एयर इंडिया फ्लाइट हादसे की शुरुआती जांच रिपोर्ट एक डरावना खुलासा भी करती है!

यह जांच रिपोर्ट हालांकि अंतिम निष्कर्ष नहीं है, फिर भी जांच के बाद तैयार 15 पेज की यह रिपोर्ट कुछ स्पष्ट संकेत देती है और कई मुश्किल सवाल भी खड़े करती है

Air India Crash
बाएं - विमान का फ्यूल कंट्रोल स्विच, दाएं - अहमदाबाद के मेडिकल हॉस्टल पर गिरा प्लेन. (फाइल फोटोः PTI)

अहमदाबाद में पिछले माह एअर इंडिया की उड़ान एआइ171 के उड़ान भरते ही इमारत से टकराने की घटना दुनिया में सबसे बड़ी विमान हादसों में एक है. यह बात दीगर है कि छह साल पहले दबे-छिपे ढंग से ऐसे ही किसी विमान हादसे की संभावना को लेकर आगाह किया जा चुका था. 

दिसंबर 2018 में अमेरिकी संघीय उड्डयन प्रशासन (एफएए) के इंजीनियरों ने विमान के एक ऐसे हिस्से को लेकर एक परामर्श जारी किया था जिसकी ज्यादातर पायलट शायद ही कभी चिंता करते हैं. यह चेतावनी बोइंग के कुछ वाइड-बॉडी जेट विमानों के इंजन में ईंधन आपूर्ति नियंत्रित करने वाले लीवर को ‘रन’ स्थिति में मजबूती से लॉक करने के लिए डिजाइन किए गए छोटे और स्प्रिंग वाले लैच से जुड़ी थी.

एफएए की चिंता खास तरह की और डरावनी थी. इसके मुताबिक, कुछ परिस्थितियों में लैच खुद-ब-खुल खुल सकता है. और, यह तंत्र विफल होने  की स्थिति में कॉकपिट संचालन की सामान्य गतिविधि भी लीवर पीछे धकेल सकती है, जिससे विमान इंजनों के सही ढंग से काम करते रहने के लिए जरूरी ईंधन की आपूर्ति बंद हो सकती है. परामर्श बुलेटिन में निरीक्षण की सलाह तो दी गई थी लेकिन अनिवार्य नहीं बनाया गया था. इस सलाह को लेकर वैश्विक विमानन रखरखाव नियमों के संबंध में कुछ फुसफुसाहट तो हुई लेकिन इसकी जोरदार गूंज 12 जून के हादसे के बाद ही सुनाई दी.

लंदन जाने वाली एअर इंडिया बोइंग 787 ड्रीमलाइनर उड़ान की कमान दिवंगत कैप्टन सुमित सभरवाल के हाथ में थी. विमान हादसे पर 15 पेज की प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक, एयरलाइन ट्रांसपोर्ट पायलट लाइसेंस (एटीपीएल) धारी 56 वर्षीय सभरवाल को करीब 15,638 घंटे विमान उड़ाने का अनुभव था, जिसमें ड्रीमलाइनर पर 8,596 घंटे का उड़ान अनुभव भी शामिल था. उनका साथ दे रहे थे फर्स्ट ऑफिसर क्लाइव कुंदर, जिनके पास कमर्शियल पायलट लाइसेंस था और 3,403 घंटों का उड़ान अनुभव था. इसमें 1,128 घंटे बोइंग 787 विमान पर उड़ान का अनुभव शामिल था.

यह बात पायलट समुदाय के गले नहीं उतर रही कि इतनी दक्षता और अनुभव रखने वाले दोनों पायलट उड़ान भरते समय इंस्ट्रूमेंटल पैनल में एक बेहद अहम हिस्सा माने जाने वाले ईंधन नियंत्रण स्विच को गलती से दबा सकते हैं. 2013 में आपूर्ति के बाद से 41,800 घंटे से अधिक उड़ान भर चुका यह विमान पूरी तरह से उड़ान योग्य होने की प्रामाणिकता हासिल कर चुका था. उसे आखिरी बार दुर्घटना से ठीक तीन हफ्ते पहले ही इसके लिए सर्टिफाई किया गया था.

