कूनो नेशनल पार्क : चीतों के लिए तेंदुए कैसे बने बड़ा खतरा?
कूनो नेशनल पार्क में करीब 60-70 तेंदुए हैं, जो चीतों से कहीं ज्यादा हैं. जंगल में इन दोनों बिग कैट की भिड़ंत पूरी तरह रोकी नहीं जा सकती

प्रोजेक्ट चीता की तीसरी सालगिरह से ठीक पहले एक दुखद घटना हुई. कूनो नेशनल पार्क में एक मादा चीता मरी पाई गई, जिसे पार्क प्रशासन ने तेंदुए के हमले का शिकार बताया है.
करीब 20 महीने की यह चीता 15 सितंबर को मध्य प्रदेश के इस वाइल्डलाइफ सैंक्चुएरी में मरी हुई पाई गई. अधिकारियों का कहना है कि अफ्रीकी चीतों को तीन साल पहले रिजर्व में लाने के बाद यह पहली मौत है जो तेंदुए के हमले से हुई लगती है.
यह चीता ज्वाला की संतान थी, जो 2022 में नामीबिया से लाए गए पहले बैच की मादा चीतों में से एक है. ज्वाला ने दूसरी बार चार बच्चों को जन्म दिया था, उन्हीं में से एक यह मादा थी. अप्रैल में इसे जंगल में छोड़ा गया था और तब से यह अपने तीनों भाई-बहनों से अलग होकर स्वतंत्र रूप से रह रही थी. ज्वाला की पहली बार की संतानों में से अब सिर्फ एक ही चीता जिंदा है.
कूनो प्रशासन ने साफ कहा है कि खुले जंगल में घूमते चीतों के लिए तेंदुए सबसे बड़ा खतरा हैं, और यही वजह है कि इस जोखिम को प्रोजेक्ट चीता मैनेजमेंट प्लान में शुरुआत से ही शामिल किया गया था. जब चीतों को छोड़ने से पहले उनका एनक्लोजर बनाया जा रहा था, तब उस इलाके के सारे तेंदुओं को पकड़कर बाहर शिफ्ट कर दिया गया था. यहां तक कि मंदसौर के गांधीसागर सैंक्चुएरी से भी तेंदुए बाहर भेजे गए हैं क्योंकि यहां भी कूनो से कुछ चीतों को भेजा गया है.
अब सवाल यह है कि एनक्लोजर से बाहर आने के बाद क्या वाकई चीतों को तेंदुओं से बचाया जा सकता है? मध्य प्रदेश के वन विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अफ्रीका में भी बाकी सभी मांसाहारी जानवरों से ज्यादा तेंदुआ ही चीते का सबसे बड़ा दुश्मन होता है.
15 सितंबर की घटना से पहले कूनो में 25 चीते थे, जबकि पार्क में तेंदुओं की आबादी कहीं ज्यादा है, करीब 60-70 के आसपास. अधिकारियों ने बताया कि जो चीता मरी हुई पाई गई, उसे तेंदुए ने आंशिक रूप से खा भी लिया था. उसके गले में रेडियो कॉलर था, लेकिन मॉनिटरिंग टीम उसे विजुअल रेंज में नहीं रख पाई, वरना शायद दोनों के बीच झगड़े के वक्त कुछ दखल दिया जा सकता था.
प्रोजेक्ट चीता के इंचार्ज उत्तम शर्मा कहते हैं, “जंगल में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और इन्हें पूरी तरह रोका नहीं जा सकता.” उन्होंने बताया कि तेंदुओं की संख्या को एनक्लोजर वाले इलाकों में तो कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन खुले जंगल में ऐसा संभव नहीं है.
17 सितंबर को प्रोजेक्ट चीता की तीसरी सालगिरह थी. यह एक बेहद महत्वाकांक्षी ट्रांसकॉन्टिनेंटल प्रयास है, जिसमें करीब 75 साल बाद भारत में फिर से चीतों को बसाने की शुरुआत हुई. 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से आठ चीते कूनो लाए गए थे. इसके बाद फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते यहां लाए गए.
कूनो में फिलहाल 25 चीते हैं, जिनमें से नौ बड़े हैं (छह मादा और तीन नर) और 16 शावक हैं, जो यहीं पैदा हुए हैं. शुरुआत में इस प्रोजेक्ट को झटके भी लगे, खासकर तब जब एनक्लोजर में रहते हुए बीमारी से कुछ चीतों की मौत हो गई. लेकिन कुछ अच्छे पल भी आए. मादा चीतों ने अब तक छह बार शावकों को जन्म दिए हैं, जो यह दिखाता है कि उन्होंने भारत को अपना नया घर मानना शुरू कर दिया है.
दो नर चीतों को गांधी सागर सैंक्चुएरी में शिफ्ट किया गया है, ताकि देश में इनके लिए दूसरा घर भी तैयार हो सके.
सबसे बड़ी चुनौती रही है चीतों की मॉनिटरिंग, खासकर जब से उन्हें जंगल में आजाद किया गया. ये चीते अक्सर कूनो रिजर्व से बाहर निकल जाते हैं, कभी-कभी तो मध्य प्रदेश से भी बाहर चली जाती हैं. ऐसे में वन विभाग को अभियान चलाकर उन्हें ट्रैक करना पड़ता है, उन्हें बेहोश करना पड़ता है और फिर वापस लाना पड़ता है.