फर्जी नौकरी देने के बहाने कैसे 'साइबर गुलाम' बना रहे चीनी माफिया, भारत के पास क्या है जवाब?

हाल में भारत सरकार ने म्यांमार और थाईलैंड से 549 भारतीयों को छुड़ाकर स्वदेश लाया. इन 'साइबर गुलामों' को फर्जी नौकरी देने के नाम पर चीनी साइबर माफिया ने अपने जाल में फंसाया था

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

देश-दुनिया में नौकरी की महिमा ऐसी है कि अधिकतर लोग इसके मोहपाश में बंध जाते हैं. भला एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी से अपने सपनों को पूरा करना और अपने परिवार वालों को खुश रखना किसे पसंद नहीं! साइबर अपराधी भी इस बात को बखूबी समझते हैं. और जब इन अपराधियों के शिकार साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक न हों तब?...फिर वही होता है जो म्यांमार और थाईलैंड जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में फंसे उन हजारों भारतीयों के साथ हुआ.

इन भारतीयों को फर्जी नौकरी देने के नाम पर वहां बुलाया गया और फिर 'साइबर गुलाम' बना लिया गया. इनसे दिन में 18-18 घंटे तक काम लिए गए और जब ये लोग काम करने से ना-नुकर करते थे तो इन्हें बिजली के झटके दिए जाते थे. वहां हालात ऐसे थे कि कार्यस्थल (जो एक गैराज की तरह था) पर टॉयलेट तक की व्यवस्था नहीं थी, और खाने के नाम पर सिर्फ एक टाइम का खाना मिलता था. जिस लाखों रुपये की सैलरी के झांसे में ये लोग वहां गए, पता चला एक फूटी कौड़ी मिलना भी मुहाल था.

भारत सरकार ने 10 और 11 मार्च को ऐसे ही फर्जी नौकरी देने के नाम पर साइबर क्राइम नेटवर्क में फंसे 549 नागरिकों को छुड़ाकर स्वदेश वापस लाया. इन्हें म्यांमार और थाईलैंड समेत कई दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में फर्जी नौकरी देने के बहाने वहां बुलाया गया और फिर साइबर अपराध और अन्य धोखाधड़ी गतिविधियों में शामिल होने के लिए बाध्य किया गया था. इनमें 28 महिलाएं भी शामिल थीं. इन सभी को दो बैचों में भारतीय वायुसेना के सी-17 विमान से भारत लाया गया.

भारतीय दूतावास ने म्यांमार और थाईलैंड में स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय करके उन्हें देश वापस भेजा. इन 'साइबर गुलामों' को नई दिल्ली लाने के लिए पहले थाईलैंड के माई सोत शहर लाया गया. उन्हें म्यांमार के म्यावाडी क्षेत्र से बचाया गया, जहां कथित तौर पर चीनी गिरोहों द्वारा संचालित साइबर-स्कैम सेंटर झांसे में आए उन लोगों को धोखाधड़ी की गतिविधियों में धकेलते हैं.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन केंद्रों को म्यांमार के मिलिशिया समूह का शह हासिल है. संदेह है कि उन्होंने वहां दुनिया भर में हजारों लोगों को फंसा रखा है. थाईलैंड के जरिए वापस भेजे जा रहे 7,141 विदेशियों में से 4,860 चीनी नागरिक हैं, उसके बाद वियतनामी और भारतीय हैं. 549 भारतीयों की स्वदेश वापसी के बावजूद अभी भी वहां करीब 2000 भारतीय फंसे हुए हैं. इसका सीधा मतलब है कि बचाव प्रयासों को अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

म्यांमार से लौटे पीड़ित भारतीयों की आपबीती

म्यांमार से स्वदेश लौटे इन पीड़ितों में मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश के लोग हैं. इनमें यूपी से 64 लोग हैं जिनमें एक लखनऊ के मोहम्मद अनस भी हैं.