बहरहाल, एफएए ने 2018 में अपने परामर्श में कहा था, “बोइंग कंपनी को मॉडल 737 विमान ऑपरेटरों से रिपोर्ट मिली थी कि ईंधन-नियंत्रण स्विच लॉकिंग सुविधा के बिना लगाए गए हैं.” इसमें विस्तार से बताया गया, “ईंधन-नियंत्रण स्विच में एक लॉकिंग सुविधा होती है जो अनजाने में ईंधन आपूर्ति और ईंधन कट-ऑफ स्थिति के बीच अनपेक्षित बदलाव को रोकती है. यानी स्विच ऑन या ऑफ करने की स्थिति के लिए किसी भी तरह का बदलाव आसानी से नहीं हो सकता. लॉकिंग सुविधा के कारण एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाने के लिए पायलट का स्विच ऊपर उठाना आवश्यक है. यदि लॉकिंग सुविधा खराब है तो स्विच को उठाए बिना उसे एक स्थिति से दूसरे में लाया जा सकता है, और इसमें अनजाने में स्विच अपने आप बदलने का खतरा होगा. अगर स्विच अनजाने में एक स्थिति से दूसरी स्थिति में चला गया तो अनपेक्षित नतीजे सामने आ सकते हैं, जैसे उड़ान के दौरान इंजन बंद होना.”

उड़ान एआइ-171 के मामले में विमान के डिजिटल उड़ान डाटा रिकॉर्डर (डीएफडीआर) और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (सीवीआर) में दर्ज क्रम बहुत ही संक्षिप्त है. 08:08:35 यूटीसी (यूनिवर्सल टाइम कोऑर्डिनेटेड) पर यानी भारतीय मानक समयानुसार दोपहर करीब 1:38 बजे ड्रीमलाइनर 155 नॉट की गति से घूमा. चार सेकंड बाद यह हवा में था. फिर, एक ही सेकंड में दोनों इंजन ईंधन कट-ऑफ स्विच अचानक 'रन' से 'कट-ऑफ' में आ गए. और, इंजन पैरामीटर तुरंत बदलने लगे.

सीवीआर कॉकपिट के सन्नाटेभरे माहौल का ब्योरा सामने लाता है. कैप्टन सभरवाल एकदम चिंता से भरी तीखी आवाज में कहते हैं, “इंजन बंद क्यों हो गए?” इस पर फर्स्ट ऑफिसर कुंदर का जवाब था, “मैंने कुछ नहीं किया.” मलबे की जांच के दौरान दोनों थ्रस्ट लीवर निष्क्रिय स्थिति में पाए गए, जबकि एन्हांस्ड एयरबोर्न फ्लाइट रिकॉर्डर (ईएएफआर) डाटा दर्शाता है कि विमान के इमारत से टकराने तक वे टेक-ऑफ़ थ्रस्ट यानी आगे की स्थिति में ही रहे. इसमें यह भी पाया गया कि दोनों ईंधन-नियंत्रण स्विच 'रन' स्थिति में थे.

उड़ान एआइ-171 में 30 सेकंड के भीतर जो कुछ हुआ, उसने भौतिकी की सारी धज्जियां उड़ाकर रख दीं. विमान का रैम एयर टर्बाइन (आरएटी) स्वचालित रूप से सक्रिय हो गया, और एक छोटा प्रोपेलर न्यूनतम हाइड्रोलिक और विद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिए नीचे निकलकर चलने लगा. सहायक विद्युत इकाई का इनलेट डोर खुल गया क्योंकि इसका ऑटो-स्टार्ट क्रम सक्रिय हो गया था. इंजन-1 किसी तरह फिर सक्रिय हुआ, और उसकी गति फिर से ऊपर की ओर हो गई. लेकिन इंजन-2 किसी भी तरह से सक्रिय नहीं हो सका और बार-बार स्वचालित ईंधन-प्रवाह कमांड के बावजूद उसकी गति में लगातार गिरावट आती रही.

ऊंचाई पर पर्याप्त थ्रस्ट न मिलने से जेटलाइनर एक उड़ता ताबूत बन गया.  08:09:05 यूटीसी (भारतीय मानक समय के मुताबिक, दोपहर 1:39 बजे) पर एयर ट्रैफिक कंट्रोल रेडियो पर एक “मेडे” की आवाज गूंजी.  कुछ ही सेकंड बाद, ईंधन से परिपूर्ण उड़ान एआइ-171 अहमदाबाद हवाईअड्डे के ठीक बाहर एक घनी आबादी वाले रिहायशी इलाके में थी. इमारत से टक्कर और उसके बाद उठे आग के गोले विनाशकारी थे.

