‘अटर्ली बटर्ली’ अमूल गर्ल काल्पनिक है या शशि थरूर की बहन? क्यों चल रही है बहस
मार्केटिंग कंसल्टेंट डॉ. संजय अरोड़ा ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट के जरिए दावा किया कि अमूल गर्ल की प्रेरणा कांग्रेस नेता शशि थरूर की बहन की बचपन की एक फोटो से ली गई थी

देशवासियों को ‘‘अटर्ली बटर्ली डेलिशस’’ (Utterly Butterly Delicious) बटर खाने के लिए प्रेरित करने वाली मशहूर अमूल गर्ल अब अपने ही जन्म प्रमाणपत्र जैसे विवाद में फंस गई है. मार्केटिंग कंसल्टेंट डॉ. संजय अरोड़ा ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि अमूल गर्ल की प्रेरणा कांग्रेस नेता शशि थरूर की बहन शोभा थरूर श्रीनिवासन की बचपन की एक फोटो से ली गई थी, जब वे महज 10 महीने की थीं.
अरोड़ा के मुताबिक, 1960 के दशक में अमूल कैंपेन के क्रिएटर और एडवर्टाइजिंग लीजेंड सिल्वेस्टर डीकुन्हा पॉलसन बटर की ‘बटर गर्ल’ को टक्कर देने के लिए एक मैस्कॉट ढूंढ रहे थे. उन्होंने 712 से ज्यादा बच्चों की तस्वीरें देखने के बाद अपने दोस्त चंद्रन थरूर (शशि और शोभा थरूर के पिता) की मदद ली और बेबी शोभा की एक फोटो को चुन लिया. यह फोटो मशहूर फिल्ममेकर श्याम बेनेगल ने खींची थी और इसी से अमूल गर्ल के डिजाइन की प्रेरणा ली गई.
अरोड़ा के वीडियो ने इसे एक दिलचस्प कनेक्शन की तरह पेश किया. उन्होंने शोभा को ‘‘द क्वीन ऑफ पन्स’’ यानी ‘यमक अलंकार की मलिका’ कहा और इसे ‘‘किंग ऑफ वोकैबलरी’’ शशि थरूर से जोड़ा.
यह दावा तब और चर्चा में आया जब खुद शोभा ने एक्स पर जवाब दिया और अमूल से अपने परिवार के शुरुआती जुड़ाव को माना. उन्होंने लिखा, “हां, मैं पहली अमूल बेबी थी. हां, श्याम बेनेगल ने वे तस्वीरें खींची थीं. मेरी बहन स्मिता दूसरे कलर कैंपेन में थी. लेकिन क्या मैंने ‘अटर्ली बटर्लीगर्ल’ को इंस्पायर किया, यह मैं नहीं कह सकती.”
इसके बाद अमूल ने एक स्पष्टीकरण जारी किया. कंपनी ने कहा, “अमूल गर्ल का इलस्ट्रेशन शोभा थरूर से प्रभावित नहीं था. उसे मिस्टर सिल्वेस्टर डीकुन्हा और इलस्ट्रेटर मिस्टर यूस्टेस फर्नांडीस ने बनाया था.” अमूल के बयान में जोर देकर कहा गया कि यह मैस्कॉट पूरी तरह से क्रिएटिव इन्वेंशन था, जिसे पॉलसन के मैस्कॉट का जवाब देने के लिए मजाकिया और शरारती अंदाज में डिजाइन किया गया था. अमूल गर्ल, कंपनी ने साफ किया कि यह हाथ से बनाया गया क्रिएशन था और किसी असली बच्चे से उसकी सीधी समानता नहीं थी.