यूपी पुलिस और अन्य एजेंसियों की संयुक्त रूप से पूछताछ में अनस ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, "मैंने सोशल मीडिया पर नौकरी का विज्ञापन देखा था. सारे दस्तावेज जमा करने के बाद इंटरव्यू हुआ और मुझे टूरिस्ट वीजा पर म्यांमार बुलाया गया. उन्होंने मुझे अच्छी सैलरी और बेहतर सुविधाएं देने का वादा किया. जैसे ही मैं वहां पहुंचा, गिरोह के लोगों ने सबसे पहले मेरा पासपोर्ट जब्त कर लिया, मेरा फोन छीन लिया और कहा कि मुझे जैसा कहा जाएगा, वैसा ही काम करना होगा. मुझे म्यांमार के म्यावड्डी में एक फ्लैट में बंधक बनाकर रखा गया."

लखनऊ के ही एक अन्य युवक का दर्द कुछ इस प्रकार था, "डिजिटल अरेस्ट गैंग ने मुझे एक गैराज में बंद करके रखा और करीब छह महीने तक बंधक बनाकर रखा. वे मुझसे दिन में 18 घंटे काम करवाते थे. जहां मैं रहता था वहां बाथरूम भी नहीं था. शुरुआत में मुझे हर महीने 1.5 लाख रुपये वेतन दिया जाता था, लेकिन बाद में उन्होंने मुझे वेतन देना बंद कर दिया. मुझे दिन में एक बार खाना मिलता था."

यूपी के एक अन्य पीड़ित अमन सिंह का कहना था, "वहां जीवन जानवरों से भी बदतर था...यहां तक ​​कि शौचालय भी नहीं था. निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे थे. अगर हम काम के दौरान झपकी लेते तो सुरक्षाकर्मी हमारे बाल खींच लेते. वे हर पल हम पर नजर रखते थे. अगर हम उनसे घर जाने की इजाजत मांगते तो वे हमें बिजली के झटके देते. हमें दिन में सिर्फ एक बार अपने परिवार से बात करने की इजाजत थी. हमारे फोन जब्त कर लिए गए थे."

लखनऊ के सुल्तान सलदुद्दी रब्बानी को 1.5 लाख रुपए वेतन का लालच दिया था. लेकिन जब वे वहां पहुंचे तो एक धेला भी नहीं मिला. उन्हीं के शब्दों में, "मुझसे सिर्फ काम करवाया गया. बाद में उन्होंने मुझे सिर्फ खाना दिया. काम शुरू करने से पहले मुझे साइबर क्राइम की ट्रेनिंग दी गई. बताया गया कि कैसे किसी को डिजिटली अरेस्ट किया जा सकता है. हमें बंदूक की नोक पर यह सब करवाया गया."

कैसे फंसे साइबर अपराधियों के चंगुल में पीड़ित

रब्बानी ने यह भी बताया कि उन्हें जिस जगह पर रखा गया था, वहां चीन और पाकिस्तान समेत कई देशों के युवक भी काम करते थे. यूपी डीजीपी प्रशांत कुमार द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि अधिकतर पीड़ित टेलीग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए साइबर जालसाजों के एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह के संपर्क में आए थे. उन्हें उच्च वेतन का लालच दिया गया और कंप्यूटर डेटा ऑपरेटर और कॉल हैंडलर जैसी कई प्रकार की नौकरियों के बारे में बताया गया.

एडीजी (कानून व्यवस्था) अमिताभ यश ने बताया, "इन लोगों से गिरोह के सदस्यों द्वारा वीडियो कॉल पर बातचीत की जाती थी. इन लोगों को टेलीग्राम, व्हाट्सएप और मेल आदि के जरिए नियुक्ति पत्र भी भेजे जाते थे." यूपी पुलिस के मुताबिक, इन लोगों को हवाई जहाज से थाईलैंड बुलाया गया और बैंकॉक पहुंचने पर अंतरराष्ट्रीय संगठित गिरोह के सदस्य इन लोगों को करीब 500 किलोमीटर दूर म्यांमार सीमा की ओर ले गए, जहां इन्हें एक होटल में ठहराया गया. अगले दिन गिरोह के अन्य सदस्य इन लोगों को म्यांमार-थाईलैंड सीमा पर ले गए, जहां से इन लोगों को बीच के स्टेशन पर ले जाया गया.

