मुख्य चुनाव आयुक्त पर चलेगा महाभियोग! कांग्रेस समेत विपक्ष की क्या है तैयारी?
इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि कांग्रेस और विपक्षी दल मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला सकती है. लेकिन, क्या ये सच है?

17 अगस्त 2025 को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने दो अन्य चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक मौका ऐसा आया, जब ज्ञानेश कुमार ने गुस्से में तमतमाते हुए नाम लिए बिना आरोप लगाने वालों को चेतावनी दे डाली. उन्होंने कहा, "आरोप लगाने वालों को 7 दिनों के भीतर हलफनामा दायर करना होगा, नहीं तो देश से माफी मांगनी होगी."
चुनाव आयुक्त के सख्त लहजे के बावजूद कांग्रेस अब तक हलफनामा दायर करने या माफी मांगने के विचार में नहीं है. मुख्य चुनाव आयुक्त के इस बयान के बाद एक चर्चा जरूर जोर पकड़ रही है, वह ये है कि कांग्रेस जल्द ही मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके के पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाने वाली है. लेकिन, इस बात में कितनी सच्चाई है और क्या ज्ञानेश कुमार को पद से हटाना संभव है? इन सवालों के जवाब जानते हैं.
क्या सच में कांग्रेस या विपक्षी दल मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने वाली है?
हां इसकी संभावना है. सूत्रों के अनुसार, विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ कथित 'वोट चोरी' के आरोप में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है. कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी कहा, "हम इसपर बहुत जल्द फैसला लेंगे."
क्या मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पदों से हटाया जा सकता है?
भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया का जिक्र भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324(5) में किया गया है. यह प्रक्रिया बेहद मुश्किल है ताकि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके. हालांकि, संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके पद े हटाने की प्रक्रिया के लिए 'महाभियोग' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है.
इस कानून के मुताबिक, चुनाव आयुक्तों को उनके पद से हटाने का आधार भी मजबूत होना जरूरी है. तय नियमों के मुताबिक केवल सिद्ध कदाचार यानी दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार, सत्यनिष्ठा की कमी या नैतिक पतन और अक्षमता की स्थिति में ही उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को हटाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनानी होगी?
भारतीय संविधान में जिक्र नियमों के मुताबिक मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया काफी हद तक भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया से मिलती-जुलती है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को हटाने के लिए संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाती है, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान है.
इस प्रक्रिया में संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. प्रस्ताव के पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो अंतिम आदेश जारी करते हैं.
इस प्रस्ताव के पास होने के लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में विशेष बहुमत (Special Majority) से प्रस्ताव पारित करना आवश्यक है. इसके अलावा प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों की संख्या का बहुमत 50 फीसद से अधिक और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई (2/3) से अधिक का समर्थन होना चाहिए.
क्या अन्य दो चुनाव आयुक्तों के खिलाफ भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है?
अन्य चुनाव आयुक्तों (ECs) को हटाने की प्रक्रिया केवल मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर ही शुरू की जा सकती है. यह प्रक्रिया CEC की तुलना में कम जटिल है और इसमें संसद की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है. मुख्य आयुक्त और अन्य आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 में इनकी नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया को साफ-साफ जिक्र है.
कांग्रेस के लिए ज्ञानेश कुमार को उनके पद से हटाना कितना आसान है?
नहीं, कांग्रेस के लिए अकेले दम पर संभव नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रस्ताव को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित करना होता है. इसका मतलब ये हुआ कि लोकसभा में कुल 543 सदस्यों में से कम से कम 272 का समर्थन और उपस्थित व मतदान करने वालों में से दो-तिहाई. इसी तरह राज्यसभा में कमसे-कम 123 सांसदों का प्रस्ताव के समर्थन में मतदान जरूरी है.
कांग्रेस के पास फिलहाल लोकसभा में 99 और राज्यसभा में 26 से 30 सीटें हैं. ऐसे में उसे बाकी विपक्षी दलों या सत्ता पक्ष के सांसदों के समर्थन की भी जरूरत होगी.
अगर ज्ञानेश को हटाना मुश्किल है तो कांग्रेस प्रस्ताव क्यों लाएगी?
संभव है कि यह जानते हुए कि प्रस्ताव सदन में पास होना संभव नहीं है, इसके बावजूद कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ सदन में पेश कर दे. इस तरह के प्रस्ताव के जरिए कांग्रेस मुख्य चुनाव आयुक्त और इस स्वतंत्र संवैधानिक संस्था पर दबाव बनाने की भी कोशिश करेगी. ताकि भविष्य में इस तरह की खामियों पर चुनाव आयोग गंभीर रहे. इस तरह के प्रस्ताव के सदन में आने से चुनाव आयोग की साख पर भी असर पड़ना तय है.
क्या कभी पहले किसी मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव आया है?
नहीं, अभी तक किसी चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नहीं आया है. हालांकि, चुनाव आयुक्त को लेकर विवाद होता रहता है.
1989 में इसी तरह का एक विवाद हुआ. माना जाता है कि यह घटना तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त आर.वी.एस. पेरी शास्त्री और राजीव गांधी सरकार के बीच तनाव के कारण हुआ था.
1989 तक चुनाव आयोग आमतौर पर एकल-सदस्यीय निकाय था, जिसमें केवल CEC ही होता था. इसी साल भारत में नौवां लोकसभा चुनाव होने वाला था. यह समय राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार के लिए राजनीतिक रूप से काफी संकट वाला था, क्योंकि बोफोर्स घोटाले, श्रीलंका में LTTE जैसे मुद्दों पर उनकी सरकार घिर गई थी.
इसी समय 16 अक्टूबर 1989 को राजीव गांधी सरकार ने एस.एस. धनोआ और वी.एस. सिगेल को दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया. सरकार के जरिए की जाने वाली इस नियुक्ति पर राष्ट्रपति का मुहर लगा था. बाद में वीपी सिंह की सरकार के समय इस नियुक्ति का जोरदार तरीके से विरोध मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने किया था.
परिणाम ये हुआ कि सरकार को झुकना पड़ा और 1990 में राष्ट्रपति ने इन दोनों की नियुक्ति को रद्द कर दिया. यह रद्दीकरण CEC टी.एन. शेषन के विरोध के बाद हुआ था, लेकिन यह हटाने की प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि प्रशासनिक निर्णय था.
इस मामले में धनोआ ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने माना कि राष्ट्रपति को पदों को बनाने या समाप्त करने का अधिकार है.