पाकिस्तान की नदियों में पानी कितना घटा-बढ़ा? सैटेलाइट से क्या दिखा?

भारत के ‘सिंधु जल समझौता’ (IWT) स्थगित करने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि इसका पाकिस्तान में बहने वाली नदियों पर तुरंत क्या असर दिख रहा है

भारत ने सिंधु जल समझौता स्थगित किया
भारत ने सिंधु जल समझौता स्थगित किया

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ‘सिंधु जल समझौता’ (IWT) को स्थगित कर दिया. इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर कई भारतीय यूजर्स ये दावा कर रहे हैं कि पाकिस्तान में नदियां सूख रही हैं.

वहीं, कई पाकिस्तानी यूजर्स ने दावा किया है कि भारत ने झेलम नदी का पानी अचानक छोड़ दिया, जिससे PoK में बाढ़ की स्थिति बन गई. हालांकि, वास्तविकता कुछ और है.

‘सिंधु जल समझौता’ स्थगित होने के बावजूद क्या पाकिस्तान की नदियों में भारत से होकर पानी बह रही है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने आधिकारिक डेटा और सैटेलाइट इमेज का इस्तेमाल किया.

जलाशय और नदी के बीच में नजर आ रहे छोटे-छोटे धब्बे बादल हैं. अलग-अलग दिन चेनाब के पानी के प्रवाह में कोई बदलाव नहीं है.

इस रिसर्च में ये पता चला कि 'सिंधु जल समझौता' के स्थगित होने के बावजूद 30 अप्रैल तक पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु, चेनाब और झेलम नदियों में पानी पहले की तरह अपने सामान्य रफ्तार से बह रही हैं. पाकिस्तान में बहने वाली इन तीनों ही नदियों में भारत से होकर ही पानी जाती हैं.

इसका मतलब यह भी नहीं है कि भारत के इस कदम का पाकिस्तान पर कोई असर नहीं होगा. इन पहाड़ी नदियों के पानी का प्रवाह एक जैसा नहीं होने के कारण कभी इन नदियों में पानी काफी कम हो जाता है, जबकि अगले ही पल तेज प्रवाह बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर देती है.

चेनाब नदी का जल प्रवाह

इससे निपटने के लिए भारत सरकार पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ ‘हाइड्रोलॉजिकल डेटा’ शेयर करता है. हालांकि, ‘सिंधु जल समझौता’ स्थगित होने की वजह से भारत ने ये डेटा शेयर करना बंद कर दिया है. ऐसे में इन नदियों का प्रवाह पाकिस्तान की सिंचाई प्रणाली, कृषि और बाढ़ प्रबंधन में अनिश्चितता पैदा कर सकता है.

इंडिया टुडे ने तीनों नदियों (सिंधु, चेनाब और झेलम) पर भारत में बने आखिरी बांध और पाकिस्तान में बने पहले बांध पर जमा पानी के डेटा पर रिसर्च की है. इसके जरिए नदी के जल भंडारण स्तर या चौड़ाई में होने वाले बदलाव को जानने की कोशिश की गई.

झेलम नदी का जल प्रवाह

हमारी टीम यह पता करना चाहती थी कि अगर भारत जल समझौता स्थगित होने के बाद अपने बांधों से कम पानी छोड़ता है, तो पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदी में पानी का बहाव कम होना चाहिए और पाकिस्तान की ओर बने पहले बांध में भी जलस्तर कम होना चाहिए. इसके अलावा भारत की ओर उस नदी पर बने बांध में पानी का स्तर बढ़ने के साथ ही भारत की ओर नदी के क्षेत्र में विस्तार होना चाहिए.

पाकिस्तान के सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण द्वारा जारी डेटा के मुताबिक, 24 अप्रैल 2025 को चेनाब नदी सियालकोट के मरला बांध के पास 22,800 क्यूसेक (एक सेकंड में एक खास बिंदु से गुजरने वाला क्यूबिक फीट पानी) की दर से पानी बह रहा था.

सिंधु नदी का जल प्रवाह

भारत से पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद चेनाब नदी पर यह पहला बांध है. वहीं, ‘सिंधु जल समझौता’ स्थगित होने के बाद 30 अप्रैल को सियालकोट के मरला बांध के पास 26,268 क्यूसेक की दर से पानी बह रहा था.

इसी तरह 24 अप्रैल को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में मंगला बांध के पास झेलम नदी का प्रवाह 44,822 क्यूसेक दर्ज किया गया, जो 30 अप्रैल को थोड़ा कम होकर 43,486 क्यूसेक हो गया.

पाकिस्तान में एंट्री के समय चेनाब और झेलम के दर्ज प्रवाह में उतार-चढ़ाव जरूर देखने को मिला. हालांकि, पाकिस्तान जाने वाले पानी के प्रवाह में ऐसा कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है. ऐसे में इस बात की कोई वजह नहीं है कि पानी रोके जाने या अपस्ट्रीम जलविद्युत परियोजनाओं के कारण कम पानी छोड़ने के लिए फिलहाल भारत को किसी भी तरह से जिम्मेदार ठहराया जाए.  

पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा जारी डेटा की पुष्टि IWT निलंबन से पहले और बाद में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) द्वारा ली गई सैटेलाइट इमेज से भी होती है.

सैटेलाइट डेटा से जाहिर होता है कि झेलम नदी पर बने उरी बांध, चेनाब पर बने बगलिहार और सिंधु पर बने निमू बाजगो बांधों और जल विद्युत परियोजना की वजह से पानी के प्रवाह में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.

क्यों चाहकर भी भारत तुरंत इन नदियों का पानी नहीं रोक सकता?

ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि भारत किसी नल की तरह जब चाहे इन नदियों में पानी के प्रवाह को रोक दे और जब चाहे चालू कर दे. इन नदियों में पानी को रोकना या नियंत्रित करना कोई आसान काम नहीं है. नदियों के पानी को स्टोर करने और नदी की धार को मोड़कर दूसरे राज्यों में ले जाने वाली बड़ी परियोजनाओं के अभाव में यह लगभग असंभव है.

जियो-एनालिटिकल विशेषज्ञ राज भगत इस बारे में बताते हैं, "वर्तमान में पश्चिमी नदियों के पानी को रोकना असंभव है. अभी ही नहीं भविष्य में भी हमारे लिए ऐसा करना मुश्किल होगा.”

उनका कहना है कि भारत के पास फिलहाल सिंधु नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए कोई साधन नहीं है. भारत के पास नदी पर सिर्फ एक छोटा सा बांध है, वह भी सैकड़ों किलोमीटर दूर लद्दाख के निमू बाजगो में.

इन नदियों के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने का एक ही उपाय है- बड़े बांध और नहरों का निर्माण किया जाए. इससे सिंचाई के लिए पानी को दूसरे राज्यों तक ले जाना संभव होगा.

जैसा कि इंडिया टुडे ने अपने रिसर्च में पाया है कि हमें तीन पश्चिमी नदियों में एक वर्ष में बहने वाले पानी को स्टोर करने के लिए भाखड़ा नांगल के बराबर कम से कम 22 बांध बनाने की जरूरत होगी.

भारत कोई भी बड़ा बांध ‘सिंधु जल समझौता’ की वजह से नहीं बना पाया, जिसमें लंबे समय तक पानी जमा कर रखा जा सके. ऐसा इसलिए क्योंकि ‘सिंधु जल समझौता’ पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम पर बांध बनाने की अनुमति नहीं देता.  

इसके आगे एक्सपर्ट ये भी बताते हैं कि इस पूरे क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति बड़े बांधों के निर्माण की अनुमति नहीं देती. एकमात्र नदी जिसका पानी कुछ हद तक मोड़ा जा सकता है, वह है चेनाब, जिसके लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होगी.

चेनाब के प्रवाह में कोई अंतर नहीं

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स, एंड पीपल से जुड़े हिमांशु ठक्कर का कहना है कि चिनाब नदी पर बांध बनाने के जोखिम ज्यादा हैं. हमारे पास आपदाओं के लिहाज से बेहद संवेदनशील इस क्षेत्र में पहले से ही सबसे कई सारी परियोजनाओं पर काम चल रहा है. यह पूरा इलाका एक ऐसा स्थान भी है, जहां विशेषज्ञों ने भूस्खलन, बाढ़, भूकंपीय गतिविधि और हिमनद झील के फटने से होने वाली बाढ़ के बड़े जोखिमों के बारे में चेतावनी दी है.  

पाकिस्तान पर प्रभाव

‘सिंधु जल समझौता’ के तहत तीन पश्चिमी नदियों के पानी को बिना किसी रुकावट के पाकिस्तान जाने देने की बात है. पाकिस्तान की संपूर्ण सिंचाई, ऊर्जा और जल प्रबंधन इन्हीं नदियों पर निर्भर है.

पाकिस्तान में बीज बोने से लेकर नहरों में पानी छोड़ने तक हर फैसला भारत द्वारा शेयर किए गए डेटा के आधार पर ही तय होता है. इस समझौते को स्थगित करने से अब भारत द्वारा नदी प्रवाह डेटा साझा नहीं किया जाएगा, जिसकी वजह से पाकिस्तान में सूखे और बाढ़ दोनों की स्थिति बन सकती है.  

15.2 करोड़ से ज्यादा पाकिस्तानियों की आजीविका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सिंधु नदी से जुड़ी हुई है. यह खाद्य उत्पादन, बिजली उत्पादन और आर्थिक गतिविधियों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो इसे एक अपरिहार्य जीवन रेखा बनाता है.

शुभम तिवारी की रिपोर्ट.

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