डीजीपी ने बताया, "नदी पार करके इन्हें म्यांमार के म्यावाड्डी इलाके में ले जाया गया, जहां गिरोह ने बड़े पैमाने पर हॉस्टल, कॉल सेंटर, ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट बना रखे थे. इन लोगों के पासपोर्ट और दूसरे दस्तावेज गिरोह के सदस्य यहीं रख लेते थे. जो लोग इसका विरोध करते थे, उन्हें यातनाएं दी जाती थी. काम के बदले इन भारतीयों को थाई करेंसी (बात) दी जाती थी, जिसे वे मनी एक्सचेंजर के जरिए अपने रिश्तेदारों के खातों में भेजते थे."

साइबर अपराध की ओर कैसे मुड़े 'देशभक्त चीनी हैकर'

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ संवाददाता प्रदीप आर. सागर लिखते हैं कि पिछले कुछ दशकों में चीनी साइबर अपराध में काफी बढ़ोत्तरी हुई है. एक्सपर्ट के हवाले से वे बताते हैं कि 2000 के दशक की शुरुआत में राष्ट्रवाद और राजनीतिक घटनाओं के कारण चीन में हैकिंग गतिविधियों में तेजी आई. हॉन्कर यूनियन ऑफ चाइना (HUC) और चाइना ईगल यूनियन जैसे समूहों ने विदेशी संस्थाओं को निशाना बनाया, लेकिन बाद में देशभक्ति के जोश में कमी आने के कारण वे बिखर गए.

बाद के सालों में इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई. लेकिन इसके समानांतर ही साइबर सुरक्षा के प्रति लापरवाह लोगों की एक बड़ी जमात भी खड़ी हुई, जिसका फायदा साइबर अपराधी लगातार उठा रहे हैं. साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता में कमी के कारण ये पूर्व चीनी देशभक्त हैकर्स फायदा आधारित साइबर अपराध की ओर चले गए, जिनमें DDoS (डिस्ट्रब्यूटेड डिनायल ऑफ सर्विस) अटैक, IP (बौद्धिक संपदा) चोरी और गेम अकाउंट चोरी शामिल हैं.

मौजूदा समय में चीनी साइबर अपराध एक ढांचागत फर्म की तरह ही काम करता है, जिसमें वैध कंपनियों के समान ही पदानुक्रम (हेरार्की) होते हैं. Tencent QQ और Baidu Tieba जैसे प्लेटफॉर्म अवैध व्यापार की सुविधा देते हैं, जबकि दक्षिण-पूर्व एशियाई "स्कैम परिसर" से आवासीय सुविधाओं के साथ कई साइबर अपराधों को संचालित करते हैं. इसके अलावा पुराने संगठित अपराध समूहों ने मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों के लिए साइबरस्पेस को अपनाया है.

इसकी व्यापकता और जटिलता के बावजूद चीनी साइबर अपराध का व्यवस्थित एनालिसिस सीमित है, जिससे इसके औद्योगिकीकरण और वैश्विक प्रभाव को समझने में गैप बना हुआ है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध (TOC) वैश्विक खतरा है, जिसमें ड्रग्स और मानव तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और साइबर अपराध जैसी गतिविधियां शामिल हैं. सबसे पुराने और सबसे कुख्यात TOC (ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम) समूहों में से एक चाइनीज ट्रायड्स, कमजोर कानूनों का फायदा उठाते हुए दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े पैमाने पर काम करता है.

भारत कैसे कर रहा चीनी साइबर अपराधियों का मुकाबला

इंडिया टुडे की अपनी रिपोर्ट में प्रदीप आर. सागर लिखते हैं कि एशियाई क्षेत्र में चीनी गिरोहों द्वारा प्रायोजित साइबर अपराध एक अहम मुद्दा है, जिसमें कई प्रकार के साइबर अटैक और स्कैम्स शामिल हैं. थाईलैंड, इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया सहित दक्षिण पूर्व एशिया में सरकारी और निजी संगठनों को निशाना बनाने वाले सरकार प्रायोजित चीनी हैकरों की खबरें मिली हैं. इन हमलों में अक्सर कस्टम मैलवेयर शामिल होते हैं और ये चीन के राजनीतिक और आर्थिक हितों से जुड़े होते हैं.