अगर शोभा की पोस्ट और कंपनी के बयान को साथ रखकर देखें तो ऐसा नहीं लगता कि तथ्यों को लेकर कोई बड़ा विरोधाभास है. असल टकराव इस बात पर है कि इलस्ट्रेटर फर्नांडीस को क्या प्रेरणा मिली होगी, यानी इंटरप्रिटेशन का फर्क है, न कि ठोस दावों का. शोभा का एक्स पर दिया गया संतुलित जवाब अरोड़ा के दावे से बिल्कुल अलग था. शोभा की पोस्ट के बाद अरोड़ा ने अपनी बात और जोरदार ढंग से दोहराते हुए लिखा, “देखा दोस्तो, खुद शोभा थरूर श्रीनिवासन ने इसे माना और सराहा है.”
वैसे थरूर बहनों के पहले अमूल ऐड्स में दिखने और इस तरह अमूल गर्ल के इलस्ट्रेशन को प्रेरित करने की संभावना का जिक्र पहले भी हो चुका है. 2023 में एक मशहूर मलयालम अखबार ने अमूल के लंबे समय तक चलने वाले ऐड कैंपेन में थरूर बहनों की भूमिका पर लिखा था. 1966 में बने इस इलस्ट्रेशन पर आज भी चल रही बहस यह दिखाती है कि भारत में इस काल्पनिक किरदार की कितनी बड़ी सांस्कृतिक अहमियत हैः एक ऐसा कैरेक्टर जो 2025 में भी किसी सोशल मीडिया पोस्ट पर लाखों व्यूज बटोर सकता है.
अमूल ने दिवंगत डॉ. वर्गीज कुरियन की अगुवाई में एडवर्टाइजिंग ऐंड सेल्स प्रमोशन (एएसपी) एजेंसी को बटर ब्रांड के लिए कैंपेन बनाने की जिम्मेदारी दी थी. डॉ. कुरियन चाहते थे कि मैस्कॉट ऐसा हो जो आसानी से बनाया जा सके और लोगों को तुरंत याद रह जाए, ताकि हाथ से पेंट किए जाने वाले आउटडोर होर्डिंग्स पर अच्छा लगे. इसी सोच के तहत डीकुन्हा और आर्ट डायरेक्टर फर्नांडीस ने उस मशहूर इमेज को गढ़ा—लाल पोल्का-डॉट वाली फ्रॉक, नीले बाल और हाफ-पोनी वाली शरारती लड़की.
स्लोगन ‘अटर्ली बटर्ली डेलिशस’ जिसे डीकुन्हा ने अपनी पत्नी निशा की मदद से गढ़ा था, एक सांस्कृतिक सनसनी बन गया. अमूल गर्ल की पहली झलक मुंबई के लैम्प-पोस्ट्स पर दिखी, टैगलाइन थीः ‘‘गिव अस दिस डे आवर डेली ब्रेडः विद अमूल बटर.’’ देखते ही देखते उसने लोगों की कल्पना को अपने काबू में कर लिया.
इस कैंपेन की असली ताकत इसके टॉपिकल (सामयिक) ह्यूमर में थी, जहां अमूल गर्ल राजनीति से लेकर बॉलीवुड तक हर मुद्दे पर मजेदार और शरारती टिप्पणी करती थी. दशकों में उसने भारतीय समाज का आईना बनकर जगह-जगह पहचान बनाई. उसे 2007 में ‘एशिया का सबसे पसंदीदा मैस्कॉट’ का खिताब मिला और अंतरराष्ट्रीय पत्रिका टाइम व अखबार द गार्डियन जैसे इंटरनेशनल मीडिया में भी जगह बनाई.
अमूल गर्ल ने अतीत में कई विवाद भी झेले हैं, कभी सुरेश कलमाड़ी या ममता बनर्जी जैसे नेताओं का मजाक उड़ाने वाले ऐड्स पर राजनैतिक नाराजगी झेली, तो कभी शिवसेना जैसी पार्टियों से ‘सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील’ टैगलाइन पर धमकियां भी मिलीं. फिर भी, लगभग छह दशकों तक उसका प्रासंगिक, मजाकिया और लोगों की पसंद बने रहना उसके क्रिएटर्स की गजब की क्रिएटिविटी और समझदारी को दिखाता है.