देश की कई स्टेट यूनिवर्सिटी चल रहीं बिना VC के! किस राज्य में क्या है हाल?
राज्य सरकारों के तहत काम करने वाले 20 से 30 फीसद ऐसे विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान हैं, जहां कुलपति या निदेशक की नियुक्ति लगातार टल रही है

उच्च शिक्षण संस्थानों के शीर्ष नेतृत्व के समय पर नियुक्ति के मामले में राज्यों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. इस संबंध में एक तो कोई ऐसा डेटा उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले कि कितने कुलपतियों की जगह राज्य विश्वविद्यालयों में खाली है. लेकिन शिक्षा विशेषज्ञों का दावा है कि सभी राज्य विश्वविद्यालयों को मिला लें तो 20 से 30 फीसद ऐसे संस्थान हैं, जहां कुलपति या संस्थान प्रमुख की नियुक्ति लंबित है.
इसकी वजहें भी मोटे तौर पर वही बताई जाती हैं, जिन वजहों से केंद्र सरकार के उच्च संस्थानों में प्रमुखों की नियुक्ति नहीं हो रही है. कुलपति या उच्च शिक्षण संस्थानों के निदेशक चयन की प्रक्रिया में राज्यों के राजनीतिक नेतृत्व समेत अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स शामिल हैं. इनमें कई बार किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन रही है और इस वजह से नियुक्तियों में लगातार देरी हो रही है.
लेकिन राज्यों में कुलपति की नियुक्ति में देरी की एक अलग वजह भी है. कुछ राज्यों में वहां की सरकार और राज्यपाल में कुलपतियों की नियुक्ति में टकराव की स्थिति भी पिछले कुछ समय से दिख रही है. कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर तमिलनाडु में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव न सिर्फ बढ़ा, बल्कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
पश्चिम बंगाल में भी इस विषय पर राज्यपाल और राज्य सरकार में टकराव रहा है. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. स्थिति तो ऐसी हो गई कि पिछले साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता में कुलपतियों की नियुक्ति के लिए एक समिति बनाई. इसके बाद पश्चिम बंगाल में कुलपतियों की नियुक्ति में तेजी और कई विश्वविद्यालयों में यह नियुक्ति हो पाई.
लेकिन अब भी 17 विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति का मामला लटका हुआ है. राज्यपाल की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक सीलबंद लिफाफे में दस्तावेज देकर बताया गया कि राज्य सरकार ने जिन नामों की सिफारिश की है, उन्हें राज्यपाल द्वारा क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है. इन सबके बीच नियुक्तियों का मामला लगातार टलता जा रहा है. अभी स्थिति ये है कि देश के पहले विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता भी बगैर फुल टाइम कुलपति के काम कर रहा है. प्रदेश के प्रतिष्ठित जाधवपुर विश्वविद्यालय में भी कुलपति का पद पिछले कुछ महीने से खाली है.
तमिलनाडु की स्थिति यह है कि प्रदेश के 20 में से 11 विश्वविद्यालय बगैर कुलपति के काम कर रहे हैं. इनमें चेन्नई का प्रतिष्ठित अन्ना विश्वविद्यालय भी शामिल है. इनमें कुछ तो ऐसे हैं जहां एक वर्ष से अधिक समय से कुलपति का पद खाली है. यह समस्या सिर्फ तमिलनाडु तक ही सीमित नहीं है बल्कि दूसरे राज्यों के विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को भी इसका सामना करना पड़ रहा है.
ओडिशा में मयूरभंज के महाराजा श्रीराम चंद्र भंज देव विश्वविद्यालय की स्थिति ये है कि यहां पिछले तकरीबन तीन साल से कुलपति की नियुक्ति नहीं हो पाई है. नियुक्ति में इस देरी को लेकर ओडिशा उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई है.
आंध्र प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों की स्थिति और भी अजीब है. पिछले साल जब वहां चंद्रबाबू नायडू की सरकार आई तो सरकार की तरफ से सभी राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति को इस्तीफा देने के लिए कहा गया. बाद में सरकार ने प्रदेश के 17 विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला. कुछ नियुक्तियां हुई हैं लेकिन अब भी कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं जिन्हें अपने कुलपति का इंतजार है.
राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में देरी की वजह से सबसे अधिक नुकसान छात्रों का हो रहा है. जनवरी, 2025 तक के आंकड़े बताते हैं कि पूरे देश में 495 राज्य विश्वविद्यालय हैं. इन राज्य विश्वविद्यालयों के साथ संबद्ध शैक्षणिक संस्थानों की संख्या 46,176 है. सबसे अधिक 43 राज्य विश्वविद्यालय कर्नाटक में हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तकरीबन 3.25 करोड़ विद्यार्थी राज्य विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं. यह संख्या केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों के मुकाबले काफी ज्यादा है. नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि पूरे देश में जितने छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई करते हैं, उनमें से तकरीबन 81 फीसद राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. ऐसे में अगर राज्य विश्वविद्यालय नेतृत्वविहीन रहते हैं तो इसका दूरगामी असर पड़ेगा.