर पाकिस्तानी मुद्रा है जो पड़ोसी मुल्क के पाले में गेंद डाल देती है. इससे वहां चावल उत्पादन की लागत भारत के मुकाबले कम पड़ती है. 

अब जो सबसे अहम सवाल निकलकर सामने आता है, वो यह है कि क्या इन बीजों के बेजा इस्तेमाल को लेकर अपने देश में कोई कानून नहीं है. दरअसल भारत ने 2001 में ही प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैराइटीज एंड फार्मर्स एक्ट लागू किया था. इसके तहत आईएआरआई-नस्ल की उन्नत बासमती वैराइटीज को रजिस्टर किया गया है, जो केवल भारतीय किसानों को बीज बोने, बचाने, दोबारा बोने, एक्सचेंज करने या बीज साझा करने की अनुमति देता है. हालांकि इतने अधिकारों के बावजूद भारतीय किसानों को भी संरक्षित किस्मों के बीजों को ब्रांडेड रूप में बेचने का अधिकार हासिल नहीं है.  

इसके अलावा, आईएआरआई वैराइटीज को बीज अधिनियम, 1996 के तहत नोटिफाई किया गया है, जो इनकी खेती के लिए केवल भारत के भीतर बासमती चावल के आधिकारिक रूप से बताए गए ज्योग्राफिकल इंडिकेशन क्षेत्र में ही अनुमति देता है. इस ज्योग्राफिकल इंडिकेशन क्षेत्र की बात करें तो इसमें सात राज्य - पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिम) और जम्मू और कश्मीर के दो जिले (जम्मू और कठुआ) शामिल हैं.

पाकिस्तान में इन बीजों का उपयोग और इससे किया जा रहा व्यापर सीधा-सीधा भारतीय वैज्ञानिकों के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का उल्लंघन है और प्रासंगिक द्विपक्षीय मंचों और वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन जैसी जगहों पर भारत इसका विरोध कर सकता है.

अब इतने कानून होने के बावजूद पाकिस्तान ने कैसे हमारे देश के उच्च गुणवत्ता वाले बीज चुराए? यह सवाल जितना जरूरी है, उसका जवाब उतना ही आसान. अपने देश में उच्च गुणवत्ता वाली बासमती के पैदावार को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान को बहुत ज्यादा मात्रा में चोरी करने की जरूरत नहीं है. महज 5 किलो बीज की मदद से 1 एकड़ के खेत में इसकी बुआई हो सकती है. मुमकिन है कि सीमा से सटे पंजाब से गैरकानूनी तरीके से यह बीज खरीद कर सीमा पार में बुआई की जाती हो.

फिलहाल बासमती उपज के निर्यात में भारत अपने शीर्ष पर है और ऐसे में पड़ोसी मुल्क से ऐसे झटके देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के हित में नहीं हैं. इसी को लेकर भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के डायरेक्टर ने सरकार से पाकिस्तानी बासमती कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे भारत के उच्च गुणवत्ता वाले पूसा बासमती या पीबी-1121 वैराइटी को कायनात-1121 जैसे नाम देकर प्रचारित किया जा रहा है.

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