इन सब में कंबोडिया साइबर अपराध में शामिल चीनी गिरोहों का केंद्र बन कर उभरा है. ये समूह स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, अक्सर अपनी गतिविधियों को कैसीनो जैसे वैध व्यवसायों के रूप में दिखाते हैं. वे अमेरिका, ब्रिटेन और भारत सहित कई देशों में सरकारी विभागों पर साइबर हमलों से जुड़े रहे हैं.

पिछले साल जुलाई में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने म्यांमार और थाईलैंड के सामने ऑनलाइन स्कैम्स के बारे में चिंता जताई थी. दक्षिण-पूर्व एशिया में होने वाले साइबर स्कैम के कारण भारत को निवेश, व्यापार, डिजिटल अरेस्ट और डेटिंग स्कैम सहित बड़े वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा. पीड़ित मुख्य रूप से भारत के ग्रामीण इलाकों से हैं, जिन्हें 'डिजिटल सेल्स और मार्केटिंग एक्जक्यूटिव' या 'ग्राहक सहायता सेवा' के रूप में भर्ती किया जाता है. म्यांमार, कंबोडिया और लाओस स्कैम के मुख्य केंद्र हैं, लेकिन अपराधी पकड़ से बचने के लिए जगह बदलते रहते हैं.

भारत सरकार ने साइबर अपराधों से निपटने के लिए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना की है. अधिकारियों ने कई नागरिकों को बचाया है और अवैध भर्ती गतिविधियों से संबंधित कई गिरफ्तारियां की हैं. वे अंतरराष्ट्रीय कानूनी एजेंसियों के साथ समन्वय करने और गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भी काम कर रहे हैं. उन्होंने मानव तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए म्यांमार और कंबोडियाई सरकारों के साथ समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं.

संगठित अपराध समूह पहचान से बचने के लिए एडवांस्ड तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसके कारण कानूनी जांच एजेंसियों को साइबर अपराध से निपटने के लिए विशेष कौशल विकसित करने और अनुकूलित करने की जरूरत होती है. इस जटिल मुद्दे को हल करने के लिए भारत, म्यांमार और कंबोडिया से समन्वित दृष्टिकोण की जरूरत है. साथ ही पीड़ितों की सुरक्षा तय करने और इस गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भी जरूरत है. इसके अलावा ऐसे नेटवर्क को खत्म करने के लिए मजबूत अंतरराष्ट्रीय दबाव और समर्थन अहम है.

चीनी साइबर अपराधी गिरोहों ने म्यांमार, कंबोडिया और लाओस में बड़े पैमाने पर स्कैम्स सेंटर चलाकर अपना कारोबार बढ़ाया है, जिन्हें स्थानीय मिलिशिया से संरक्षण प्राप्त है. ये घोटाले, अक्सर मानव तस्करी से जुड़े होते हैं, पीड़ितों को फर्जी नौकरी के प्रस्तावों का लालच देकर उनका शोषण करते हैं और उन्हें धोखाधड़ी की गतिविधियों में धकेल देते हैं. दुनिया भर में हजारों पीड़ित जाल में फंसे हुए हैं और कई कानूनी डर के कारण घर लौटने से कतराते हैं.

सागर लिखते हैं कि शुरुआत में देशभक्तिपूर्ण हैकिंग से प्रेरित चीनी साइबर अपराध एडवांस्ड तकनीक का इस्तेमाल करके फायदा आधारित उद्यमों में विकसित हुआ है. इस अंतरराष्ट्रीय खतरे से निपटने के लिए इन नेटवर्कों को नष्ट करने और होने वाले महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक नुकसान को दूर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, सख्त कानून लागू करने और पीड़ितों की सुरक्षा की जरूरत है.

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