ग्रेट निकोबार को हांगकांग की तर्ज पर विकसित करना क्या इस द्वीप के लिए ही खतरनाक है?

भारत सरकार ग्रेट निकोबार द्वीप पर नौ अरब डॉलर इनवेस्ट करने की योजना पर काम कर रही है. सरकार इस द्वीप को विशाल सैन्य और व्यापार केंद्र के तौर पर विकसित करना चाहती है

सरकार ग्रेड निकोबार आईलैंड को हांगकांग के तर्ज पर विकसित करना चाहती है
ग्रेट निकोबार

भारत के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में पड़ने वाला अंडमान-निकोबार द्वीप समूह हमेशा से ही सैलानियों के फेवरेट डेस्टिनेशंस में शामिल रहा है. इसकी एक सबसे बड़ी वजह है इसकी कुदरती सुंदरता. इसी द्वीप समूह का एक हिस्सा है ग्रेट निकोबार आईलैंड.

लेकिन इस आईलैंड के वजूद पर अब एक बड़ा खतरा भी मंडरा रहा है. इसकी वजह भी खासी हैरान कर देने वाली है. दरअसल भारत सरकार इस आईलैंड को हांगकांग की तर्ज पर डेवलप करना चाहती है. इसके लिए सरकार भारी निवेश करने जा रही है.

लेकिन सरकार के इस कदम पर पर्यावरण विशेषज्ञ सवाल भी उठा रहे हैं. उनका कहना है कि इस कदम से इस आईलैंड के पर्यावरण को काफी नुकसान हो सकता है और यहां के मूल निवासियों के विलुप्त होने का खतरा भी बढ़ सकता है.

भारत सरकार ग्रेट निकोबार द्वीप पर नौ अरब डॉलर इनवेस्ट करने की योजना पर काम कर रही है. सरकार इस द्वीप को विशाल सैन्य और व्यापार केंद्र के तौर पर विकसित करना चाहती है. लेकिन पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञ इन प्रोजेक्ट्स को ग्रेट निकोबार द्वीप समूह की पारिस्थितिकी के लिए खतरे की घंटी के तौर पर देख रहे हैं.

वहीं इस प्रोजेक्ट से जुड़े सरकारी अधिकारियों की दलील है कि हिंद महासागर में चीन के बढ़ते दखल को रोकने के लिए यह जरूरी कदम है. समुद्र में इसकी स्थिति भी इसे सुरक्षा और व्यापार के लिहाज से काफी अहम बनाती है.

निकोबार द्वीप समूह भारत की मुख्य जमीन से करीब 1,800 किलोमीटर दूर पूरब की तरफ स्थित है. साथ ही इस द्वीप समूह से म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं.

अपने प्रोजेक्ट में भारत सरकार इस द्वीप समूह पर एक इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल, एक एयरपोर्ट, एक गैस, डीजल और सोलर एनर्जी पर चलने वाला पावर प्लांट और एक ग्रीनफील्ड टाउनशिप को डेवलप करना चाहती है.

पर्यावरणविद् ऐसा मानते हैं कि इन प्रोजेक्ट्स के बनने के बाद द्वीप की आबादी जो अभी महज 8 हजार है वह लाखों में पहुंच सकती है. हालांकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट्स से इस द्वीप के साथ देश की प्रगति के रास्ते भी खुल जाएंगे. इस प्रोजेक्ट की तारीफ में इसे भारत का हांग-कांग प्रोजेक्ट भी कहा जा रहा है.

भारत के पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस प्रोजेक्ट के बारे में मीडिया से बातचीत में कहा है कि सरकार इस द्वीप पर विकास से जुड़े कामों को आगे बढ़ाने चाहती है और जो भी लोग इस वजह से पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं जाहिर कर रहे हैं, सरकार ने उनसे भी बात कर ली है.

हालांकि इस योजना पर नजर रखने वाले आलोचक सरकार की बातों से सहमत नजर नहीं आते. उनका तर्क है कि विकास के इन कामों में लाखों पेड़ों की बलि भी चढ़ाई जाएगी. जिससे इस द्वीप के पर्यावरण को काफी नुकसान झेलना होगा.

इसके अलावा कई दुर्लभ समुद्री जीवों का जीवन भी दांव पर लगेगा. पर्यावरण से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाली संस्था इंवॉर्मेंट इंपैक्ट असेसमेंट यानी ईआईए ने प्रोजेक्ट के चलते मूंगा चट्टानों के नष्ट होने की चेतावनी भी दी है. इसके अलावा यहां की जैव विविधता के खत्म हो जाने की चेतावनी भी दी गई है.

इसके अलावा लंदन स्थित मानवाधिकार संगठन 'सर्वाइवल इंटरनेशनल' का इस प्रोजेक्ट पर कहना है कि इसकी वजह से द्वीप का शोप्पेन समुदाय पूरी तरह से विलुप्त भी हो सकता है. इस जनजाति की आबादी महज 300 ही है.

वहीं इस प्रोजेक्ट पर कई सारे पर्यावरण स्कॉलर्स ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखते हुए इसे रुकवाने का आग्रह भी किया है. अपने पत्र में इन लोगों ने प्रोजेक्ट की वजह से द्वीप पर पड़ने वाले असर के बारे में आगाह भी किया है.

Read more!