300 मीटर से भी ज़्यादा दूरी तक बिखरा मलबा हादसे की भयावह कहानी बयां कर रहा था. पेड़ों को चीरते हुए सेना चिकित्सा कोर परिसर में घुसा विमान एक छात्रावास की उत्तर-पूर्वी दीवार ध्वस्त करके दो हिस्सों में बंटने से पहले पांच रिहायशी ब्लॉक तबाह कर चुका था. इसका वर्टिकल स्टेबलाइजर पहली टक्कर वाली जगह से 60 मीटर की दूरी पर गिरा था;  इंजन और लैंडिंग गियर सड़कों और इमारतों में धंसे नजर आए. विमान में सवार एक यात्री को छोड़कर सभी 241 लोग मारे गए, जबकि जमीन पर 19 लोगों ने इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवाई.

हादसे के बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) की सहायता के साथ सरकारी विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआइबी), अमेरिकी राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (एनटीएसबी), बोइंग और इंजन निर्माता कंपनी जीई एविएशन के जाँचकर्ताओं की टीमें घटनास्थल पर पहुंचीं. ड्रोन ने क्षति की भयावहता को कैमरे में कैद किया. महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आईं: फ्लैप हैंडल पांच डिग्री पर थे; लैंडिंग गियर लीवर नीचे की स्थिति में था, जैसा टेक-ऑफ के दौरान होता है. वहीं, यांत्रिक नियंत्रण लीवर पूरी तरह आगे की स्थिति में जाम पाए गए.

इससे डीएफडीआर की जानकारी की पुष्टि हुई, जो बताती है कि उड़ान के अंतिम मिलीसेकंड तक पूरी शक्ति नीचे की ओर सक्रिय थी. रखरखाव का ब्योरा बताता है कि इसके थ्रॉटल-कंट्रोल मॉड्यूल दो बार बदले गए थे, एक बार 2019 में और फिर 2023 में. हालांकि, इस ब्योरे में लैच को लेकर किसी खराबी की सूचना दिए जाने के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी.

सबसे अहम बात यह है कि दोनों बार थ्रॉटल-कंट्रोल मॉड्यूल बदलने के दौरान एफएए के 2018 के परामर्श के अनुरूप विशिष्ट निरीक्षण की कोई जरूरत नहीं समझी गई. चूंकि एफएए की कार्रवाई अनिवार्य उड़ान योग्यता निर्देश नहीं थी, इसलिए इसे लागू करने का काम ऑपरेटर के विवेक पर ही छोड़ दिया गया था. एअर इंडिया ने एक बयान में कहा, “हम एएआइबी और अन्य अधिकारियों को उनकी जांच में पूर्ण सहयोग देना जारी रखेंगे. जांच की चूंकि अभी जारी है इसलिए हम विशिष्ट विवरणों पर टिप्पणी करने में असमर्थ हैं और यह काम एएआइबी पर छोड़ते हैं.”

दुर्घटना पर प्रारंभिक रिपोर्ट, दोषारोपण के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता देने के अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (आइसीएओ) के सिद्धांत का पालन करते हुए किसी पर उंगली उठाने से बचती है. यह फॉरेंसिक जांच कार्य को रेखांकित करती है: बरामद लैच और स्विच का विस्तृत लैब विश्लेषण; ईंधन के नमूने और इंजन के पुर्जे; 49 घंटे का उड़ान डेटा और दो घंटे के कॉकपिट ऑडियो की गहन जांच; तनाव की स्थिति में लैच की क्षमता की जांच संबंधी सिमुलेशन; अचानक थ्रस्ट क्षति के दौरान पूरी प्रणाली पर होने वाले असर का अध्ययन; और टेक-ऑफ जैसे महत्वपूर्ण चरणों के दौरान मानव-मशीन इंटरफेस का मूल्यांकन.

विमान और जमीन पर अपने परिजनों को हमेशा के लिए खो देने वाले सैकड़ों परिवारों के लिए उड़ान एआइ-171 हादसे की जांच का कोई एकदम ठोस नतीजा सामने न आना एक कड़वी सच्चाई है. लेकिन आखिरकर यह सामने तो आएगा ही. हालांकि, विमानन सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि जांच नतीजे तभी सार्थक होंगे जब सजा के बजाय इसे आगे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने में इस्तेमाल किया जाए. जैसा एक पूर्व पायलट ने कहा, “अगर इस तरह लैच की खराबी बेहद महत्वपूर्ण समय में दोनों इंजन बंद कर सकती है तो आपको यह समझना चाहिए कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ.” क्योंकि यह जानना इन विमानों के हर ऑपरेटर और उनमें सवार हर यात्री का अधिकार है.

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