मोदी सरकार किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का करेगी ऑडिट; किन लोगों के नाम कटेंगे?

अगर केंद्र सरकार की किसी भी योजना का पैसा आपके बैंक खाते में आता है तो सावधान हो जाइए आप ऑडिट के दायरे में हैं

crop payment via DBT for farmers
सांकेतिक तस्वीर

मोदी सरकार ने तमाम केंद्रीय कल्याणकारी योजनाओं के तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) प्राप्त करने वाले लाभार्थियों का व्यापक मूल्यांकन और आधार कार्ड पर आधारित KYC सत्यापन शुरू करने का निर्णय लिया है. इस अभियान को दिसंबर 2025 तक पूरा किया जाएगा.

इस प्रक्रिया के बाद जो डेटाबेस तैयार होगा, उसके आधार पर ही 1 अप्रैल, 2026 से सरकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों को पैसे का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में हो पाएगा. केंद्र सरकार की इस ऑडिट में जिन लाभार्थियों से संबंधित जानकारियों का सत्यापन नहीं होगा, उनके बैंक खातों में सरकारी योजनाओं का पैसा आना बंद हो जाएगा.

केंद्र सरकार के अधिकारियों का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य DBT योजनाओं की दक्षता बढ़ाना,  डेटा में अंतर को खत्म करना और योजनाओं को और प्रभावी बनाना है. ताकि अगर किसी लाभार्थी के पास गलत ढंग से सरकार के पैसे जा रहे हैं तो उसे रोका जा सके. DBT के तहत उज्ज्वला योजना, पीएम-किसान सम्मान निधि योजना, मुफ्त अनाज योजना, पीएम आवास योजना, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) जैसी केंद्र सरकार की प्रमुख योजनाएं शामिल हैं.

पिछले कुछ सालों में केंद्र और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले आर्थिक लाभ के लिए DBT का ही रास्ता अपनाया गया है. इसका परिणाम यह हुआ कि 2014 में जहां DBT के माध्यम से 7,000 करोड़ रुपये से अधिक का हस्तांतरण हुआ था, वहीं वित्त वर्ष 2024-25 में यह राशि बढ़कर 6.83 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. यानी दस सालों में तकरीबन 100 गुना वृद्धि दर्ज की गई.

केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने 2023 में DBT के फायदों को गिनाते हुए कहा था कि DBT के कारण केंद्र सरकार ने प्रमुख योजनाओं में 27 अरब डॉलर से अधिक की बचत हुई है, क्योंकि यह प्रणाली डुप्लीकेट और फर्जी लाभार्थियों को हटाने में मदद करती है. DBT के मामले से हर लाभार्थी के बैंक खाते में पहुंचने वाले पैसे का इलेक्ट्रॉनिक भुगतान भारत सरकार के पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) के माध्यम से होता है.

केंद्र सरकार ने अपने DBT मॉडल की इस सफलता को देखते हुए राज्यों को भी DBT नेटवर्क में शामिल होने और अपनी योजनाओं को इस मॉडल के तहत लागू करने के लिए लगातार प्रोत्साहित किया है. अभी स्थिति ये है कि विभिन्न राज्य सरकारों की तकरीबन 1,700 ऐसी योजनाएं हैं जो DBT नेटवर्क में शामिल हो गई हैं. लेकिन यह राज्यों की कुल योजनाओं का महज एक चौथाई ही है.

सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों का जो नया ऑडिट केंद्र सरकार करने जा रही है, उसमें वह राज्यों के साथ मिलकर वेरिफिकेशन का काम करने वाली है. सरकार का दावा है कि नए ऑडिट से कई बार जो फीडबैक मिलता है तो उससे न सिर्फ DBT ट्रांसफर की प्रक्रिया मजबूत बनती है बल्कि विभिन्न योजनाओं में आवश्यक बदलाव का रास्ता दिखता है. 

इस बारे में भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ''इस वेरिफिकेशन के दौरान प्राप्त जानकारी का उपयोग योजनाओं के प्रभाव का आकलन करने और जरूरत के मुताबिक उनके मानदंडों में संशोधन करने के लिए किया जाएगा. उदाहरण के लिए बीते वित्त वर्ष में तकरीबन 2.2 करोड़ लाभार्थियों ने 3 से 12 महीनों तक मुफ्त अनाज योजना का लाभ नहीं उठाया. इसका मतलब यह हो सकता है कि या तो डेटा में अंतर है या इतने लाभार्थियों को अब इस योजना के लाभों की जरूरत नहीं है. वेरिफिकेशन से हमें सही बात का पता चलेगा और फिर उसके आधार पर सरकार जरूरी कदम उठा पाएगी.''

लेकिन DBT लाभार्थियों की यह ऑडिट प्रक्रिया लाभार्थियों के लिए कुछ चुनौतियां भी लेकर आ सकती है. कई बार यह देखा गया है कि आधार में दर्ज जानकारी जैसे नाम, पता या जन्म तिथि में अगर कोई गलती हो तो वेरिफिकेशन का प्रोसेस फेल हो जाता है. ऐसे में लाभार्थी को आधार सेवा केंद्रों का बार-बार चक्कर लगाना पड़ता है. 

एक बड़ी समस्या बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन की है. इसके लिए आम तौर पर उंगलियों के निशान या आंखों की स्कैनिंग की जाती है. लेकिन यह देखा गया है कि उम्रदराज लोगों के फिंगरप्रिंट्स के वेरिफिकेशन में दिक्कतें आती हैं और इस वजह से पूरी प्रक्रिया असफल हो जाती है. ऐसी स्थिति में लाभार्थी योजनाओं के लाभ से वंचित हो जाता है. पहचान के कारण असफलता की शिकायतें आम हैं.

कम पढ़े-लिखे या दूरदराज के इलाकों में रहने वाले कई लाभार्थियों में जागरूकता और शिक्षा की कमी के कारण ऑडिट या KYC वेरिफिकेशन की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती. इससे वे समय पर वेरिफिकेशन नहीं करा पाते और सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचना बंद हो जाता है. स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रक्रिया की जानकारी समय पर या प्रभावी ढंग से न पहुंचाने से भ्रम की स्थिति भी कई बार जमीनी स्तर पर बन जाती है.

सबसे बड़ी समस्या यह है कि वेरिफिकेशन के लिए लाभार्थियों को बार-बार सरकारी कार्यालयों, बैंकों या आधार केंद्रों पर जाना पड़ सकता है. गरीबों और रोज की मजदूरी करने वाले लोगों के लिए समय और धन की इस बर्बादी से उन पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में आम तौर पर ऐसे केंद्र दूर होते हैं. इसलिए यह पूरी प्रक्रिया गांवों में रहने वाले लोगों के लिए बोझिल साबित होती है.

अगर वेरिफिकेशन समय पर पूरा नहीं होता या डेटा में कोई खामी दिखती है तो लाभार्थियों को DBT के तहत मिलने वाली राशि या लाभ अस्थायी रूप से रोक दिया जाता है. यह विशेष रूप से उन गरीब परिवारों के लिए मुश्किल होता है जो इन योजनाओं पर निर्भर हैं. 

वेरिफिकेशन प्रक्रिया प्रवासी मजदूरों के लिए अलग तरह की चुनौती लेकर आती है. आम तौर पर ये मजदूरी के लिए अपने गांव से दूर रहते हैं. आम तौर पर देखा गया है कि वेरिफिकेशन के लिए अपना काम छोड़कर वापस अपने गांव आना पड़ता है. इसमें इनका समय भी जाता है और इन पर खर्च का बोझ भी बढ़ता है.

Read more!