अगर 1947 में सरदार पटेल थोड़ा लेट हो जाते तो पीएम मोदी नहीं कर पाते लक्षद्वीप का दौरा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 जनवरी और 3 जनवरी को लक्षद्वीप के दौरे पर थे जहां पर उन्होंने1,150 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की आधारशिला रखी

लक्षद्वीप, समुद्र से घिरा भारतीय उपमहाद्वीप का एक छोटा सा हिस्सा. 32 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाला 36 द्वीपों का एक समूह, जो इसे देश का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश बनाता है. केरल से बस कुछ ही दूरी पर स्थित द्वीपों का यह समूह अपनी संपन्न मलयाली संस्कृति के लिए मशहूर रहा है. घुमक्कड़ों की बकेट लिस्ट में भी लक्षद्वीप का नाम ऊपर की तरफ लिखा हुआ होता है. लेकिन आज इसकी बात क्यों?
इसका जवाब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 जनवरी और 3 जनवरी को लक्षद्वीप के दौरे पर थे. यहां पर उन्होंने इन द्वीपों से जुड़े कई सारे पहलुओं पर एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की और 1,150 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की आधारशिला रखी. भले ही लोगों को नई दिल्ली से 2000 KM से भी ज्यादा दूरी पर बसे इस द्वीप समूह पर पीएम के दौरे से जुड़ी राजनीतिक अटकलबाजियां दिलचस्प लगती हों पर इसके भारत में शामिल होने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है.
लेकिन पहले थोड़ी सी बात पीएम मोदी के दौरे की. इस पर केंद्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेताओं का कहना है कि यह दिखाता है कि लक्षद्वीप की रणनीतिक रूप से भी क्या अहमियत है. भारत के लिए यह द्वीप इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि यह श्रीलंका और मालदीव दोनों से ही नजदीक है. इन दोनों ही देशों में पिछले कुछ सालों के दौरान चीन ने अपना अच्छा खासा दखल बढ़ाया है. वहीं अपने भाषण के दौरान भी पीएम ने लोगों से कहा कि मैंने आपको गारंटी दी है कि अगले 1,000 दिनों के अंदर आपको तेज इंटरनेट की सुविधा मिल जाएगी. आज कोच्चि-लक्षद्वीप सबमरीन ऑप्टिकल फाइबर प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया गया है. अब लक्षद्वीप में इंटरनेट 100 गुना ज्यादा स्पीड से उपलब्ध होगा.
अब वह दिलचस्प कहानी कि आखिर लक्षद्वीप भारत का हिस्सा कैसे बना. दरअसल जब अंग्रेजों ने भारत से वापस जाने का फैसला किया तो उस वक्त देश कई सारी रियासतों में विभाजित था. इन रियासतों के पास यह अधिकार था कि वे अपनी मर्जी से या तो भारत में शामिल हो जाएं, या पाकिस्तान के साथ मिल जाएं या फिर आजाद रहें. तब वल्लभभाई पटेल को इन रियासतों को भारत में मिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्होंने वी.पी. मेनन के साथ मिलकर 560 से भी ज्यादा रियासतों को भारत में मिला लिया. उस वक्त केवल हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ ही ऐसी रियासतें थीं जो भारत के साथ नहीं आई थीं.
इन तीन रियासतों के अलावा भारत के दक्षिणी कोने पर समुद्र के बीच स्थित लक्षद्वीप भी था जो भारत में शामिल नहीं हो पाया था. समुद्र के बीच में होने की वजह से यहां के लोगों का संपर्क 'मुख्यधारा' या यूं कह लें कि बाकी राज्यों के साथ नहीं था. भले ही यह इलाका पाकिस्तान की पहुंच से काफी दूर था, पर पटेल को ऐसा लगता था कि पाकिस्तान इस पर कब्जा जमाने की कोशिश कर सकता है.
ऐसे में उन्होंने बिना समय गंवाए लक्षद्वीप को भारत में मिलाने का 'मिशन' शुरू कर दिया. उन्होंने मुदालियार ब्रदर्स, अर्कोट रामासामी मुदलियार और अर्कोट लक्ष्मणस्वामी मुदलियार से कहा कि वे त्रावणकोर के लोगों के साथ तुरंत लक्षद्वीप जाएं और वहां पर भारतीय ध्वज तिरंगा फहरा दें.
पटेल का निर्देश था कि भारतीय सीमा से लगे द्वीपों पर तिरंगा फहरा दिया जाए. अगर पुलिस के पास हथियार नहीं है तो उनको लाठियों के साथ ही भेज दिया जाए. उनके इस आदेश को अमल में लाया गया और लक्षद्वीप पर तिरंगा फहरा दिया गया. कई सारी रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र मिलता है कि जब त्रावणकोर पुलिस उन जगहों पर झंडा लगा रही थी उसी वक्त पाकिस्तानी जहाज भी तेजी से लक्षद्वीप की तरफ बढ़ते हुए दिखाई दिए. हालांकि जब उन्होंने वहां पर भारत का झंडा देखा तो वे वापस लौट गए.
अब थोड़ी बात लक्षद्वीप के इतिहास के बारे में भी कर लेते हैं. यूटी एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ लक्षद्वीप की ऑफीशियल वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक इस द्वीप के शुरुआती इतिहास के बारे में लिखित जानकारी मौजूद नहीं है. बल्कि यहां के बारे में ज्यादातर जानकारी किंवदंतियों और लोककथाओं के आधार पर बताई जाती है. 1500 ईसा पूर्व के आसपास यहां पर मानव बस्तियों के होने का प्रमाण मिलता है. वहीं इस द्वीप पर सातवीं शताब्दी के आस पास मुस्लिमों का प्रवेश हुआ. अगर आधुनिक समय की बात करें तो 1956 में इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया.